राज़
>> Monday, August 25, 2008
फूल ने कली से मुस्कुरा कर कहा कि
तेरे पर भी बहार आएगी
तू भी फूल बनते - बनते
यूँ ही बिखर जायेगी
पर कली ने उस बात का
वह राज़ न जाना
उसकी उस बात को
ज़रा सच न माना
पर आया वक्त तो
वह फूल बन गई
मस्ती से भरी कली
यूँ ही बिखर गई
अपने हालात पर वो
काफ़ी दुखी थी
कहती है फूल से,
मुझे माफ़ करो
मैं तुम पर
यूँ ही हँसी थी .
2 comments:
सबसे पहले हिंदी दिवस की शुभकामनायें
मस्ती से भरी कली
यूँ ही बिखर गई
अपने हालात पर वो
काफ़ी दुखी थी
कहती है फूल से,
मुझे माफ़ करो
मैं तुम पर
यूँ ही हँसी थी .बहुत ही सुंदर और गहन सोच को उजागर करती हुई बेमिसाल रचना /बहुत बधाई आपको /मेरी नई पोस्ट हिंदी दिवस पर लिखी पर आपका स्वागत है /
देर-सबेर सत्य का सामना होता ही है तब समझ में आता है कि अनुभव का कितना महत्व होता है.
सुंदर रचना.
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