खामोशी रात की
>> Wednesday, August 27, 2008
रात की खामोशी में
ये कैसी सरगोशी है?
मन ढूंढ रहा है कुछ
तन में भी बेहोशी है।
तन्हाई का आलम है
पर तनहा नही रहती
ख़ुद से कुछ चाहूँ कहना
पर बात नही मिलती
एक ख्वाब सा आंखों में
साया बन के उतरता है
उस साए को छूने की भी
इजाज़त नही होती
घने अंधेरे में यूँ
चाँद का चमकना
तारों के बीच फिर
स्याह रात नही होती
ज़िन्दगी में यूँ चमक जब
आ जाती है अचानक
फिर कुछ पाने की
मन में चाह नही होती .
13 comments:
एक ख्वाब सा आंखों में
साया बन के उतरता है
उस साए को छूने की भी
इजाज़त नही होती
bahut ghahrayi ki baatain raatain samit.ti hain
bahut acha likha hai
"एक ख्वाब सा आंखों में
साया बन के उतरता है
उस साए को छूने की भी
इजाज़त नही होती "
SHABDON ME UTAR DI HAI AAPNE BAHUT HI ROOMANI RAHASYA... Too Good...
ज़िन्दगी में यूँ चमक जब
आ जाती है अचानक
फिर कुछ पाने की
मन में चाह नही होती .
mere liye bahut kahs pasand kee kavita hai ye bahut khoob
Anil
ज़िन्दगी में यूँ चमक जब
आ जाती है अचानक
फिर कुछ पाने की
मन में चाह नही होती ...........
bahut sahi,aur kaafi gahri,
jab shabd gunj ban jaye,to sarahna se upar ho jate hain
Sangeeta ji .. Ek behtar rachna ... Aur utnii he behtar prastutii ...
Jiss tarah .. kalam chalate waqt rachnakaar ke mann me uljhan thaa .. waise he isey samajhne mein bhee thodi uljhan hui ... :)
Per .. beshak.. aapke vyaktitva ke anuroop.. ek umdaa rachna ..
Dheron prashanshayein...
Aapka
Yash..
ज़िन्दगी में यूँ चमक जब
आ जाती है अचानक
फिर कुछ पाने की
मन में चाह नही होती .
bahut sunder .. aur ye chamak kisi bahari object se nahin atai.. apna hi man chamak ko mehsoos karne lagta hai...
mudita
रात की खामोशी में
ये कैसी सरगोशी है?
मन ढूंढ रहा है कुछ
तन में भी बेहोशी है।
--aaaah ek tanha raat ka chitran bahut khoob..
तन्हाई का आलम है
पर तनहा नही रहती
ख़ुद से कुछ चाहूँ कहना
पर बात नही मिलती
---hmmm ek dil ki kashmokash,,ek uha-poh..jyu raasta nahi mil raha vicharo ko khul kar saamne aane ka..!!
एक ख्वाब सा आंखों में
साया बन के उतरता है
उस साए को छूने की भी
इजाज़त नही होती
--hmmm yaha us tanha insaan ki chaahat, ek armaan,,,ek khaab ban k hridye patal se hota hua..mastishk ki yaado se guzerta hua..aankho main aa ker basta ja raha hai..jise vo tanha man yathharth roop me chhuna chaahta hai..per vo to khaab hai..so izazet kaha?? bahut sunder aur sanjeev chitran..bhut gehrayi se dil ko chhu gaye ye ehsaas..!!
घने अंधेरे में यूँ
चाँद का चमकना
तारों के बीच फिर
स्याह रात नही होती
ज़िन्दगी में यूँ चमक जब
आ जाती है अचानक
फिर कुछ पाने की
मन में चाह नही होती .
- yaha jaise tript ho gaye ho khud-b-khud..us saaye ko jaise man me utar kar jaise sab sukh paa liye ho..ab syah raat ka sawal nahi hai man-mastishk me..aur such hai tript.Ta, santushti pa lene k baad kuch chaah nahi rehti..
Sangeeta ji mujhe aapki ye rachna bahut acchhi lagi..hats off..aage bhi intzaar rahega..thanks for sharing..
कल 13/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
मन मग्न हो गया है आपकी सुन्दर प्रस्तुति पढकर.
आपका आभार.
यशवंत जी का आभार जिनकी हलचल से यहाँ चला आया हूँ.
bahut sundar| shubhakaamanaayeM|
2008 की पोस्ट, बाप रे बाप, ढूँढने वाले की तारीफ करनी होगी। दीदी बहुत सुंदर कविता है ये।
bahut sundar.kavy..
ज़िन्दगी में यूँ चमक जब
आ जाती है अचानक
फिर कुछ पाने की
मन में चाह नही होती ...
सुन्दर रचना दी....
सादर...
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