खूंटा बनाम ज़िन्दगी
>> Friday, August 15, 2008
मैं और मेरा मन
ज़िन्दगी के खूंटे को गाड़ कर
कोल्हू के बैल की तरह
ज़िन्दगी के चारों ओर घूम रहा है।
आंखों पर पट्टी और गर्दन में घंटी
कुछ इसी तरह की ज़िन्दगी
हमारी हो गई है
बैलों की ज़िन्दगी से भी
भारी ये ज़िन्दगी
खूंटे के चारों ओर
घूमती रह गई है.
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