मजबूरी
>> Monday, October 20, 2008
ज़िन्दगी का अर्थ ढूढते रहे
औ ज़िन्दगी का सफर
यूँ ही पूरा हो गया ।
जो मिला इस सफर में
वो भी तो कुछ कम न था
कुछ गम थे , कुछ शक
कुछ तल्खियाँ औ तन्हाईयाँ
और जो प्यार मिला तो
वो भी अधूरा रह गया ।
ख्वाब में गर मैंने
मंजिल पाने की चाहत की
इस चाहत के दरमियाँ ही
ख्वाब खंडित हो गया ।
और अब न ख्वाब है
न चाहतें , न ही मंजिल
न अधूरा प्यार ही
शायद इसी लिए अब
यह ज़िन्दगी जीना आसान हो गया ।
गर इसी को जीना कहते हैं
तो हम भी जी रहे हैं
पल- पल मर - मर कर हम
यूँ ही साँस ले रहे हैं
और हर साँस के साथ
विष का धुंआ उगल रहे हैं
क्यों की -
ज़हर उतारने के लिए
ज़हर का होना ज़रूरी है
ऐसे ही -
ख़ुद को विषाक्त बना लेना
मेरी मजबूरी है.
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तृष्णाएँ
>> Saturday, October 18, 2008
ज़िन्दगी एक धोखा है
फिर भी लोग विश्वास करते हैं
कि हम जीते हैं
और न जाने
कब तक जीते रहेंगे
इस जीने की उम्मीद पर ही
तृष्णाएँ जन्म लेती हैं
और हावी हो जाती हैं
मनुष्य की ज़िन्दगी पर ,
उन तृष्णाओं की तृप्ति में ही
मनुष्य लगा देता है सारा जीवन ,
पर क्या सही अर्थों में
उसे तृप्ति मिलती है ?
निरंतर प्रयासों के बाद भी
मानव तृषित रहता है
और फिर -
स्वयं को धोखा देता है
यह विश्वास करके कि
वह प्रसन्न है , संपन्न है
उसमे अपनी इच्छाओं को
पूरा कराने का दम है ,
उसके लिए मात्र
एक ज़िन्दगी कम है।
झंझावात
>> Wednesday, October 15, 2008
दूर तक नज़र
ढूढ़ती है कि
कोई नेह का बादल
अपना छोटा सा टुकड़ा
कहीं छोड़ गया हो
और वो बरस कर
मुझे भिगो दे .
पर-
मंद समीर भी
उड़ा ले जाता है
हर टुकड़े को
अपने साथ .
और आ जाता है
मेरी ज़िंदगी में
कुछ ऐसा झंझावात
कि भीगने को
तरसते मन को
जैसे रेतीली हवाओं ने
घेर लिया हो
चारों ओर से .
विरासत
>> Saturday, October 4, 2008
ज़िन्दगी के हर मोड़ पर
मुझे मात मिली
तुम एक और मात दे दोगे
तो कोई बात नही ।
दिल का सागर भरा है
गम की लहरों से
तुम एक और लहर मिला दोगे
तो कोई बात नही।
धूल का गुबार ही
मेरी किस्मत में लिखा है
खुशियों के पीछे तुम भी
उसमें एक ज़र्रा मिला दोगे
तो कोई बात नही।
प्यासा दिल पानी की चाह में
न जाने कहाँ कहाँ भटक गया
तुम भी पानी दे कर छीन लोगे
तो कोई बात नही ।
हालत के हाथों मैं अक्सर
हो जाती हूँ मजबूर
तुम और मजबूर बना दोगे
तो कोई बात नही .
मेरी ज़िन्दगी की किरणों में
कहीं कोई चमक बाकी थी
तुम उसको भी छीन लोगे
तो कोई बात नही ।
इस उजाड़ , वीरान सी ज़िन्दगी से
क्या शिकवा ?
तुम नेह का बादल हटा दोगे
तो कोई बात नही।
बस बात है तो केवल इतनी कि
गर हो मेरी ज़िन्दगी में
कोई चाहत , तम्मनाएं औ खुशी
वो सब तुझे मेरी विरासत में मिलें
ज़िन्दगी की इस कठोर धरती पर
तेरे लिए खुशी का हर फूल खिले .
बंदिशें
>> Friday, October 3, 2008
बंदिशें ज़िन्दगी में
हर पल कुछ यूँ
हावी हो जाती हैं
चाहता है कुछ मन
पर ख्वाहिशें
पूरी नही हो पाती हैं ।
यूँ तो हम सब
ज़िन्दगी जी ही लिया करते हैं
सुख के पल भी ज़िन्दगी में
अनायास ही पा लिया करते हैं ।
हंस लेते हैं महज़ हम
इत्तफाक से कभी कभी
खुश हो लेते हैं यह सोच
कि ज़िन्दगी में कोई कमी तो नही ।
पर गायब हो जाती है मुस्कान
ये सोच कि -
हम कौन सा पल
अपने लिए जिए ?
अब तक तो मात्र
सबके लिए फ़र्ज़ पूरे किए।
कौन सा लम्हा है हमारा
जिसे हम सिर्फ़ अपना कह सकें
और उस लम्हे को अपनी
धरोहर बना सकें ।
ढूंढे से भी नही मिलता वो एक पल
जो हमने अपने लिए जिया हो
बंदिशों के रहते
किसी पल को भी अपना कहा हो।
रीत जाती है ज़िन्दगी
बस यूँ ही चलते - चलते
बीत जाती है ज़िन्दगी
बंदिशों में ढलते - ढलते .
मेरा मन
>> Thursday, October 2, 2008
धूप में झुलसती हुई
ज़िन्दगी की
पथरीली सड़क पर
मेरा मन
नंगे पाँव चला जा रहा था।
कब राह में
ठोकर लगी ?
गर्म धूल के समान
तपते विचार
कब मन को झुलसा गए ?
कब आक्रोश के भास्कर ने
मन के भावों को
भस्म किया ?
कुछ अहसास नही ।
बस ये मन है कि
ज़िन्दगी की हर
सरल - कठिन , टेढी - मेढ़ी
स्वछन्द या कि
काँटों से भरी राह पर
चलता गया ।
कभी प्रसन्न वदन
खुशियाँ लुटायीं
तो कभी ग़मगीन हो
लहू - लुहान हो गया .
इम्तहान
>> Wednesday, October 1, 2008
ज़िंदगी में इम्तहान तो
हर घड़ी चला करते हैं
कुछ स्वयं आ जाते हैं सामने
तो कुछ हम खुद चुन लिया करते हैं
और जो बचते हैं वो
हम पर थोप दिए जाते हैं ।
और मान लिया जाता है कि
ज़िंदगी के इम्तिहान में
हमें सफल होना है ।
यूँ ज़िंदगी से
जद्द-ओ -जहद करते हुए
हर इंसान
कदम दर कदम
आगे बढ़ता है
हर लम्हा कुछ
नया खोजते हुए
कुछ नया चाहते हुए
अपनी ख्वाहिशों को
अपनों पर लुटाते हुए ।
क्या पता ऐसा करना
उसकी मजबूरी होती है या ज़रूरत ?
या फिर अपनों के प्रति
श्रद्धा या क़ुर्बानी
पर प्यार भरी डगर पर
चलते - चलते वो इंसान
अचानक ख़त्म कर देता है
अपनी कहानी॥
और फिर -
एक नाकाम सी कोशिश में
सब कुछ भूलने का प्रयास करते हुए
स्वयं उलझ कर रह जाता है ।