चंदा मामा दूर के
>> Monday, July 18, 2011
आज कल
चाँद मेरे घर
रोज आता है
और
अपनी चांदनी से
रोशन कर देता है
कोना - कोना
चांदनी में होती है
भोली सी मुस्कान
जो देती है मुझे
मेरी पहचान
उस मुस्कान को
भर अपनी आँखों में
झुलाती हूँ मैं उसे
अपनी बाहों में ,
और चाँद
उस समय
बनाता है
पुए बूर के
पुए का इंतज़ार
करते करते ही
वो मुस्कान
सो जाती है
मेरी गोद में
और मैं कह उठती हूँ
चंदा मामा दूर के
पुए पकाएं बूर के ...
65 comments:
सुंदर रचना……आभार्।
उस मुस्कान को
भर अपनी आँखों में
झुलाती हूँ मैं उसे
अपनी बाहों में ,
इस नन्हीं मुस्कान के लिये शुभकामनाएं .. बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
चाँद को बहुत बहुत आशीष,
गोदी में झुलाने का आनंद लेती रहें
चाँद यूँही हमेशा आपके घर का कोना-कोना
रौशन करता रहे ! शुभकामनाएं ...
बहुत ही प्यारी कविता.
---------------
कल 19/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
kabhi iss chanda ko kahna mera ghar bhi raushan kare:),
काश, हमे भी उस 'चाँद' के दर्शन हो जाए कभी ...जिनसे आपका घर -अंगना रोशन हो रहा हैं दी. अभी तो खुद ही पुए बना कर खा लेते हैं जी ..
हम तो आपकी इस मुस्कान के साथ ही खो गये………इतनी मीठी मुस्कान पर कौन ना मर जाये…………आनन्द आ गया पढकर्।
चाँद यू ही रोशन करता रहे आपके मन का कोना कोना . सुँदर रचना .
वाह, चाँद, मुस्कान और पुए की मिठास से भरी यह कविता दिल को छू जाती है...
मैंने तो सुना था पुए पकाए गुड़ के..पता नहीं. बहुत सुन्दर लिखा है.
ओले बाबा .....
कितना सुन्दर चित्र है..शब्दों का.
एक दम लोरी जैसी कोमल और पुरसुकून कविता.
आपके आँगन में चाँद यूँ ही उतरता रहे.
वात्सल्य और ममता की चाशनी में डूबी एक प्यारी कविता ....
जैसे माँ का स्पर्श याद दिला रही है ...
पावन रचना ...बधाई.
नन्हे-मुन्ने पोते को ऐसी विदुषी दादी जब अपनी बाहों में झुलायेंगी तो ऐसी कोमल, प्यारी और वात्सल्य से परिपूर्ण सुन्दर रचनाएं ही आकार लेंगी ! इस नन्हे से फ़रिश्ते की मुस्कान पर वारी जाऊँ ! उसे ढेर सारे आशीर्वाद एवं शुभकामनायें !
aapki muskaan aur aapki chaand hamesha isi tarah bani rahe aur pooye khaati rahe.bahut sunder aur pyaari rachanaa.badhaai aapko.bahut hi pyaari pic.hamaraa bhi bahut saara pyaar,dulaar.
please visit my blog.thanks
बहुत सुंदर आंटी...बाबू को मेरा बहुत सा स्नेह और प्यार।
वात्सल्य से परिपूर्ण मासूम सुन्दर रचना...
बहुत ही कोमल-कोमल, प्यारी-प्यारी रचना ....
गीत चाहे पुराना है लेकिन मिठास नई है.
पुए का इंतज़ार
करते करते ही
वो मुस्कान
सो जाती है
मेरी गोद में ..
स्नेह एवं दुलार से भरी कविता...आपको एवं नन्हे चाँद को कोटि कोटि शुभ कामनाएं !!!
vry cute didi
:)
बहुत ही खुबसूरत रचना...
सुन्दर रचना!
ईश्वर करे आपकी बगिया में चाँदनी हमेशा हँसती रहे!
aap jaisi mamata mile to chaand kyon n utaregaa aapke aangan mey?
bahut hi pyari kavita hai.....
"चन्दा चमकता रहे यूँ ही
आँगन दमकता रहे यूँ ही"
सादर....
kash aap ye bhi gati...
aao tumhe chand pe le jaye...
sapno ki duniyan dikhaye...
:):):)
aapko lori gate hue ankho me chalchitr sa ghoom raha hai apke chaand ke sath.
bahut sunder.
बड़ी ही कोमल अभिव्यक्ति, बचपन के चन्दामामा सदा ही आनन्द जगा जाते हैं।
हमेशा कायम रहे चंदा से ये भावनात्मक रिश्ता...
बहुत अच्छी रचना है.
चंदा मामा की शीतलता,
मस्तक में आ जाए,
और हृदय में धवल चांदनी,
पावन ठौर बनाए |
चंदा मामा घूम-घूमकर,
सही राह दिखलाते--
बल-बुद्धि यश परम तेज से,
जग में नाम कमाए ||
बहुत ही सुन्दर चित्र और शब्द चित्र .....
संगीता दी!
बहुत ही सुन्दर अंदाज़ है आज!! एक बच्ची की तरह मासूम... यह चाँद एक रोज चाँद छूने लगे, यही कामना है!!
bahut pyaari si rachna hai mumma......:)
Akshat ko bahut pyaar
bahut pyaari si rachna hai mumma......:)
Akshat ko bahut pyaar
ये चाँद कुछ ख़ास लग रहा है...जो गोद में सो जाता है...
ममत्व और वात्सल्य का मीठा बताशा हमने खा लिया.चंदा मामा के गुड़ वाले पुए की डिश आपके लिये छोड़ दी है.मामा-भांजी मिल कर खायें.
पुए का इंतज़ार
करते करते ही
वो मुस्कान
सो जाती है
मेरी गोद में
और मैं कह उठती हूँ
चंदा मामा दूर के
पुए पकाएं बूर के ...
नन्हीं मुस्कान के प्रति बहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।
भोली सी मुस्कान
जो देती है मुझे
मेरी पहचान
उस मुस्कान को
भर अपनी आँखों में
झुलाती हूँ मैं उसे
अपनी बाहों में ,
वत्सल स्नेह में डूबी बहुत ही कोमल सुन्दर कविता...हार्दिक बधाई...
Such a lovely kid.. nazar na lage.. aaj kal m bhi is sab ko mehsoos kar rahi hu.. bas fark itna h k aap daadi ban k aur m bua ban k... magar haan LORI ek hi h.. chanda mama dur k :)
उस मुस्कान को
भर अपनी आँखों में
झुलाती हूँ मैं उसे
अपनी बाहों में ,
चाँद आपके वात्सल्य का रस लेता रहे और आप इस खुशी में निरंतर डूबती रहें शुभकामनाये भी बधाई भी
वाह ... खूबसूरत भावों के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
बच्चों की एक मुस्कान में सारा जीवन सिमटा होता है ... सुन्दर प्रस्तुति ..
behtreen rachna
उस मुस्कान को
भर अपनी आँखों में
झुलाती हूँ मैं उसे
अपनी बाहों में ,
kitna darshniye varnan hai .
bahut hi sunder
badhai
rachana
दीदी ...
:) :) :) ..बहुत प्यारी कविता और मुझे भी महसूस हुई वो मुस्कान .. ४४ साल पहले की :) मैंने भी किया है ना इन पुओं का इंतज़ार :)
सभी पाठकों का आभार ...
@@ मुदिता ,
:):) ..बहुत घुमाया है तुमने मुझे ..और बहुत पुए पकवाए हैं ऐसे ही :):)
बहुत ही प्यारी रचना,
साभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
चंदामामा की ये वाली कविता को एक नए रूप में भी आज देख लिया... मासूमियत भरी है.....
चांदनी में होती है
भोली सी मुस्कान
जो देती है मुझे
मेरी पहचान...
सचमुच एक नन्हा बच्चा व्यक्ति को खुद अपने आप से परिचित करवाता है ..बहुत प्यरी कविता
पुए बूर के
गनीमत है इन पर अभी तक किसी ने पेटेंट नहीं करवाया 'बूर के पुओं पर' और आप हम सभी को पढ़वा पाईं बचपन की यादों में दर्ज़ एक और कहानी|
बेहद सुन्दर वात्सल्य में घुली सुन्दर रचना ...
पुए का इंतज़ार
करते करते ही
वो मुस्कान
सो जाती है
मेरी गोद में
और मैं कह उठती हूँ
चंदा मामा दूर के
पुए पकाएं बूर के ...
दीदी इसमें ख़ुशी ज्यादा है या टीस ज्यादा है ...जो भी है.बहुत सुन्दर चित्रण किया है आपने !
main janti hun chandamama kiske liye aate hain aur kaun bulata hai....
संगीता जी एक बेहतरीन शब्द रचना /कविता के लिए आपको बधाई और प्रणाम |
आदरणीय संगीता जी ये प्यारी रचना ये चंदा ये चांदनी हमेशा मुस्कान को मुस्कान देती लोरी गाती झुलाती रहे -
शुभ कामनाएं -
संगीता जी मेरी बात पर थोडा गौर करियेगा और थोडा एडिट करियेगा -
चंदा मामा दूर के पुआ पकाएं गूर के ..
ये गूर से मेरा मतलब है गुड़ जो की गन्ने का बना होता है और शुद्ध भाग चीनी का है -
goor ya gud
शुक्ल भ्रमर ५
उस मुस्कान को
भर अपनी आँखों में
झुलाती हूँ मैं उसे
अपनी बाहों में ,
सुरेन्द्र जी ,
शुक्रिया ...हमने बचपन से बूर ही सुना है और बूर का मतलब बूरा होता है जो खांड या चीनी से से बनता है ..इस लिए मैंने यही लिखा है ...वैसे गुड़ से बने या बूरे से होता तो मीठा ही है न :):)
बहुत बधाई...आजकल हम भी दिन रात इसी को गाने में मगन हैं पोते के साथ:
चंदा मामा दूर के
पुए पकाएं बूर के ...
:)
इस सुख को शब्दों में बाँध अभिव्यक्ति दे पाना कठिन है...पर आपने दिया...यही तो आपकी सिद्धहस्तता है...
संगीता जी बहुत ही प्यारी रचना, ईश्वर करे आपका चाँद और उसकी चांदनी यूँ दिन दुनी रात चौगुनी हँसती रहे और आपका जीवन रौशन करती रहे...
ati sundar.............
sach me hum bhi apne bachpan k dino me kho gaye............aabhar us duniya me jaane k liye or jindgi ki gahmagahmi se chand pal fursat paane ke liye............
ati sundar.............
good one :)
आपकी रचना बहुत प्यारी है. धन्यवाद
चंदा मामा दूर होकर भी
सबके दिलों पर राज करते हैं।
मनभावन रचना।
Post a Comment