खनकते सिक्के
>> Thursday, November 8, 2012
नारी और पुरुष को
एक ही सिक्के के
दो पहलू माना है
पुरुष को हैड और
स्त्री को टेल जाना है
पुरुष के दंभ ने
कब नारी का मौन
स्वीकारा है
उसके अहं के आगे
नारी का अहं हारा है ।
पुरुष ने
हर रिश्ते को
अपने ही तराजू पर
तोला है ,
जबकि
नारी ने हर रिश्ता
मिश्री सा घोला है ।
पुरुष अपने चारों ओर
एक वृत बना
घूमता रहता है
उसके अंदर ,
नारी धुरी बन
एक बूंद को भी
बना देती है समंदर ।
सच ही
नारी और पुरुष
एक ही सिक्के के
दो पहलू लगते हैं
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं ।
78 comments:
सच ही
नारी और पुरुष
एक ही सिक्के के
दो पहलू लगते हैं
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं ।
बेहद सशक्त पंक्तियां ... आभार इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति के लिए
सादर
पुरुष ने
हर रिश्ते को
अपने ही तराजू पर
तोला है ,
जबकि
नारी ने हर रिश्ता
मिश्री सा घोला है ।
वाह!! नए अंदाज में सिक्के के दोनो पहलू बताए...
साथ रहकर भी अलग-अलग!
पुरुष अपने चारों ओर
एक वृत बना
घूमता रहता है
उसके अंदर ,
नारी धुरी बन
एक बूंद को भी
बना देती है समंदर ।
सिक्के के दोनो पहलुओं को क्या खूब तराजू मे तोला है
एक चिरंतन सत्य को बड़ी ही सहज एवँ सशक्त अभिव्यक्ति दी है संगीता जी ! आपकी लेखनी को सादर नमन !
एक चिरंतन सत्य को बड़ी ही सहज एवँ सशक्त अभिव्यक्ति दी है संगीता जी ! आपकी लेखनी को सादर नमन !
पुरुष के दंभ ने
कब नारी का मौन
स्वीकारा है
उसके अहं के आगे
नारी का अहं हारा है,,,
हर चीज के दो पहलू होते है, सशक्त सटीक रचना,,,,
RECENT POST:..........सागर
एक सिक्के के दो पहलु,पर दोनों पर अपना चेहरा लगाने में जो तत्पर हुआ - वहीँ सिक्का हुआ खोटा :)
सच ही
नारी और पुरुष
एक ही सिक्के के
दो पहलू लगते हैं
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं । सच ही
बहुत सुंदर रचना
क्या कहने
हकीकत से रुबरू करा रही है ये रचना
बहुत सुन्दर रचना !
बहुत बहुत आभार !
मेरी नयी पोस्ट - नैतिकता और अपराध पर आप सादर आमंत्रित है
दोनों ही एक दूसरे के पूरक है ...सादर
बेहतरीन रचना ...एक ही जीवन से जुड़कर भी अलग से स्त्री पुरुष....
काश नारी पुरुष सिक्के के दो पहलू न होकर एक बंद सीप की मानिंद जुड़े रहते .....तो जीवन में कितने दुःख दर्द कम होते .......सार्थक रचना
या फिर ये भी कहा जा सकता है कि दोनों में आसमान-धरती सा ही फर्क भी है .. अब बुझने वाले बुझते रहे..
आज तो निशब्द ही कर दिया ...सच में.इतनी सटीक अभिव्यक्ति पर क्या बोलूं.
नारी और पुरुष
एक ही सिक्के के
दो पहलू लगते हैं
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं ।
इस सच्चाई को दोनों जितने बेहतर ढंग से समझेंगे
उतनाही खनकने में आसानी होगी !
बढ़िया रचना ...
पुरुष के दंभ ने
कब नारी का मौन
स्वीकारा है
उसके अहं के आगे
नारी का अहं हारा है ।bahut badhiya abhiwayakti sangeeta jee...par naari har kar bhi hmesha jeetti hai .....
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !:)
हेड हो टेल...एक दूसरे के बिना अधूरे ही हैं..., एक दूसरे के पूरक हैं...
~सादर !
chaahe purush haare ya jeete....lekin rahega to nari k bina adhura hi...yah bhi ek saty hai.
sunder sateek prastuti.
सुंदर रचना। इसके अर्थ हमारे विचारों की दिशा बताती है।
वाह दी....
सच कहा....
एक दूजे की ओर पीठ किये....
मगर सिक्के की सार्थकता दोनों के साथ होने से ही है,है न??....
:-)
सादर
अनु
पुरुष को हैड और
स्त्री को टेल जाना है
नारीवादी लोग नाराज़ न हो जाएं ...
सिक्के की सार्थकता दोनों के होने पर ही सार्थक है...
एक-दूजे के बिना दोनों अधूरे..
सार्थक रचना,,,,
सच ही
नारी और पुरुष
एक ही सिक्के के
दो पहलू लगते हैं
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं ।
...बहुत सटीक और सशक्त अभिव्यक्ति..
गहन भाव लिए गम्भीर रचना ने नि:शब्द कर दिया.
दीवाली की अनेक शुभ कामनाएँ !
बेहतरीन अभिव्यक्ति ...
शुभकामनायें आपको !
सच ही
नारी और पुरुष
एक ही सिक्के के
दो पहलू लगते हैं
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं ।
यही सच है ?
बहुत ही खूबसूरती से आपने इस कविता में तुलनात्मक चरित्र चित्रण किया है.. हमेशा की तरह यह कविता भी दिल को छूती है!!
वाह!
जानता सब है, फैलने की कोशिश में गहराई खो बैठता है !
अपने अहम् को पराजित कर जीतती है पुरुष को मगर हारकर भी जीतती नारी ही है !
एक ही सिक्के के दो पहलू से नारी और पुरुष ...
बहुत उम्दा रचना | सत्यता को बखूबी दर्शाया है आपने |
मेरी नई पोस्ट-बोलती आँखें
bahut badhiya rachana ...abhaar
दो पहलू ...किन्तु एक दूसरे के पूरक ...
अलग हैं बिलकुल तभी पूरक भी हैं ...
बहुत सुंदर रचना दी ...
पुरुष के दंभ ने
कब नारी का मौन
स्वीकारा है
उसके अहं के आगे
नारी का अहं हारा है,,,
एक सिक्के के दो पहलू तो हैं लेकिन चलता एक तरफ से देख कर ही है। दूसरी तरफ क्या है इसकी दरकार कहाँ? ऊपर की पंक्तियों में सब कुछ कह दिया है।
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं ।
sundar...
सुन्दर, कभी एक ऊपर खनकता है, कभी दूसरा।
वाह..अद्भुत..बहुत सार्थक अवलोकन है..बधाई..
फिर भी एक-दूजे के बिना दोनों अधूरे .....
दीवाली की शुभकामनायें!
Bahut Khoobsoorat! Antim do panktiyaan khaas taur par pasand aayee:)
ये पंक्तियाँ मुझे लाजवाब लगी :-
"पुरुष अपने चारों ओर
एक वृत बना
घूमता रहता है
उसके अंदर ,
नारी धुरी बन
एक बूंद को भी
बना देती है समंदर"
.. बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति ..
सादर
मधुरेश
बहुत ही सुन्दर कविता |दीपावली की शुभकामनायें |
वाह, बहुत सुन्दर
दीपावली का त्यौहार आपके लिए मंगलमय हो
अब अपनी टिप्पणी के साथ अपनी पसंद अनुसार कोई भी ग्रीटिंग भेजें
दोनों मिलते तो है न . और खोटे भी नहीं है फिर चलेगा :)
बहुत सुन्दर चित्रण किया है स्त्री पुरुष के स्वभाव का वाह!!!!! आपको व् आपके परिवार को दिवाली की शुभकामनाएं
सह परिवार आपको भी दीपावली की
हार्दिक शुभकामनाएँ ...
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं......sahi vyakhya....
दीपावली पर्व के अवसर पर आपको और आपके परिवारजनों को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें...
नारी औरकी पुरुष को
एक ही सिक्के के
दो पहलू माना है
पुरुष को हैड और
स्त्री को टेल जाना है
अब ऐसा कम होता है । एक खास तबके में तो ।
आप की रचना सत्य की एक अलग पहचान कराती है ।
सिक्के का मूल्य तभी है जब उसके दोनों पहलु दुरुस्त हों...वर्ना खोटे सिक्के चलते नहीं हैं...
बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना. दिवाली की शुभकामनायें.
सादर
निहार
ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
♥~*~दीपावली की मंगलकामनाएं !~*~♥
ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
सरस्वती आशीष दें , गणपति दें वरदान
लक्ष्मी बरसाएं कृपा, मिले स्नेह सम्मान
**♥**♥**♥**● राजेन्द्र स्वर्णकार● **♥**♥**♥**
ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
दीपोत्सव पर्व के अवसर पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ....
पीठ जोड़े अपने अपने आसमान में खनकने की छुट मिल जाये ये भी बहुत है .....
***********************************************
धन वैभव दें लक्ष्मी , सरस्वती दें ज्ञान ।
गणपति जी संकट हरें,मिले नेह सम्मान ।।
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दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
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अरुण कुमार निगम एवं निगम परिवार
***********************************************
खनक भी होती है पारस्परिक .सिक्का किसी भी तरफ से खोटा हो फिर मानदेय से गिर जाता है .
सच ही
नारी और पुरुष
एक ही सिक्के के
दो पहलू लगते हैं
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं ।
सच ही
नारी और पुरुष
एक ही सिक्के के
दो पहलू लगते हैं
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं ।
अत्यंत शशक्त और सार्थक अभिव्यक्ति.....
chir chintan ..ye jivan rath ke sathi hai kbi na aage na piche bas sath sath hi chalte hai.
पुरुष ने
हर रिश्ते को
अपने ही तराजू पर
तोला है ,
जबकि
नारी ने हर रिश्ता
मिश्री सा घोला है ।
जीवन में नारी और पुरुष के किरदार की सुन्दर एवं सशक्त अभिव्यक्ति ... भिन्न होते हुए भी दोनों एक दुसरे के पूरक हैं। जीवन में भावनात्मकता और व्यावहारिकता दोनों की ही आवश्यकता होती है ... दोनों पक्षों का संतुलन होना भी तो आवश्यक है।
Manju
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं ।
वाह ....
उसके अंदर ,
नारी धुरी बन
एक बूंद को भी
बना देती है समंदर ।
bilkul utkrisht rachana .....badhai.
सच ही
नारी और पुरुष
एक ही सिक्के के
दो पहलू लगते हैं
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं ।
...सशक्त पंक्तियाँ! इतने सुंदर ढंग से नारी और पुरूष को आपने परिभाषित किया है कि मन खुश हो गया आपकी इस अनूठी मौलिकता पर। ..वाह! ढेर सारी बधाइयाँ।
पुरुष का पल्लवन नारी के हाथों ही होता है संतान होने तक पति भी पुत्र वत ही होता है पत्नी के लिए .आभार आपकी टिपण्णी का ..
सच ही
नारी और पुरुष
एक ही सिक्के के
दो पहलू लगते हैं
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं । ..ye panktiyaa shayd saar samjhati hain.. bahut achhi panktiya mam...shyd yah kahoon ki ye sachchai hai... sadar naman...
पुरुष अपने चारों ओर
एक वृत बना
घूमता रहता है
उसके अंदर ,
नारी धुरी बन
एक बूंद को भी
बना देती है समंदर ।
सशक्त अभिव्यक्ति....
नारी और पुरुष
एक ही सिक्के के
दो पहलू लगते हैं
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं ।
सिक्के की उपमा में छुपा विरोधाभास कविता में गंभीरता से मुखरित हुआ है।
अपनी कविता में आपने पुरुष प्रधान मानसिकता को बड़े ही सटीक और सरल शब्दों में अभिव्यक्त किया है ..सुंदर कविता ..बधाई ..
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं....
बहुत शानदार , आपकी लेखनी को सादर नमन
पुरुष और स्त्री ...सिक्के के दो पहलु तो है पर आपस में जुड़े हुए भी है ....दोनों एक दुसरे के पूरक है ...इसीलिए तो दोनों के मिलन से एक नई स्रष्ठी का उदय होता है .....
उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.....सशक्त रचना......
nice
अब नारी, पुरुष से ज्यादा सबल है।
सुन्दर भावपूर्ण!
इन जुड़े हुवे सिक्कों में ही जीवन है ...
सहजता से दोनों का महत्त्व सिखा दिया ...
a very nice poetry ... very well written ...congra8 ..kudos to u mam.... :)
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bahut sundar bhaav ..
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं ।
शायद सच्चाई भी यही है दोनों साथ साथ रह अकेले से है दोनों में कुछ खीचा तानी सी होती ही है
बहुत ही सुन्दर विचार ..नारी और पुरुष ..एक ही पहलू के दो हिस्से..
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