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खनकते सिक्के

>> Thursday, November 8, 2012




नारी और पुरुष को 
एक  ही सिक्के के 
दो पहलू  माना है 
पुरुष को हैड और 
स्त्री को टेल  जाना है 

पुरुष के दंभ ने 
कब नारी का मौन 
स्वीकारा  है 
उसके अहं के आगे 
नारी का अहं हारा है ।

पुरुष ने 
हर रिश्ते को 
अपने ही तराजू पर 
तोला  है , 
जबकि 
नारी ने हर रिश्ता 
मिश्री सा घोला है । 

पुरुष  अपने चारों ओर 
एक वृत बना 
घूमता रहता है 
उसके अंदर ,
नारी धुरी बन 
एक बूंद को भी 
बना देती है समंदर । 

सच ही  
नारी और पुरुष 
एक ही सिक्के के 
दो पहलू लगते हैं 
जो सिक्के की तरह ही 
पीठ जोड़े 
अपने अपने 
आसमां में खनकते  हैं । 


78 comments:

सदा 11/08/2012 11:24 AM  

सच ही
नारी और पुरुष
एक ही सिक्के के
दो पहलू लगते हैं
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं ।
बेहद सशक्‍त पंक्तियां ... आभार इस उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति के लिए

सादर

ऋता शेखर 'मधु' 11/08/2012 11:28 AM  

पुरुष ने
हर रिश्ते को
अपने ही तराजू पर
तोला है ,
जबकि
नारी ने हर रिश्ता
मिश्री सा घोला है ।

वाह!! नए अंदाज में सिक्के के दोनो पहलू बताए...
साथ रहकर भी अलग-अलग!

vandana gupta 11/08/2012 11:46 AM  

पुरुष अपने चारों ओर
एक वृत बना
घूमता रहता है
उसके अंदर ,
नारी धुरी बन
एक बूंद को भी
बना देती है समंदर ।

सिक्के के दोनो पहलुओं को क्या खूब तराजू मे तोला है

Sadhana Vaid 11/08/2012 12:04 PM  

एक चिरंतन सत्य को बड़ी ही सहज एवँ सशक्त अभिव्यक्ति दी है संगीता जी ! आपकी लेखनी को सादर नमन !

Sadhana Vaid 11/08/2012 12:04 PM  

एक चिरंतन सत्य को बड़ी ही सहज एवँ सशक्त अभिव्यक्ति दी है संगीता जी ! आपकी लेखनी को सादर नमन !

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया 11/08/2012 12:05 PM  

पुरुष के दंभ ने
कब नारी का मौन
स्वीकारा है
उसके अहं के आगे
नारी का अहं हारा है,,,

हर चीज के दो पहलू होते है, सशक्त सटीक रचना,,,,

RECENT POST:..........सागर

रश्मि प्रभा... 11/08/2012 12:13 PM  

एक सिक्के के दो पहलु,पर दोनों पर अपना चेहरा लगाने में जो तत्पर हुआ - वहीँ सिक्का हुआ खोटा :)

महेन्द्र श्रीवास्तव 11/08/2012 12:14 PM  

सच ही
नारी और पुरुष
एक ही सिक्के के
दो पहलू लगते हैं
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं । सच ही

बहुत सुंदर रचना
क्या कहने
हकीकत से रुबरू करा रही है ये रचना

Manoj Kumar 11/08/2012 12:38 PM  

बहुत सुन्दर रचना !
बहुत बहुत आभार !
मेरी नयी पोस्ट - नैतिकता और अपराध पर आप सादर आमंत्रित है

Anju (Anu) Chaudhary 11/08/2012 12:54 PM  

दोनों ही एक दूसरे के पूरक है ...सादर

डॉ. मोनिका शर्मा 11/08/2012 12:58 PM  

बेहतरीन रचना ...एक ही जीवन से जुड़कर भी अलग से स्त्री पुरुष....

Saras 11/08/2012 1:21 PM  

काश नारी पुरुष सिक्के के दो पहलू न होकर एक बंद सीप की मानिंद जुड़े रहते .....तो जीवन में कितने दुःख दर्द कम होते .......सार्थक रचना

Amrita Tanmay 11/08/2012 1:45 PM  

या फिर ये भी कहा जा सकता है कि दोनों में आसमान-धरती सा ही फर्क भी है .. अब बुझने वाले बुझते रहे..

shikha varshney 11/08/2012 3:12 PM  

आज तो निशब्द ही कर दिया ...सच में.इतनी सटीक अभिव्यक्ति पर क्या बोलूं.

Suman 11/08/2012 3:16 PM  

नारी और पुरुष
एक ही सिक्के के
दो पहलू लगते हैं
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं ।
इस सच्चाई को दोनों जितने बेहतर ढंग से समझेंगे
उतनाही खनकने में आसानी होगी !
बढ़िया रचना ...

Dr.NISHA MAHARANA 11/08/2012 5:16 PM  

पुरुष के दंभ ने
कब नारी का मौन
स्वीकारा है
उसके अहं के आगे
नारी का अहं हारा है ।bahut badhiya abhiwayakti sangeeta jee...par naari har kar bhi hmesha jeetti hai .....

Anita Lalit (अनिता ललित ) 11/08/2012 5:56 PM  

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !:)
हेड हो टेल...एक दूसरे के बिना अधूरे ही हैं..., एक दूसरे के पूरक हैं...
~सादर !

अनामिका की सदायें ...... 11/08/2012 6:00 PM  

chaahe purush haare ya jeete....lekin rahega to nari k bina adhura hi...yah bhi ek saty hai.

sunder sateek prastuti.

मनोज कुमार 11/08/2012 6:09 PM  

सुंदर रचना। इसके अर्थ हमारे विचारों की दिशा बताती है।

ANULATA RAJ NAIR 11/08/2012 8:00 PM  

वाह दी....
सच कहा....
एक दूजे की ओर पीठ किये....
मगर सिक्के की सार्थकता दोनों के साथ होने से ही है,है न??....
:-)
सादर
अनु

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून 11/08/2012 8:06 PM  

पुरुष को हैड और
स्त्री को टेल जाना है


नारीवादी लोग नाराज़ न हो जाएं ...

मेरा मन पंछी सा 11/08/2012 8:32 PM  

सिक्के की सार्थकता दोनों के होने पर ही सार्थक है...
एक-दूजे के बिना दोनों अधूरे..
सार्थक रचना,,,,

Kailash Sharma 11/08/2012 8:40 PM  

सच ही
नारी और पुरुष
एक ही सिक्के के
दो पहलू लगते हैं
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं ।

...बहुत सटीक और सशक्त अभिव्यक्ति..

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) 11/08/2012 9:42 PM  

गहन भाव लिए गम्भीर रचना ने नि:शब्द कर दिया.

kshama 11/08/2012 9:50 PM  

दीवाली की अनेक शुभ कामनाएँ !

Satish Saxena 11/08/2012 9:52 PM  

बेहतरीन अभिव्यक्ति ...
शुभकामनायें आपको !

Ramakant Singh 11/08/2012 10:32 PM  

सच ही
नारी और पुरुष
एक ही सिक्के के
दो पहलू लगते हैं
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं ।

यही सच है ?

चला बिहारी ब्लॉगर बनने 11/08/2012 10:46 PM  

बहुत ही खूबसूरती से आपने इस कविता में तुलनात्मक चरित्र चित्रण किया है.. हमेशा की तरह यह कविता भी दिल को छूती है!!

प्रतिभा सक्सेना 11/08/2012 11:14 PM  

वाह!
जानता सब है, फैलने की कोशिश में गहराई खो बैठता है !

वाणी गीत 11/09/2012 6:20 AM  

अपने अहम् को पराजित कर जीतती है पुरुष को मगर हारकर भी जीतती नारी ही है !
एक ही सिक्के के दो पहलू से नारी और पुरुष ...

Unknown 11/09/2012 9:25 AM  

बहुत उम्दा रचना | सत्यता को बखूबी दर्शाया है आपने |

मेरी नई पोस्ट-बोलती आँखें

समय चक्र 11/09/2012 11:52 AM  

bahut badhiya rachana ...abhaar

Anupama Tripathi 11/09/2012 12:46 PM  

दो पहलू ...किन्तु एक दूसरे के पूरक ...
अलग हैं बिलकुल तभी पूरक भी हैं ...
बहुत सुंदर रचना दी ...

रेखा श्रीवास्तव 11/09/2012 1:18 PM  

पुरुष के दंभ ने
कब नारी का मौन
स्वीकारा है
उसके अहं के आगे
नारी का अहं हारा है,,,

एक सिक्के के दो पहलू तो हैं लेकिन चलता एक तरफ से देख कर ही है। दूसरी तरफ क्या है इसकी दरकार कहाँ? ऊपर की पंक्तियों में सब कुछ कह दिया है।

डा. गायत्री गुप्ता 'गुंजन' 11/09/2012 3:47 PM  

जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं ।

sundar...

प्रवीण पाण्डेय 11/09/2012 5:14 PM  

सुन्दर, कभी एक ऊपर खनकता है, कभी दूसरा।

स्वाति 11/09/2012 6:32 PM  

वाह..अद्भुत..बहुत सार्थक अवलोकन है..बधाई..

अशोक सलूजा 11/09/2012 7:08 PM  

फिर भी एक-दूजे के बिना दोनों अधूरे .....
दीवाली की शुभकामनायें!

Tarang Sinha 11/09/2012 7:52 PM  

Bahut Khoobsoorat! Antim do panktiyaan khaas taur par pasand aayee:)

Madhuresh 11/10/2012 6:55 AM  

ये पंक्तियाँ मुझे लाजवाब लगी :-

"पुरुष अपने चारों ओर
एक वृत बना
घूमता रहता है
उसके अंदर ,
नारी धुरी बन
एक बूंद को भी
बना देती है समंदर"

.. बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति ..
सादर
मधुरेश

जयकृष्ण राय तुषार 11/10/2012 7:35 PM  

बहुत ही सुन्दर कविता |दीपावली की शुभकामनायें |

Onkar 11/11/2012 10:27 AM  

वाह, बहुत सुन्दर

ashish 11/11/2012 12:22 PM  

दोनों मिलते तो है न . और खोटे भी नहीं है फिर चलेगा :)

Rajesh Kumari 11/11/2012 12:23 PM  

बहुत सुन्दर चित्रण किया है स्त्री पुरुष के स्वभाव का वाह!!!!! आपको व् आपके परिवार को दिवाली की शुभकामनाएं

Suman 11/11/2012 1:15 PM  

सह परिवार आपको भी दीपावली की
हार्दिक शुभकामनाएँ ...

mridula pradhan 11/11/2012 5:51 PM  

पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं......sahi vyakhya....

समय चक्र 11/11/2012 7:04 PM  

दीपावली पर्व के अवसर पर आपको और आपके परिवारजनों को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें...

Asha Joglekar 11/11/2012 9:52 PM  

नारी औरकी पुरुष को
एक ही सिक्के के
दो पहलू माना है
पुरुष को हैड और
स्त्री को टेल जाना है

अब ऐसा कम होता है । एक खास तबके में तो ।
आप की रचना सत्य की एक अलग पहचान कराती है ।

Vaanbhatt 11/11/2012 11:11 PM  

सिक्के का मूल्य तभी है जब उसके दोनों पहलु दुरुस्त हों...वर्ना खोटे सिक्के चलते नहीं हैं...

ओंकारनाथ मिश्र 11/12/2012 11:00 AM  

बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना. दिवाली की शुभकामनायें.

सादर

निहार

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार 11/13/2012 3:54 PM  




ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
♥~*~दीपावली की मंगलकामनाएं !~*~♥
ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
सरस्वती आशीष दें , गणपति दें वरदान
लक्ष्मी बरसाएं कृपा, मिले स्नेह सम्मान

**♥**♥**♥**● राजेन्द्र स्वर्णकार● **♥**♥**♥**
ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ

समय चक्र 11/13/2012 5:00 PM  

दीपोत्सव पर्व के अवसर पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ....

हरकीरत ' हीर' 11/14/2012 9:01 AM  

पीठ जोड़े अपने अपने आसमान में खनकने की छुट मिल जाये ये भी बहुत है .....

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) 11/14/2012 12:27 PM  

***********************************************
धन वैभव दें लक्ष्मी , सरस्वती दें ज्ञान ।
गणपति जी संकट हरें,मिले नेह सम्मान ।।
***********************************************
दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
***********************************************
अरुण कुमार निगम एवं निगम परिवार
***********************************************

virendra sharma 11/14/2012 1:02 PM  

खनक भी होती है पारस्परिक .सिक्का किसी भी तरफ से खोटा हो फिर मानदेय से गिर जाता है .

सच ही
नारी और पुरुष
एक ही सिक्के के
दो पहलू लगते हैं
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं ।

अनुभूति 11/15/2012 2:21 PM  

सच ही
नारी और पुरुष
एक ही सिक्के के
दो पहलू लगते हैं
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं ।
अत्यंत शशक्त और सार्थक अभिव्यक्ति.....

ASHOK BIRLA 11/16/2012 8:35 AM  

chir chintan ..ye jivan rath ke sathi hai kbi na aage na piche bas sath sath hi chalte hai.

Manju Mishra 11/17/2012 2:42 AM  

पुरुष ने
हर रिश्ते को
अपने ही तराजू पर
तोला है ,
जबकि
नारी ने हर रिश्ता
मिश्री सा घोला है ।

जीवन में नारी और पुरुष के किरदार की सुन्दर एवं सशक्त अभिव्यक्ति ... भिन्न होते हुए भी दोनों एक दुसरे के पूरक हैं। जीवन में भावनात्मकता और व्यावहारिकता दोनों की ही आवश्यकता होती है ... दोनों पक्षों का संतुलन होना भी तो आवश्यक है।

Manju

Vandana Ramasingh 11/17/2012 6:18 AM  

जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं ।

वाह ....

Naveen Mani Tripathi 11/17/2012 2:14 PM  

उसके अंदर ,
नारी धुरी बन
एक बूंद को भी
बना देती है समंदर ।


bilkul utkrisht rachana .....badhai.

देवेन्द्र पाण्डेय 11/18/2012 10:39 AM  

सच ही
नारी और पुरुष
एक ही सिक्के के
दो पहलू लगते हैं
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं ।

...सशक्त पंक्तियाँ! इतने सुंदर ढंग से नारी और पुरूष को आपने परिभाषित किया है कि मन खुश हो गया आपकी इस अनूठी मौलिकता पर। ..वाह! ढेर सारी बधाइयाँ।

virendra sharma 11/18/2012 2:02 PM  

पुरुष का पल्लवन नारी के हाथों ही होता है संतान होने तक पति भी पुत्र वत ही होता है पत्नी के लिए .आभार आपकी टिपण्णी का ..

आशा बिष्ट 11/20/2012 12:32 PM  

सच ही
नारी और पुरुष
एक ही सिक्के के
दो पहलू लगते हैं
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं । ..ye panktiyaa shayd saar samjhati hain.. bahut achhi panktiya mam...shyd yah kahoon ki ye sachchai hai... sadar naman...

Dr (Miss) Sharad Singh 11/21/2012 11:58 AM  

पुरुष अपने चारों ओर
एक वृत बना
घूमता रहता है
उसके अंदर ,
नारी धुरी बन
एक बूंद को भी
बना देती है समंदर ।

सशक्‍त अभिव्‍यक्ति....

महेन्‍द्र वर्मा 11/23/2012 3:35 PM  

नारी और पुरुष
एक ही सिक्के के
दो पहलू लगते हैं
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं ।

सिक्के की उपमा में छुपा विरोधाभास कविता में गंभीरता से मुखरित हुआ है।

Rishiraj Bhargava 11/24/2012 12:07 AM  

अपनी कविता में आपने पुरुष प्रधान मानसिकता को बड़े ही सटीक और सरल शब्दों में अभिव्यक्त किया है ..सुंदर कविता ..बधाई ..

Rajput 11/25/2012 8:31 PM  

जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं....

बहुत शानदार , आपकी लेखनी को सादर नमन

दर्शन कौर धनोय 11/27/2012 10:26 AM  

पुरुष और स्त्री ...सिक्के के दो पहलु तो है पर आपस में जुड़े हुए भी है ....दोनों एक दुसरे के पूरक है ...इसीलिए तो दोनों के मिलन से एक नई स्रष्ठी का उदय होता है .....

Dr Varsha Singh 11/28/2012 2:20 PM  

उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति.....सशक्त रचना......

Kunwar Kusumesh 12/03/2012 8:23 AM  

अब नारी, पुरुष से ज्यादा सबल है।

Arvind Mishra 12/03/2012 3:09 PM  

सुन्दर भावपूर्ण!

दिगम्बर नासवा 12/08/2012 2:23 PM  

इन जुड़े हुवे सिक्कों में ही जीवन है ...
सहजता से दोनों का महत्त्व सिखा दिया ...

Swapnil Shukla 12/15/2012 5:57 PM  

a very nice poetry ... very well written ...congra8 ..kudos to u mam.... :)

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Swapnil Shukla 12/15/2012 5:57 PM  

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सविता मिश्रा 'अक्षजा' 12/16/2012 9:07 PM  

bahut sundar bhaav ..
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं ।
शायद सच्चाई भी यही है दोनों साथ साथ रह अकेले से है दोनों में कुछ खीचा तानी सी होती ही है

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति 1/09/2013 12:02 PM  

बहुत ही सुन्दर विचार ..नारी और पुरुष ..एक ही पहलू के दो हिस्से..

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