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हासिल ....

>> Friday, May 14, 2021

मुझको वो हासिल न था 
जो तुझको हासिल हुआ 
अल्फ़ाज़ यूँ ही गुम गए , 
गम जो फिर काबिज़ हुआ। 


अश्कों ने  घेरा   क्यों  हमें 
ये भी कोई   बात   हुई
चाहत भले ही रहें अधूरी  ,
हक़ अपना तो लाज़िम हुआ ।


माँग कर गर जन्नत  मिले
तो ये दोज़ख़ भी क्या बुरा 
तुझको दर्द मैं गर दूँ तो 
क्या हममें मरासिम हुआ ।


आज़माइश ज़िन्दगी की ,  
रास मुझे यूँ आने लगी 
दरिया ए ग़म में डूबना  , 
मेरे लिए साहिल हुआ ।


देखती हूँ खुद को मैं, औ   
सोचती  हूँ   मूंद  पलकें 
क्या तुझे  हासिल हुआ ,औ 
क्या   मुझे  हासिल   हुआ ।।





32 comments:

उषा किरण 5/14/2021 4:57 PM  

आज़माइश ज़िन्दगी की ,
रास मुझे यूँ आने लगी
ग़म ए दरिया में डूबना ,
मेरे लिए साहिल हुआ ।
वाह....बहुत खूब 🌹

चला बिहारी ब्लॉगर बनने 5/14/2021 8:09 PM  

आपके चिरपरिचित अंदाज़ से हटकर एक नए मिज़ाज की रचना और उसमें अवसाद का अण्डरटोन... हमेशा की तरह वही रवानी है। बहुत ख़ूब!!

yashoda Agrawal 5/14/2021 8:34 PM  

देखती हूँ खुद को मैं, औ
सोचती हूँ मूंद पलकें
क्या तुझे हासिल हुआ ,औ
क्या मुझे हासिल हुआ ।।
बेहतरीन आगाज..कि
क्या मुझे हासिल हुआ..
सादर नमन..

shikha varshney 5/14/2021 9:00 PM  

क्या बात है। आज तो है अंदाज ए बयां और...

संध्या शर्मा 5/15/2021 12:19 AM  


माँग कर गर जन्नत मिले
तो ये दोज़ख़ भी क्या बुरा ...
निसार इन अल्फ़ाज़ों पर

Ravindra Singh Yadav 5/15/2021 1:08 AM  

नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (15-05-2021 ) को 'मंजिल सभी को है चलने से मिलती' (चर्चा अंक-4068) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।

चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

#रवीन्द्र_सिंह_यादव

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 5/15/2021 6:27 AM  

आज़माइश ज़िन्दगी की, रास मुझे यूँ आने लगी
दरिया ए ग़म में डूबना, मेरे लिए साहिल हुआ ।
- और कोई चारा भी तो नहीं ....ये दरिया-ए-जिन्दगी है, जीना यहीं मरना भी यहीं!
क्यूँ घुट-घुट के जिएं, क्यूँ साहिलों पे भरें! सागर है यही, दरिया भी यही, चल चलती लहरों पे बहें। ।।।
नायाब सृजन हेतु साधुवाद आदरणीया गीत जी।।।।

Onkar 5/15/2021 9:43 AM  

सुंदर प्रस्तुति

संगीता स्वरुप ( गीत ) 5/15/2021 10:42 AM  

शुक्रिया रविन्द्र जी

SANDEEP KUMAR SHARMA 5/15/2021 11:38 AM  

माँग कर गर जन्नत मिले
तो ये दोज़ख़ भी क्या बुरा
तुझको दर्द मैं गर दूँ तो
क्या हममें मरासिम हुआ । जी बहुत ही अच्छी कविता।

आलोक सिन्हा 5/15/2021 12:04 PM  

बहुत बहुत सुन्दर

अरुण चन्द्र रॉय 5/15/2021 3:30 PM  

कोमल भाव की कोमल कविता।

Anita 5/15/2021 3:34 PM  

वाह ! बहुत उम्दा गजल, गम भले कितना सताये, दर्द हर दिल पी ही जाये

गगन शर्मा, कुछ अलग सा 5/15/2021 4:19 PM  

माँग कर गर जन्नत मिले, तो ये दोज़ख़ भी क्या बुरा ........
बहुत सुंदर

गगन शर्मा, कुछ अलग सा 5/15/2021 4:20 PM  

माँग कर गर जन्नत मिले, तो ये दोज़ख़ भी क्या बुरा ........
बहुत सुंदर

Anuradha chauhan 5/15/2021 9:04 PM  

देखती हूँ खुद को मैं, औ
सोचती हूँ मूंद पलकें
क्या तुझे हासिल हुआ ,औ
क्या मुझे हासिल हुआ ।।बहुत सुंदर रचना।

Anupama Tripathi 5/15/2021 9:35 PM  

आजमाइश दुःख ही देती है, कितना सच।

जिज्ञासा सिंह 5/15/2021 11:37 PM  


देखती हूँ खुद को मैं, औ
सोचती हूँ मूंद पलकें
क्या तुझे हासिल हुआ ,औ
क्या मुझे हासिल हुआ ।।..सुंदर भावनाओं भरी नायाब रचना ।

Meena Bhardwaj 5/16/2021 10:14 AM  

माँग कर गर जन्नत मिले
तो ये दोज़ख़ भी क्या बुरा
तुझको दर्द मैं गर दूँ तो
क्या हममें मरासिम हुआ ।
बेहतरीन .., गहन भावाभिव्यक्ति ।

MANOJ KAYAL 5/17/2021 5:25 AM  

माँग कर गर जन्नत  मिले

तो ये दोज़ख़ भी क्या बुरा 

तुझको दर्द मैं गर दूँ तो 

क्या हममें मरासिम हुआ ।

बहुत सुंदर रचना

जिज्ञासा सिंह 5/17/2021 2:02 PM  


देखती हूँ खुद को मैं, औ
सोचती हूँ मूंद पलकें
क्या तुझे हासिल हुआ ,औ
क्या मुझे हासिल हुआ ।।..बहुत सुंदर अनुभूतियों के संसार से परिचय करा रही हैं आपकी खूबसूरत रचनाएं,आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।

Sudha Devrani 5/17/2021 5:13 PM  

आज़माइश ज़िन्दगी की ,
रास मुझे यूँ आने लगी
दरिया ए ग़म में डूबना ,
मेरे लिए साहिल हुआ ।
वाह!!!
क्या बात.. जिन्दगी की आजमाइश मतलब जिंदगी से ऊपर उठकर देखना...फिर तो हर गम साहिल ही होगा...क्योंकि डूबे जो नहीं इस जीवन के बबंडर में..
बहुत ही लाजवाब।

सदा 5/19/2021 12:55 PM  

देखती हूँ खुद को मैं, औ
सोचती हूँ मूंद पलकें
क्या तुझे हासिल हुआ ,औ
क्या मुझे हासिल हुआ ।।
वाह बहुत ही शानदार और धारदार भी ... वन्दन 🙏🙏

डॉ. जेन्नी शबनम 5/20/2021 8:31 PM  

वाह! बहुत सुन्दर! बधाई!

Surendra shukla" Bhramar"5 5/23/2021 1:55 PM  

वाह बहुत सुन्दर गज़ल आदरणीया संगीता जी,गहन भावाभिव्यक्ति

विश्वमोहन 5/28/2021 5:52 PM  

देखती हूँ खुद को मैं, औ
सोचती हूँ मूंद पलकें
क्या तुझे हासिल हुआ ,औ
क्या मुझे हासिल हुआ ।। वाह! जब आदमी ख़ुद से मुख़ातिब होता है तो जीवन की ढेर सारी परतें उघरने लगती है और सब कुछ साफ़ साफ़ शफ़्फ़ाक-सा दिखने लगता है। उम्दा अल्फ़ाज़!!!

मन की वीणा 5/28/2021 7:42 PM  

अश्कों ने घेरा क्यों हमें
ये भी कोई बात हुई
चाहत भले ही रहें अधूरी ,
हक़ अपना तो लाज़िम हुआ ।
वाह! उम्दा, बेहतरीन बेमिसाल।
बहुत गहन भाव समेटे हर शेर ।
वाह!बस वाह्ह्ह्

दिगम्बर नासवा 5/29/2021 9:51 PM  

गम के दरिया में डूबना साहिल का मिलना हो जाए तो जीवन जीना आसान हो जाता है ...
बहुत लाजवाब रचना ...

रेणु 6/18/2021 11:18 PM  

क्या बात है प्रिय दीदी |मन को छूती लाजवाब ग़ज़ल |ये पंक्तियाँ तो कमाल हैं --
आज़माइश ज़िन्दगी की ,
रास मुझे यूँ आने लगी
दरिया ए ग़म में डूबना ,
मेरे लिए साहिल हुआ ।
बहुत आनंद आया पढ़कर | बस प्रतिक्रिया देने में देरी के लिए खेद है | सादर प्रणाम |

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