कुछ कम तो न था ...
>> Tuesday, January 10, 2023
जो नहीं मिला ज़िन्दगी में, उसका कुछ ग़म तो न था ।
पर मिला जितना भी ज़िन्दगी में, वो भी कुछ कम तो न था
पानी की चाहत में हम, जो घूमे सहरा - सहरा
दिखा सराब तो हममें भी सब्र कुछ कम तो न था ।
बह गया आँख से पानी, रिस गए दिल के छाले
यूँ शिद्दत से छुपाए थे, मेरा ज़र्फ़ कुछ कम तो न था ।
वज़ूद में मेरे न जाने अब, क्या क्या घुल गया है
यूँ तो ख्वाहिशों का रंग भी ज़र्द कुछ कम तो न था ।
तपिश थी आंखों में और सुलग रहा था सीना मेरा
अरमानों का कोयला भी" गीत " ,सर्द कुछ कम तो न था ।
27 comments:
लाज़वाब और बेहतरीन अशआरों से सजी हृदयस्पर्शी ग़ज़ल रची है आपकी लेखनी ने। हर शेर अपने आप में गहन भाव लिए हुए..,।सादर सस्नेह वन्दे आदरणीया दीदी!
बेहद खूबसूरत अंदाज़ में दिल से निकले हुए जज़्बातों को आपने अपनी ग़ज़ल में शब्द दिए हैं।
ख़्वाहिशों का क्या बढ़ती जाती बेलों की तरह
तेरा करम हम पर ऐ खुदा कभी कम तो न था।
प्रिय मीना ,
बहुत शुक्रिया इस रचना तक पहुँचने के लिए ।
अनिता जी ,
आपका एक शेर पूरी ग़ज़ल पर भारी है ।
आभार ।
वाह…बहुत सुन्दर 👏👏👏
अरे ग़ज़ब ….हर शेर आपके ज़र्फ़ और सब्र की कहानी कह रहा है
कुछ मेरी भी
कुव्वतें बहुत थी लेकिन , पाँव थे ज़मीन पर
परवाज़ को मेरे पंखों की ,अर्श कुछ कम तो ना था 🥰
जो मिलता है, हम अक्सर उसे भूल जाते हैं, जबकि यह सच है कि दर्द और सुख दोनों मिले
कितनी खूबसूरत ग़ज़ल है। दर्द बहुत है लेकिन इसमें जीने का जज़्बा भी कुछ कम तो न था।
दर्द, अश्क़,ग़म की बूँदाबादी कुछ सूखी गीली ज़िंदगी
मुस्कुराए भी तो दिल में अब्र कुछ कम तो न था
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जी दी,
दिल में गहरी उतरती गज़ल... हर शेर बार बार पढ़ने का मन हो रहा।
बहुत सुंदर,शानदार।
सप्रेम।
सादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (12-1-23} को "कुछ कम तो न था ..."(चर्चा अंक 4634) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
पानी की चाहत में हम, जो घूमे सहरा - सहरा
दिखा सराब तो हममें भी सब्र कुछ कम तो न था ।
बह गया आँख से पानी, रिस गए दिल के छाले
यूँ शिद्दत से छुपाए थे, मेरा ज़र्फ़ कुछ कम तो न था ।
लाजवाब 🙏
जो मिला वह भी कम ना था!
वाह!
पड़ते हैं, मिट जाते हैं छालों का क्या?
अपनी दुनिया अंगारों पे ख़ूब सजी,
जब निकलीं आहें छालों की चिलकन से,
गांव, शहर, घर, गली दुंदुभी खूब बाजी !
हर एक शेर अपने आप में मुकम्मल है,
बिलकुल अपनी सी, बहुत उम्दा गजल दीदी ।
जो नहीं मिला ज़िन्दगी में, उसका कुछ ग़म तो न था ।
पर मिला जितना भी ज़िन्दगी में, वो भी कुछ कम तो न था
बस यही एक भाव सब्र करना सिखाता है । संतुष्टि से भरता है मन को।नहीं तो जीवन बस जंग के सिवाय कुछ और नहीं।
जीवन के अनुभवों से प्रेरित बहुत ही लाजवाब गजल
वाह!!!!
वाह
बहुत सुंदर रचना
वाह, ख्वाहिशों का रंग भी जर्द कुछ कम तो न था.. बहुत खूब.
बहुत गहराई लिए हर शेर .. जो मिला कुछ कम तो नहीं था …
लाजवाब …
आप सभी पाठक वृन्द का हार्दिक आभार ।
@मुदिता ....
बेहतरीन शेर लिखा है ....
श्वेता ....... लाजवाब शेर ।
जिज्ञासा ..... आंसू सब कुछ कह देते हैं ....
सुधा ..... खुद को सब्र करना सिखाना ही पड़ता है ।
बहुत सुंदर लिखा है आपने। जब सुख अपने हैं तो दुख भी स्वीकारने होंगे...
"पर मिला जितना भी ज़िन्दगी में, वो भी कुछ कम तो न था "
बहुत बढ़िया।
तपिश थी आंखों में और
सुलग रहा था सीना मेरा
अरमानों का कोयला भी"
गीत " ,सर्द कुछ कम तो न था ।
बेहतरीन
सादर नमन
बहुत सुंदर भाव!
रेखा श्रीवास्तव
तपिश थी आंखों में और सुलग रहा था सीना मेरा
वाह!! लाजवाब रचना
आदरणीया संगीता स्वरुप जी ! प्रणाम !
सुन्दर गजल के लिए अभिनन्दन !
रचना को आशीर्वाद देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार !
प्रतिक्रया में विलम्ब हेतु क्षमा चाहूंगा !
आपको व समस्त "पांच लिंको का आनन्द " मंच को मकर सक्रांति एवं उत्तरायण की हार्दिक शुभकामनाएँ !
जय श्री राम !
ईश्वर आपके प्रयास क पूर्णता एवं श्रेष्ठता प्रदान करे , शुभकामनाएं !
बहुत ही खूबसूरत रचना
बहुत खूब
बहुत खूबसूरत रचना
बहुत खूबसूरत रचना
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