खिलखिलाता बसंत --
>> Thursday, January 26, 2023
सरस्वती आगमन का दिन ही
चुन लिया था मैंने
बासंती जीवन के लिए .
पर बसंत !
तुम तो न आये ।
ऐसा नहीं कि
मौसम नहीं बदले
ऐसा भी नहीं कि
फूल नहीं खिले
वक़्त बदला
ऋतु बदली
पर बसन्त !
तुम तो न आये ।
सजाए थे ख्वाब रंगीन
इन सूनी आँखों में
भरे थे रंग अगिनत
अपने ही खयालों में
कुछ हुए पूरे
कुछ रहे अधूरे
पर बसन्त !
तुम तो न आये ।
बसन्त तुम आओ
या फिर न आओ
जब भी खिली होगी सरसों
नज़रें दूर तलक जाएंगी
और तुम मुझे हमेशा
पाओगे अपने इन्तज़ार में ,
बस बसन्त !
एक बार तुम आओ ।
अचानक
ज़रा सी आहट हुई
खोला जो दरीचा
सामने बसन्त खड़ा था
बोला - लो मैं आ गया
मेरी आँखों में
पढ़ कर शिकायत
उसने कहा
मैं तो कब से
थपथपा रहा था दरवाजा
हर बार ही
निराश हो लौट जाता था
तुमने जो ढक रखा था
खुद को मौन की बर्फ से
मैं भी तो प्रतीक्षा में था कि
कब ये बर्फ पिघले
और
मैं कर सकूँ खत्म
तुम्हारे चिर इन्तज़ार को ।
और मैं -
किंकर्तव्य विमूढ़ सी
कर रही थी स्वागत
खिलखिलाते बसन्त का ।
21 comments:
आह हा, क्या बसंत उतारा है शब्दों में।
कितनी खूबसूरती से बसंत के होने को चित्रित किया है ...पिघलती बर्फ के बाद ही तो खिलखिलाता है बसंत ♥️♥️
कितना प्यारा आग्रह... वसंत तुम्हें आना ही होगा...
खिलखिलाता ये बसंत, सदा के लिए ही आपके जीवन में छाया रहे , यही शुभकामना आज के इस विशेष दिवस पर 🌹 पिघलती बर्फ के बाद बसंतागमन , एक खूबसूरत एहसास, सदैव आपके जीवन को सुगन्धित रखें दीदी 🌹🌹
तुमने जो ढक रखा था
खुद को मौन की बर्फ से
मैं भी तो प्रतीक्षा में था कि
कब ये बर्फ पिघले
वाह !! दिल को छू लेने वाले खूबसूरत अहसास के रंग मे रंगी सुन्दर कृति । गणतंत्र दिवस और बसन्त पञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाएँ आ . दीदी !
अप्रतिम सृजन! मन के भाव जब होते हैं धानी तभी बसंत आता है ।
बसंत पंचमी और गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
बसंत सदा आपके मन को बसंती करता रहे।
सादर सस्नेह।
बहुत खूबसूरत रचना
गणतंत्र दिवस और वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं
बेहद खूबसूरत और भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी।
मन छू गयी...।
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २० जनवरी २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
ऐ वसंत
अब तुम आ ही जाओ
मीठी मनुहार
आभार
सादर नमन
अप्रतिम भावों से युक्त सुंदर सृजन! वाक़ई बसंत तो कब का आ चुका है, किसी ने कहा भी है, यदि शीत आ गया है तो बसंत कब तक दूर रह सकता है ? बस देखने वालों के दिल में चाहत होनी चाहिए
वाह!!!
क्या बात कही...बसंत तो आता ही रहा पर हम ही उसे आने नहीं देते , दुख का आवरण ओढ़ सुख को अपने पास पहुँचने ही नहीं देते । और करते रहते हैं इंतजार.. सुख का ...बसंत का ..
तुमने जो ढक रखा था
खुद को मौन की बर्फ से
मैं भी तो प्रतीक्षा में था कि
कब ये बर्फ पिघले
और
मैं कर सकूँ खत्म
तुम्हारे चिर इन्तज़ार को
लाजवाब सृजन👌👌🙏🙏
आदरणीया संगीता स्वरुप जी ! प्रणाम !
आपको बसंत पर्व व गणतंत्र दिवस की अनेक शुभकामनाएं !
लगभग एक दशक से आप मुझ अनुज को स्नेह आशीर्वाद दे रही है !
आपको बहुत बहुत स-स्नेह आभार वंदन !
आपकी रचना पढ़ी , बसंत के आगमन में कई रंग है , उदासी भी उल्लास भी , परन्तु एक बसंत ही है , जो अपनी प्रतीक्षा के पुण्य फल में सबको , निरपेक्ष फ़ाग उत्सव बाँट कर ही विदा होता है !
सुन्दर रचना ! अभिनन्दन !
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय दीदी! जीवन का बसंत मौसमी बसंत से जुदा है बाहर लाख पतझड़ हो,मन खिले तो हर ओर बसंत ही बसंत है।भीतर उमंग हो तो बसंत स्वयं उपस्थित हो जाता है अपने रंग,गंध और मकरंद के साथ ।अनमोल रचना जो बसंत को भावपूर्ण उद्बोधन है।आपके लिए ढेरों शुभकामनाएं और प्यार।जीवन का बसंत सदा खिला रहे यही कामना है 🙏♥️♥️
वास्तव में खिलखिलाता बसंत पढ़कर मन भी प्रसन्नता से खिलखिला उठा। बहुत ही खूबसूरती से बसंत को शब्दों का रूप दे दिया।
बेहद सुंदर
कई बार बसंत आता है ... मौसम भी सुहावना आता है ... पर मन का बसंत नहीं आता, इंतज़ार रहता है उस सुहावने मौसम का ... गहरी बात ...
कभी कभी हम खुद अपने मन को इस कदर क़ैद कर लेते हैं कि बसंत कब आकर चला जाता है पता ही नहीं चलता, बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति दी,सादर नमन 🙏
बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण सृजन। बासंती मौसम की सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
बहुत सुंदर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति, संगिता दी।
आदरणीया मैम, सादर चरण स्पर्श। बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ, लगभग वर्ष बाद। आते ही इतनी सुंदर और भावपूर्ण रचना पढ़ने को मिली। वसंत ऋतु आनंद और उल्लास का प्रतीक है। बाहर वातावरण में कितना ही वसंत क्यों न हो, जब तक मन में वसन्त न खिले, उसके आगमन की अनिभूति नहीं होती। मन और जीवन में सुख की प्रतीक्षा है वसंत ऋतु की प्रतीक्षा पर कभी कभी मन के दरवाजे को खोल कर खुद ही वसंत (सुख) को अंदर बुलाना पड़ता है, बहुत सुंदर सन्देश देती है आपकी रचना। उस दिन आपने कहा था नई रचना की प्रतीक्षा है, सो आपके आशीष सीक नया लेख भी लिखा है अपने डायरी वाले ब्लॉग पर, आ कर अपना अशीर्वाद दीजिये।
मैं -
किंकर्तव्य विमूढ़ सी
कर रही थी स्वागत
खिलखिलाते बसन्त का ।
... बसंत सा जीवन कहां होता है, मन का बसंत जब खिलता है, तभी बसंत की सुंदरता दिखाई देती है... सुंदर सारगर्भित अभिव्यक्ति!
होली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐💐🖍️🖍️
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