प्रवृति
>> Saturday, January 21, 2012
आज यूँ ही
छत पर डाल दिए थे
कुछ बाजरे के दाने
उन्हें देख
बहुत से कबूतर
आ गए थे खाने .
खत्म हो गए दाने
तो टुकुर टुकुर
लगे ताकने
मैंने डाल दिए
फिर ढेर से दाने
कुछ दाने खा कर
बाकी छोड़ कर
कबूतर उड़ गए
अपने ठिकाने .
तब से ही सोच रही हूँ
इंसान और पक्षी की
प्रवृति में,
अंतर परख रही हूँ
परिंदे नहीं करते संग्रह
और न ही उनको
चाह होती है
ज़रूरत से ज्यादा की
और इंसान
ज्यादा से ज्यादा
पाने की चाहत में
धन - धान्य एकत्रित
करता रहता है
वर्तमान में नहीं ,बल्कि
भविष्य में जीता है ,
प्रकृति ने सबको
भरपूर दिया है
पर लालची इंसान
केवल अपने लिए
जिया है ,
इसी लालच ने
समाज में
विषमता ला दी है
किसी को अमीरी, तो
किसी को
गरीबी दिला दी है .
काश
विहगों से ही इंसान
कुछ सीख पाता
तो
धरती का सुख वैभव
सबको मिल जाता .
79 comments:
इंसान को कुछ नहीं सीखना सिवा स्वार्थ के !
काश
विहगों से ही इंसान
कुछ सीख पाता
तो
धरती का सुख वैभव
सबको मिल जाता .
बहुत अच्छी बात कही है...
बहुत ही सुंदरता से आपने इंसानों और पक्षियों की प्रवृति की व्याख्या की है इस मनोहर कविता के द्वारा...इंसान बस अपनी इसी ईच्छा से की कल के लिये कुछ संचय कर ले...हर अच्छे बुरे काम करता है......पर उसे नहीँ पता कल कभी नहीं आता ...जो है सो आज...क्या पता कल हो ना हो......
सच कहा है पर इंसान इन पंछियों से भी नहीं सीखना चाहता ... और भरता रहता अहि अपना घर ...
कितनी विलक्षण दृष्टि और अनंत सोच ....
काश
विहगों से ही इंसान
कुछ सीख पाता
तो
धरती का सुख वैभव
सबको मिल जाता .
लेकिन इंसान है कि लाख ठोकर खाने के बाद भी कुछ समझना नहीं चाहता ।
बहुत ही अच्छा संदेश दिया है आंटी।
सादर
विहगों से ही इंसान
कुछ सीख पाता
तो
धरती का सुख वैभव
सबको मिल जाता .
सार्थक और सन्देश वाहक पोस्ट है आपकी,आभार |
जो जल बाढ़ै नाव में ,घर में बाढ़ै दाम ,
दोऊ हाथ उलीचिये य है सयानो काम .
विहंगो से ही मनुष्य कुछ शिक्षा ले...सुन्दर रचना!
सच कहा ..थोडा सा प्रकृति के इन संदेशवाहकों से सीख ले इंसान काश..
बहुत सुन्दर,गहरी सोच और खूबसूरत कविता.
बहुत सच्ची बात कही आपने दी........
वैसे ही जानवर भी पेट भरा हो तो कहाँ शिकार करता है..
मनुष्य ही है जो श्रेष्ठ कहता है खुद को...और होता कैसा है सभी जानते हैं..हम भी तो मनुष्य ही हैं ना...
सार्थक रचना..
सादर.
काश ! इंसान भी पक्षियो की तरह समझदार होते आज दुनिया ऐसी न होती...
pravatti theek hotee to aaj gantantr bhrasht tantr nahee hotaa,
insaan kee pravatti uske charitra kaa sabse mahatv poorn hissaa hai
bahut achhaa prashn uthaayaa aapne
काश! इंसान कुछ सीख पाता
हम तो जानवर हैं,पशु हैं,
कैसे छोड़ दे - पाशविकता?
फिर भी उनसे अच्छे हैं,
जंगली और हिंसक होते हुए भी,
वादे निभाते हैं, पेट भरने के बाद,
नहीं करते दूसरा शिकार.
बचा खुचा शिकार औरों के लिए
छोड़ जातें हैं. परन्तु देखो
यह इंसान कितना अजीब है,
जूठन भी फ्रिज में रखता है,
वह केवल पेट नहीं,
फ्रिज और गोदाम भरता है.
कहीं कोई भूखा मरता है
तो कहीं अन्न सड़ता है.
सच कहूँ तो मैं भी पहले
ऐसा नहीं था ......
मुझे मक्कार तो मानव की
नई सभ्यता ने बनाया है.
धरती ने तो सबके लिये ही पैदा किया..
काश
विहगों से ही इंसान
कुछ सीख पाता
तो
धरती का सुख वैभव
सबको मिल जाता.
इतना ही तो समझ नहीं पाता,फिर भी इंसान ही सबसे बुद्धिमान कहलाता।
बात तो पते की है।
dil ko chho liya aapke in alfaazon ne . akhtar khan akela kota rajsthan
सच है !
इंसान वर्तमान में नहीं ,बल्कि भविष्य में जीता है
कल ही एक खबर पढ़ी थी कि वरदान बन जाएगा अभिशाप...खबर यूँ थी कि एक नयी खोज द्वारा भ्रूण टेस्ट में ही बच्चे की भविष्य में आने वाली गंभीर बिमारियों का पता चल जाएगा...अर्थार्त माता पिता ये जानने के बाद तो दुनियां में आने से पहले ही इस वरदान द्वारा उस बच्चे के जीवन मरण का निर्णय ले लेंगे. भगवान् ने भी इंसान में अन्य प्राणियों की अपेक्षा अधिक विचार क्षमता दी ...जिससे आज वो भविष्य की चिंता करते हुए इतना एकत्रित कर लेता है कि दूसरे का हक़ भी मार लेता है. आज इंसान की ये प्रवर्ती अभिशाप बन गयी है गरीब इंसान के लिए.
बहुत विचारणीय प्रस्तुति दी है . आभार.
बहुत ही प्रशंसनीय प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
इसी लालच ने
समाज में
विषमता ला दी है
किसी को अमीरी, तो
किसी को
गरीबी दिला दी है
सार्थक सन्देश देती सुन्दर रचना... गहन भाव... आभार
अत्यंत सूक्षम चिंतन और चित्रण किया है आपने . बहुत बहुत शुभकामनायें .
शिव प्रकाश मिश्रा
http://shivemishra.blogspot.com
काश हम इंसान ...कभी इस बात को समझ सकते
जितना हैं ,उतना ही बहुत है जीने को
अधिक की चाहत ...लालची बना के ही छोडती हैं
गहरी सोच के साथ सार्थक कविता
nature has given everything according to need not according to greed.
कविता हमें यह सीख देती है कि हमें अपने है और नहीं है के बीच एक संतुलन बिठाने की जरूरत है। यानि संतोष और असंतोष के बीच संतुलन। इससे हमारी जिंदगी के बीच फर्क पड़ेगा।
काश
विहगों से ही इंसान
कुछ सीख पाता
काश!!!
तब से ही सोच रही हूँ
इंसान और पक्षी की
प्रवृति में,
अंतर परख रही हूँ
परिंदे नहीं करते संग्रह
और न ही उनको
चाह होती है
ज़रूरत से ज्यादा की
बहुत अच्छी रचना
धरती का सुख वैभव
सबको मिल जाता .
लेकिन इंसान है कि लाख ठोकर खाने के बाद भी कुछ समझना नहीं चाहता ।
गहन सन्देश देती सुन्दर रचना...
काश
विहगों से ही इंसान
कुछ सीख पाता
तो
धरती का सुख वैभव
सबको मिल जाता .
सच में , गहरी बात लिए रचना ....
बहुत सुन्दर भाव हैं |दौनों में समानता तो है पर मनुष्य कुछ ज्यादा ही चतुर नहीं लगता ?
आशा
काश!
बहुत सशक्त अभिव्यक्ति दी...
सादर.
काश
विहगों से ही इंसान
कुछ सीख पाता
पशु-पक्षियों जैसी अक्ल इंसान में कहाँ, बहुत सुन्दर और जानदार रचना !
बिलकुल सही बात है !
सात पीढ़ी तक संग्रह करने की लालसा सिर्फ मनुष्य को छोड़कर
और किसी प्राणी में नहीं है ! सार्थक चिंतन .......
गंभीर सोच से ओतप्रोत रचना. इंसान की फितरत में है एकत्रित करना चाहे भौतिकतावादी वस्तुए हो या भीड़ उसे अच्छा लगता है काश हमें आज की फिक्र होती बस...
सही कहा आपने।
इंसानों को पशु-पक्षी से बहुत बुछ सीखना चाहिए।
अच्छी रचना।
गहरी सोच के साथ सार्थक कविता
आपकी रचनाएँ एक सार्वभौमिक दर्शन को अत्यंत सहजता और कुशलता से प्रेषित कर पाने में पूर्ण रूपेण सक्षम हैं | आप हिंदी साहित्याकाश पर एक दैदीप्यमान नक्षत्र बन कर अपनी साहित्य आभा से जन मानस को प्रकाशित करती रहें ,इसी मंगल कामना के संग
सादर
दिव्यांश
पशु-पक्षियों और प्रकृति से अगर मनुष्य ने सीख ली होती तो यह धरा स्वर्ग हो गयी होती!! लेकिन हम जिसे विकास और तरक्की कहते हैं वो कितना विकास है यह किसी आज़ाद परिंदे को और उसकी आदतों को देखकर ही समझ में आता है..
संगीता दी, एक बार फिर आपकी ट्रेड मार्क कविता!!
बहुत ही अच्छा सार्थक सन्देश| धन्यवाद।
बहुत ही सूक्ष्म अवलोकन एवं बेहतरीन प्रस्तुति, बहुत अच्छी लगी!
काश
विहगों से ही इंसान
कुछ सीख पाता
तो
धरती का सुख वैभव
सबको मिल जाता .
इंसान आज किस हद तक स्वार्थी और आत्मकेंद्रित होता जा रहा है, इसका पता बड़े-बड़े महलों के पास झुग्गियों को देख कर लगता है. एक क्रांति की जरूरत आज फिर है.
"काश
विहगों से ही इंसान
कुछ सीख पाता
तो
धरती का सुख वैभव
सबको मिल जाता ."
बहुत ही सुंदर भाव और विचार लिए सुंदर प्रस्तुति। बधाई।
हम इंसान निन्यानवे के फेर में पड़े होते हैं , जबकि पक्षी प्रकृति के सबसे करीब होते हैं !
सार्थक सन्देश !
वर्तमान में नहीं ,बल्कि
भविष्य में जीता है ,
प्रकृति ने सबको
भरपूर दिया है
पर लालची इंसान
केवल अपने लिए
जिया है........
मैं आपकी बातों से पूर्णतया सहमत हूँ.
सुन्दर लिखा है आपने.
दाने दाने पर लिखा है,देख लो, कबूतर की चोंच का नाम
उसी चोंच के दाने को तलाशते बीत जाती है उम्र तमाम
कबूतर की।
इक इंसान ही है जो अपनी सात पीढ़ियों की चिंता में संचय करता जाता है जबकि सब जानते है कि सिकंदर भी खाली हाथ ही गया था . कब समझेंगे हम...?
प्रकृति की हर रचना में एक संदेश है। बशर्ते,मनुष्य उसे समझना चाहे।
खुबसूरत रचना.....
प्रकृति के पास इंसान के लिए बहुत है लेकिन इंसान के लालच के लिए बहुत कम है.
बहुत सार्थक रचना..मनुष्य की ज़रूरत के लिये बहुत कुछ है, उसके लालच के लिये नहीं...आभार
इंसान के अलावा सभी जीव-जंतु प्रकृति के करीब हैं, ज़रुरत से ज्यादा नहीं चाहते, आज में जीते हैं. बस इंसान को जाने कितना चाहिए...
बहुत अच्छी और सार्थक रचना. शुभकामनाएं.
बहुत सुंदर सार्थक प्रस्तुति,भावपूर्ण अच्छी रचना,..
WELCOME TO NEW POST --26 जनवरी आया है....
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए.....
काश
विहगों से ही इंसान
कुछ सीख पाता
तो
धरती का सुख वैभव
सबको मिल जाता .
bhaut hi sundar bhav .....bahut bahut abhar.
इंसानों और पक्षियों की प्रवृति की सुन्दर व्याख्या
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
vikram7: कैसा,यह गणतंत्र हमारा.........
सार्थक पोस्ट ......सपरिवार सहित गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.....
पक्षियो को माध्यम बनाकर इंसानो को बहूत अच्छी सिख दि है आपने ...
सुंदर एवं अच्छी सिख देती बेहतरीन रचना है...
पक्षी हमें सिखा जाते हैं,
पर दुर्भाग्य न हम कुछ सीखें।
कृपया इसे भी पढ़े-
क्या यही गणतंत्र है
क्या यही गणतंत्र है
sach. vihagon se hum bahut kuchh seekh sakte hain
सोच रही हूँ
इंसान और पक्षी की
प्रवृति में,
अंतर परख रही हूँ
परिंदे नहीं करते संग्रह
और न ही उनको
चाह होती है
ज़रूरत से ज्यादा की
और इंसान
ज्यादा से ज्यादा
पाने की चाहत में
धन - धान्य एकत्रित
करता रहता है
वर्तमान में नहीं ,बल्कि
भविष्य में जीता है ,
प्रकृति ने सबको
भरपूर दिया है
पर लालची इंसान
केवल अपने लिए
जिया है ,
इसी लालच ने
समाज में
विषमता ला दी है
सही कहा संगीता जी ! इंसान की और जादा की चाह और भविष्य के लिए जीने की प्रवृत्ति ही समाज की विषमता की जिम्मेदार है. गहरी और सूक्ष्म सोच के साथ लिखी गयी शशक्त रचना के लिए बधाई.
सादर
मंजु
इस कविता के माध्यम से इंसान के कठोर मन को ठकठकाने की कोशिश की ख़ुशी हुई पढ़ कर.......इस ही तरह की सोच के साथ गौ वंश रक्षा मंच का निर्माण हुआ है ...... आप सब के नए ब्लॉग -गौ वंश रक्षा मंच पर आप और अन्य सभी मित्रगण सादर आमंत्रित है ,आप सब के सुझाव और विचारों की प्रतीक्षा रहेगी ये हम सब का मंच है अपनी उपस्तिथि जरुर दर्ज करवाए तथा अपने अमूल्य विचार और सुझाव रखें ...धन्यवाद....http://gauvanshrakshamanch.blogspot.com/
संगीता जी,
संग्रह की हममें बढ़ती हुई प्रवृत्ती को आईना दिखाती हुई कविता मन को छू लेती है और यह सबक भी देती है कि संग्रह क्यों? किसके लिए?
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
काश
विहगों से ही इंसान
कुछ सीख पाता
तो
धरती का सुख वैभव
सबको मिल जाता .
...sach prakriti se hamen kitna kuch sikhne ko milta hai lekin ham hai hi dekh-samajh hi nahi paate..
sundar aatmchintran karati rachna..
परिंदे नहीं करते संग्रह
और न ही उनको
चाह होती है
जरूरत से ज्यादा की
कितनी अच्छी बात।
इंसान को सीख लेनी चाहिए।
बढि़या रचना।
परिंदे नहीं करते संग्रह
और न ही उनको
चाह होती है
ज़रूरत से ज्यादा की
विचार पूर्ण प्रस्तुति सवाल दागती सी .
विहगों से ही इंसान
कुछ सीख पाता
तो
धरती का सुख वैभव
सबको मिल जाता .
bahut sundar prernapoorn prastuti
hai.sochne ke liye majboor karti.
sundar prerak abhivyakti ke liye
aabhar.
laptop aur net men samsya aane se
deri ke liye kshma praarthi hun.
samy milne par mere blog par
aaiiyega.
अशर्फ़ उल मखलूकात होने की कीमत तो चुकानी ही है।
अच्छी बात कही है. आज की चिंता छोड भविष्य के लिये परेशान रहना? वर्तमान में जीने से शायद सबके दुखों का निवारण हो. सुंदर प्रस्तुति संगीता दी.
विहगों से ही इंसान
कुछ सीख पाता
तो
धरती का सुख वैभव
सबको मिल जाता .ekdam pate ki baat......
ati sunder.
वाह! बहुत ख़ूबसूरत और सार्थक पोस्ट! बहुत खूब लिखा है आपने!
bahut achchi rachna....kash har koi isse sandesh le.
संगीता दीदी समाज का सच कह दिया आपने रचना के द्वारा.....
बहुत सही बात !
काश
विहगों से ही इंसान
कुछ सीख पाता
तो
धरती का सुख वैभव
सबको मिल जाता .
यथार्थ...मन को छूनेवाली कविता...
परिंदे नहीं करते संग्रह
और न ही उनको
चाह होती है
ज़रूरत से ज्यादा की
और इंसान ....
.....
इंसान के आसपास ही सब कुछ है ...मगर कहाँ कुछ सीखना है हमें !
राह दिखाती रचना दीदी !!
गहरा उतरता भाव ,अर्थपूर्ण संदेश ..
विहगों से ही इंसान
कुछ सीख पाता
तो
धरती का सुख वैभव
सबको मिल जाता .
बहुत अच्छी और सार्थक रचना
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