उन्मादी प्रेम
>> Monday, February 13, 2012
प्रस्तुत रचना मनु भण्डारी जी के उपन्यास " एक कहानी यह भी में उनके विचारों पर आधारित है , उनके विचार को अपने शब्द देने का प्रयास किया है ...
उफनते समुद्र की
लहरों सा
उन्मादी प्रेम
चाहता है
पूर्ण समर्पण
और निष्ठा
और जब नहीं होती
फलित सम्पूर्ण इच्छा
तो उपज आती है
मन में कुंठा
कुंठित मन
बिखेर देता है
सारे वजूद को
ज़र्रा ज़र्रा
बिखरा वजूद
बन जाता है
हास्यास्पद
घट जाता है
व्यक्ति का कद
लोगों की नज़रों में
निरीह सा
बन जाता है
अपनों से जैसे
टूट जाता नाता है .
गर बचना है
इस परिस्थिति से
तो मुक्त करना होगा मन
उन्माद छोड़
मोह को करना होगा भंग |
मोह के भंग होते ही
उन्माद का ज्वार
उतर जाएगा
मन का समंदर भी
शांत लहरों से
भर जायेगा .
78 comments:
उन्मादी प्रेम की परिणीति को यहाँ सुन्दर शब्दों में व्यक्त किया गया है....बहुत सुन्दर रचना!
मन का समंदर भी
शांत लहरों से
भर जायेगा .
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
प्रेम की तीव्रता , उन्माद का ज्वार के बाद भाटा भी आता है . बस इतना हो की सर के ऊपर से पानी ना निकल जाए , नहीं तो सच में आग का दरिया है .मन्नू जी के शब्दों को आपने खूबसूरत भावो में पिरो दिया .
उन्मादी प्रेम का बहुत ही सटीक विश्लेषण किया है…………शानदार चित्रण्।
और जब नहीं होती
फलित सम्पूर्ण इच्छा
तो उपज आती है
मन में कुंठा
कुंठित मन
बिखेर देता है
सारे वजूद को ...
एक दम सच कहा..
बहुत सुन्दर संगीता जी...
सादर.
प्रेम को लेकर आपने सुन्दर गीत लिखा..बधाई.
_____________
'पाखी की दुनिया' में जरुर मिलिएगा 'अपूर्वा' से..
लोग कहते हैं - प्रेम के साथ कुंठा नहीं , पर कुंठा होती है... प्रेम समर्पित है तो प्रतिदान की उम्मीद भी है . प्रेम की ख्वाहिश स्वार्थ नहीं , ... ऐसे में मोह से ऊपर उठना - धीरे धीरे उठ ही जाता है आदमी .
......... अच्छा तो आप ख़ामोशी से मनु भंडारी जी को पढ़ रही थीं और अपने विचारों को जन्म दे रही थीं
बहुत सुन्दर |
बधाई ||
बहुत सार्थक प्रस्तुति।
मोह के भंग होते ही
उन्माद का ज्वार
उतर जाएगा
मन का समंदर भी
शांत लहरों से
भर जायेगा .
Sach! Aisa ho kitna achha ho!
ठीक कहा आपने ...ये सब मोह की ही माया है |
लेकिन बहुत मुश्किल है मन को अपने हिसाब से चला पाना
मोह से मुक्ति अत्यावश्यक है. उन्मादी प्रेम को शांति से जीतने का सार्थक सन्देश.
सुंदर प्रस्तुति के लिये बधाई.
मनु जी के भाव को सुंदर शब्दों में ढाला है...
बहुत अच्छी प्रस्तुति|
बड़ी सुन्दरता से बांधा है भावों को कविता में!
सादर!
समुन्नत शिल्प व कथनक रुचिकर लगा .. आभार /
एक खुबसूरत सन्देश देती रचना...
सादर.
उन्माद का ज्वार
उतर जाएगा
मन का समंदर भी
शांत लहरों से
भर जायेगा .......क्या बात कही है आपने|धन्यवाद,जो ऐसे भावों से परिचित कराया ,वरना प्रेम को तो महज उन्मादी ज्वार ही जाना जाता रहा है|
बहुत ही अच्छा लिखा है आंटी।
सादर
उन्मादी प्रेम
चाहता है
पूर्ण समर्पण
और निष्ठा
बिल्कुल सही , प्यार कब कुछ चाहता है
जो चाहे वो प्यार उन्माद ही तो है
उन्माद छोड़
मोह को करना होगा भंग |
सार्थक सन्देश
आजकल प्रेम भी उन्मादी हो गया है !
अच्छा रूपांतरण !
बहुत ही प्यारी और भावो को संजोये रचना......
जिनके लिए लिखा गया है, ऐसे लोगों का उन्माद का ज्वार कभी नहीं उतरता, ये तो घर जलाकर हाथ सेंकते हैं, क्योंकि इन्हें बस उष्मा चाहिए, घर और प्रेम नहीं।
लहरों का उन्माद हृदय में उठता रहता...
बहुत खुबसूरत रचना ||
लाज़वाब !!!
मोह का आवरण हमेशा सत्य को ढांक लेता है.. जब यह मोह भंग होता है तभी असलियत उभर कर सामने आती है एक शांत चित्त से!!
समुंदर सी गहरी बात.......
निरंकुश और अनियंत्रित प्रेम के ज्वार को कौन बाँध सका है मर्यादाओं में ! बहुत सुन्दर, सार्थक और सशक्त रचना है संगीता जी ! इसमें निहित संदेश को जो समझ लेगा कुंठाओं के त्रास से तो अवश्य मुक्त हो जायेगा ! खूबसूरत रचना के लिये बधाई !
गहरी अभिव्यक्ति..... सच में उन्मादी प्रेम तो सिवा कुंठा के कुछ नहीं....
कहानी के भाव बेहद खूबसूरती से उकेरे हैं.वाकई उम्माद से सब बिखर जाता है..पर समझ ही कौन पता है.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!!
स्वार्थ रहित सम्पूर्ण समर्पण का भाव ही प्रेम है...मगर आज ये विरले ही है....मन को छूती रचना...
गर बचना है
इस परिस्थिति से
तो मुक्त करना होगा मन
उन्माद छोड़
मोह को करना होगा भंग |
बहुत कठिन साधना है!
सुन्दर, प्रेरक रचना!
प्रेम सिर्फ मुक्त हृदय के लिए ही संभव है !
मोह के भंग होते ही
उन्माद का ज्वार
उतर जाएगा
मन का समंदर भी
शांत लहरों से
भर जायेगा ....
bikul sahi kaha hai ....
badhiya shbd-bhav ka pryog kiya hai...
उन्मादी प्रेम..आग का दरिया है और डूब कर फना होना है..
sargarbhit roop mein poore upnyas ke bhavon ko samarthta ke sath vyakt karti hui shandaar rachna...is rachna ke sandesh se main puri tarah ittefak rakhta hoon..sadar pranam ke sath
हमेशा की तरह बहुत ही सुंदर भाव संयोजन...सार्थक पोस्ट ...
सुन्दर,सटीक aur सामयिक रचना.
वाह बेहद खूबसूरत शब्दों की अभिव्यक्ति ....
बेहद खूबसूरत | कृपया हमारे ब्लॉग पर पधारें|
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bahut achcha likhi hain aap.....
कहानी के कथ्य का सुन्दर काव्यानुवाद है ।
कुंठित मन
बिखेर देता है
सारे वजूद को
ज़र्रा ज़र्रा
बिखरा वजूद
बन जाता है
हास्यास्पद
घट जाता है
व्यक्ति का कद
लोगों की नज़रों में
निरीह सा
बन जाता है
अपनों से जैसे
टूट जाता नाता है .
प्रेम में उन्माद ऐसी ही परिस्थिति खड़ी कर देता है इंसान के सामने .....
और फिर वही इंसान दूसरे को दोषी ठहराने लगता है......!!
इतने समुचित शब्दों में हकीकत बयां की है आपने....
मोह के भंग होते ही
उन्माद का ज्वार
उतर जाएगा
मन का समंदर भी
शांत लहरों से
भर जायेगा .
...बिलकुल सच..बहुत सुंदर रचना..
pyar ke dono pahluon ki sacchayi ukerti hai ye rachna.
lekin ant me moh bhang hone par beshak unmadi jwar utar jata hai magar man ka samander shant lehro se bhar jaye isme sanshay hai.
upanyas ke aadhar par sunder prayas. badhayi.
बिलकुल सही फ़रमाया...प्रेम ताकत बने कमजोरी नहीं...
सटीक चित्रण उन्मादी प्रेम का,...
बहुत अच्छी रचना,सुंदर प्रस्तुति
MY NEW POST ...कामयाबी...
आपका प्रयास सार्थक रहा...
par pdem me kuntha..
उन्मादी प्रेम और मन की कुंठा को यथार्थ रूप में प्रस्तुत किया है.मोह-भंग ही है इसका एकमात्र हल .
पुरुष तो पूर्ण समर्पण चाहता है पर क्या वह यही भाव स्त्री को देता है???
देर से आने के लिए माफी..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
उन्माद दो प्रकार का होता है एक शांत चित सरल और तरल प्रेम का और दूसरा राक्षसीपन का व्यभिचारी.
prem yahi hai shayad .shabdon ka sunder jugnu bikhera hai aapne
badhai
rachana
आजकल लोग उन्माद को ही प्रेम समझ बैठते हैं जबकि प्रेम तो एक ठहरा हुआ एहसास है। सुंदर अभिव्यक्ति संगीता जी
आपने तो कविता में जीने की कला सिखा दी ,,अति सुन्दर ,सारगर्भित ,शुभकामनायें
बिखरा वजूद
बन जाता है
हास्यास्पद
घट जाता है
व्यक्ति का कद
लोगों की नज़रों में....
कितनी बारीकी से देखा गया, बताया गया सच. दार्शनिक कविता ! आपका आभार इस रचना के लिए.
ज़र्रा ज़र्रा
बिखरा वजूद
बन जाता है
हास्यास्पद
घट जाता है
व्यक्ति का कद
लोगों की नज़रों में
निरीह सा
बन जाता है
अपनों से जैसे
टूट जाता नाता है ....
behad touchy,sunder rachna........
और मन मुक्त कैसे होगा?
prem ki abhivyakti ki sundar prastuti.
मन का समंदर भी
शांत लहरों से
भर जायेगा .सार्थक रचना दीदी.
मन का समंदर भी
शांत लहरों से
भर जायेगा .
SANGEETA JI KYA KAHU ......NAYEE SFOORTI SE PARIPOORN KR DENE WALI RACHANA LAGI ....KOTI KOTI ...BADHAI.
behad sundar rachna
Sunder prastuti
आपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली (३१) में शामिल की गई है/आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप इसी तरह लगन और मेहनत से हिंदी भाषा की सेवा करते रहें यही कामना है /आभार /
मन शांत लहरों से भरा रहे।
बहुत सुंदर कविता।
अच्छे भाव।
स्सच कहा है मुक्त प्रेम ही जीवन का आनद देता है ...
di , bahut hi behatreen
saari panktiyan hi
bahut sarthak sandesh de gain------
poonam
मोह जन्म देता है अपेक्षाओं को ...और फिर होती है दर्द और कुंठा की शुरुआत ....बहुत सुन्दर लिखा है आपने !!!
बहुत सुन्दर सार्थक रचना |
मन का समंदर भी
शांत लहरों से
भर जायेगा .
पर ये हो नही पाता तभी तो कुंठा उपजती है । मोह पर विजय पा लेंगे तो ज्ञानी बन जायेंगे ।
सुंदर प्रस्तुति ।
मोह के भंग होते ही
उन्माद का ज्वार
उतर जाएगा
मन का समंदर भी
शांत लहरों से
भर जायेगा .
पद्यानुवाद का ज़वाब नहीं .शब्द नपेतुले भावों के अनुरूप ढल गएँ हैं खुद- बा -खुद .
बहुत सुन्दर!
prem mein unmaad man-saagar mein sthirta nahi aane deta, prem ka charam tabhi sambhav hai jab unmaad na ho, moh bhale ho. man mein shaant lahre bhar jaaye to isase uttam kuchh bhi nahi. bahut sundar rachna.
उन्माद छोड़
मोह को करना होगा भंग |
मोह के भंग होते ही
उन्माद का ज्वार
उतर जाएगा
मन का समंदर भी
शांत लहरों से
भर जायेगा .............behatriin talkh haqiqat hai ye ,ye rachna bahut gahra prabhav choRti hai .
उन्मादी प्रेम की सुन्दर रचना..
अति उत्तम रचना...:-)
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