बोन्साई
>> Thursday, March 8, 2012
बोन्साई का सा
जीवन होता है
लड़कियों का ,
अंकुरित हो
जैसे ही निकलता है
नन्हा सा पौधा
मिलती है उसको
खिली हुई धूप
पर पल्लव निकलते ही
रख दिया जाता है
छांव में,
काट - छांट
रखना होता है
उनको सही
आकार में ,
माता - पिता ही
नहीं देते उनको
खिली धूप ,
रखते हैं
अपनी निगरानी में
कतरते रहते हैं
उनकी ख़्वाहिशों की
टहनियों को ,
और सजा देते हैं
किसी और की ज़िंदगी में
यह सोच कर कि
होगी पूरी देख भाल
लोग करेंगे सराहना
इस सुंदर बोन्साई की ,
लेकिन जब
नहीं मिलता
उचित खाद पानी
और उसके हिस्से की
थोड़ी सी धूप
तो उपेक्षित हो
खो देता है अपना
सारा सौंदर्य
और हो जाता है
निष्प्राण सा ।
80 comments:
आप ने लड़कियों कि तुलना बोनसाई से की है...यही हमारे समाज की वास्तविकता है!...सुन्दर रचना!
वास्तविक स्थिति बताई गयी है ..बोनसाई जैसी ही स्थिति होती है
आपके इस दृष्टिकोण के हर पहलू का मैं सम्मान करती हूँ , साथ ही जयघोष
very nice.....HAPPY HOLI !!!!
Didi aapne ladkiyon ke jeevan par
bahut acchi rachna likhi hain.
hamare samaj main ladkiyon ko aise
hi rakha jaata hain.
aapko avam aapke parivaar ko Holi ki
hardik subhkamnai.
कतरते रहते हैं
उनकी ख़्वाहिशों की
टहनियों को ,
और सजा देते हैं
किसी और की ज़िंदगी में
यह सोच कर कि
होगी पूरी देख भाल
यही हमारा समाज है...
बहुत सार्थक अभिव्यक्ति.
बहुत अच्छी रचना ...होली की हार्दिक शुभकामनाएँ
आज की वास्तविकता है यह।
आपको महिला दिवस और होली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर
दुखद स्थिति हमारे समाज में ....कन्यायों की .....
वास्तु स्थिति से परिचय कराती रचना .....
यही स्थिति है -
' सुख-सुविधा के लिये पुरुष की ,
यह भी एक वस्तु ,
छँटती-ढलती ,
उसी के निमित्त
स्वयं पर लादे
निषेधों का विधान !
*
क्या सटीक उपमा दी है..आपका भी जबाब नहीं.
यूँ मेरे दिमाग में और भी कुछ आ रहा है..फिर कभी सही.
बहुत सुन्दर रचना.
सीमित रहना कहाँ भाता है मन को..
सार्थक अभिव्यक्ति!
सटीक बिंब!! अद्भुत तुलना!! सार्थक "बोनसाई"
होली पर्व पर शुभकामनाएं
बदलाव, परिवर्तन सब कुछ महज दिखावा है वास्तविकता आज भी यही है.. सही कहा आपने "बोनसाई"
बिलकुल सही कहा है !
कांट-छांट कर बनाया हुआ व्यतित्व भले ही दुनिया की नजर में कीमती,सुंदर लगता हो,
किन्तु यह प्राकृतिक नहीं है ! इसीलिए तो हर रिश्ते में अपनी पहचान खोज-खोज कर
अंत में वह दुखी हो जाती है !
बहुत सुंदर लगी रचना बहुत बहुत बधाई !
आपकी कलम को बार-बार नमन संगीता जी ! नये बिम्ब ढूँढने में आप माहिर हैं ! बहुत ही सशक्त रचना है ! आनंद आ गया पढ़ कर ! होली की हार्दिक शुभकामनायें !
vastvikta ko chu rahi hai kavita ....satya hai har sabd , holikautsav ki bahut sari subhkamnayen ...
वाह!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
होली का पर्व आपको मंगलमय हो!
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
उम्मीद है बोनसाई की जगह बरगद जैसी होगी भविष्य की नारीयाँ. महिला दिवस की शुभकामनायें .
समाज के कटु यथार्थ को आपने जिस बिम्ब और प्रतीक के माध्यम से रखा है वह हमारे समाज के एक वर्ग की पीड़ा को सटीक अभिव्यक्ति देता है।
ऐसा ही होता हैं दी ....हम उगते कहाँ हैं और जमते कहाँ हैं ? यही हमारी कहानी हैं
होली की अनेक शुभकामनाए .....
हो सकता है कुछ लोग यह कविता पढकर इस दर्द को समझें !
आभार !
बहुत सुन्दर.....
सच है...कितना भी काटें...विकास रोकें...
फिर भी बोंसाई फल और फूल देना नहीं रोकते...
सादर.
आज कल की स्तिथि को उजागर करती रचना
बहुत सुंदर तुलनात्मक प्रस्तुति,अच्छी भाव अभिव्यक्ति
होली की बहुत२ बधाई शुभकामनाए...
जीवन तो स्वयं ही छोटा सा होता है
जीवन तो स्वयं ही छोटा सा होता है
बंधा बंधा सा जीवन तो मन को सालता ही है..... गहरी अभिव्यक्ति....
बहुत ही सुन्दर तरीके से आपने स्त्री की तुलना बोनसाई से कर दी...इस समाज में कमज़ोर को ही सब सुधारना चाहते हैं...और समरथ के आगे लंबलेट हो जाते हैं...नारी को आज अपनी शक्ति का भान हो रहा है...बोनसाई को वृक्ष बनने में अब देर नहीं लगेगी...
सब कुछ किसे मिला है?
अपनी मर्जी से कांट छांट कर दिए गये पौधे से लडकियों की तुलना सटीक ही लग रही है , उचित खाद पानी ना मिले तो मुरझाना ही है ...
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति !
क्या तुलना और कल्पना है..वाह!! होली मुबारक!!
सुन्दर सुरुचिपूर्ण, सृजन ,अभिव्यक्ति को स्वर प्रदान करता प्रभावशाली है ..... बधाईयाँ जी /
बहुत ही खूबसूरत कविता.. और मार्मिक सच...सीमाओं में बंधा जीवन जीती हैं लड़कियां..महिला दिवस पर प्रासंगिक कविता
karun sachchayee se bhari hui man bedhti rachna......
AURAT HONE KA DARD...
SACHMUCH KITNA KARUNAMAY HAI..
BAHUT SUNDAR AVIVAYKYI!
एक कडवी वास्तविकता को इंगित करती प्रभावी रचना दी....
सादर.
बहुत उम्दा !
आपकी कभी भी कोई रचना पढना अपने आप में एक नया अनुभव होता है..सहज शब्दों में गहरी बात कहना कोई आपसे सीखे..हमेशा की तरह एक और अनुपम कृति..बहुत बहुत आभार आपका.
माता - पिता ही
नहीं देते उनको
खिली धूप ,
रखते हैं
अपनी निगरानी में
कतरते रहते हैं
उनकी ख़्वाहिशों की
टहनियों को ,
और सजा देते हैं
किसी और की ज़िंदगी में ...
...
दीदी इतनी सहजता से इतने कड़वे यथार्थ को आप ही कह सकते हो ..सादर प्रणाम !
बोन्साई पौधे से लडकी की बहुत मार्मिक तुलनात्मक और कटु सत्यता को उजागर करती रचना ! आपको देर से ही सही होली की हार्दिक शुभकामनाये !
अत्यंत सुंदर रचना.....
लड़कियों कि तुलना बोनसाई से ....बहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....
इस सुन्दर रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।
सच है स्त्री बोनसाई है, उतना ही खाद-पानी दिया जाता कि जीवित रहे, भले उपेक्षित होकर धीरे धीरे मर ही जाए. बेहद अर्थपूर्ण रचना, बधाई.
समाज की बना दी गयी बोनसाई (कन्याये) वाह शाशाक्त लेखनी चलायी है आपने एक वास्तविक suchpoorna रचना बधाई sangeeta ji
गहरी कोश से उपजी रचना है .. सच में लड़कियों का जीवन ऐसे हो होता है खाल हर अपने समाज में ...
आपको होली की मंगल कामनाएं ...
इतनी सुन्दर और वास्तविक तुलना...कितना सच !
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति और बेटियों की तुलनात्मक व्याख्या का सुन्दर भाव ..............सुन्दर रचना के लिए बधाई
बहुत तुलनात्मक विश्लेषण किया है आपने... कविता पढ़ कर लड़कियों की यही नियति का एहसास हुआ .. बहुत सुंदर कविता....
vivah ke baad to stri bonsai kya thunth hi rah jati hai .....
sangeeta ji aapki rachnayein hamesha man ko chhu leti hain ....
कतरते रहते हैं
उनकी ख़्वाहिशों की
टहनियों को
और सजा देते हैं
किसी और की ज़िंदगी में
बेटियों की व्यथा इन पंक्तियों में मुखरित हो रही है।
सर्वथा नवीन प्रतीकों के प्रयोग से कविता की संप्रेषणीयता बढ़ गई है।
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
शुभकामनाएँ
bilkul yatharth parak rachana ....badhai sweekaren.
बहुत सुंदर तुलनात्मक प्रस्तुति,अच्छी भाव अभिव्यक्ति
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,भावपूर्ण सुंदर रचना,...
RESENT POST...काव्यान्जलि ...: बसंती रंग छा गया,...
bonsaai ko prateek banakar bitia kee parvarish ks behtarin chitran ..vikash kee sahjaat pravritti dharan kiya hue briksh par bhee hamne julm kiya..apne kad ko ooncha karne ke liye ham doosre ka kad kam kar dete hai..chintan ke liye prerit karti shandaar rachna...sadar badhayee aaur amaantran ke sath
आज के यथार्थ का बहुत सटीक और मर्मस्पर्शी चित्रण..बहुत उत्कृष्ट आभिव्यक्ति...
शब्द दर शब्द हकीकत बयां करती अभिव्यक्ति ...बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ..आभार ।
कितना सही कहा आपने...
एकदम सही सटीक तुलना की है..
मर्मस्पर्शी रचना...
waah gazab ke bhaw....
सत्य वचन सुन्दर विषय खूबसूरत अंदाज़ |
मर्म को कुरेद जाती रचना.
बोनसाई सा आकार पर फिर भी सम्पूर्ण है स्त्री .............बहुत अच्छा लिखा है आंटी !
मैत्रेयी पुष्पा जी को पढ़कर बोन्साई के दर्द को अनुभव करना अच्छा लगा..या कहूँ दर्द और बढ़ ही गया.. अच्छी लगी रचना..
जैसे ही निकलता है
नन्हा सा पौधा
मिलती है उसको
खिली हुई धूप
पर पल्लव निकलते ही
रख दिया जाता है
छांव में,
once again read it and it looks
new with new meaning beautiful lines .please visit MAA IN MY BLOG.
अभिनव बिम्ब.
बँधा-बँधा सा जीवन कैसे किसी को रास आसकता है..सुन्दर रचना!
सटीक बिंब के साथ कमाल की कविता।
bahut hi sundar rachna...waakai me ye sochniy paksh hai...
very touchy
वाह बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति संगीता जी .वाकई दिल को छू गयी कविता ...सचमुच लड़कियों का जीवन बोनसाई सा होता हैं
ग़ज़ब की तुलना,वाह.
देर से पढ़ पाया,क्षमा.
sunder tulatmak chitran prastut kiya hai. prabhavi prastuti.
बोनसाई के साथ लड़कियों की सदृश्यता बहुत ही सटीक और मन पर गहरा प्रभाव छोड़ने वाली है | बहुत ही सुंदर, सार्थक और दिल को छूती ! बधाई !
बोनसाई पौधे को अदबदा कर छोटा बनाने की अस्वाभाविक प्रक्रिया का उत्पाद है .पौधे के कुदरती विकास के साथ खिलवाड़ है .हमारे बनाए समाज में लडकियां भी बोनसाई बना रखी जातीं हैं .'गुडिया भीतर गुडिया 'की अभिव्यक्ति यहाँ भी है .बेहतरीन रचना सामाजिक चलन को फटकार लगाती हुई .
♥
बोन्साई का सा
जीवन होता है लड़कियों का ,
अंकुरित हो जैसे ही निकलता है नन्हा सा पौधा
मिलती है उसको खिली हुई धूप
पर पल्लव निकलते ही रख दिया जाता है छांव में,
काट - छांट रखना होता है
उनको सही आकार में
सच कहा आपने ...
आदरणीया संगीता स्वरुप जी
सस्नेहाभिवादन !
भावपूर्ण सुंदर कविता लिखी है आपने !
बधाई !
कतरते रहते हैं
उनकी ख़्वाहिशों की
टहनियों को ,
और सजा देते हैं
किसी और की ज़िंदगी में
यह सोच कर कि
होगी पूरी देख भाल
एकदम सही तुलना । अति सुंदर ऱचना ।
थोड़ी सी धूप
तो उपेक्षित हो
खो देता है अपना
सारा सौंदर्य
और हो जाता है
निष्प्राण सा ।
sahi soch aesa hi hai sunder bhav
rachana
बहुत सही कहा आपने ... वाकई में लड़कियों की दशा आपके बोन्जाई पर कविता जैसी ही तो है..
sirf mehsoos kiya tha, aapne bonsaai ki upma de kar use shabd de diye...
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