दी ! अरे आप तो अमूल्य हो फिर आपका मोल कोई कैसे लगायेगा भला? आप न हीरा हो, न पत्थर. आप तो अनमोल रत्न हो जिसका मोल लगाने की क्षमता ही नहीं किसी में :) वैसे कविता अच्छी है :)
जिस बहुमूल्य रत्न को बिना कोई मोल लगाये छोड़ दिया गया हो, या उस पर खींची लकीर मुकम्मल ना हो तो उसमे उस बहुमूल्य रत्न की कमी तो नहीं कही जा सकती ना....इसमें तो कसूर उस उस पारखी नज़र का है या उस हीरे तराशने वाले का जो मुकम्मल नहीं कहा जा सकता.
अपने भावो को बहुत सुंदरता से तराश कर अमूल्य रचना का रूप दिया है.
संगीता दी! ऊ हीरा जिसपर लकीर पड़ जाए पत्थर रह जाता है ,बिना मोल का.. लेकिन ई राम का देस है, यहाँ हीरा पर पड़ा हुआ लकीर से भले हीरा पत्थर रह जाए, उनके स्पर्स से ऊ पत्थर भी नारी हो जाता है. बहुत सुंदर!! सलिल
आप की लेखनी के कितने आयाम है , हमे अचम्भा होता है . आप किस सरलता से अपने विचारो को शब्द दे देती है , प्रणम्य हो देवी .रही बात हीरा के अवमूल्यन की , तो कोई लकीर अभी ऐसी नहीं बनी जो आपके अवमूल्यन का कारण बने .
मैं शिखाजी की बात से इत्तेफाक रखता हूं. संगीता जी हमारे लिए अनमोल है अब यह मत कहना कि अरे भाई यह तो कविता है। मेरा मानना है कि ज्यादातर अच्छी कविता दिल से निकली हुई किसी टीस या आवाज का ही नतीजा है.
मैं शिखाजी की बात से इत्तेफाक रखता हूं. संगीता जी हमारे लिए अनमोल है अब यह मत कहना कि अरे भाई यह तो कविता है। मेरा मानना है कि ज्यादातर अच्छी कविता दिल से निकली हुई किसी टीस या आवाज का ही नतीजा है.
कविता यह संदेश देती है कि जीवन के संवेदनशील मुद्दों पर जरा सी भूल जिंदगी भर की सजा का कारण बन सकती है। अतः इन मुद्दों पर सजग और गंभीर रहना बेहद जरूरी है ।
हीरे से दमकती अनमोल रचना सगीता जी ! किसीकी क्या मजाल जो आपका मोल लगाने की जुर्रत करे ! कुछ अनमोल लोगों में आपका स्थान भी सुरक्षित है ! बहुत सुन्दर रचना !
खिंच गयी है भीतर तक कोई लकीर अवमूल्यन कितना भी हो हीरा आम आदमी की क्रय शक्ति की जद में तो नही आ पाता है... आखिर हीरा तो हीरा ही है. अत्यंत भावपूर्ण रचना
मैं शिखा और रश्मि प्रभाजी से पूर्णतया सहमत हूँ ... खिंच गयी भीतर तक लकीर ... जाने इस कविता में ऐसा क्या है जो भीतर तक लकीर की तरह खिंच गया है .. भावपूर्ण ..!
किसी भी वस्तु की सुन्दरता आपकी मूल्यांकन करने की योग्यता में छिपी हुई है। संगीता जी आपने अपनी कविताओं में अपने समय को लेकर हमेशा जरूरी सवाल खड़े किए हैं। लोगों द्वारा दिए गए ठेस से आक्रांत मनस्थितियों का आपने प्रभावी चित्रण किया है। आपने यहां अन्योक्ति से एक गहरा संकेत किया है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है। साहित्यकार-बाबा नागार्जुन, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
किसी भी गुणी लेकिन कठोर या दृढ़ निश्चयी व्यक्तित्व को तराशना बहुत ही कठिन कार्य है। यदि तराश लिया जाए तो वे बेशकीमती बन जाता है और उसके कोई ठेस पहुंचा दे तो फिर उसके गुणों का कोई मौल नहीं रहता है। हीरे के माध्यम से मानव स्वभाव की अच्छी पड़ताल की है आपने। तभी तो कई गुणवान व्यक्ति हमारे मध्य होते हैं लेकिन किसी ना समझ के कारण उनके गुण अवगुण से दिखायी देने लगते है।
संगीता जी ! आपने हीरे के साथ जड़ कर इस कविता को बेहद बहुमूल्य बना दिया है .. विचार एक के बाद ऐसे जुडे हैं की कविता की हर एक पंक्ति बेसकीमती | किसी एक पंक्ति को उठा के बताऊँ की सुन्दर - संभव नहीं क्यूंकि हर पंक्ति का महत्व आगे और पीछे की कड़ी से जुड़ा है | एक दर्द है कविता का ..कविता बेमिसाल ..और यह बात सही है की हीरा तो हीरा है उसे समय भी नहीं मिटा सकता - जिसको परख नहीं उसका दोष | शुभकामनायें
कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ...
मन के भावों को
कैसे सब तक पहुँचाऊँ
कुछ लिखूं या
फिर कुछ गाऊँ
।
चिंतन हो
जब किसी बात पर
और मन में
मंथन चलता हो
उन भावों को
लिख कर मैं
शब्दों में
तिरोहित कर जाऊं ।
सोच - विचारों की शक्ति
जब कुछ
उथल -पुथल सा
करती हो
उन भावों को
गढ़ कर मैं
अपनी बात
सुना जाऊँ
जो दिखता है
आस - पास
मन उससे
उद्वेलित होता है
उन भावों को
साक्ष्य रूप दे
मैं कविता सी
कह जाऊं.
68 comments:
बहुत बोले तो बहुत ही बढ़िया
वाह
वाह
शब्द विन्यास !
amazing Di
मैं हीरा नहीं
पत्थर भी नहीं
फिर भी
खिंच गयी है
भीतर तक
कोई लकीर
यही खींची लकीर तो दिल के दर्द को शब्द दे देती है...बहुत ही सुन्दर ,अभिव्यक्ति
बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति|
संगीता जी आप भी शब्दों को हीरे की तरह ही तराशती हैं। सचमुच हर अगर किसी को शब्दों को तराशना सीखना हो तो आपकी कविताओं को पढ़ता रहे।
दी ! अरे आप तो अमूल्य हो फिर आपका मोल कोई कैसे लगायेगा भला?
आप न हीरा हो, न पत्थर. आप तो अनमोल रत्न हो जिसका मोल लगाने की क्षमता ही नहीं किसी में :)
वैसे कविता अच्छी है :)
यही जीवन की विडंबना है…………………ह्रास तो हर चीज़ का एक ना एक दिन होना ही है……………बहुत सुन्दरता से उकेरा है।
संगीता दी! हीरे की तरह तराशी हुई रचना... अमूल्य और देदीप्यमान!
yahaan to paarkhi nazron ko aap tarash rahi hain..... anmol ehsaason ka saath dekar
पत्थर भी नहीं
फिर भी
खिंच गयी है
भीतर तक
कोई लकीर
--
इस लकीर का ही कमाल है कि जौहरी पत्थर और हीरे की पहचान कर लेता है!
--
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
अरे...
नहीं संगीता जी...
आपके पास तो भावनाओं के नायब हीरे हैं.
जिस बहुमूल्य रत्न को बिना कोई मोल लगाये छोड़ दिया गया हो, या उस पर खींची लकीर मुकम्मल ना हो तो उसमे उस बहुमूल्य रत्न की कमी तो नहीं कही जा सकती ना....इसमें तो कसूर उस उस पारखी नज़र का है या उस हीरे तराशने वाले का जो मुकम्मल नहीं कहा जा सकता.
अपने भावो को बहुत सुंदरता से तराश कर अमूल्य रचना का रूप दिया है.
बधाई.
संगीता दी!
ऊ हीरा जिसपर लकीर पड़ जाए पत्थर रह जाता है ,बिना मोल का.. लेकिन ई राम का देस है, यहाँ हीरा पर पड़ा हुआ लकीर से भले हीरा पत्थर रह जाए, उनके स्पर्स से ऊ पत्थर भी नारी हो जाता है.
बहुत सुंदर!!
सलिल
आप की लेखनी के कितने आयाम है , हमे अचम्भा होता है . आप किस सरलता से अपने विचारो को शब्द दे देती है , प्रणम्य हो देवी .रही बात हीरा के अवमूल्यन की , तो कोई लकीर अभी ऐसी नहीं बनी जो आपके अवमूल्यन का कारण बने .
हीरे से ज्यादा कठोर
कुछ भी नहीं
उसे तराशना भी
मुकम्मल हाथों से ही
संभव है
....सही कहा आपने...हीरा जितना कठोर है, उतनाही अनमोल है!
मैं शिखाजी की बात से इत्तेफाक रखता हूं.
संगीता जी हमारे लिए अनमोल है
अब यह मत कहना कि अरे भाई यह तो कविता है। मेरा मानना है कि ज्यादातर अच्छी कविता दिल से निकली हुई किसी टीस या आवाज का ही नतीजा है.
मैं शिखाजी की बात से इत्तेफाक रखता हूं.
संगीता जी हमारे लिए अनमोल है
अब यह मत कहना कि अरे भाई यह तो कविता है। मेरा मानना है कि ज्यादातर अच्छी कविता दिल से निकली हुई किसी टीस या आवाज का ही नतीजा है.
हीरे की तो कीमत होती है चाहे कितना ही कीमती क्यों न हो? लेकिन आपकी कोई कीमत नहीं है और ये कलम तो पता नहीं कितनी सुन्दर लिख डालती है.
कविता यह संदेश देती है कि जीवन के संवेदनशील मुद्दों पर जरा सी भूल जिंदगी भर की सजा का कारण बन सकती है। अतः इन मुद्दों पर सजग और गंभीर रहना बेहद जरूरी है ।
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
Bahut khoob Sangeetaji, Shaandaar !
आपने शब्दों को ऐसा तराशा है कि उनमें एक भी खरोंच नहीं...वाह...बहुत सुंदर।
हीरे से दमकती अनमोल रचना सगीता जी ! किसीकी क्या मजाल जो आपका मोल लगाने की जुर्रत करे ! कुछ अनमोल लोगों में आपका स्थान भी सुरक्षित है ! बहुत सुन्दर रचना !
आपकी लिखी कविती तराशे हुए हीरे से क्या कम है मैडम!...बेहद अच्छी रचना
पत्थर भी नहीं
फिर भी
खिंच गयी है
भीतर तक
कोई लकीर
सुंदर रचना ।
पारखी नज़रें भले ही हीरे को छोड़ दे .........परन्तु भावनाओं की कोई मोल नहीं !!
सुन्दर और सादा शब्दों में कही गई असाधारण बात लगी ये कविता मैम.
खिंच गयी है
भीतर तक
कोई लकीर
अवमूल्यन कितना भी हो हीरा आम आदमी की क्रय शक्ति की जद में तो नही आ पाता है... आखिर हीरा तो हीरा ही है.
अत्यंत भावपूर्ण रचना
हीरे के सहारे बहुत बड़ी बात कह डाली आपने !
मैं शिखा और रश्मि प्रभाजी से पूर्णतया सहमत हूँ ...
खिंच गयी भीतर तक लकीर ...
जाने इस कविता में ऐसा क्या है जो भीतर तक लकीर की तरह खिंच गया है ..
भावपूर्ण ..!
वाह,
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
किसी भी वस्तु की सुन्दरता आपकी मूल्यांकन करने की योग्यता में छिपी हुई है। संगीता जी आपने अपनी कविताओं में अपने समय को लेकर हमेशा जरूरी सवाल खड़े किए हैं। लोगों द्वारा दिए गए ठेस से आक्रांत मनस्थितियों का आपने प्रभावी चित्रण किया है। आपने यहां अन्योक्ति से एक गहरा संकेत किया है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
साहित्यकार-बाबा नागार्जुन, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
बहुत सुंदर..हर बार की तरह..!!
किसी भी गुणी लेकिन कठोर या दृढ़ निश्चयी व्यक्तित्व को तराशना बहुत ही कठिन कार्य है। यदि तराश लिया जाए तो वे बेशकीमती बन जाता है और उसके कोई ठेस पहुंचा दे तो फिर उसके गुणों का कोई मौल नहीं रहता है। हीरे के माध्यम से मानव स्वभाव की अच्छी पड़ताल की है आपने। तभी तो कई गुणवान व्यक्ति हमारे मध्य होते हैं लेकिन किसी ना समझ के कारण उनके गुण अवगुण से दिखायी देने लगते है।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
प्रभावपूर्ण रचना ,बहुत ही सुंदर ।
बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति|
आप ने इस कविता को तरास कर हीरे सी चमक दे दी है, बहुत सुंदर, धन्यवाद
जिसे पारखी नज़रें
छोड़ देती हैं
बिना ही कोई
मोल लगाये ....बहुत सुन्दर भाव ..अभिव्यक्तियों का सटीक चित्रण.
______________
'शब्द-शिखर'- 21 वीं सदी की बेटी.
हीरे का अवमूल्यन कहीँ नहीँ . निकष नही मिलते । प्रशंसनीय ।
Aap johari hain... aapka mil kaun laga sakta hai... bahut sundar kavita...
हीरे का मूल्य है कि वह औरों जैसा नहीं है और कम पाया जाता है। मूल्य दुनिया तभी ही लगाती है।
सुंदर और सार्थक भावपूर्ण रचना.
आप हमेशा ही बहुत अच्छा लिखती हैं.
इसके लिए आपको आभार ...
शानदार प्रस्तुति .......
पढ़िए और मुस्कुराइए :-
क्या आप भी थर्मस इस्तेमाल करते है ?
बहुत सुन्दर कविता....बधाई.
_________________________
'पाखी की दुनिया' में- डाटर्स- डे पर इक ड्राइंग !
aapne bhi khoob tarasha he,
sundar abhivyakti
sundar abhivyakti...
regards,
जिसे पारखी नज़रें
छोड़ देती हैं
बिना ही कोई
मोल लगाये ....
----------------------------
और ऐसे हालात में मन अन्दर तक दुखी हो जाता है..... अफ़सोस की
यह विडम्बना हकीकत है....सुंदर विचार
हीरा एक कठोर चमकदार पत्थर जिसमे लकीरें नहीं होती ; लेकिन उसे तराशने वाले हाथ नरम, खुरदुरे , जिनका सब कुछ लकीरें ही होती हैं ! बहुत सुन्दर तुलना .
bahoot hi sunder abhivayakti............
itana sunder bimb, ki dil ko chhoo gaya.
संगीता जी ! आपने हीरे के साथ जड़ कर इस कविता को बेहद बहुमूल्य बना दिया है .. विचार एक के बाद ऐसे जुडे हैं की कविता की हर एक पंक्ति बेसकीमती | किसी एक पंक्ति को उठा के बताऊँ की सुन्दर - संभव नहीं क्यूंकि हर पंक्ति का महत्व आगे और पीछे की कड़ी से जुड़ा है | एक दर्द है कविता का ..कविता बेमिसाल ..और यह बात सही है की हीरा तो हीरा है उसे समय भी नहीं मिटा सकता - जिसको परख नहीं उसका दोष | शुभकामनायें
shikha ke vicharo se shat pratishat sahmat hoo............
Aabhar
बहुत खूबसूरती के साथ शब्दों को पिरोया है इन पंक्तिया में आपने ........
पढ़िए और मुस्कुराइए :-
आप ही बताये कैसे पर की जाये नदी ?
Aap bahut achha sochti hain aur bahut achha likhti hain... bahut sunder andaaz hai aapka. main bhi aapko di kehna chahti hoon... keh sakti hoon?
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति....
आपकी कविता क्या किसी हीरे से कम है !!!
aise johri ko aisi ki taisi.....jo vo aise heere ko pehchaan na paaye.....
sorry dadi....mujhse kabhi tameez aur formal tareeke se comment dena ni hoga...but u kno what i mean ;)
luvv u
क्या बात कह दी है आपने....
एकदम मोहित कर लिया...
बरसों पहले इसी भाव से मिलते जुलते अपनी एक कविता का स्मरण हो आया...
adbhut rachna hai mumma.. "mukammal hath " ek behad khubsurat bat lagi ye mujhe... aur heere ke bhetar lakeer pad jane wali bat to dhansu hai
इसीलिये तो यह हीरा कहलाता है ।
बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति..!
अद्भुत सुन्दर रचना! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है!
सुन्दर अभिव्यक्ति
यहाँ भी पधारें:-
ईदगाह कहानी समीक्षा
दर्द की लकीर को मिटाना आसान नही होता ... बहुत संवेदनशील लिखा है ...
मैं हीरा नहीं
पत्थर भी नहीं
फिर भी
खिंच गयी है
भीतर तक
कोई लकीर
बहुत ही सुन्दर शब्द, हमेशा की तरह अनुपम प्रस्तुति ।
bemisaal.wah.
जिसे पारखी नज़रें
छो़ देती हैं
बिना ही कोई
मोल लगाये ....
awaysome unchhua ,uniqe khayal
bandhaii
बेहतरीन!
सादर
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