अंतिम छोर
>> Thursday, August 5, 2021
ज़िन्दगी की सड़क पर
दौड़ते जाते हैं
अक्सर ही अन्धाधुन्ध,
बिना सोचे या कि
बिना समझे ही
कि हम किसे पाने की
होड़ लिए
अप्राप्य को प्राप्त
करने की चाहत में ,
छोड़ते जा रहे हैं
बहुत कुछ
जो हमें प्राप्त था ।
गिरते हैं
संभलते हैं
फिर लगा लेते है दौड़
उसको पाने की
ख्वाहिश लिए
जो सर्वदा हो
अवांछनीय ।
आखिर क्या होता है
लक्ष्य हमारा
जिसके संधान में
भटकते हैं यूँ
दर - बदर ।
ज़िन्दगी की ये सड़क भी
अनंत लगती है
चलते चलते
जैसे छूट रहा हो
सब कुछ ,
और
मन जैसे
चाहता है कि
कैसे भी
पहुँच जाएँ
इस सड़क के
अंतिम छोर पर ।
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36 comments:
अत्यंत गहन भाव लिए सुंदर अभिव्यक्ति दी।
जीवन यात्रा का अपनी मर्ज़ी की कब रही है..
इस यात्रा का रहस्य अबूझ है।
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रास्ते अजीब हों,
फिर भी चलना मजबूरी है
जब मंज़िल करीब हो
गठरियाँ छोड़ना जरूरी है।
----
प्रणाम
सादर
आपके इस जीवन-दर्शन से मैं पूर्णतः सहमति व्यक्त करता हूँ संगीता जी। इसने मुझे आलोक श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक बहुत पुरानी ग़ज़ल का स्मरण करवा दिया जिसकी आरंभिक पंक्तियां हैं:
ज़रा पाने की चाहत में बहुत कुछ छूट जाता है
न जाने सब्र का धागा कहाँ पर टूट जाता है
"होड़ लिए
अप्राप्य को प्राप्त
करने की चाहत में ," - .. कई दफ़ा ऐसी सोच सकारात्मक होने से हमें कोई आविष्कारक या अनुसंधानकर्ता भी बना देती है .. शायद ...😀😀😀
और अगर seriously सोचें तो, सच में ...😢😢
पल-पल खोती ही तो
जा रही है,
पलों में ज़िन्दगी,
ना जाने पल भर में
किस पल में ..
ज़िन्दगी की सड़क के
किस पड़ाव पर
ठहर सी जाए ज़िन्दगी,
कोई अंजाना पड़ाव,
या एक अंजाना ठहराव ही
मंजिल बन जाए और ना जाने कब
इस सड़क का मुसाफ़िर बस ..
ठहर-सा जाए .. बस यूँ ही ...
पाना ,खोना ,सम्हलना और मंज़िल तक पहुँच जाना ,जीवन का फ़लसफ़ा सुंदरता से व्यक्त किया दी!!
वितरागी स्वर मानो अवचेतन से फूट रहा हो । दबा-दबा सा मगर मुखर । जिसका बस अनुभव में ही समाई हो । अति सुन्दर भाव ।
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ६ अगस्त २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
प्रिय दीदी , अप्राप्य की खोज ही सब अन्वेषणों औरर अनुसंधानों का मूल है | निश्चित रूप से कुछ मन मुताबिक़ पाने की चाहत ही हमें निरंतर जीवन पथ पर अग्रसर रहने की शक्ति प्रदान करती है | गूढ़ दर्शन को उद्घाटित करती रचना के लिए बधाई स्वीकार करें |सादर
ज़िन्दगी की ये सड़क भी
अनंत लगती है
चलते चलते
जैसे छूट रहा हो
सब कुछ ...
जीवन यथार्थ को उकेरती अति सुन्दर और हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति ।
अप्राप्य को प्राप्त
करने की चाहत में ,
छोड़ते जा रहे हैं
बहुत कुछ
जो हमें प्राप्त था ।
गिरते हैं
संभलते हैं
फिर लगा लेते है दौड़
–सच्चाई...
–उम्दा लेखन
बहुत बहुत सुन्दर रचना ।
* प्रिय श्वेता ,
सच कहा कि चलना मजबूरी है बस बोझ को उतारते जाना है ,न जाने कब छोर मिल जाय । सस्नेह।
**जितेंद्र जी ,
बहुत बहुत शुक्रिया । आपके दिए हुए शेर ने तो भाव पूर्ण कर दिए ।
*** सुबोध जी ,
मैं तो अनुभव लिख रही हूँ , अनुसंधान आप कर लीजिएगा ।
और बस जो ये यूँ ही सा लिखा है वही सच्चाई है कि न जाने कब ठहर जाय इंसान चलते चलते , पल पल खो रही ज़िन्दगी । शुक्रिया ।
प्रिय अनुपमा ,
ज़िन्दगी के हर भाव को समझने और सराहने के लिए आभार ।
** अमृता जी ,
आपने गहराई से भावों को स्पष्ट किया और सराहा , हृदय से आभार ।
प्रिय रेणु
अप्राप्य को पाने की होड़ में जहाँ एक ओर अनुसंधान की ओर अग्रसर करती है तो कहीं मुँह के बल गिरा भी देती है , ये जीवन है ,कब क्या हो जाय कुछ पता नहीं , बस प्रयास ज़रूरी है । कविता के विश्लेषण के लिए आभार ।
प्रिय मीना जी ,
रचना को सराहने के लिए आभार ।
** विभा जी ,
रचना पसंद करने के लिए हार्दिक आभार ।
***ओंकार जी ,
बहुत बहुत शुक्रिया ।
*** आलोक जी ,
हार्दिक आभार ।
सन्त कहते हैं इंसान को अपने भीतर का अधूरापन जब नजर आता है तो वह चल पड़ता है उसे पूर्ण करने के लिए, लेकिन समझ नहीं पाता किससे भरेगा यह खालीपन, जब तक भीतर जाकर वह स्वयं को नहीं जान लेता तब तक यह दौड़ जारी रहती है
बस इसी उहापोह में गुजर जाती है जिन्दगी. इंसान को संतोष ही तो नहीं होता. सटीक, भावपूर्ण रचना.
बेचैनी यह आतुर मन की
अकुलाहट सूने नयनों की
अंतहीन भटकन कदमों की
प्रज्ज्वलित ज्वाला अंतरस्थल की !
ज़िन्दगी की ये सड़क भी
अनंत लगती है
चलते चलते
जैसे छूट रहा हो
सब कुछ ,
सादर नमन
जिंदगी है ही, चलने का नाम ... अनवरत चलते जाना है,
कहीं मुस्कराना तो कहीं घबरा के ठहर जाना है ...
बहुत शानदार लिखा
सादर 🙏🏼🙏🏼
बहुत खूब।
यह खोज न हो तब जीवन उद्देश्यहीन ही हो जायेगा ...
चरैवेति चरैवेति!
** अनिता जी ,
आपकी प्रतिक्रिया ने तो रचना को सार्थक कर दिया ।
बेचैनी यह आतुर मन की
अकुलाहट सूने नयनों की
अंतहीन भटकन कदमों की
प्रज्ज्वलित ज्वाला अंतरस्थल की !
कितना सटीक लिखा आपने । बहुत खूब 👌👌👌👌आभार
*** शिखा ,
यदि इंसान संतुष्ट तो मोक्ष ही मिल जाय । प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया ।
**** यशोदा ,
हार्दिक आभार ।
****
प्रिय सदा ,
जीवन बस चलते जाना , कभी रुकना कभी मुस्कुराना ।
आभार
**** गिरीश जी ,
सादर आभार ।
**** वाणी ,
कभी कभी खोज भी तो उद्देश्यहीन लगने लगती । फिर भी जीवन है तो चरैवेति चरैवेति ।
बहुत ही उम्दा रचना!
होड़ ही होड़ में दौड़ती हुई जिन्दगी कुछ खोती कुछ पाती अंतिम छोर तक चलती जा रही है, बहुत सुंदर
सही कहा ये जिन्दगी का फलसफा भी कितना अजीब है कहाँ तो दौड़ते हैं अप्राप्य को प्राप्त करने के लिए ...प्राप्त को छोड़ते और खोते हुए...अप्राप्य ज्यूँ ही प्राप्त हुआ उसे छोड़ पुनः आगे...और एक दिन जिन्दगी के इस सफर में सब कुछ निरर्थक... बस अंतिम छोर तक पहुँचने की चाहना मात्र...। सारी चाहते आने वालों के सुपुर्द कर बस अंतिम छोर तक का सफर...
बहुत ही गहन चिन्तनपरक लाजवाब सृजन।
सारगर्भित रचना ....
अभी मीलों दूर बहुत है जाना…अन्तिम छोर कब हाथ आता आसानी से…विराम के बाद अगली यात्रा की तैयारी…तन का बाना बदलता है…राहें बदलती हैं पर यात्रा तो चलती रहती है अनवरत…थका राही बेशक ढूढने लगता है अन्तिम छोर , पर….!!
सुँदर कविता👌👌
चलते चलते
जैसे छूट रहा हो
सब कुछ ,
और
मन जैसे
चाहता है कि
कैसे भी
पहुँच जाएँ
इस सड़क के
अंतिम छोर पर ।
...बहुत गहन तथा सार्थक रचना,आपकी रचनाओं में जीवन का पर्याय छुपा होता है,बार बार पढ़ो तो कई संदर्भों का अनुभव मिलता है,बहुत सुंदर काव्य सृजन ,आप ऐसे ही जीवन को समझाती रहें अपनी शब्द्रचना के मध्यम से,यही निवेदन है,आपको मेरा सादर नमन।
बहुत ही उम्दा व सत्य लिए आपका ये सृजन संगीता जी
ढ़ेरों दाद ।
सादर
अप्राप्य को पाने की चाह में हम बहुत कुछ खोते जा रहे हैं। जीवन की सच्चाई को बयां करता सृजन। सार्थक अभिव्यक्ति के लिए आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं। सादर।
जीवन सत्य को उजागर करती अति सुन्दर और हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति दी ,सादर नमन आपको
गूढ़ सृजन।
सच कहा आपने अप्राप्य को प्राप्त करने की चाहत में,हम कितना कुछ गँवाते हैं।
गहन दर्शन समेटे सार्थक रचना।
सक्स्च कहो तो ये जीवन दर्शन है जो इंसान कई बार लिखता है पर खुद उसका अनुसरण नहीं कर पाता ... जानते हुवे भी हो नहीं पाता ... ये भी शायद माया है ...
आप सभी सम्मानित पाठकों को मेरा हार्दिक धन्यवाद । यूँ ही स्नेह बनाये रखें ।
antim chhor me apne badi hi sunder line likhi hai, padh kar achha laga thanks,
Zee Talwara
Zee Talwara
Zee Talwara
Zee Talwara
Zee Talwara
यही जीवन का अबूझ दर्शन है प्रिय दीदी।अप्राप्य की तलाश और मंजिल पाने की तत्परता उसे जीवन के अन्तिम छोर से साक्षात्कार करा देती है।
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