मैं यशोधरा नहीं होती
>> Friday, August 12, 2011
आज रश्मि प्रभा जी की रचना उनके ब्लॉग पर पढ़ी ...सिद्धार्थ ही होता उनके द्वारा लिखी गयी रचना की अंतिम पंक्तियों को ले कर जो विचार मेरे मन में उपजे ..उनको यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ ...
पर मैं बुद्ध
इसे स्वीकार करता हूँ -
निर्वाण यज्ञ में
यशोधरा तू मेरी ताकत रही
दुनिया कुछ भी कहे
सच तो यही है,
यदि यशोधरा न होती
तो मैं सिद्धार्थ ही होता...
यशोधरा उवाच -----
कर ली तुमने
कम कुछ
आत्मग्लानि
यह कह कर
कि मैं न होती तो
तुम रहते सिद्धार्थ ही
पर जानती हूँ कि
तुमको तो
हर हाल में
बनना था
गौतम बुद्ध ,
मैं नहीं बनती
यदि तुम्हारी अनुगामिनी
तब भी ,
आज दे रहे हो
श्रेय मुझको
तो कर लेती हूँ
शिरोधार्य
जब कि
जानती हूँ कि
गर बनती बाधा
तब भी तुम करते
इस संसार का उद्धार
नारी हूँ भारतीय
इसी लिए
पगबाधा न बन
पथ प्रशस्त करती रही
मन की आहों को
अंदर ही अंदर
मैं ध्वस्त करती रही ,
उठा लीं मैंने
सारी जिम्मेदारियां
जो थीं कभी तुम्हारी
खोल दिए सारे
वातायन
जिसमें तुम्हें
घुटन होती थी
यदि नहीं करती ऐसा
तो , तुम तो
फिर भी होते
गौतम
पर मैं
यशोधरा नहीं होती ..
76 comments:
यह उवाच रचना बहुत सुन्दर बह पड़ी है!
यदि नहीं करती ऐसा
तो , तुम तो
फिर भी होते
गौतम
पर मैं
यशोधरा नहीं होती ..
बहुत खूबसूरती से आपने इन पंक्तियों को आगे बढ़ा प्रत्युत्तर के रूप में प्रस्तुत किया है ..आभार के साथ बधाई ।
सिद्दार्थ नहीं होते तो यशोधरा नहीं होती , और यशोधरा होती तो सिद्धार्थ बुद्ध कहाँ बनते ...
इस हिसाब से तो दोनों एक दूसरे के पूरक ही रहे...ये भी एक दृष्टिकोण है !
जब भी बुद्ध के बारे में पढ़ती हूँ हमेशा सोचती हूँ की यशोधरा को कह कर क्यों नहीं गए सिद्धार्थ !
बेहद सशक्त एवं गंभीर रचना !
"यह सत्य है
पत्नी को तो हर हाल में
पति की अनुगामिनी
बनना ही होता है
श्रेय मिले ना मिले
उसे तो हर दंश
सहना ही होता है !"
एक सार्थक एवं मन के बहुत करीब सुन्दर रचना ! बधाई !
kya bat hai? kuchh shabd kahan se kahan tak jaate hain aur ek nayi kavita rach jate hain.
bahut sundar dhang se yashodhara ke bhavon ko shabd diye
hain.
यही है जीवन की सम्पूर्णता जब दोनो एक दूसरे को इतने अच्छे से समझने लगें…………कि श्रेय इक दूजे को देने लगें। दोनो की ही रचनाये शानदार हैं।
हम सिर्फ़ एक दृष्टिकोण से देखने के आदी हो गये है आज दोनो कवयित्रियो ने दोनो दृष्टिकोण से अपनी अपनी बात को सिद्ध कर दिया।
vani jee,
yashodhara se isaliye kahane ka sahas nahin kar paye siddharth ki unhen bhay tha ki kahin ve phir moh men na pad jaayen.
vani jee,
yashodhara se isaliye kahane ka sahas nahin kar paye siddharth ki unhen bhay tha ki kahin ve phir moh men na pad jaayen.
सिद्धार्थ तो बुद्धत्व को प्राप्त हुए , यशोधरा के यश में वृद्धि , लेकिन क्या खोया उसने , कितना बलिदान किया . कविता में उठाये गए प्रश्न तो अनुत्तरित ही रहेंगे .
@ वाणी जी
शायद तब वो ना जा पाते …शायद ये होता उनका उत्तर
यधोधरा
तुम सोचोगी
क्यो नही तुम्हे
बता कर गया
क्यो नही तुम्हे
अपने निर्णय से
अवगत कराया
शायद तुम ना
मुझे रोकतीं तब
अश्रुओं की दुहाई भी
ना देतीं तब
जानता हूँ
बहुत सहनशीलता है तुममे
मगर शायद
मुझमे ही
वो साहस ना था
शायद मै ही
कहीं कमजोर पडा था
शायद मै ही तुम्हारे
दृढ निश्चय के आगे
टिक नही पाता
तुम्हारी आँखो मे
देख नही पाता
वो सच
कि देखो
स्त्री हूँ
सहधर्मिणी हूँ
मगर पथबाधा नही
और उस दम्भ से
आलोकित तुम्हारी मुखाकृति
मेरा पथ प्रशस्त तो करती
मगर कहीं दिल मे वो
शूल सी चुभती रहती
क्योंकि
अगर मै तुम्हारी जगह होता
तो शायद ऐसा ना कर पाता
यशोधरा
तुम्हे मै जाने से रोक लेता
मगर तुम्हारा सा साहस ना कहीं पाता
मान भी अभिमान भी त्याग भी सम्मान भी ... तुमसे मैं , मुझसे तुम - और इस ज्ञान में ही सृष्टि का सार है
बहुत सुंदर और उम्दा कविता।
bhtrin prstuti ke liyen badhaai .akhtar khan akela kota rajsthan
सुन्दर अभिय्व्क्ति दी...
रश्मि दी और आपकी सानुपातिक रचनाओं को पढ़कर कुछ भाव आ रहे हैं अंतर में...
शाश्वत
तुम सत्य कहती हो यशोधरे...
नियंता की हर लीला
पूर्वनियत ही तो होती है...
चाहे उस लीला का पात्र
वह स्वयम क्यों न हो...
वह अपनी
समस्त लीलाओं का आधार
जन कल्याण के निमित्त
स्वयम करता है तैयार...
चाहे वह
सीता को विलोपित कर,
साधारण मनुज की भांति
स्वयम वन वन रुदन करे...
फिर चाहे
सिद्धार्थ का
“चतुर निमित्त”* से साक्षात्कार करा,
वैराग्य की राह भेजे...
तुम सत्य कहती हो यशोधरे...!
बिना सीता के राम या राम के बिना सीता...
राधा के बिना कृष्ण या कृष्ण के बिना राधा
वो न होते जो वे हुए... यही शाश्वत है...
तुम सत्य कहती हो यशोधरे...!!
*************
चतुर निमित्त – (एक वृद्ध विकलांग व्यक्ति, एक रोगी, एक मुरझाती हुई पर्थिव शरिर्, और एक साधु) जिसे देखकर सिद्धार्थ (जो सिद्धि प्राप्त करने के लिए हो) निरवन अर्थात बोधि की राह चले और ‘बुद्ध’ हुए.
संगीता जी बहुत ही अच्छी अभिवयक्ति... एक बार मेरे भी मन में ये विचार आया था पर हमें शब्द नही मिल रहे थे... और शायद मिलते भी तो हम इतना खुबसूरत नही लिख पाते... आपने सार्थक लिख दिया... धन्यवाद
बेहद खूबसूरत रचना ! आपको हार्दिक शुभकामनायें !
यशोधरा के अहसास को बेहद खुबसूरती से आपने अभिव्यक्त किया है । शुभकामनाएँ...
बहुत ही सुंदर..वाह
बेहद सशक्त एवं गंभीर रचना ! बधाई ।
बहुत ही सुन्दर कविता.
काश, पत्नी को सह-चारिणी समझा होता तो दोनों मे से किसी के हृदय में यह टीस नहीं उठती -दोनों समान रूप से उन उपलब्धियों के भागीदार होते!
यदि नहीं करती ऐसा
तो , तुम तो
फिर भी होते
गौतम
पर मैं
यशोधरा नहीं होती ..
Sach hai! Behtareen rachana!
शनिवार को आपकी पोस्ट की चर्चा हलचल पर है ...!कृपया अवश्य पधारें....!!
यदि बुद्ध न बनते तो सुजाता कैसे मिलती?
नारी को एक शक्ति से नवाज़ा है भगवान ने भी, जिसे छठी इन्द्री कहते हैं...नारी भांप लेती है पुरुष के,पति के, अपने आस पास वालों के इरादों को...यशोधरा भी भांप चुकी थी सिद्धार्थ के गमन को....चाहती भी तो नहीं रुकना था सिद्दार्थ नें. नारी ही सारी जिम्मेदारियां ख़ामोशी से उठा लेती है और पुरुष उसके बलिदान पर खुद का मार्ग प्रशस्त कर लेता है. तभी तो कहा जाता है हर सफल पुरुष के पीछे एक नारी का हाथ होता है. .....इस ऐतिहासिक घटना को आपने, रश्मि जी ने और वंदना जी ने सुंदर शब्द दिए .....बहुत अच्छा प्रयास.
बहुत ही सुन्दर लगी रचना मम्मा........एकदम आपके चिर parichit andaaz mein.........
आभार रचना हेतु!
प्रणाम !
bahut sunder rachna.
Aanand aa gaya
यशोधरा के मन की बात ,तार्किक रूप से प्रस्तुत की गई
तुम तो
फिर भी होते
गौतम
पर मैं
यशोधरा नहीं होती ..
बहुत खूबसूरत रचना
रक्षाबन्धन के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
विचारों को मथने वाली इस कविता के लिए आभार।
स्त्री पर स्तरीय कविताएं, कम ही मिलती हैं। जो उस तक पहुंचने का राह बताती हुई हो।
विडम्बना यह है कि प्रेम करना उसका स्त्रीत्व है और प्रेम में रीतते जाना इस पुरुषसत्तात्मक समाज में उसकी नियति।
घिसते जाने के बीच अपने को सिरजने की स्त्री की मौन जद्दोजहद को आपने परिचित बिंबों से उतारा है।
आज इस पावन पर्व के अवसर पर बधाई देता हूं और कामना करता हूं कि आपकी कलाई पर बंधा रक्षा सूत्र हर समय आपकी रक्षा करें।
यशोधरा की भावनाओं को मार्मिक तथा यथार्थ रूप में प्रस्तुत किया गया है.
अद्भुत पोस्ट आदरणीया संगीता जी रक्षावन्धन पर्व की शुभकामनाएं
अद्भुत पोस्ट आदरणीया संगीता जी रक्षावन्धन पर्व की शुभकामनाएं
अद्भुत पोस्ट आदरणीया संगीता जी रक्षावन्धन पर्व की शुभकामनाएं
कितनी ही सदियाँ सो जाये, यह संवाद सदा ही जागता रहेगा, रात भर।
शायद यही होगा यशोधरा के मन में...उम्दा अभिव्यक्ति.
रक्षाबन्धन की शुभकामनाएँ!
रक्षाबंधन के पावन पर्व पर शुभकामनायें .
आज का आगरा ,भारतीय नारी,हिंदी ब्लॉगर्स फ़ोरम इंटरनेशनल , ब्लॉग की ख़बरें, और एक्टिवे लाइफ ब्लॉग की तरफ से रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं
सवाई सिंह राजपुरोहित आगरा
आप सब ब्लॉगर भाई बहनों को रक्षाबंधन की हार्दिक बधाई / शुभकामनाएं
नारी हूँ भारतीय
इसी लिए
पगबाधा न बन
पथ प्रशस्त करती रही
मन की आहों को
अंदर ही अंदर
मैं ध्वस्त करती रही ,
यशोधरा के व्यक्तित्व का बहुत सही...बहुत सटीक आकलन करती रचना...
साधुवाद.
उठा लीं मैंने
सारी जिम्मेदारियां
जो थीं कभी तुम्हारी
खोल दिए सारे
वातायन
जिसमें तुम्हें
घुटन होती थी
यदि नहीं करती ऐसा
तो , तुम तो
फिर भी होते
गौतम
पर मैं
यशोधरा नहीं होती ..
अतिसुन्दर विश्लेषण...अतिसुन्दर भाव चित्रण...
नमन है आपकी इस रचना को.
यदि नहीं करती ऐसा
तो ,तुम तो
फिर भी होते
गौतम
पर मैं
यशोधरा नहीं होती ।
यशोधरा का कथन ज्यादा उचित लग रहा है।
कविता अपने उद्देश्य में सफल हुई है।
जब जब जो जो होना है...तब तब सो सो होता है...क्रेडिट कोई भी ले सकता है...
बुद्ध को लाइट आफ एशिया कहा गया है।
उनकी करूणा जीवन का सत्य है....
आपकी रचना में वह चित्रित हुआ...बधाई!
बढ़े आपके परमार्थ की कमाई, आपके क़द की उंचाई॥
स्वतंत्रता-दिवस की मंगल-कामनाएं॥
जय भारत!! जय जवान! जय किसान!!
बुद्ध को लाइट आफ एशिया कहा गया है।
उनकी करूणा जीवन का सत्य है....
आपकी रचना में वह चित्रित हुआ...बधाई!
बढ़े आपके परमार्थ की कमाई, आपके क़द की उंचाई॥
स्वतंत्रता-दिवस की मंगल-कामनाएं॥
जय भारत!! जय जवान! जय किसान!!
कभी यशोधरा विलाप पढ़ा था ...
आज वो पंक्तीयाँ याद आ गईं ....
नाथ तुम कह कर जाते .....
दोनों ही रचनायें प्रभावशाली है ....
जय हिंद ...!!
जिसमें तुम्हें
घुटन होती थी
यदि नहीं करती ऐसा
तो , तुम तो
फिर भी होते
गौतम
पर मैं
यशोधरा नहीं होती
hardhik badhai swatantra parv ki aur likha adbhut hai .
बहुत ही सुन्दर लगी रचना
यशोधरा के मन की बात प्रस्तुत की गई है
पर मैन यशोधरा नहीं होती '
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना |
बधाई
आशा
संगीता दी!
नितांत मौलिक भाव.. और अद्भुत विस्तार.. कुछ कहने को शेष नहीं रह जाता!!
रश्मि जी की और आपकी दोनों रचनाएँ
सुंदर है ! बधाई आप दोनों को !
यदि नहीं करती ऐसा
तो , तुम तो
फिर भी होते
गौतम
पर मैं
यशोधरा नहीं होती ..
sunder bhav aur sachchi pida
rachana
आदि और अंत ने रचना की उत्कृष्टता को रेखांकित कर दिया है.
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
नमस्कार....
बहुत ही सुन्दर लेख है आपकी बधाई स्वीकार करें
मैं आपके ब्लाग का फालोवर हूँ क्या आपको नहीं लगता की आपको भी मेरे ब्लाग में आकर अपनी सदस्यता का समावेश करना चाहिए मुझे बहुत प्रसन्नता होगी जब आप मेरे ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगे तो आपकी आगमन की आशा में पलकें बिछाए........
आपका ब्लागर मित्र
नीलकमल वैष्णव "अनिश"
इस लिंक के द्वारा आप मेरे ब्लाग तक पहुँच सकते हैं धन्यवाद्
1- MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......
2- BINDAAS_BAATEN: रक्तदान ...... नीलकमल वैष्णव
3- http://neelkamal5545.blogspot.com
नारी मन के अर्न्तभावों की सुंदर अभिव्यक्ति
गहरे भाव ... गहरा वार्तालाप कविता के माध्यम से प्रस्तुतु किया है अपने दृष्टिकोण से ... बहुत ही कमाल की रचना ...
सुंदर प्रस्तुति, पढवाने के लिए आभार.
नारी मन की व्यथा और संघर्ष की बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
कल-शनिवार 20 अगस्त 2011 को आपकी किसी पोस्ट की चर्चा नयी-पुरानी हलचल पर है |कृपया अवश्य पधारें.आभार.
wah.......bemisaal.
बेहद सशक्त एवं सुंदर रचना,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत सुन्दर रचना .........
वाकई संगीता जी, एक सुंदर, संवेदना निहित रचना....धन्यवाद
वाह बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोई खूबसूरत रचना |
यदि नहीं करती ऐसा
तो , तुम तो
फिर भी होते
गौतम
पर मैं
यशोधरा नहीं होती ..prabha ji acchi kavita ko kavya sansar mein apni utpatti ka aadhar banakar srajit hui ek aaur behtarin kavita..sadar pranam ke sath
वाह! संगीता जी
लगता है आपने पर-काया प्रवेश
और भूत काल में भ्रमण करने
की विद्द्या हांसिल कर ली है.
यशोधरा के मन को सुन्दर प्रकार से प्रकट किया है आपने.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है.
बहुत सुंदर अभिब्यक्ति /बधाई आपको /
आप ब्लोगर्स मीट वीकली (५) के मंच पर आयें /और अपने विचारों से हमें अवगत कराएं /आप हिंदी की सेवा इसी तरह करते रहें यही कामना है /प्रत्येक सोमवार को होने वालेब्लोगर्स मीट वीकलीमैं आप सादर आमंत्रित हैं /आभार /
तूने जो सब अधिकार दिया था,
क्या छल था? भ्रम या दिखावा था?
दिया न विदा करने का हक़,
क्यों लिया छिन मुझसे मेरा हक़?
मै थी, मैं हूँ , अब भी क्षत्राणी,
दोनों राजवंश की कुल-कल्याणी.
जाते स्वामी जब समभूमि को.
तब निभाती 'विदा-धर्म' क्षत्राणी.
योग भूमि भी समर भूमि है,
हक़ था मेरा तिलक लगाने का.
लेकिन गए छिपकर तुम चोरी से
किया कलंकित जीवनभर शर्माने का.
सभी पाठकों का आभार ...
@@ वंदना जी ,
छिप कर और बिना बताये जाने का तर्क बहुत सटीक शब्दों में वर्णित किया है ... आभार
@@ हबीब जी ,
बहुत सुन्दर रचना प्रस्तुत की है ... आभार
@@ डा० तिवारी जी ,
तूने जो सब अधिकार दिया था,
क्या छल था? भ्रम या दिखावा था?
दिया न विदा करने का हक़,
क्यों लिया छिन मुझसे मेरा हक़?
सच ही कभी कभी नारी के मन के भाव पुरुष समझ नहीं पता ... बहुत सटीक पंक्तियाँ लिखी हैं .. आभार
एक बहुत सशक्त रचना का सशक्त अवलोकन ... रश्मि जी और आप दोनों ही बधाई के पात्र हैं ....
यदि नहीं करती ऐसा
तो , तुम तो
फिर भी होते
गौतम
पर मैं
यशोधरा नहीं होती
....
कितना दर्द और समर्पण है इन पंक्तियों में .... और बेबसी भी ....
गौतम को तो बुद्ध बनना ही था .... यशोधरा की महानता उनकी सहनशीलता में प्रतिबिंबित हुई ....
सीधा अंतर्मन को छूती हैं ये भाव....
शायद मैं और कुछ नहीं कह पाउँगा...
सीधा अंतर्मन को छूते हैं ये भाव....
शायद मैं और कुछ नहीं कह पाउँगा...
Yashodhara aur Buddh dono ka hee tyag Anupam, Par Budhdh ko to apna prapya mil gaya. Yashodhara to sirf balidan kee hi adhikari bani.
Sunder kwitaen dono hee.
चिंतनीय रचना..कभी कभी सोचती हूँ क्या करना है श्रेय लेकर भी.यशोधरा तो बन गई अनुगामिनी.पर क्या पत्नी का हक भी मिला उसे?
आपकी इन विषयों पर सोचपरक रचनाएँ लुभा जाती हैं.
bhut acha.
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