तथाकथित प्रेम
>> Tuesday, May 22, 2012
आसक्त हो कर
किसी के प्रति
अकसर सोच लेते हैं लोग
कि वो उससे
गहन प्रेम करते हैं
जिन एहसास से
खुद गुज़रते हैं
दूसरा भी वैसा ही
महसूस करे
ऐसे अरमान
उनके मन में पलते हैं ,
नहीं उतर पाता खरा
जब वो उनकी
उम्मीदों पर तो
अपनी अपेक्षाओं का बोझ
उसकी भावनाओं पर
बड़ी निर्ममता से धरते हैं ,
दब जाती हैं भावनाएं
और अपेक्षाएँ
हो जाती हैं हावी
प्रेम का प्रस्फुटन
होने से पहले ही
मुरझा जाती है कली
फिर बेवफा का
तमगा दे कर
कह दिया जाता है कि
पत्थर दिल
भला कहीं पिघलते हैं ?
71 comments:
फिर बेवफा का
तमगा दे कर
कह दिया जाता है कि
पत्थर दिल
भला कहीं पिघलते हैं ?
एक सच जिसे बिल्कुल सटीक शब्द दिये हैं आपने ... बहुत ही बढिया प्रस्तुति... आभार
आमंत्रित सादर करे, मित्रों चर्चा मंच |
करे निवेदन आपसे, समय दीजिये रंच ||
--
बुधवारीय चर्चा मंच |
आज तो सच को एकदम सटीक शब्द दे दिए आपने. एक एक पंक्ति बोलती सी.
बहुत ही पसंद आई ये रचना.
गहन और सटीक अभिव्यक्ति!
गहन अनुभूति के साथ भावपूर्ण अभिव्यक्ति....आभार....
अधिकतर प्रेमियों का अनुभव यही कहता है।
बिल्कुल खरी खरी बात कह दी………सुन्दर भाव संयोजन्।
यह प्रेम नहीं सिर्फ आकर्षण है।
बहुत अच्छा लिखी हैं आंटी।
सादर
यथार्थ को बड़ी सूक्ष्मता के साथ उकेरा है संगीता जी ! एक बहुत ही परिपक्व एवं संतुलित रचना के सृजन के लिए आपको बहुत बहुत बधाई !
अपेक्षाओ के बोझ तले दम तोड़ता प्रेम.अब तथाकथित बनकर ही रह गया है . सुँदर अभिव्यक्ति
सही बात है अंग्रेज़ी में भी दो भिन्न शब्द हैं infatuation व love.
रिश्तों से अब डर लगता है।
टूटे पुल-सा घर लगता है।
सादर
यशोदा
मन को समझाने जैसा है ये तो.............
खरी खरी बात....
सादर.
यही होता है ,बहुत सही विश्लेषण और सटीक अभिव्यक्ति दी है संगीता जी !
बेहतरीन और प्रशंसनीय अभिव्यक्ति.......
बेहतरीन और प्रशंसनीय अभिव्यक्ति.......
kitne nasamajh hote hain vo log jo pyar aur aakarshan me fark na samajh ke khud to dukhi hote hain aur sathi ko bhi dukh dete hai aur had bhi yaha tak ki bevafa bhi kehte hain....aise na-samjho ko koi kaise samjhaye ?
sateek prastuti.
kisi ne sach hi likha hai...
रिश्तों से अब डर लगता है।
टूटे पुल-सा घर लगता है।
सब फ़िल्मी हो गया है... मुस्कुराये , और प्रेम ... दूसरा मिला , बेवफा , और दुःख के साए ....... बहुत सही लिखा है आपने
शनिवार 26/05/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in> http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. आपके सुझावों का स्वागत है
एकदम खरी खरी.... सच्चाई बयान करती सुन्दर रचना दी...
सादर.
फिर बेवफा का
तमगा दे कर
कह दिया जाता है कि
पत्थर दिल
भला कहीं पिघलते हैं ?
वाह ,,,, बहुत सटीक प्रस्तुति,,,,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....
गहन , भावपूर्ण रचना .....
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
जो प्रेम किसी को क्षति पहुँचाए वह प्रेम ही नहीं। वह तो मात्र आकर्षण है। यह भी सच है कि प्रेम एक बड़ी शक्ति है परन्तु पवित्र प्रेम करने के लिए बहुत शक्ति चाहिए।
शोर मचाने और प्रदर्शन करनेवाले इसी श्रेणी में आते हैं !
गहन ...बहुत सुंदर रचना ....
यथार्थ कहती हुइ ...
शुभकामनायॅ संगीता जी ....
waah aunty...dil ki aawaz ko aapne shabd diye hai...laazwab :)
अपेक्षा रहित हो तब ही है प्रेम की सार्थकता!
सुन्दर सटीक कथ्य!
*दब जाती हैं भावनाएं
और अपेक्षाएँ
हो जाती हैं हावी*
मानो वे प्यार नहीं ,
कोई व्यापार कर रहे हों ,
जिसमे जितना लगाया ,
उतना लौट नहीं रहा हो ....
उम्दा सोच की उत्तम अभिव्यक्ति .... !!
बहुत सुन्दर रचना है बधाई स्वीकारें।
हाँ अकसर ऐसा ही होता है कथित प्रथम पहल में तो अकसर और फिर लोग ग़ज़ल कार बन जाते हैं देखिए एक बानगी
कोई पता न ठौर उसका आज तक मिला ,
ता उम्र है ढूंढा किया ,वह पहला प्यार था .
उसके मिरे दरमियान था ,सागर का फासला ,
हम शक्ल तो मिलते रहे ,वैसा कोई न था
बहुर बेहतरीन प्रस्तुति है आपकी वैयक्तिक मनो -भावों को शब्द का पैरहन पहनाती रिझाती सी .....कृपया यहाँ भी पधारें -
ये है बोम्बे मेरी जान (अंतिम भाग )
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
ये है बोम्बे मेरी जान (अंतिम भाग )
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_22.html
ram ram bhai
मंगलवार, 22 मई 2012
:रेड मीट और मख्खन डट के खाओ अल्जाइ -मर्स का
http://veerubhai1947.blogspot.in/
ram ram bhai .कृपया यहाँ भी पधारें -
जोखिम बढ़ाओ
Sach hi kaha hai ... Khud hi sapne bota hai aur poore n hone pe dooje ko dosh deta hai ...
आसक्ति को प्रेम का नाम देना , प्रेम में अपेक्षा , यह सब होगा तो आखिर में मनचाही प्रतिक्रिया ना मिलने पर भावनाओं पर हमला...मौजूदा प्रेम का विस्तार से वर्णन कर दिया आपने !
प्रेम की परिभाषा को अनंत है और उसे अपनी सुविधानुसार लोग शब्द दे देते हें लेकिन अपने जो व्याख्या प्रस्तुत की वह सटीक है यही रूप अब मिलता है.
भावों से नाजुक शब्द को बहुत ही सहजता से रचना में रच दिया आपने.........
फिर बेवफा का
तमगा दे कर
कह दिया जाता है कि
पत्थर दिल
भला कहीं पिघलते हैं ?
इसीलिए कहा जाता है कि किसी से बहुत अपेक्षा करना ठीक नहीं.
अपेक्षा जहां है वहाँ उपेक्षा सालती ही है.
पर प्रेम में अपेक्षा को स्थान कहाँ
बहुत अच्छा ..प्रेम का अर्थ स्पष्ट किया आपने
सरल शब्दों में सच्चाई बयां कर दी है आपने।
सच है...
आभार .
सार्थक चित्रण संगीता जी..बहुत खूब.
आभार !!
फिर बेवफा का
तमगा दे कर
कह दिया जाता है कि
पत्थर दिल
भला कहीं पिघलते हैं ?
बिलकुल सही कहा है सटीक रचना ....
बहुत ही सहजता से रचना में रच दिया आपने... :-)
क्या बात है!!
क्या बात है!!
प्रेम कहना ही गलत है ऐसी आसक्ति को..प्रेम तो मुक्त करता है...सुंदर कविता !
prem gali ati sankri ya me do na samahee...jab sab kuch ekkakar ho jaaye tab kisi baat kee apeksha ka koi sawal hee nahi..asakti aaur prem me wakai bahut bada bhed hai...shandaar rachna ke liye hardik badhayee sadar pranaam ke sath
प्रेम पर भारी पड़ती अपेक्षाओं का मनोविज्ञान आपने सरल शब्दों में कह दिया है. बहुत ही सुंदर कविता.
वह प्रेम नही जहाँ अपेक्षायें हावी हो जाती हैं। प्रेम एक तरफ़ा हो सकता है मगर सच्चा प्रेम वही है जो चुप रह कर भी अहसास दिला सके अपनी मौजुदगी का।
खूबसूरत कविता जो मन को छू गई।
सादर
बहुत सुन्दर एवं भावप्रणव!
जिन एहसास से
खुद गुजरते हैं
दूसरा भी वैसा ही
महसूस करे
सभी ऐसा ही सोचते हैं।
एक बड़ी और गहन सच्चाई को आपने कविता का विषय बनाया है।
आभार !
कुछ लोग दिल हथेली पर लिए चलते हैं...हर जगह दिल खोल के रख देते हैं...ऐसे लोगों को पत्थर दिल ज्यादा मिलते हों...तो क्या किया जाए...
आसक्ति और प्रेम में अन्तर है..
बहुत खूबसूरत रचना....
आभार
हर पन्क्ति में एक अलग ही सच छुपा हुआ है
प्रेम का बहुत सटीक और सुन्दर विश्लेषण ....आभार
भावपूर्ण अभिव्यक्ति....आभार....
संगम फिल्म में राजकपूर का किरदार प्रेम के इसी आरोपित एक तरफ़ा प्रेम को दर्शाता है रूपहले परदे पर ....असली प्रेम कुर्बान हो जाता है दोश्त के नाम -ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर के तुम नाराज़ न होना के तुम मेरी ज़िन्दगी भी ,के तुम मेरी बन्दगी को ....
वीरुभाई .
फिर बेवफा का
तमगा दे कर
कह दिया जाता है कि
पत्थर दिल
भला कहीं पिघलते हैं ?
.....अंगूर खट्टे हैं की तर्ज़ पर..... बहुत सच्ची और सशक्त रचना
आकर्षण को प्रेम समझने की गलतफहमी..
फिर विचार न मिलने की परेशानी ...
फिर टुटा दिल..
बहुत ही बेहतरीन भावाभिव्यक्ति:-)
अपेक्षाओं और एक तरफ़ा ट्रेफिक का दवाब जीवन ऊर्जा को ले उड़ता है . .. बहुत बढ़िया रचना है -
और यहाँ भी दखल देंवें -
सोमवार, 28 मई 2012
क्रोनिक फटीग सिंड्रोम का नतीजा है ये ब्रेन फोगीनेस
sundar prastuti
सच कहा है..अपने फ्रेम में जकड़ लेना और इल्जाम भी लगाना ..
आज के परिवेश का सजीव चित्रण....बहुत हीं खूब...प्यार अपेक्षाओं तले दब गया है...आभार...
अक्सर तो आग दोनों तरफ बराबर की होती है पर जब ऐसा नही होता ......................तब ऐसा ही होता है ।
बहुत सुंदर ।
प्रेम आशा अपेक्षा को विश्लेषित करा गहन अनुभूति को व्यक्त करती अनुपम रचना ......
गहन और अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति
फिर बेवफा का
तमगा दे कर
कह दिया जाता है कि
पत्थर दिल
भला कहीं पिघलते हैं ?
sach hai, aisa bhi hota hai, sunder abhivyakti
shubhkamnayen
अकसर सोच लेते हैं लोग
कि वो उससे
गहन प्रेम करते हैं
जिन एहसास से
खुद गुज़रते हैं
दूसरा भी वैसा ही
महसूस करे
exceelent
prem ek bhoolbhaliya hai ya ek mrigtrashna,bahut hi sundar rachna
prem ek bhoolbhulaiya hai ya mragtrishna, sundar kavita.........
how true very well composed
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