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तथाकथित प्रेम

>> Tuesday, May 22, 2012




आसक्त हो कर 
किसी के प्रति 
अकसर सोच लेते हैं लोग 
कि वो उससे 
गहन प्रेम करते हैं 
जिन एहसास से 
खुद गुज़रते हैं 
दूसरा भी वैसा ही 
महसूस करे 
ऐसे अरमान 
उनके मन में पलते हैं , 
नहीं उतर पाता खरा 
जब वो उनकी 
उम्मीदों पर तो 
अपनी अपेक्षाओं का बोझ 
उसकी भावनाओं पर 
बड़ी निर्ममता से धरते  हैं ,

दब जाती हैं भावनाएं 
और  अपेक्षाएँ 
हो जाती हैं हावी 
प्रेम का प्रस्फुटन 
होने से पहले ही 
मुरझा जाती है कली
फिर बेवफा का 
तमगा दे कर 
कह दिया जाता है कि
पत्थर दिल 
भला कहीं पिघलते हैं ?


71 comments:

सदा 5/22/2012 4:39 PM  

फिर बेवफा का
तमगा दे कर
कह दिया जाता है कि
पत्थर दिल
भला कहीं पिघलते हैं ?
एक सच जिसे बिल्‍कुल सटीक शब्‍द दिये हैं आपने ... बहुत ही बढिया प्रस्‍तुति... आभार

रविकर 5/22/2012 4:56 PM  

आमंत्रित सादर करे, मित्रों चर्चा मंच |


करे निवेदन आपसे, समय दीजिये रंच ||


--


बुधवारीय चर्चा मंच |

shikha varshney 5/22/2012 5:12 PM  

आज तो सच को एकदम सटीक शब्द दे दिए आपने. एक एक पंक्ति बोलती सी.
बहुत ही पसंद आई ये रचना.

ऋता शेखर 'मधु' 5/22/2012 5:19 PM  

गहन और सटीक अभिव्यक्ति!

Maheshwari kaneri 5/22/2012 5:44 PM  

गहन अनुभूति के साथ भावपूर्ण अभिव्यक्ति....आभार....

राजेश उत्‍साही 5/22/2012 5:45 PM  

अधिकतर प्रेमियों का अनुभव यही कहता है।

vandana gupta 5/22/2012 5:58 PM  

बिल्कुल खरी खरी बात कह दी………सुन्दर भाव संयोजन्।

Yashwant R. B. Mathur 5/22/2012 6:00 PM  

यह प्रेम नहीं सिर्फ आकर्षण है।

बहुत अच्छा लिखी हैं आंटी।

सादर

Sadhana Vaid 5/22/2012 6:02 PM  

यथार्थ को बड़ी सूक्ष्मता के साथ उकेरा है संगीता जी ! एक बहुत ही परिपक्व एवं संतुलित रचना के सृजन के लिए आपको बहुत बहुत बधाई !

ashish 5/22/2012 6:10 PM  

अपेक्षाओ के बोझ तले दम तोड़ता प्रेम.अब तथाकथित बनकर ही रह गया है . सुँदर अभिव्यक्ति

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून 5/22/2012 6:25 PM  

सही बात है अंग्रेज़ी में भी दो भि‍न्‍न शब्‍द हैं infatuation व love.

yashoda Agrawal 5/22/2012 6:55 PM  

रिश्तों से अब डर लगता है।
टूटे पुल-सा घर लगता है।
सादर
यशोदा

ANULATA RAJ NAIR 5/22/2012 7:12 PM  

मन को समझाने जैसा है ये तो.............

खरी खरी बात....

सादर.

प्रतिभा सक्सेना 5/22/2012 7:21 PM  

यही होता है ,बहुत सही विश्लेषण और सटीक अभिव्यक्ति दी है संगीता जी !

udaya veer singh 5/22/2012 7:50 PM  

बेहतरीन और प्रशंसनीय अभिव्यक्ति.......

udaya veer singh 5/22/2012 7:50 PM  

बेहतरीन और प्रशंसनीय अभिव्यक्ति.......

अनामिका की सदायें ...... 5/22/2012 8:05 PM  

kitne nasamajh hote hain vo log jo pyar aur aakarshan me fark na samajh ke khud to dukhi hote hain aur sathi ko bhi dukh dete hai aur had bhi yaha tak ki bevafa bhi kehte hain....aise na-samjho ko koi kaise samjhaye ?

sateek prastuti.

kisi ne sach hi likha hai...

रिश्तों से अब डर लगता है।
टूटे पुल-सा घर लगता है।

रश्मि प्रभा... 5/22/2012 8:11 PM  

सब फ़िल्मी हो गया है... मुस्कुराये , और प्रेम ... दूसरा मिला , बेवफा , और दुःख के साए ....... बहुत सही लिखा है आपने

yashoda Agrawal 5/22/2012 8:23 PM  

शनिवार 26/05/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in> http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. आपके सुझावों का स्वागत है

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') 5/22/2012 8:31 PM  

एकदम खरी खरी.... सच्चाई बयान करती सुन्दर रचना दी...
सादर.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया 5/22/2012 8:32 PM  

फिर बेवफा का
तमगा दे कर
कह दिया जाता है कि
पत्थर दिल
भला कहीं पिघलते हैं ?

वाह ,,,, बहुत सटीक प्रस्तुति,,,,

RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....

डॉ. मोनिका शर्मा 5/22/2012 8:58 PM  

गहन , भावपूर्ण रचना .....

Shanti Garg 5/22/2012 9:19 PM  

बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

मनोज कुमार 5/22/2012 9:42 PM  

जो प्रेम किसी को क्षति पहुँचाए वह प्रेम ही नहीं। वह तो मात्र आकर्षण है। यह भी सच है कि प्रेम एक बड़ी शक्ति है परन्‍तु पवित्र प्रेम करने के लिए बहुत शक्ति चाहिए।

प्रतिभा सक्सेना 5/22/2012 9:53 PM  

शोर मचाने और प्रदर्शन करनेवाले इसी श्रेणी में आते हैं !

Anupama Tripathi 5/22/2012 10:05 PM  

गहन ...बहुत सुंदर रचना ....
यथार्थ कहती हुइ ...
शुभकामनायॅ संगीता जी ....

Er. सत्यम शिवम 5/22/2012 10:32 PM  

waah aunty...dil ki aawaz ko aapne shabd diye hai...laazwab :)

अनुपमा पाठक 5/22/2012 10:55 PM  

अपेक्षा रहित हो तब ही है प्रेम की सार्थकता!
सुन्दर सटीक कथ्य!

विभा रानी श्रीवास्तव 5/22/2012 11:12 PM  

*दब जाती हैं भावनाएं
और अपेक्षाएँ
हो जाती हैं हावी*
मानो वे प्यार नहीं ,
कोई व्यापार कर रहे हों ,
जिसमे जितना लगाया ,
उतना लौट नहीं रहा हो ....
उम्दा सोच की उत्तम अभिव्यक्ति .... !!

परमजीत सिहँ बाली 5/22/2012 11:35 PM  

बहुत सुन्दर रचना है बधाई स्वीकारें।

virendra sharma 5/23/2012 12:28 AM  

हाँ अकसर ऐसा ही होता है कथित प्रथम पहल में तो अकसर और फिर लोग ग़ज़ल कार बन जाते हैं देखिए एक बानगी
कोई पता न ठौर उसका आज तक मिला ,
ता उम्र है ढूंढा किया ,वह पहला प्यार था .
उसके मिरे दरमियान था ,सागर का फासला ,
हम शक्ल तो मिलते रहे ,वैसा कोई न था
बहुर बेहतरीन प्रस्तुति है आपकी वैयक्तिक मनो -भावों को शब्द का पैरहन पहनाती रिझाती सी .....कृपया यहाँ भी पधारें -

ये है बोम्बे मेरी जान (अंतिम भाग )
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
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http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_22.html
ram ram bhai
मंगलवार, 22 मई 2012
:रेड मीट और मख्खन डट के खाओ अल्जाइ -मर्स का
http://veerubhai1947.blogspot.in/
ram ram bhai .कृपया यहाँ भी पधारें -

जोखिम बढ़ाओ

दिगम्बर नासवा 5/23/2012 12:40 AM  

Sach hi kaha hai ... Khud hi sapne bota hai aur poore n hone pe dooje ko dosh deta hai ...

वाणी गीत 5/23/2012 5:55 AM  

आसक्ति को प्रेम का नाम देना , प्रेम में अपेक्षा , यह सब होगा तो आखिर में मनचाही प्रतिक्रिया ना मिलने पर भावनाओं पर हमला...मौजूदा प्रेम का विस्तार से वर्णन कर दिया आपने !

रेखा श्रीवास्तव 5/23/2012 6:12 AM  

प्रेम की परिभाषा को अनंत है और उसे अपनी सुविधानुसार लोग शब्द दे देते हें लेकिन अपने जो व्याख्या प्रस्तुत की वह सटीक है यही रूप अब मिलता है.

विभूति" 5/23/2012 7:42 AM  

भावों से नाजुक शब्‍द को बहुत ही सहजता से रचना में रच दिया आपने.........

Kunwar Kusumesh 5/23/2012 7:59 AM  

फिर बेवफा का
तमगा दे कर
कह दिया जाता है कि
पत्थर दिल
भला कहीं पिघलते हैं ?

इसीलिए कहा जाता है कि किसी से बहुत अपेक्षा करना ठीक नहीं.

M VERMA 5/23/2012 8:05 AM  

अपेक्षा जहां है वहाँ उपेक्षा सालती ही है.
पर प्रेम में अपेक्षा को स्थान कहाँ

RITU BANSAL 5/23/2012 8:06 AM  

बहुत अच्छा ..प्रेम का अर्थ स्पष्ट किया आपने

दीपिका रानी 5/23/2012 9:37 AM  

सरल शब्दों में सच्चाई बयां कर दी है आपने।

Meeta Pant 5/23/2012 10:28 AM  

सच है...

आभार .

Brijendra Singh 5/23/2012 10:50 AM  

सार्थक चित्रण संगीता जी..बहुत खूब.
आभार !!

Suman 5/23/2012 11:04 AM  

फिर बेवफा का
तमगा दे कर
कह दिया जाता है कि
पत्थर दिल
भला कहीं पिघलते हैं ?

बिलकुल सही कहा है सटीक रचना ....

sonal 5/23/2012 11:30 AM  

बहुत ही सहजता से रचना में रच दिया आपने... :-)

Anita 5/23/2012 2:19 PM  

प्रेम कहना ही गलत है ऐसी आसक्ति को..प्रेम तो मुक्त करता है...सुंदर कविता !

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" 5/23/2012 5:01 PM  

prem gali ati sankri ya me do na samahee...jab sab kuch ekkakar ho jaaye tab kisi baat kee apeksha ka koi sawal hee nahi..asakti aaur prem me wakai bahut bada bhed hai...shandaar rachna ke liye hardik badhayee sadar pranaam ke sath

Bharat Bhushan 5/23/2012 5:16 PM  

प्रेम पर भारी पड़ती अपेक्षाओं का मनोविज्ञान आपने सरल शब्दों में कह दिया है. बहुत ही सुंदर कविता.

सुनीता शानू 5/23/2012 6:27 PM  

वह प्रेम नही जहाँ अपेक्षायें हावी हो जाती हैं। प्रेम एक तरफ़ा हो सकता है मगर सच्चा प्रेम वही है जो चुप रह कर भी अहसास दिला सके अपनी मौजुदगी का।
खूबसूरत कविता जो मन को छू गई।
सादर

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 5/23/2012 6:33 PM  

बहुत सुन्दर एवं भावप्रणव!

महेन्‍द्र वर्मा 5/23/2012 7:08 PM  

जिन एहसास से
खुद गुजरते हैं
दूसरा भी वैसा ही
महसूस करे

सभी ऐसा ही सोचते हैं।
एक बड़ी और गहन सच्चाई को आपने कविता का विषय बनाया है।
आभार !

Vaanbhatt 5/23/2012 10:11 PM  

कुछ लोग दिल हथेली पर लिए चलते हैं...हर जगह दिल खोल के रख देते हैं...ऐसे लोगों को पत्थर दिल ज्यादा मिलते हों...तो क्या किया जाए...

प्रवीण पाण्डेय 5/23/2012 10:36 PM  

आसक्ति और प्रेम में अन्तर है..

Anjani Kumar 5/24/2012 2:55 PM  

बहुत खूबसूरत रचना....
आभार
हर पन्क्ति में एक अलग ही सच छुपा हुआ है

Kailash Sharma 5/24/2012 3:25 PM  

प्रेम का बहुत सटीक और सुन्दर विश्लेषण ....आभार

संध्या शर्मा 5/24/2012 6:07 PM  

भावपूर्ण अभिव्यक्ति....आभार....

virendra sharma 5/25/2012 1:12 PM  

संगम फिल्म में राजकपूर का किरदार प्रेम के इसी आरोपित एक तरफ़ा प्रेम को दर्शाता है रूपहले परदे पर ....असली प्रेम कुर्बान हो जाता है दोश्त के नाम -ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर के तुम नाराज़ न होना के तुम मेरी ज़िन्दगी भी ,के तुम मेरी बन्दगी को ....
वीरुभाई .

Saras 5/26/2012 9:44 PM  

फिर बेवफा का
तमगा दे कर
कह दिया जाता है कि
पत्थर दिल
भला कहीं पिघलते हैं ?
.....अंगूर खट्टे हैं की तर्ज़ पर..... बहुत सच्ची और सशक्त रचना

मेरा मन पंछी सा 5/27/2012 11:24 PM  

आकर्षण को प्रेम समझने की गलतफहमी..
फिर विचार न मिलने की परेशानी ...
फिर टुटा दिल..
बहुत ही बेहतरीन भावाभिव्यक्ति:-)

virendra sharma 5/28/2012 7:22 PM  

अपेक्षाओं और एक तरफ़ा ट्रेफिक का दवाब जीवन ऊर्जा को ले उड़ता है . .. बहुत बढ़िया रचना है -
और यहाँ भी दखल देंवें -

सोमवार, 28 मई 2012
क्रोनिक फटीग सिंड्रोम का नतीजा है ये ब्रेन फोगीनेस

Onkar 5/28/2012 7:37 PM  

sundar prastuti

Amrita Tanmay 5/28/2012 8:34 PM  

सच कहा है..अपने फ्रेम में जकड़ लेना और इल्जाम भी लगाना ..

स्वाति 5/29/2012 9:06 AM  

आज के परिवेश का सजीव चित्रण....बहुत हीं खूब...प्यार अपेक्षाओं तले दब गया है...आभार...

Asha Joglekar 5/29/2012 10:23 PM  

अक्सर तो आग दोनों तरफ बराबर की होती है पर जब ऐसा नही होता ......................तब ऐसा ही होता है ।

बहुत सुंदर ।

Ramakant Singh 5/30/2012 11:09 AM  

प्रेम आशा अपेक्षा को विश्लेषित करा गहन अनुभूति को व्यक्त करती अनुपम रचना ......

Anju (Anu) Chaudhary 5/31/2012 9:39 PM  

गहन और अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति

prritiy----sneh 6/03/2012 6:20 PM  

फिर बेवफा का
तमगा दे कर
कह दिया जाता है कि
पत्थर दिल
भला कहीं पिघलते हैं ?

sach hai, aisa bhi hota hai, sunder abhivyakti

shubhkamnayen

निर्झर'नीर 6/11/2012 4:43 PM  

अकसर सोच लेते हैं लोग
कि वो उससे
गहन प्रेम करते हैं
जिन एहसास से
खुद गुज़रते हैं
दूसरा भी वैसा ही
महसूस करे

exceelent

bhawnavardan@gmail.com 6/15/2012 10:20 AM  

prem ek bhoolbhaliya hai ya ek mrigtrashna,bahut hi sundar rachna

bhawna vardan,  6/15/2012 10:21 AM  

prem ek bhoolbhulaiya hai ya mragtrishna, sundar kavita.........

रचना 6/19/2012 1:04 PM  

how true very well composed

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