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अवसान की ओर

>> Thursday, April 8, 2021



 स्वप्निल सी आँखों में 

अब न साँझ है 
न सवेरा है 
उदास मन के 
चमन में बस 
सोच के परिंदों का 
मौन डेरा है ।

ज़िन्दगी की आँच पर 
फ़र्ज़ के हाथों को 
ताप रहे हैं 
रिश्तों को निबाहने का 
जैसे ,
ये भी एक 
मनका फेरा है ।

मन की बेचैनियाँ
यूँ ही बढ़ाते बेकार में  
जब कि इस जहाँ में 
भला किसका 
पक्का बसेरा है ?

जानते तुम भी हो ,
और मैं भी ,कि
ज़िन्दगी के अवसान  पर 
न कुछ तेरा है 
न कुछ मेरा है ।



32 comments:

प्रतिभा सक्सेना 4/08/2021 9:46 AM  

ज़िन्दगी की आँच पर
फ़र्ज़ के हाथों को
ताप रहे हैं
रिश्तों को निबाहने
- चिन्तन के मौन पलों की काव्यमय अभिव्यक्ति -अति सुन्दर .

संगीता स्वरुप ( गीत ) 4/08/2021 9:47 AM  

अहा , सबसे पहली टिप्पणी आपकी । आनंद आ गया । आभार

उषा किरण 4/08/2021 9:58 AM  

जानते तुम भी हो ,
और मैं भी ,कि
ज़िन्दगी के अवसान पर
न कुछ तेरा है
न कुछ मेरा है ।
यही है जिन्दगी...बहुत सुन्दर कविता 👌👌

सदा 4/08/2021 10:32 AM  

शब्द-शब्द में
जीवन दर्शन है ...
जिंदगी को सहज - सरल शब्दों में
बड़ी खूबसूरती से व्यक्त किया ...
सादर 🙏🙏

जितेन्द्र माथुर 4/08/2021 10:53 AM  

हाँ संगीता जी । यही सच है । बिना लाग-लपेट के सच ही बयान किया है आपने ।

Vocal Baba 4/08/2021 11:25 AM  

कड़वे सच से परिचय कराता सुंदर काव्य सृृजन। आपको शुभकामनाएँ।

shikha varshney 4/08/2021 12:42 PM  

इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल...

Meena Bhardwaj 4/08/2021 2:16 PM  

सादर नमस्कार,
आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 09-04-2021) को
" वोल्गा से गंगा" (चर्चा अंक- 4031)
पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.


"मीना भारद्वाज"

संगीता स्वरुप ( गीत ) 4/08/2021 2:32 PM  

शुक्रिया मीना जी ।

Anonymous,  4/08/2021 3:02 PM  

BITTER TRUTH OF LIFE!

Anita 4/08/2021 3:40 PM  

जानते बूझते हुए भी मन उदास होता है, शायद शायर के लिए वही लम्हा कुछ ख़ास होता है, इसी उदासी के पीछे छिपा होता है जीवन का सत्य जो वैसे तो नजर ही नहीं आता, ख़ुशी से भला उसका क्या नाता ! सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए बधाई !

जिज्ञासा सिंह 4/08/2021 6:11 PM  


जानते तुम भी हो ,
और मैं भी ,कि
ज़िन्दगी के अवसान पर
न कुछ तेरा है
न कुछ मेरा है ।.... जीवन सत्य को बयां करती बहुत ही खूबसूरत और सारगर्भित पंक्तियां,पूरी रचना ही भावपूर्ण जीवन दर्शन का सुंदर समन्वय है ।



आलोक सिन्हा 4/08/2021 10:31 PM  

बहुत बहुत सुन्दर मोहक रचना

Unknown 4/08/2021 10:32 PM  

स्वप्निल आंखों में शून्यता लिए ,मौन मन की व्यथा,जो जीवन के यथार्थ का आईना भी है ।🙏🙏

विश्वमोहन 4/09/2021 4:25 AM  

स्वप्निल जीवन के यथार्थ का अध्यात्म! सुंदर अभिव्यक्ति!!!

Onkar 4/09/2021 9:02 AM  

सुन्दर प्रस्तुति

ज्योति-कलश 4/09/2021 1:07 PM  

ज़िंदगी की आंच ..और..फ़र्ज़ के हाथ
न कुछ तेरा न कुछ मेरा ....अद्भुत सृजन !

Sheelvrat Mishra 4/09/2021 8:05 PM  

ज़िन्दगी के अवसान पर
न कुछ तेरा है
न कुछ मेरा है...वाह...सुन्दर लेखन

मेरी रचनायें पढ़ें, अच्छी लगे तो लाइक और शेयर करें-- त्रासदी

Anuradha chauhan 4/09/2021 8:55 PM  

जानते तुम भी हो ,
और मैं भी ,कि
ज़िन्दगी के अवसान पर
न कुछ तेरा है
न कुछ मेरा है ।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

मन की वीणा 4/09/2021 10:06 PM  

सच कहा आपने सब जानते हैं ,न कुछ तेरा है न कुछ मेरा।
शाश्वत सी अभिव्यक्ति।
दर्शन का पुट लिए अभिनव सृजन।

Pammi singh'tripti' 4/09/2021 11:16 PM  

शब्द और भाव दोनों दार्शनिकता को बोध करा रही।
बहुत सुंदर रचना।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने 4/09/2021 11:51 PM  

दीदी! ऐसा लगता है कि डूबते सूरज को देखते हुये जीवन का एक दर्शन सा मन में आया और लेखनी ने जस का तस अभिव्यक्त कर दिया। एक गहरा यथार्थ, जीवन का सच और अनुभव की साझेदारी! बहुत सुंदर!!

रेणु 4/10/2021 12:25 AM  

बहुत ही मार्मिकता से जीवन के कटु सत्य को शब्दांकित करती रचना प्रिय दीदी।कदाचित् इस यक्ष प्रश्न से कोई बच नहीं पाया है क्योकि जीवन की पहली किलकारी से अवसान तक यंत्रवत गतिमान जीवन अपनी लय में चलता है। खुद से खुद का संवाद समेटती रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं। आपकी लेखनी की प्रांजलता यूँ ही प्रवहमान रहे 🙏🙏❤❤🌹🌹

Amrita Tanmay 4/10/2021 4:06 PM  

जो भी इस रहस्य को जान लिया वो मुक्त हो गया कालचक्र से । गूढ़ भाव से मुखर सृजन ।

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 4/11/2021 1:20 PM  

जानते तुम भी हो ,
और मैं भी ,कि
ज़िन्दगी के अवसान पर
न कुछ तेरा है
न कुछ मेरा है ।
अंतस को छूती हुई प्रभावशाली रचना। एक अमर कृति आदरणीया संगीता जी।
हार्दिक शुभकामनाएँ ।।।।।

ज्योति सिंह 4/11/2021 5:26 PM  

जानते तुम भी हो ,
और मैं भी ,कि
ज़िन्दगी के अवसान पर
न कुछ तेरा है
न कुछ मेरा है ।
वाह बहुत ही सुंदर, हार्दिक शुभकामनाएं

संगीता स्वरुप ( गीत ) 4/12/2021 12:34 PM  

सभी पाठक वृन्द को मेरा अभिनंदन । प्रत्येक की प्रतिजरिया मेरे लिए अनुपम है ।सभी प्रतिक्रियाओं के लिए हृदय से आभार ।

विश्वमोहन 4/13/2021 6:48 PM  

वाह! ज़िंदगी के फलसफा का उम्दा तराना।

डॉ. जेन्नी शबनम 4/14/2021 10:37 PM  

बहुत भावपूर्ण रचना. इस सत्य को जानते मानते हुए भी कई बार मन नहीं समझता. मनुष्य का यही सच है. बधाई संगीता जी.

Sudha Devrani 4/18/2021 2:00 PM  

मन की बेचैनियाँ
यूँ ही बढ़ाते बेकार में
जब कि इस जहाँ में
भला किसका
पक्का बसेरा है ?
बहुत ही सटीक ...जीवन दर्शन कराती सारगर्भित एवं सार्थक रचना...।
वाह!!!!

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