अवसान की ओर
>> Thursday, April 8, 2021
स्वप्निल सी आँखों में
अब न साँझ है
न सवेरा है
उदास मन के
चमन में बस
सोच के परिंदों का
मौन डेरा है ।
ज़िन्दगी की आँच पर
फ़र्ज़ के हाथों को
ताप रहे हैं
रिश्तों को निबाहने का
जैसे ,
ये भी एक
मनका फेरा है ।
मन की बेचैनियाँ
यूँ ही बढ़ाते बेकार में
जब कि इस जहाँ में
भला किसका
पक्का बसेरा है ?
जानते तुम भी हो ,
और मैं भी ,कि
32 comments:
ज़िन्दगी की आँच पर
फ़र्ज़ के हाथों को
ताप रहे हैं
रिश्तों को निबाहने
- चिन्तन के मौन पलों की काव्यमय अभिव्यक्ति -अति सुन्दर .
अहा , सबसे पहली टिप्पणी आपकी । आनंद आ गया । आभार
जानते तुम भी हो ,
और मैं भी ,कि
ज़िन्दगी के अवसान पर
न कुछ तेरा है
न कुछ मेरा है ।
यही है जिन्दगी...बहुत सुन्दर कविता 👌👌
शब्द-शब्द में
जीवन दर्शन है ...
जिंदगी को सहज - सरल शब्दों में
बड़ी खूबसूरती से व्यक्त किया ...
सादर 🙏🙏
हाँ संगीता जी । यही सच है । बिना लाग-लपेट के सच ही बयान किया है आपने ।
कड़वे सच से परिचय कराता सुंदर काव्य सृृजन। आपको शुभकामनाएँ।
इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल...
सादर नमस्कार,
आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 09-04-2021) को
" वोल्गा से गंगा" (चर्चा अंक- 4031) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
शुक्रिया मीना जी ।
मर्मस्पर्शी ....
BITTER TRUTH OF LIFE!
जानते बूझते हुए भी मन उदास होता है, शायद शायर के लिए वही लम्हा कुछ ख़ास होता है, इसी उदासी के पीछे छिपा होता है जीवन का सत्य जो वैसे तो नजर ही नहीं आता, ख़ुशी से भला उसका क्या नाता ! सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए बधाई !
जानते तुम भी हो ,
और मैं भी ,कि
ज़िन्दगी के अवसान पर
न कुछ तेरा है
न कुछ मेरा है ।.... जीवन सत्य को बयां करती बहुत ही खूबसूरत और सारगर्भित पंक्तियां,पूरी रचना ही भावपूर्ण जीवन दर्शन का सुंदर समन्वय है ।
बहुत बहुत सुन्दर मोहक रचना
स्वप्निल आंखों में शून्यता लिए ,मौन मन की व्यथा,जो जीवन के यथार्थ का आईना भी है ।🙏🙏
स्वप्निल जीवन के यथार्थ का अध्यात्म! सुंदर अभिव्यक्ति!!!
वाह,बहुत सुंदर।
सुन्दर प्रस्तुति
ज़िंदगी की आंच ..और..फ़र्ज़ के हाथ
न कुछ तेरा न कुछ मेरा ....अद्भुत सृजन !
ज़िन्दगी के अवसान पर
न कुछ तेरा है
न कुछ मेरा है...वाह...सुन्दर लेखन
मेरी रचनायें पढ़ें, अच्छी लगे तो लाइक और शेयर करें-- त्रासदी
जानते तुम भी हो ,
और मैं भी ,कि
ज़िन्दगी के अवसान पर
न कुछ तेरा है
न कुछ मेरा है ।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
सच कहा आपने सब जानते हैं ,न कुछ तेरा है न कुछ मेरा।
शाश्वत सी अभिव्यक्ति।
दर्शन का पुट लिए अभिनव सृजन।
शब्द और भाव दोनों दार्शनिकता को बोध करा रही।
बहुत सुंदर रचना।
दीदी! ऐसा लगता है कि डूबते सूरज को देखते हुये जीवन का एक दर्शन सा मन में आया और लेखनी ने जस का तस अभिव्यक्त कर दिया। एक गहरा यथार्थ, जीवन का सच और अनुभव की साझेदारी! बहुत सुंदर!!
बहुत ही मार्मिकता से जीवन के कटु सत्य को शब्दांकित करती रचना प्रिय दीदी।कदाचित् इस यक्ष प्रश्न से कोई बच नहीं पाया है क्योकि जीवन की पहली किलकारी से अवसान तक यंत्रवत गतिमान जीवन अपनी लय में चलता है। खुद से खुद का संवाद समेटती रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं। आपकी लेखनी की प्रांजलता यूँ ही प्रवहमान रहे 🙏🙏❤❤🌹🌹
जो भी इस रहस्य को जान लिया वो मुक्त हो गया कालचक्र से । गूढ़ भाव से मुखर सृजन ।
जानते तुम भी हो ,
और मैं भी ,कि
ज़िन्दगी के अवसान पर
न कुछ तेरा है
न कुछ मेरा है ।
अंतस को छूती हुई प्रभावशाली रचना। एक अमर कृति आदरणीया संगीता जी।
हार्दिक शुभकामनाएँ ।।।।।
जानते तुम भी हो ,
और मैं भी ,कि
ज़िन्दगी के अवसान पर
न कुछ तेरा है
न कुछ मेरा है ।
वाह बहुत ही सुंदर, हार्दिक शुभकामनाएं
सभी पाठक वृन्द को मेरा अभिनंदन । प्रत्येक की प्रतिजरिया मेरे लिए अनुपम है ।सभी प्रतिक्रियाओं के लिए हृदय से आभार ।
वाह! ज़िंदगी के फलसफा का उम्दा तराना।
बहुत भावपूर्ण रचना. इस सत्य को जानते मानते हुए भी कई बार मन नहीं समझता. मनुष्य का यही सच है. बधाई संगीता जी.
मन की बेचैनियाँ
यूँ ही बढ़ाते बेकार में
जब कि इस जहाँ में
भला किसका
पक्का बसेरा है ?
बहुत ही सटीक ...जीवन दर्शन कराती सारगर्भित एवं सार्थक रचना...।
वाह!!!!
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