धार दिए बैठे हैं .....
>> Friday, March 26, 2021
सूरज से अपनी चमक उधार लिए बैठे हैं
ज़िन्दगी को वो अपनी ख़्वार किये बैठे हैं ।
हर बात पे सियासत होती है इस कदर
फैसला हर गुनाह का ,सब खुद ही किये बैठे हैं ।
बरगला रहे एक दूजे को ,खुद ही के झूठ से
सब अपना अपना एक मंच लिए बैठे हैं ।
फितरत है बोलना ,तोले बिना कुछ भी
बिन पलड़े की अपनी तराज़ू लिए बैठे हैं
हिमायत में किसी एक की इतना भी ना बोलो
अपनी ज़ुबाँ को बाकी भी ,धार दिए बैठे हैं ।
सिक्के के हमेशा ही होते हैं दो पहलू
हर सिक्का अब हम तो हवा में लिए बैठे हैं ।
47 comments:
अपनी जुबां को बाकी भी धार दिये बैठे हैँ!!!!! वाह क्या खूब लिखा है। सच का आईना दिखाती रचना के लिए आपको बधाई।
वाह! बहुत सुंदर!!!
बहुत सुंदर
सच इतना ही है कि सिक्के के दो पहलू होते हैं...
आपकी इस रचना को मैंने शब्दों से भी पढा संगीता जी तथा शब्दों के बीच रिक्त स्थान में भी । कुछ समझा, कुछ बूझा, कुछ मन में उतारा ।
क्या कहना है आपके इस अंदाज का
हर बात बड़ी धारदार लिए बैठे हैं !
बहुत उम्दा पेशकश, आज के माहौल की पोल खोलती हुई सी
@सब अपना अपना एक मंच लिए बैठे हैं...
सच में , हम सब ऐसे ही तो हैं !
बधाई बढ़िया रचना के लिए !
बहुत खूब।
ज़ुबाँ पे सबकी धार हो न हो आपकी ग़ज़ल बहुत धारदार है ...सियासत हो या व्यैक्तिक ...हर किसी को निशाने पर ले रही है 👌👌👌👌👌
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 26 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
फितरत है बोलना ,
तोले बिना कुछ भी
बिन पलड़े की
अपनी तराज़ू लिए बैठे हैं
सादर नमन
ग़ज़ल की सभी पंक्तियाँ सटीक, सामयिक !
सार्थक और सुन्दर ग़ज़ल।
खुद ही चन्दन
खुद ही अक्षत
खुद ही अपना
गुनगान करें
अपने स्वयम्भु आप बनें
बधाई...बहुत सुन्दर रचना👍
सिक्के के हमेशा ही होते हैं दो पहलू
हर सिक्का अब हम तो हवा में लिए बैठे हैं ।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, संगिता दी।
"अपनी जुबां को बाकी भी धार दिए बैठे हैं" बस इतना ही समझ जाएं तो फिर क्या है। जबरदस्त टाइप लिख दिया है आपने।
आज की स्थिति पर ज़बरदस्त प्रहार करती आपकी रचना शैली से इतर एक कमाल की रचना! बहुत अच्छा लग रहा है दीदी, आपकी इस सक्रियता को देखकर!
लगता है आज क़लम नहीं कटार लिए बैठे हो
क्या खूब लिखा है आपने दी..समसामयिकी बेहतरीन कटाक्ष।
आपकी रचना के सुर में सुर मिलाते हुए कुछ पंक्तियाँ मेरी भी
---
हर बात पर अजब-गजब विश्लेषण करते
ख़ुद बन काज़ी फैसलों का दरबार लिए बैठे है
ख़बरों की सनसनी पर पैनी नज़र गड़ाये
तुक्केबाज़ अफ़वाहों का नंगा तार लिए बैठे हैं
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प्रणाम दी
सादर।
बहुत ही खूबसूरत रचना, हार्दिक शुभकामनाएं, होली की बहुत बहुत बधाई हो
लाजवाब भावाभिव्यक्ति.. अत्यंत सुन्दर सृजन ।
हर जुबां एक धार रखती है.
बहुत खूब!
पलड़े वाली तराजू से तोलती, हिमायत और हिमायती पर लिखी गई एक धारदार रचना ।
बहुत ही सुंदर .....
बहुत खूब आदरणीय दीदी। धारदार रचना जो सच की कई परतें खोलती है। सभी पंक्तियाँ अपने लक्ष्य भेदन में सफल हैं 👌👌👌👌
खासकर ये दो मेरे जैसे संवेदनशील लोगों के लिए बहुत सही हैं-------
हिमायत में किसी एक की इतना भी ना बोलो
अपनी ज़ुबाँ को बाकी भी ,धार दिए बैठे हैं ।
ढेरों शुभकामनाएं आपके लिए 🌹🌹🙏🙏❤❤
प्रिय दीदी, आपके साथ मेरी पहली होली। एक चुटकी स्नेह और दुआ का गुलाल आपके नाम और ये ढेरों गुलाब---🤗
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🌹🌹🌹🌹🌹🌹
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🙏🙏😊
बरगला रहे एक दूजे को ,खुद ही के झूठ से
सब अपना अपना एक मंच लिए बैठे हैं
वाह!!!
क्या बात....
बहुत ही सुन्दर समसामयिक लाजवाब सृजन।
हिमायत में किसी एक की इतना भी ना बोलो
अपनी ज़ुबाँ को बाकी भी ,धार दिए बैठे हैं ।
.. बिलकुल सही, पर समझते कहां हैं लोग,शानदार रचना के लिए आपको नमन ।
सुन्दर रचना
बहुत खूबसूरत यथार्थ दर्शाती रचना।
@@ आप सभी गुणीजन का अभिनंदन और आप सबकी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ।
रचना की तह तक जाने के लिए शुक्रिया । कभी कभी शब्दों में धार चढ़ानी पड़ जाती है ।
@ जितेंद्र जी ने तो शब्दों के साथ रिक्त स्थान को भी पढ लिया । आभार ।
@ मुदिता , अब ग़ज़ल धारदार क्यों न हो जब तराशने वाला साथ हो ।
@ उषा जी , आपकी टिप्पणी अलग ही खुशबू फैला रही , आभार ।
@ प्रिय श्वेता , हम तो कलम को ही कटार बनाये बैठे हैं । तुमने भी दोनो शेर खूब धार तेज़ करके लिखे हैं ।
@ रेणु , लक्ष्य भेदने की कोशिश की , पाठक को यदि लग रहा कि लक्ष्य भेदा गया तो रचना सफल । शुक्रिया
तुम्हारे साथ होली खेलने में आनंद आया -
प्यार का रंग,
और खुशी का गुलाल
ले कर खेलें होली
मन का मैल मिटा कर
बन जाएँ सब हमजोली ।
सस्नेह
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सभी पाठक वृन्द को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
फितरत है बोलना ,तोले बिना कुछ भी
बिन पलड़े की अपनी तराज़ू लिए बैठे हैं
हिमायत में किसी एक की इतना भी ना बोलो
अपनी ज़ुबाँ को बाकी भी ,धार दिए बैठे हैं ।
यथार्थ को प्रतिबिंबित करती पंक्तियां...
आदरणीया ग़ज़लों में आपका दखल स्वागतयोग्य है। आपका स्वागत है मेरे ब्लॉग ग़ज़लयात्रा में।
होली की अग्रिम शुभकामनाओं सहित,
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
नश्तर-सी , नायाब , अलहदा अंदाजे-बयां । होली की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
"फितरत है बोलना ,तोले बिना कुछ भी
बिन पलड़े की अपनी तराज़ू लिए बैठे हैं"
बहुत खूब दी, मेरा भी स्नेह भरा गुलाल स्वीकार करें दी, होली की हार्दिक शुभकामनाएं आपको
क्या बात और क्या तेवर ...
हर शेर चुनौती देता हुआ ... जीवन से खेलता हुआ ... ललक का भाव लिए, बाखूबी मन की बात रखता, मन को उद्वेलित करता ... होली की बहुत बहुत बधाई आपको ...
हिमायत में किसी एक की इतना भी ना बोलो
अपनी ज़ुबाँ को बाकी भी ,धार दिए बैठे हैं ,,,,,,बाह क्या बात है एक से बढ़ कर एक लाईने,हर लाईनो का अपना अलग अंदाज, आदरणीया शुभकामनाएँ ।
होली पर्व पर वंदन...
अभिनंदन ...
रंग गुलाल का टीका-चंदन...
होली की ढेर सारी रंगबिरंगी शुभकामनाएं !!!
आदर सहित,
डॉ. वर्षा सिंह
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
होली की हार्दिक शुभकामनाएं 🌹🙏🌹
बेहद खूबसूरत सृजन
वर्तमान समय की सच्चाई को व्यक्त
करती रचना
वाह
होली की शुभकामनाएं
बहुत सुंदर,सरस, प्रवाहमय रचना
फितरत है बोलना ,तोले बिना कुछ भी
बिन पलड़े की अपनी तराज़ू लिए बैठे हैं
हिमायत में किसी एक की इतना भी ना बोलो
अपनी ज़ुबाँ को बाकी भी ,धार दिए बैठे हैं । बहुत अच्छी रचना है...खूब बधाई
आप सभी प्रबुद्ध जनों का अभिनन्दन .... आभार ... आप सबकी प्रतिक्रिया कुछ लिखने का हौसला देती है ... शुक्रिया एक बार फिर .
बहुत ही सुन्दर सृजन - - साधुवाद सह।
बहुत ही सुन्दर समसामयिक लाजवाब सृजन।
अरे वाह 👌👌
बेहद शानदार लिखा ☺️
सूरज से अपनी चमक उधार लिए बैठे हैं
ज़िन्दगी को वो अपनी ख़्वार किये बैठे हैं ।
लाजबाव
बरगला रहे एक दूजे को ,
सब अपना अपना एक मंच लिए बैठे हैं ।
- सचमुच,कितने सारे मञ्च और और हरेक की अजब-गजब हिमाकतें.
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