और न ही लगाई
कंटीले तारों की बाड़
न ही की कभी
इस बगिया की देख भाल ।
वक़्त की हवा ने
यूँ ही छिटका दिए
बीज संवेदनाओं के
स्नेह धारा के अभाव में
अश्रु की नमी से ही
निकल आये अंकुर उनमें ।
नन्हे नन्हे बूटे
रेगिस्तान सी ज़मीं पर
नागफ़नी से दिखते हैं ।
इन दरख्तों पर
न ही कोई पत्ता है
यहां तक कि इस पर
कभी गुल भी नहीं खिलते हैं ।
सारी संवेदनाएं खुद के ही कांटों से
हो जाती हैं लहू लुहान
फिर किसी बीज के अंकुरण से
निकलती कोंपलें
कर देती हैं आशा का संचार
न जाने क्यों
ऐसा ही होता है हर बार ।
40 comments:
जीवन है ...आशा तो सदा बनी रहती है और हकीकत भी बनती है | सुंदर लिखा आपने
बहुत सुन्दर और सटीक रचना।
जिंदगी की हक़ीक़त बयाँ करती...आशा व निराशा के बीच झूलता मन...चलता रहता है विचार मंथन ...और बह जाती है काव्य- धारा...बहुत बढ़िया 👌👌
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 17 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
शुक्रिया यशोदा
फिर किसी बीज के अंकुरण से
निकलती कोंपलें
कर देती हैं आशा का संचार
बस यही आशा तो जीवन नईया पर लगा देती है
बहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना आदरणीय दी,सादर नमन आपको
जिंदगी के बाग को प्राकृतिक रूप से ही फलने फूलने देना चाहिए तभी संवेदनाओं के पौधों के अंकुर फूटते रहते हैं, महत्त्वपूर्ण संदेश देती रचना। सादर।
मुझे बच्चन की वे पंक्तियां याद आती हैं - जीवन की आपा धापी में कब वक़्त मिला...
बहुत ही मर्मस्पर्शी कविता।सादर प्रणाम
आशा से ही संचित होगी ये कोंपले, और संवेदनाओं की पवन फिर पोषित करेगी इस नन्हे अंकुर को .... क्योंकि.... आशा ही जीवन है ।
आशा .. निराशा के द्वंद में झूलती , संवेदनशील अभिव्यक्ति ।
वाह बहुत ही सुन्दर रचना
वक़्त की हवा ने
यूँ ही छिटका दिए
बीज संवेदनाओं के
स्नेह धारा के अभाव में
अश्रु की नमी से ही
निकल आये अंकुर उनमें ।
हृदयग्राही पंक्तियां....
नमन आपकी लेखनी को आदरणीया 🙏
निराशा में आशा का संचार करती सुंदर रचना
सादर
यूँ ही छिटका दिए
बीज संवेदनाओं के
स्नेह धारा के अभाव में
अश्रु की नमी से ही
निकल आये अंकुर उनमें ।
ये संवेदना के बीजों से फूटे अंकुर धरा में संवेदना के वृक्ष बनकर जब उभरेंगे तब नवयुग होगा नवसृजन होगा।
आशा का संचार करती लाजवाब कृति।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2071...मिले जो नेह की गिनती, दहाई पर अटक जाए। ) पर गुरुवार 18 मार्च 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
@ मीना जी एवं रविंद्र जी ,
आप दोनों का ही आभार .
बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
यूँ ही छिटका दिए
बीज संवेदनाओं के
स्नेह धारा के अभाव में
अश्रु की नमी से ही
निकल आये अंकुर उनमें, ये आंसू भी न,कोमल तो होते ही हैं,पर बड़े काम के होते हैं, आपकी इस अनुपम कृति में आंसुओं का जी कमल है,ये न आए होते, न बीज को नमी मिलती, न अंकुर निकलता, न कोपालें आतीं, न आशा का संचार होता, बहुत खूब आदरणीय संगीता दीदी, आपको सादर नमन..
ऐसा तो होना ही है संगीता जी क्योंकि जीना है । दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा । निराशाओं के मध्य हृदय में आशा का संचार करने वाली इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति हेतु निश्चय ही आप अभिनंदन की पात्र हैं । बहुत अच्छा लगा इसे पढ़कर ।
बहुत बहुत सरस सराहनीय
मार्मिक रचना ! संवेदनाओं के बीज जहाँ गिरते हों एक न एक दिन उपवन वहाँ खिल ही जाता है
वक़्त की हवा ने
यूँ ही छिटका दिए
बीज संवेदनाओं के
स्नेह धारा के अभाव में
अश्रु की नमी से ही
निकल आये अंकुर उनमें...मन को छूते बहुत ही सुंदर भाव..सराहनीय सृजन आदरणीय दी।
बहुत सुंदर
बहुत सुंदर सृजन।
सादर प्रणाम 🙏
आशा का संचार करती बहुत ही सुंदर रचना,संगीता दी।
धरा कोख की प्रवृति उर्वरता
सहती रही नियति की बर्बरता
फूल हो काँटे आँचल में समेटे
ममता पर टिकी सृष्टि निर्भरता
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अत्यंत गहन भाव उकेरे हैं रचना में दी।
संवेदना मात्र एक भाव नहीं है, मानवता का सकारात्मक पक्ष है,
सुंदर सृजन।
प्रणाम दी
सादर।
बहुत ही भावपूर्ण रचना प्रिय दीदी। कवि मन में संवेदनाएं स्वयं जनित होती हैं इसीलिए कवि औरों से अलग होता है। मन की नमीं से ही सृजन के फूल खिलते हैं। शानदार दर्शन जो हर कवि मन का है। हार्दिक शुभकामनाएं और आभार🌹🌹🙏❤❤
हृदयस्पर्शी रचना।
कभी गुल भी नहीं खिलते हैं ।
सारी संवेदनाएं खुद के ही कांटों से
हो जाती हैं लहू लुहान
बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति रचना
फिर किसी बीज के अंकुरण से
निकलती कोंपलें
कर देती हैं आशा का संचार
न जाने क्यों
ऐसा ही होता है हर बार ।
सम्पूर्ण जीवन दर्शन का सार प्रस्तुत करती सुंदर रचना...🌹🙏🌹
हृदय स्पर्शी एहसास जगाती अप्रतिम रचना।
भावों के तारों में गूँथित नागफणी।
अद्भुत।
Beautiful, कविता को पढ़ते पढ़ते मुँह से अपने आप ही निकाल आया beautiful,वाह, मन को भा गई , बहुत बहुत बधाई हो संगीता जी
@ मोनिका ,आपका यहाँ आना मन को ऊर्जान्वित करता है ।पुराने संगी साथी आते रहें तो मन प्रसन्न हो जाता है ।आभार ।
@@ सभी सम्माननीय पाठकों का तहेदिल से शुक्रिया । आप सबकी प्रतिक्रिया मेरे लिए विशेष महत्त्व रखती है । कुछ नया रचने का हौसला देती है । यूँ ही स्नेह बनाये रखियेगा । आभार ।
@@ प्रिय जिज्ञासा , आपने पंच लाइन को पकड़ा । आँसुओं का कमाल की बीज अंकुरित हो गए । शुक्रिया ।
@@ ज्यादातर पाठकों ने बहुत प्यारी और महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ दी हैं ...सबका सादर अभिनन्दन और शुक्रिया ....
@@ प्रिय श्वेता ...
बिना सँवारे भी धरा
करती रहती अभिनन्दन
उर्वरक बन महकाती
चहुँ दिशाएं जैसे चन्दन
कठोर प्रहार सह कर भी
अंकुरित करती बीजों को
फूल फल के साथ साथ
हरिया जाती है
मन के भावों को .
तुमने सही कहा है कि ये ममत्त्व न हो तो फिर स्रष्टि कैसी ?
@@ प्रिय रेणु ,
कवि मन कवि के मन को खूब पहचानता है ... ये मन की नमी ही है जो यूँ सर्जन करवा देती है ...
@@ सुधा देवरानी जी ,
ये संवेदनाओं के अंकुरित बीजों का वृक्ष रूप बनाने का इंतज़ार है ....
@@ ज्योति
आपको रचना पसंद आई ... शुक्रिया ..
एक बार फिर समस्त पाठकों का आभार ...
मन को छूती कविता
वाह वाह
बधाई
बहुत सुंदर रचना।
गहन निराशा के बीच
नागफनी मे अंकुरित होता हुआ
आशा का बीज
कभी कभी
चमत्कारी मन लुभावन पुष्पों
को जनम भी देता है
इसलिए आशा की डोर
हमेशा थामे रखनी चाहिए
आज भी आशा की डोर थामें उस चमत्कारी और मन लुभावन पुष्प का ही तो इंतज़ार है । शुक्रिया स्वरूप साहब , अब तो ये इंतज़ार ताउम्र बना रहेगा कि कभी तो नागफनी में भी फूल खिलेंगे ।
आभार ।
यही ज़िंदगी है। तमाम निराशाओं के बीच आशाओं की डोर पकड़े रहनी होती है। सरल शब्दों में कविता के रूप में सृजित इस सच्चाई को तमाम लोग कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में अपने जीवन के बेहद करीब पाएंगे। आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
दीदी, बहुत दिनों बाद इधर आना हुआ तो लगा कि वही पहले वाली बयार आज भी इस वातावरण को सुगंधित कर रही है! बहुत ही सुंदर रचना हमेशा की तरह!
साधो , सहजो जीवन भला । अति सुन्दर कथ्य ।
बहुत ही बेहतरीन रचना संगीता जी ! हर पंक्ति भावपूर्ण है
सारी संवेदनाएं खुद के ही कांटों से
हो जाती हैं लहू लुहान
फिर किसी बीज के अंकुरण से
निकलती कोंपलें
कर देती हैं आशा का संचार
न जाने क्यों
ऐसा ही होता है हर बार ।
एकदम सटीक एवं सारगर्भित...
वात्सल्य के अभाव में उगते मरुस्थलीय काटें अपनी ही संवेदना को तार-तार करते अपने से प्यार को तरसते...
पर नागफनी में खिले फूल आशान्वित करते हैं कि इस कंटीली झाड़ में भी कभी खिले कोई पुष्प...
लाजवाब सृजन।
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