तुम्हारा दम्भ
>> Sunday, March 7, 2021
ओ पुरुष,
नियंत्रक बने हर वक़्त
चलाते हो अपनी
और चाहते हो कि
बस स्त्री केवल सुने
कर देते हो उसे चुप
कह कर कि
तुम औरत हो
औरत बन कर रहो
नहीं ज़रूरत है
किसी भी सलाह की ।
और , स्त्री -
रह जाती है
मन मसोस कर
हो जाती है मूक
नहीं होता महत्त्व
उसके होने या
न होने का
खुद से उलझती
खुद से बतियाती
करती रहती है
रोज़मर्रा के काम
मन में घुमड़ता रहता है
कहीं न कहीं उसका
अपना अपमान
निकलती है बाहर
घर के ही काम से
या फिर
मिल बैठती हैं
कहीं कुछ महिलाएँ
खुद के मन की
निकालने भड़ास
सोचती हैं कुछ बतियाएँ
एक दूसरे से
मन की कह जाएँ
और इसी लिए
जहाँ भी मिलती हैं
दो या कुछ स्त्रियाँ
हो जाती हैं मजबूर
कुछ कह कर
कुछ हँस कर
करती हैं अवसाद दूर ।
और तुम ,
इस पर भी
मज़ाक उड़ाते हो
उनके गल्प पर
चुटकुले बनाते हो
और अपने दम्भ को
पोसते हुए
हो जाते हो मगन
यही सोचते हुए कि
कितना सही हो तुम !
41 comments:
महिला दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। सार्थक और समयोचित सृजन के लिए आपको ढेरों बधाइयाँ।
वाह...हर महिला के मन की बात लिख दी...अद्भुत रचना👌👌
तुम चाहते हो, वह न निकाले अपना मन की बेचैनी, बस सबकुछ अपना कर्तव्य मान ले और तुम अपनी समझाइश पर दम्भ भरो
बहुत सुन्दर सृजन।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 07 मार्च 2021 को साझा की गई है........."सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
स्त्री मन के चिंतन के उपरांत उसकी वेदना को समझने का सामर्थ्य काश आपकी तरह हर किसी में होता ..बहुत ही महीन नस पकड़ आपने ये रचना रच दी..बहुत सुंदर ..आपको हार्दिक शुभकामनाएं..आप ऐसे ही लिखती रहे और हमारी मार्गदर्शक बनी रहें..ईश्वर से यही प्रार्थना है ..सादर..
स्त्री को स्वर मिला ही नहीं जैसे। बारीक पंक्तियां रच दीं हैं आपने।
वाह ..विचारणीय भाव
स्त्रियों के अस्तित्व के प्रश्न के अनेक विषयों में यह भी एक विचारणीय विषय है दी।
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स्त्री और पुरुष में असमानता के बोध का मूल का आर्थिक आत्मनिर्भरता तो है ही परंतु स्त्रियों की अति भावुकता सबसे सशक्त कारण समझ आता है जिसकी वजह से स्त्रियों को छला जाता है और बेवकूफ समझा जाता है।
सादर।
महिला दिवस के अवसर पर सोचने को विवश करती सुन्दर रचना।
बहुत सुंदर रचना।
मूर्ख होते हैं ऐसे लोग जो औरत को अपने से कम समझते हैं
सार्थक चिंतनशील रचना
बहुत सुन्दर
सारगर्भित रचना
बहुत ही विचारणीय लेख,संगीता दी।
पुरुषों को खूब खरी खरी आदरणीय दीदी |ये लगभग हर लड़की या औरत का सच है | कितने पूर्वाग्रहों , दबाव और चिंताओं में जीती है एक औरत पुरुष ये कभी जान नहीं पाते | उसकी निश्छलता का मज़ाक उड़ाकर वे अपनी संवेदनहीनता का प्रदर्शन करते हैं | सादर आभार के साथ महिला दिवस की बधाई और शुभकामनाएं|
ये दम्भ ही तो सारी मुसीबतों की जड़ है संगीता जी । बहुत प्रभावशाली रचना
बहुत ही सुंदर ढंग से कह दी मन की बात को आपकी इस रचना ने महिला दिवस की आपको ढेरों बधाई हो, सादर नमन, शुभ प्रभात, बेहतरीन रचना संगीता जी
स्त्री के भावुकता को उसकी कमजोरी मान पुरुष दंभ भरते हैं। नारी के अंर्तमन की दशा को शब्दों में पिरो दिया हैं आपने।
हम सभी की आवाज बनने के लिए दिल से शुक्रिया आपका
आपको भी महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
विश्व महिला दिवस एक खूबसूरत और आत्मचिंतन कराती कविता.. ''औरत बन कर रहो
नहीं ज़रूरत है
किसी भी सलाह की..'' वाह
बहुत अच्छी कविता। पुरुष प्रवृत्ति पर गहरा कटाक्ष है कविता में।।
आप सभी पाठक वृन्द का हार्दिक आभार .
परिवर्तन की राह बनाता सार्थक लेखन
स्त्री की मनोदशा का सटीक विश्लेषण
सुंदर रचना
शुभकामनाएं
आपने जो कहा है, ठीक कहा है संगीता जी । मानसिकता परिवर्तित होनी ही चाहिए पुरुष वर्ग की स्त्रियों के प्रति । यही अभीष्ट है, यही वांछित है ।
बहुत ही बेजोड़ और अच्छी कविता आपको सादर प्रणाम
बहुत सुंदर भाव 🙏 भोलेबाबा की कृपादृष्टि आपपर सदा बनी रहे।🙏 महाशिवरात्रि पर्व की आपको परिवार सहित शुभकामनाएं
अंतर व्यथा को उजागर करती बेहद सुन्दर सृजन, हालांकि महिलाओं में बहुत कुछ आत्मविश्वास बढ़ा है और पुरुष प्रधान समाज ने उसे स्वीकारा भी है, फिर भी बहुत कुछ बदलना अब भी बाक़ी है - - साधुवाद सह।
बहुत सुन्दर रचना👌
स्त्रियों की मनोदशा पर सटीक सृजन ।
लाजवाब पंक्तियाँ !सुन्दर भावों से सजी शानदार कविता! बधाई!
सशक्त सृजन के लिए हार्दिक आभार ।
बहुत ही सुन्दर लाजबाव रचना
निःशब्द हूं
मन को मथती कमाल की रचना
बधाई
सादर
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ८ मार्च २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत सराहनीय रचना।
ओ पुरुष,
नियंत्रक बने हर वक़्त
चलाते हो अपनी
और चाहते हो कि
बस स्त्री केवल सुने
कर देते हो उसे चुप
कह कर कि
तुम औरत हो
औरत बन कर रहो
नहीं ज़रूरत है
किसी भी सलाह की ।
सही कहा पर अब जमाना बदल रहा है...
अब स्त्री की बारी है ।
बहुत सहा बहुत रही चुप
पर अब वो सब पर भारी है
अत्यंत मार्मिक सृजन
बहुत ही सुन्दर सार्थक रचना
जी दीदी, पुरुषों को खरी खरी ये रचना हर नारी के मन की आवाज है।अच्छा लगा बहुत समय बाद आपके ब्लॉग पर आकर। महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और प्रणाम 🙏❤️❤️❤️
बेहतरीन रचना
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