मैं प्रेम में हूँ ---
>> Monday, March 22, 2021
मैं आज - कल
प्रेम में हूँ ...
प्रेम चाहता है एकांत
मैं भी एकांत में हूँ
कर रही हूँ
बेसब्री से इंतज़ार
कब आओ तुम मेरे द्वार
कब कहो कि
चलो मेरे साथ
और मैं चल पडूँ
हाथों में हाथ को थाम .
मैंने कर ली हैं
सब तैयारियाँ
बाँध ली हैं सामान की
अलग अलग पोटलियाँ
जज़्बात और ख्वाहिशों को
छोड़ दिया है
क्योंकि ये बढ़ा देती हैं दुश्वारियाँ.
एकत्रित कर ली हैं
सारी स्मृतियाँ ,
हर तरह की
मीठी हों या फिर हों तल्ख़
निरंतर अनंत की यात्रा पर
आखिर न जाने लगे कितना वक़्त .
ज़िन्दगी तो जी ली
अब मरने की कला सीख रही हूँ
आज कल मैं प्रेम में हूँ
मृत्यु ! मैं तुझसे
भरपूर आलिंगन चाहती हूँ .
58 comments:
बहुत सुन्दर। भावों की गहम अभिव्यक्ति।
सुन्दर, प्रेम अनिवार्य है।
अलग अलग पोटलियाँ
जज़्बात और ख्वाहिशों को
छोड़ दिया है
क्योंकि ये बढ़ा देती हैं दुश्वारियाँ.,..दार्शनिकता और भावनात्मकता का अटूट बंधन है।
बहुत बढ़िया
बहुत सुन्दर
बहुत सुन्दर
जज़्बात और ख्वाहिशों को
छोड़ दिया है
क्योंकि ये बढ़ा देती हैं दुश्वारियाँ.
एकत्रित कर ली हैं
सारी स्मृतियाँ ,
हर तरह की
मीठी हों या फिर हों तल्ख़
निरंतर अनंत की यात्रा पर
आखिर न जाने लगे कितना वक़्त .
ज़िन्दगी तो जी ली
अब मरने की कला सीख रही हूँ
आज कल मैं प्रेम में हूँ
मृत्यु ! मैं तुझसे
भरपूर आलंगन चाहती हूँ .
आपका दार्शनिक और आध्यात्मिक मन और अंदाज़ अनंत गहरे तक छू गया,लग रहा है,जैसे जीवन परिपूर्ण है, सम्पूर्ण है,संतोष और त्याग का अकूत खजाना आपकी सुंदर झोलियो में भरा है,और वो झोलिया आपके हाथो में सुशोभित हैं,आपको मेरा नमन ।
सारा तामझाम इसीलिए तो होता है ना कि अंत समय शांति रहे मन में.... जीवन दर्शन का निचोड़।
उफ् ये कैसी असंगतता...ये कैसी तैयारी?????
वाह संगीता जी ...
ज़िन्दगी तो जी ली
अब मरने की कला सीख रही हूँ
आज कल मैं प्रेम में हूँ
ये पंक्तियाँ पढ़ के तो मै इस कविता के प्रेम मे पड़ गई हूँ । बहुत ही सुंदर रचना है
सस्नेह
मंजु मिश्रा
कविता अच्छी है मगर अभी मृत्यु से प्रेम मत कीजिए। अभी प्रेम कीजिए खुद से और प्रकृति से।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (24-03-2021) को "रंगभरी एकादशी की हार्दिक शुफकामनाएँ" (चर्चा अंक 4015) पर भी होगी।
--
मित्रों! कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं हो भी नहीं रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
गाने की लाइन याद आ गयी " मरने का सलीका आते ही ,जीने का शऊर आ जाता है " ....बहुत गहन अभिव्यक्ति ....👌👌👌👌👌
एकत्रित कर ली हैं
सारी स्मृतियाँ ,
हर तरह की
मीठी हों या फिर हों तल्ख़
निरंतर अनंत की यात्रा पर
गहन अनुभूतियों की हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति ।
सुंदर। ऐसा प्रेम सबके प्रारब्ध में हो।
जो भावनाएं आपने अभिव्यक्त की हैं, उन्हें अनुभूत करने का प्रयास कर रहा हूँ । भावार्थ सम्भवतः शब्दों एवं पंक्तियों के मध्य कहीं छुपा है ।
नि:शब्द हूँ! बढ़िया हृदयस्पर्शी सृजन। प्रेम में रहिए, प्रेम करिए। सुंदर अभिव्यक्ति के लिए आपको बधाई। सादर।
बेकार बात। अच्छी कविता।
जी दी प्रणाम,
आपकी कविता पहली बार पढ़ी और *मृत्यु का आलिंगन* पढ़कर अच्छा नहीं लगा।
आपने कहा दुबारा पढ़ो और जो समझ आये लिखो
मैंने अपने मन के विचार लिखे हैं आपकी कविता पर
माना जीवन दर्शन पर आधारित कविता है
पर फिर भी सादर आग्रह है
मेरी एक लंबी समीक्षा झेल लीजियेगा।
-----
सृष्टि के नियम से बंधे कण-कण में
जीवों से भरे इस पृथ्वी पर
जीवन-मरण का चक्र जिसे हम सहजता से
स्वीकार करते है,इस विषय पर
अगर गहनता से विचार किया जाए तो
यह आवागमन चक्र बेहद चमत्कारिक और अलौकिक प्रतीत होता है।
मनुष्य इस सृष्टि का सबसे विशेष प्राणी है
जिसमें ज्ञान का बोध है।
जन्म तो उत्सव है ही
मृत्यु शोक है एक देह की यात्रा का
अंतिम पड़ाव, मनुष्य सांसारिक बंधनों से
मुक्त होकर ,अनंत में विलीन हो जाता है
किंतु किसी प्रिय परिजन के बिछोह की
कल्पना मात्र ही भावुकता से भर देती है
हे कवयित्री!
आपकी कविता की प्रारंभिक पंक्तियाँ
*मैं आज-कल प्रेम में हूँ..
प्रेम चाहता है एकांत
मैं भी एकांत में हूँ...*
यूँ लगा मानो किसी रूमानी
रचना की आत्मा का आस्वादन हो...
प्रेम में विह्वल प्रेमिका की तरह
प्रतीक्षारत नवयौवना दुल्हन की भाँति
'कब आओगे मेरे द्वार'
समर्पण के लिए आतुर
'चल पड़ूँ हाथों में हाथ
थाम'
किसी खूबसूरत सफ़र पर
चलने की तैयारी करती
प्रेयसी मानो कह रही हो
मैंने मन की सारी
लालसाओं का त्याग कर
स्वयं को सर्वस्व समर्पित करती हूँ
क्योंकि मैं किसी भी प्रकार की
स्मृतियों से बँधकर
भावविह्वल होकर कमजोर पड़ना
नहीं चाहती।
कवियत्री के द्वारा
अपनी चरम पर आते-आते
भावातिरेक में कही ये पंक्तियाँ
पाठक के हृदय पर
प्रहार सा पड़ता है
"निरंतर अनंत की यात्रा पर
आखिर न जाने लगे कितना वक़्त .
ज़िन्दगी तो जी ली
अब मरने की कला सीख रही हूँ"
क्या सचमुच मरने की कला
सीखनी पड़ती है?
जन्म से लेकर साँसों के देह छोड़कर
जाने तक की यात्रा ,जीवन जीने की
कलात्मकता सीखते हुए बीतती है।
मेरी समझ से
मनुष्य जन्म से वस्तुतः एक
मौलिक कलाकार ही होता है
आलिंगन मृत्यु से?
ये तो अकाट्य सत्य है ही
फिर क्यों न
जीवन के विरक्ति के कारणों का
आलिंगन किया जाय,जो प्रेम मिल रहा
प्रकृति से उस सृष्टि की विशालता में
स्वयं के लघु अस्तित्व बोध का
प्रगाढ़ आलिंगन किया जाए।
जो बचे हुए पल हैं उसे
सकारात्मक ऊर्जा में परिणत कर
जीवन का आलिंगन करें
जब प्रकृति के सारे नियम
समय के आधार पर निर्धारित हैं तो
तो हे कवयित्री!!
मृत्यु का आह्वान क्यों करना है..?
जीवन से आलिंगन करो
प्रेम का आलिंगन करो
कविता के भाव दार्शनिकता पर आधारित है किंतु
भावातिरेक में कवयित्री ने
सांसारिकता की महत्व गौण कर दिया।
-----
त्रुटियों के लिए क्षमा चाहती हूँ।
सादर।
प्रेम और मृत्यु एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, जो वास्तव में प्रेम में होता है उसने अपना शीश कटा ही लिया है, अब कैसा आलिंगन, वह तो हो चुका, यहाँ जिस प्रेम की बात हो रही है वह भावुकता से भरा प्रतिदान की आशा करने वाला प्रेम नहीं है, यह तो स्वयं को मिटाकर पाया वह अनंत प्रेम है, जिसके लिए कबीर कहते हैं, खाला का घर नाहीं ! बहुत सुंदर रचना !
सभी पाठकों का हृदय से आभार ...
इस रचना पर सबकी अपने दृष्टिकोण से अलग अलग प्रतिक्रिया आयी है , जो स्वाभाविक भी है । यह देख कर अच्छा लगा कि सबने इस पर विचार किया ।
देवेंद्र जी कहते हैं कि खुद से प्रेम कीजिये , प्रकृति से प्रेम कीजिये , तो मुझे तो लग रहा कि मैं खुद से ही प्रेम के अतिरेक में ये सब लिख गयी । आभार आपका
जिज्ञासा , पम्मी , मंजू जी , आप सबने ही इसको गहनता से पढ़ा और इसके सत को निचोड़ लिया ....
मुदिता , बस गाने की ये दो पंक्तियाँ ही तो इस कविता का सार हैं । शुक्रिया
@@ मीना भारद्वाज , वीरेंद्र जी , मीना जी , और सभी मेरे इस रचना पर आए पाठक वृन्द ... आप सभी का अभिनंदन और आभार ।
@@ अनिता जी ,
आपकी टिप्पणी ने मेरे लिखे का मान बढ़ा दिया ।
@@ शिखा , उषा जी
😄😄😄 आपको कुछ नहीं कहती ।
@ श्वेता तुमको अलग से ही लिखूंगी । वैसे तुमने कस्फी विस्तार में अपनी बात कही है ।। थोड़ा इन्तज़ार करो ।
बहुत सुंदर। बधाई।
@ गिरीश जी ,
आपका यहॉं आना मेरे लिए पुरस्कार से कम नहीं ।
आभार ।
प्रिय दीदी, मुझे भी प्रारंभिक पंक्तियों से यही लगा था, कि प्रेम कविता पढ़ने को मिलेगी। हालांकि रचना अपने आप में बहुत सुंदर अध्यात्मिक भाव समेट रही है। हमारी प्रिय श्वेता तो चिंतन की विराट यात्रा पर निकल पढ़ी और विचारों के मोती सहेज कर लाई है। Do कवीयत्रियों का रचनात्मक संवाद देखते ही बन रहा है। छोटी सी पंक्तियाँ मेरी भी, आपको सादर समर्पित---------
ऐ जिदंगी, रुको तनिक!
कम करो अपनी रफ़्तार अभी!
अभी- अभी तो जगी उमंगें
हुआ है खुद से प्यार अभी,
नाज़ उठाने आया कोई
भाया है अनायास दिल को
पलकों के नभ में जगे हैं उत्सव
सपनों ने किया श्रृंगार अभी!!
सादर 🙏🙏🌹🌹❤❤💐💐😃🤗
आज दुबारा फॉलो किया आपकाब्लॉग । रचना रीडिंग लिस्ट में दिख नहीं रही थी। ई मेल से भी फॉलो किया है🙏🙏
मरौ वे जोगी मरौ, मरौ मरन है मीठा ।
तिस मरणी मरौ, जिस मरणी गोरष मरि दीठा ।।
बहुत ही प्यारी कविता है दीदी! कोई भी मनुष्य जन्म के साथ विकास की ओर अग्रसर होता है और उस विकास की पराकाष्ठा है मृत्यु... ऐसे में जन्म यदि एक उत्सव है तो मृत्यु जीवन का अंतिम और सर्वोच्च उत्सव होना चाहिये!
मेरे स्वर्गीय पिताजी एक बात सदा कहा करते थे कि मृत्यु का सतत स्मरण ही अमरत्व का रहस्य है! यह रचना एक महान दार्शनिक भाव समेटे है! मेरा प्राणाम आपको!!
Nice Article i Love Your Post Thanks
Friendship Dosti Status Quotes in Hindi
Motivational Thoughts Status in Hindi
Motivational Status in Hindi For Whatsapp and Facebook
Nice Article i Love Your Post Thanks For Article
Good Morning Shayari Collection In Hindi
Pyar Mohabbat Status in Hindi
Dosti Shayari Status Collection in Hindi
@@अमृता जी,
कितनी सटीक बात लिख गयीं हैं आप , आभार ।
@@ सलिल जी ,
आने कविता के केंद्रीय भाव को ले लिया है ।आपके पिताजी ने बहुत ही सही कहा था । उनके लिए मेरा नमन । आपकी टिप्पणी सदैव मेरी रचना को पूर्णता प्रदान करती है ।
आभार
प्रिय रेणु ,
सबको अधिकार है कि किसी भी रचना को अपनी भाव भूमि पर देखे । तुंहरी लिखी पंक्तियाँ मन में उत्साह का सृजन कर रही हैं , बहुत अच्छा लिखा है । जो जवाब श्वेता को लिखूँगी वही अपने लिए भी समझना ।। श्वेता और तुमने मुझे मौका दिया है अपनी ही कविता का विश्लेषण करने का ।
तो वक़्त तो लगता है ...
अपना ख्याल रखें। सेहत पहले 🙏🙏
प्रिय श्वेता / रेणु
हर रचना को हर पाठक अपने ही दृष्टिकोण से पढ़ता और समझता है ।।इस रचना के भी विभिन्न आयाम हैं और हर पाठक अपने ही ढंग से इसकी व्याख्या भी करने के लिए स्वतंत्र है ।।
तुमने बहुत गहनता से एक एक शब्द को पढ़ आत्मसात से कर इस पर अपने विचार रखे हैं ... जन्म से ले कर साँसों के छोड़ने तक जीवन जीने की कला सीखते हैं ,लेकिन क्या सच ही जीने की कला सीख भी पाते हैं ?
जन्म को उत्सव मानती हो तो मृत्यु के लिए ----
मृत्यु शोक है एक देह की यात्रा का
अंतिम पड़ाव, मनुष्य सांसारिक बंधनों से
मुक्त होकर ,अनंत में विलीन हो जाता है
किंतु किसी प्रिय परिजन के बिछोह की।
कल्पना मात्र ही भावुकता से भर देती है।
ये भाव प्रिय परिजन के लिए होते हैं न कि मृत्यु को प्राप्त करने वाले के लिए । मेरी कविता में कहीं भी परिजन की बात नहीं है ।
तुम्हारे द्वारा की गई आगे की पंक्तियों की व्याख्या बड़ी सटीक है जिसमें लिखा है ---
लगा मानो किसी रूमानी
रचना की आत्मा का आस्वादन हो...
प्रेम में विह्वल प्रेमिका की तरह
प्रतीक्षारत नवयौवना दुल्हन की भाँति
'कब आओगे मेरे द्वार'
समर्पण के लिए आतुर
'चल पड़ूँ हाथों में हाथ
थाम'
किसी खूबसूरत सफ़र पर
चलने की तैयारी करती
प्रेयसी मानो कह रही हो
मैंने मन की सारी
लालसाओं का त्याग कर
स्वयं को सर्वस्व समर्पित करती हूँ ।
ये पूर्णरूप से वही लिखा जो इन्तज़ार करते हुए एहसास हुआ था ।
कवयित्री केवल ख्वाब और ख्वाहिश त्याग रही है , स्मृतियाँ नहीं , वो केवल मृत्यु का स्वागत करना चाहती है खुले मन से , उसे कोई जल्दी नहीं है आलिंगन की इसीलिए यादों को साथ रखा है कि न जाने कितना वक्त लगे ।
यहाँ तुमने कवयित्री के भाव को नज़र अंदाज़ कर अपनी भावनाओं को प्राथमिकता दे दी है । तुम नहीं चाहतीं की मृत्यु की बात करूँ , इस लिए सांसारिकता की ओर ध्यान आकर्षित करना चाह रही हो ।
यहाँ यदि तुम किसी अनजान कवि के लिखे को पढ़तीं तो निश्चय ही तुम्हारा दृष्टिकोण दूसरा होता ।
इस कविता में " में " शब्द मात्र मेरे लिए नहीं है । समग्रता की दृष्टि से देखो कोई भी हो सकता है ।
जीने की कला सीखने के लिए भी बाह्य सहारे की ज़रूरत आन पड़ती है । मृत्यु भी तो शाश्वत सत्य है तो इसका आह्वान क्यों नहीं ? तो बस कवि मन मृत्यु से भरपूर आलिंगन चाहता है जब भी वो उसके द्वार आये , इस चाहना में बुरा क्या है , मुझे लगता है कि कवयित्री ने जीवन और मृत्यु में बराबर का संतुलन स्थापित किया है ।
दार्शनिक भाव रखते हुए मृत्यु को सम्मानित किया है ।
ये भाव किसी के मन में तभी आ सकते हैं जब उसे सांसारिकता गौण लगे ।
इतना सब इस रचना के माध्यम से मन के भाव रखना भी एक कला है । बहुत अच्छा लिखा तुमने । शुक्रिया नहीं प्यार कहूँगी । यूँ ही विचार परिपक्कव बनें और निरंतर लिखती रहो ।
सस्नेह ।
प्रेम का अद्भुत रूप ,इस अनोखे अंदाज पर क्या कहूँ, बहुत ही सुंदर है, आपको सादर नमन, ढेरों बधाई हो,सबकी टिप्पणी भी लाजवाब है,मै समझ ही नहीं पा रही क्या कहूँ , दो बार पढ़कर इस अटल सत्य को महसूस कर रही हूँ, शुभ प्रभात, हृदयस्पर्शी
प्रिय ज्योति ,
एक गाना याद आ रहा ...कुछ न कहो .. कुछ भी न कहो .:) :)
शुक्रिया .
जी दी आपका स्नेह मिला मेरी लिखी आलोचना को भी आपने सकारात्मक लिया,बहुत आभारी हूँ।
हाँ दी, यह सच हैं मृत्यु का स्वागत मैं किसी भी क्षण कर सकती हूँ...किंतु जो मुझे प्रिय है उनके लिए ऐसी कल्पना असहनीय लगती है।
ये भी सच है कि किसी अन्य की कविता ऐसी पढ़ी होती तो निश्चित रूप से तटस्थ व्याख्या कर आपकी रचना की प्रशंसा खुले मन से करती...
क्योंकि मृत्यु मेरे लिए भी किसी उत्सव से कम नहीं।
.....
सप्रेम
सादर।
@@ प्रिय रेणु ,
तुमने गुज़ारिश की है ज़िन्दगी कि रफ़्तार से ... तो ये ज़िन्दगी का उवाच ......
ज़िन्दगी की रफ़्तार
नहीं रुकती है
वो तो अपनी गति से
बस चलती है
हो उमंग , या हो प्यार
सब के लिए बस
होता एक सा प्रतिकार
भले ही हों सपने
पलकों के नभ पर
करते रहो तुम उनका
मन ही मन श्रृंगार
ज़िन्दगी कि रहती है
सदैव एक सी रफ़्तार ....
दीदी ...
@@ श्वेता ,
मुझे मालूम था कि कविता का मर्म तो जान चुकी हो बस स्वीकार नहीं कर पा रही हो ...
तुम्हारी स्वीकृति पा कर अच्छा लगा ..
सस्नेह
जीवन दर्शन को उद्घाटित करती सुंदर भावपूर्ण रचना! --ब्रजेंद्रनाथ
आज आपके ब्लोगरूपी घर में आकर सच मानिए मज़ा आ गया ,"जिंदगी और मौत" को अलग-अलग कवियों के नजरिए से देखना बड़ा सुखद रहा।
एक गीत की दो पंक्तियाँ -" जिंदगी तो वेबफ़ा है एक दिन ठुकराएगी
मौत महबूबा है अपने साथ लेकर जाएगी "
जिंदगी से तो प्यार है मगर, मुझे भी "मौत" महबूब सरीखा ही लगता है जिसके साथ जाने के लिए मैं भी अपनी पोटली बांधे तैयार बैठी रहती हूँ।
लेकिन श्वेता जी की ये बात भी सही है कि-जब कोई अपना इस सफर पर जाने की बात करता है तो सारी दार्शनिकता धरी रह जाती है,दिल तड़प ही उठता है।
मगर ये सत्य है दी,यदि जीवन की भांति हम मौत को भी हर पल गले लगाने के लिए तैयार रहे तो आखरी सफर आसान हो जाता है।
आपकी कविता के एक-एक भाव को सत-सत नमन
अतुलनीय रचना - - जीवन सार जैसे इत्र की ख़ाली शीशी से उभर आया हो - - साधुवाद सह।
चलो मेरे साथ
और मैं चल पडूँ
हाथों में हाथ को थाम
बहुत सुंदर
प्रेम की भक्ति
जीवन का दर्शन
प्रेम झूमना चाहता है
जीवन अंत चाहता है
आपने दोनों के मिश्रित भाव को
अपनी रचना में बेहद खूबसूरती
से पिरोया है
अद्भुत
बधाई
आध्यात्म भावों का सुंदर समागम।
सुंदर रचना।
कर्म गठरियाँ बँधी पड़ी है
बस वही साथ में जायेगी।
सुंदर अति सुंदर।
नमस्कार आदणीया संगीता जी, इतनी दार्शनिकता कि ...अब मरने की कला सीख रही हूँ
आज कल मैं प्रेम में हूँ ...भला इस पर कोई क्या टिप्पणी कर सकता है...नि:शब्द हूं..क्या कहूं ..अद्भुत
वाह, सुंदर और भावपूर्ण
@ मर्मग्य जी ,शांतनु जी , मनोज जी , हिमकर श्याम जी
आप सबने रचना को सराहा ..ह्रदय से आभार ..
@@ कामिनी ,
अपनों के बिछोह से तो दर्द होता ही है ...लेकिन यहाँ बात स्वयं के तैयार होने की है ...
आपने इसके मूल भाव को समझा ... शुक्रिया ...
@@ ज्योति खरे जी ,
बहुत सुन्दर प्रतिक्रिया है आपकी ...सादर
@@ कुसुम जी ,
कर्म कि गठरियाँ तो न जाने कितने जन्म तक चलतीं साथ ... बहुत शुक्रिया ...
@@ अलकनंदा जी ,
आपके मन के भाव मन तक पहुंचे ... शुक्रिया ..
अरे हमें तो लगा आप हमें बुला रही हैं ! न...न... अंतिम पंक्तियाँ स्वीकार नहीं ! हमारे साथ चलिए हाथों में हाथ डाले ! खूब मज़े करेंगे !
आपने याद किया और हम दौड़े दौड़े चले आए भावनाओं की अभिव्यक्ति के इस उत्सव में सम्मिलित होने !😊
समझदार लोग ही मौत से प्रेम कर सकते है नासमझ तो हर वक़्त दहशत में ही जीते है ! प्रेम एक ऐसा संवेदनशील
दृष्टिकोण देता है जो देह के भीतर अदेही आत्मा है उसके दर्शन करवाता है ! माना कि यह प्रेम अभी स्वप्न है लेकिन
सच बन सकता है ! सुंदर रचना दार्शनिक भाव समेटे हुए !
@@ साधना जी , सुमन जी ,
आप लोगों के बिना अच्छा नहीं लग रहा था , इसी लिए आवाज़ लगा आयी थी । आप दोनों को यहां पा कर मन मुदित है । आभार ।
मृत्यु आने तक आलिंगन प्रेम का होना चाहए ... जीवन का होना चाहिए ...
मन के भाव मुखत भाव से लिखे हैं आपने ...
कविता तो खैर है ही बहुत सुन्दर लेकिन श्वेता और रेणु से आपका आगे जो संवाद चला पढ़ कर आनन्द आ गया...कविता को खूब विस्तार मिला...बधाई आपको ।
बहुत सुन्दर ..कितना कुछ कह दिया ... शब्दों में..
आजकल मैं प्रेम में हूँ ... सच ज़िन्दगी के अनगिनत उतार-चढ़ाव के बाद भी ये प्रेम कम नहीं होता ...
मृत्यु ! मैं तुझसे
भरपूर आलिंगन चाहती हूँ ....
इस पर मैं कुछ नहीं कहूँगी .... स्वस्थ मन मस्तिष्क रहे ... हम आपके प्रेम में रहें सदा 🙏🙏
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 10 मई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह इतनी सुंदर कविता, कभी सत्य को झूठला नही सकते
आपकी रचना और उस पर आयी प्रतिक्रियाओं के पढ़ने के बाद , कहम के लिए कुछ शेष बचता ही नहीं, जो कहा/लिखा जाए .. बस ! ... जिस दिन भी आ जाये अपने समय पर हँस कर आलिंगनबद्ध होने के लिए प्रतीक्षारत रहना है .. ना कि मायूस हो कर .. बस यूँ ही ...
अलग से हम पोटली नहीं सहेजते हैं , आपकी पोटली से काम चला लेंगे ..
वाह!!!
सचमुच मजा आ गया पहले लगा अरे!ये रचना मैंनेपहले क्यों न पढ़ी पर पढ़ते पढ़ते लगा कि अच्छा हुआ पहले ना पढ़ी...पहले पहल पढ़ लेती तो सारी प्रतिक्रियाएं न पढ़ पाती और जब सब पढ़ा तो बस निःशब्द हो गयी क्योंकि अब मैं भी प्रेम में हूँ....
लाजवाब🙏🙏🙏🙏
Post a Comment