क्या भूलूँ - क्या याद करूँ
>> Friday, March 12, 2021
क्या भूलूँ क्या याद करूँ ?
कब कब क्या क्या वादे थे
कुछ पूरे कुछ आधे थे
कैसे उन पर ऐतबार करूँ
क्या भूलूँ क्या याद करूँ ?
कुछ नन्हे नन्हें सपने थे
कुछ तेरे थे कुछ अपने थे
कैसे मन को समझाऊं ?
क्या भूलूं क्या याद करूँ ?
कुछ रोते - हंसते से पल थे
जिसके अपने अपने हल थे
कैसे दिल को मैं बहलाऊँ
क्या भूलूँ क्या याद करूँ ?
कुछ रिश्ते थे कुछ नाते थे
जिनके अपने अपने खाते थे
कैसे उनका हिसाब करूँ?
क्या भूलूँ क्या याद करूँ ?
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यादें
41 comments:
क्या भूलूँ क्या याद करूँ...वाह👌
जिन्हें हम भूलना चाहें वे ही सबसे ज्यादा याद आते हैं
बहुत सुन्दर
लिखा करो ले बद्ध कविता आप। आनंद आता पढ़ने में।
जो कभी विस्मृतियों में था वो बहुत कुछ याद किया है आपने सृजन में । अति सुन्दर और मर्मस्पर्शी।
वाह दीदी
बहुत बढ़िया
एक वक्त आता है, जब इन स्मृतियों के आगे व्यक्ति खुद को भूल जाता है
बेहतरीन, खूबसूरत रचना,बच्चन जी की पढ़ी किताब याद आ गई,जिसका शीर्षक भी यही है क्या भूलू क्या याद करूँ,संगीता जी आपको इस सुंदर रचना के लिए बधाई हो ।
बहुत सुन्दर रचना।
आभार अनिता जी ।
आहा दी क्या खूब लिखा है आपने
जीवन के खट्टे-मीठे पलों के स्वाद से भरी
लयबद्ध भावपूर्ण बेहद सुंदर रचना।
-----
मेरी भी चार पंक्तियाँ आपकी रचना के सम्मान में-
जीवन-मरण है सत्य शाश्वत
नश्वर जगत है अमर्त्य भागवत
कठपुतली ब्रह्म की कहलाऊँ
सर्वस्व भूल यह याद रखूँ?
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सादर प्रणाम दी:)
हर पल ही तो मेरा था
जिसने तुझको भी घेरा था
अब दोनों को आज़ाद करूँ
ना भूलूँ ना कुछ याद करूँ !!!!
बहुत सुंदर कविता जिसने ये आशु पंक्तियां रचवा दीं 😊😊😊👍👍👍👍
क्या खाते हैं और कैसे हिसाब करें.
मन ठहर कर सोचता है कई बार!
क्या भूलूँ क्या याद करूँ ?
कब कब क्या क्या वादे थे
कुछ पूरे कुछ आधे थे
कैसे उन पर ऐतबार करूँ
क्या भूलूँ क्या याद करूँ ?..बीती बातों और कोमल एहसासों में डूबी सुंदर रचना, अनुप्रास भी कमाल का है..
आप सब का ही हृदय से आभार ।
@ वाणी
आप हमेशा पंच लाइन पकड़ लेती हैं । इन खातों का ही हिसाब गड़बड़ा जाता है ।
@ श्वेता
जीवन मरण ही सत्य शाश्वत
बस इतना ही याद रखूं
इसी कश्मकश में हो कर
क्या भूलूँ क्या याद करूँ ।
@ मुदिता
आज़ादी पर पहरा हो
मन को भी तो घेरा हो
पल के बंधन छूट गए हों
मन पर यादों का फेरा हो ।
भला बताओ ऐसे में मैं
क्या भूलूँ क्या याद करूँ
अब लगता है सच ही में
न भूलूँ कुछ न याद करूँ।
प्यारी प्यारी टिप्पणियों के लिए बहुत सा स्नेह और शुक्रिया ।
मन ऐसा ही होता है संगीता जी । वैसे भी भूला क्या जा सकता है ? स्मृतियों के बिना जीवन में है ही क्या ? अच्छी कविता रची है आपने ।
बहुत बहुत सुन्दर मधुर रचना ।
कुछ धागों से, उन यादों को बुन लूँ,
भूले-बिसरे, उन वादों को चुन लूँ,
एहसास भरे ओ जीवंत पल, तुझको कैसे भूलूँ!
हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीया संगीता जी।
@ सभी पाठकों का अभिनंदन , स्वागत , शुक्रिया ।आप सबकी प्रतिक्रिया पढ़ कर मन प्रफ्फुलित हो रहा है । हृदय से आभार ।
@ जिज्ञासा ,
बहुत शुक्रिया इसे पढ़ कर विशेष टिप्पणी देने के लिए ।
@ जितेंद्र जी ,
स्मृतियों के बिना जीवन नहीं लेकिन ये ही दुखदायी भी होती हैं ।
@ पुरुषोत्तम जी ,
अहा , कितना सुंदर यादों को बुनना , वादों को चुनना ,बहुत प्यारा सा एहसास भर दिया
आपने । बहुत बहुत शुक्रिया ।
बहुत सुन्दर
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 13 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत सुन्दर रचना
Mere Blog Par Aapka Swagat Hai....
वाह बेहतरीन सृजन
बहुत सुंदर कविता। बच्चन जी आई की कविता की याद आ गई।
बच्चन जी की कविता जो उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखी है -
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
अगणित उन्मादों के क्षण हैं,
अगणित अवसादों के क्षण हैं,
रजनी की सूनी घड़ियों को
किन-किन से आबाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
याद सुखों की आँसू लाती,
दुख की, दिल भारी कर जाती,
दोष किसे दूँ जब अपने से
अपने दिन बर्बाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
दोनों करके पछताता हूँ,
सोच नहीं, पर मैं पाता हूँ,
सुधियों के बंधन से कैसे
अपने को आज़ाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
बहुत सुंदर सृजन है आपका! भाव पक्ष बहुत सुदृढ़।
आत्म मंथन करता सुंदर सृजन ।
अरुण चंद्र जी ,
बहुत आभार जो आपने इतने महान कवि की रचना मेरे अदने से ब्लॉग पर शेयर की ।
पुनः आभार
बहुत ही सुन्दर गीत आदरणीया 🙏
बहुत ही सुन्दर गीत आदरणीया
बहुत ही सुन्दर गीत आदरणीया
क्या भूलूँ क्या याद करूँ ?
कब कब क्या क्या वादे थे
कुछ पूरे कुछ आधे थे
कैसे उन पर ऐतबार करूँ
क्या भूलूँ क्या याद करूँ ',,,,,,,,,,,, बहुत ही सुंदर शब्दों का जादू दिल को छू लेने वाली रचना ।
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना, सारा का सारा अतीत ही एक स्वप्न है, फिर क्या छोड़ना और क्या रखना, सब समान है !!
बहुत बढ़िया और सुंदर गीत। आपको ढेरों बधाईयाँ।
बहुत खूब रचना आदरणीय दीदी , यादों का लेखाजोखा संजोती |यादें वेदा भी हैं तो अवचेतन मन का सुख भी | फिर भी यादें अनमोल पूंजी है विकल मन की | आपकी रचना को समर्पित -
तुम्हारी यादों का गाँव सुहाना है
वहाँ रोज़ का आना जाना है
जब जी चाहा जाकर बैठ गए
अपना कहाँ! ठौर ठिकाना है!
खिला वहाँ बसंत सदा
पतझड़ का कोई नाम नहीं ,
उपहार मिला जो प्यार तुम्हारा
अनमोल है कुछ भी दाम नहीं,
बेकार है सब -क्यों याद करें ?
क्या खोना है क्या पाना है!
तुम मिले तो कुछ पाया
फिर बीते दुःख क्यों याद करूं ?
ना कोई कामना शेष है अब
जो हाथ उठा फरियाद करूँ ?
कहाँ बात ये कोई नयी दिखे
जन्मों का ताना बाना है
तुम्हारी यादों का गाँव सुहाना है
वहाँ रोज़ का आना जाना है
अनेकानेक शुभकामनाएं और आभार दीदी | ब्लॉग जगत में सौहार्द का शंखनाद फूंकने के लिए | सादर -
बहुत ही सुन्दर सृजन - -
सभी पाठकों का हृदय तल से आभार . आप सबकी प्रतिक्रिया नव उल्लाह भर देती हैं .
@@ प्रिय रेणु ,
तुम्हारी इतनी प्यारी प्रतिक्रिया के लिए शब्द नहीं हैं फिर भी दिल से शुक्रिया . अभिभूत हूँ कि मेरी रचना को तुमने अपनी रचना समर्पित की, मेरी रचना का मान बढ़ गया .
यादों के इस गाँव में
ठंडी ठंडी छाँव में
तुम आओ या न आओ
यादों का आना जाना है
अपना यही ठिकाना है .
बहुत ही सुन्दर भावों को सहेजा है तुमने इस कविता में .
खुश रहें .
पता नहीं ऐसा लग तो रहा कि लिख सकती हूँ
तुम्हारी दीदी
संगीता
उल्लास पढ़ा जाय ।
यादों के इस गाँव में
ठंडी ठंडी छाँव में
तुम आओ या न आओ
यादों का आना जाना है
अपना यही ठिकाना है .👌👌👌👌👌
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏😊
हृदय स्पर्शी अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक प्रणाम ।
भूलना सम्भव भी कहाँ होता है ... छलावा रहता है बस भूलने का ...
मन को मनाने का ख्याल ...
अच्छी रचना .. दिल को छूते भाव ...
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