नमी आँखों की अब छुपा ली है
हर इक ख्वाहिश यूँ दिल में पाली है ।
पँखों में थी कहाँ परवाज़ भला
कदमों में ख़ुद की ज़मीन पा ली है ।
फकीरी में हो रहे यूँ मस्त मलंग
दिल से हसरत भी हर मिटा ली है ।
साकी की अब नहीं तलाश मुझे
मेरे हाथों में तो जाम खाली है ।
मुन्तज़िर मैं नहीं तेरे आने का
तू ही दर पर मेरे सवाली है ।
घड़ी बिरहा की अब टले कैसे
आयी दूजी लहर कोरोना वाली है ।
काटी हैं कई रातें तूने बिन मेरे
आज अर्ज़ी मैंने मगर लगा ली है ।
आईना तोड़ दिया झूठी अना का मैंने
मुद्दतों जिसकी वजह, हमने बात टाली है ।
34 comments:
पँखों में थी कहाँ परवाज़ भला
कदमों में ख़ुद की ज़मीन पा ली है ।....ओह ! सच में एक साँस में कई बार पढ़ गई...बहुत सुन्दर रचना🌹
पँखों में थी कहाँ परवाज़ भला
कदमों में ख़ुद की ज़मीन पा ली है ।....ओह ! सच में एक साँस में कई बार पढ़ गई...बहुत सुन्दर रचना🌹
आखिरी शेर कत्ल है ।
नमी आँखों की अब छुपा ली है
हर इक ख्वाहिश यूँ दिल में पाली है ... सत्यता का दर्शन करातीं सुंदर एहसासों से ओतप्रोत उत्कृष्ट रचना,मेरी कुछ पंक्तियां कोरोना के लिए ...
ख्वाहिशें लिए बैठे हैं हम घर के एक कोने में ।
बहुत गुजार लिया वक्त,तेरे नाम से रोने में ।।
बड़ी बेमज़ा कर दी जिंदगी तूने और तेरे नाम ने,
जा किसी और का हो जा, दर्द नही होगा तेरा मुझको,अब किसी और के होने में ।।... जिज्ञासा सिंह ।
कब बात निकली ,
कब सुरूर बढ़ा
कुछ मालूम नहीं
कब शायरी के गुलाबों से
महफ़िल महकी
ये भी मालूम नहीं
जाम की ज़रूरत
किस काफ़िर को है
ले जाएगी किधर
महकी बाद-ए-सबा
मालूम नहीं ।
एक एक शेर अनोखी अदा से है भरपूर
गीत, कविता की तरह ये ग़ज़ल निराली है!!
ख़्वाहिश पलती है दिल में इक तरफ तो हसरत मिटा ली है दूसरी तरफ, सवाली तू है मेरे दर का, मगर अर्जी मैंने लगा ली है, जीवन इसी द्वंद्व से बना है, बहुत खूबसूरत गजल !
आईना तोड़ दिया झूठी अना का मैंने
मुद्दतों जिसकी वजह, हमने बात टाली है ।
बह्त सुंदर अभिव्यक्ति, संगिता दी।
@@ उषा जी ,
बहुत बहुत शुक्रिया ।
@ शिखा ,
अब बस कत्ल ही करना 😆😆
@@ जिज्ञासा ,
बहुत सार्थक पंक्तियाँ कोरोना पर । बहुत बहुत शुक्रिया ।
@@ स्वरूप साहब ,
वाह ,वाह बस वाह । गज़ब की शायरी की है ।👌👌👌
@@ सलिल जी ,
बहुत बहुत शुक्रिया , पसंद करने के लिए ।
@@ अनिता जी ,
खूबसूरत टिप्पणी के लिए आभार ।
@@ ज्योति ,
शुक्रिया दिल से ।
मीना जी ,
चर्चा मंच के लिए चयन करने के लिए हार्दिक आभार ।
आईना तोड़ दिया झूठी अना का मैंने
मुद्दतों जिसकी वजह, हमने बात टाली है ,बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल लिखी है आपने
श्वेता ,
बहुत शुक्रिया ।
भारती जी ,
पसंद करने के लिए शुक्रिया
पँखों में थी कहाँ परवाज़ भला
कदमों में ख़ुद की ज़मीन पा ली है ।
फकीरी में हो रहे यूँ मस्त मलंग
दिल से हसरत भी हर मिटा ली है ।
बहुत भावपूर्ण रचना प्रिय दीदी! हर शेर अपनी कहानी कहता हुआ मन को स्पर्श करता है। हार्दिक आभार और बधाई🙏❤🌹🌹❤
प्रेम किया है तुमसे जबसे
एक पीर हिया में पाली है
सितम तुम्हारा सहते -सहते
प्रीत की रीत निभा ली है!
चकोर बने नित तुम्हें ताकते
तुम भँवरे से रहे सदा
उसी राह में जा मस्त हुए
जहाँ गंध मिली मतवाली है!
😄😃🙏🙏
@@ प्रिय रेणु ,
बहुत बहुत शुक्रिया सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए ---
प्रेम किया है तुमसे जबसे
एक पीर हिया में पाली है
सितम तुम्हारा सहते -सहते
प्रीत की रीत निभा ली है!
चकोर बने नित तुम्हें ताकते
तुम भँवरे से रहे सदा
उसी राह में जा मस्त हुए
जहाँ गंध मिली मतवाली है!
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बहुत खूब .... ग़ज़ल के अशआर को नए आयाम दे रहीं तुंहरी पंक्तियाँ ।।
सस्नेह
वाह वाह
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
बहुत सुन्दर और सार्थक ।
--
घड़ी बिरहा की अब टले कैसे
आयी दूजी लहर कोरोना वाली है ।
काटी हैं कई रातें तूने बिन मेरे
आज अर्ज़ी मैंने मगर लगा ली है ।
बहुत उम्दा...
बेमिसाल रचना ....
वाह ! कोरोना-बिरहा अब लोकगीतों की एक नई विधा के रूप में स्थापित होगा.
आईना तोड़ दिया झूठी अना का मैंने
मुद्दतों जिसकी वजह, हमने बात टाली है।..वाह!बहुत सुंदर आदरणीय दी।
घड़ी बिरहा की अब टले कैसे
आयी दूजी लहर कोरोना वाली है ।
बेबसी की ये घडी जल्द टल जाए बस यही दुआ है
आपको नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें दी
आदरनिया मैम, बहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना जो कोरोना की बेबसी और छाई उदासी को दर्शा रही है । कोरोना की दूसरी लहर के कारण हुए तालाबंदी ने सब का मन हताश कर दिया है। सभी लोग अपने प्रिय-जनों से मिलने के लिए व्याकुल हो रहे हैं और चिंतित मन से उनकी कुशलता की कामना कर रहे हैं पर कोरोना काल बहुत देर तक नहीं रहेगा , शीघ्र चला जाएगा, मुझे विश्वास है । वैसे कोरोना के बढ़ने में थोड़ी हमारी मूर्खता और अनुशासनहीनता भी कारण है । यदि दूसरी लहर का सामना हम पूरी सावधानी और अनुशासन से करें तो यह बीमारी भाग जाएगी। हृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए और मेरी बक-बक पढ़ने के लिए भी
वाह! लाजवाब हर शेर दूसरे पर भारी हैं,
कोरोना तो एक बहाना है
किसी दर्द ने फिर से करवट पाली है।
उम्दा ,बेहतरीन।
सुंदर सृजन सुंदर भाव।
हृदय स्पर्शी रचना।
@@ ओंकार जी , विमल कुमार जी , आलोक सिन्हा जी , शास्त्री जी ,
आप सबने मेरी इस रचना को सराहा । हृदय से आभार ।
@@ शरद जी ,
आपकी प्रतिजरिया हौसला देती है ।शुक्रिया ।
@@ गोपेश मोहन जैसवाल जी ,
जी दुरुस्त फरमाया , ये बिरह और कोरोना लोकगीतों में भी शामिल तो हो सकते हैं ।
@@ प्रिय अनिता ,
ग़ज़ल पसंद करने का शुक्रिया ।
@@ प्रिय कामिनी ,
यही प्रार्थना है कि ये घड़ी किसी तरह टल जाए ।शुक्रिया ।
@@ प्रिय अनंता
ये बक बक नहीं है , आज का सच है । बस सबकी प्रार्थना कुछ असर दिखा दे । पसंद करने के लिए शुक्रिया ।
@@ कुसुम जी ,
आपसे कुछ छिप नहीं सकता न , कोरोना तो एक बहाना है ।
तहेदिल से शुक्रिया ।
घड़ी बिरहा की अब टले कैसे
आयी दूजी लहर कोरोना वाली है ।
वाह!!!
काटी हैं कई रातें तूने बिन मेरे
आज अर्ज़ी मैंने मगर लगा ली है ।
एक से बढ़कर एक शेर...कमाल की गजल!!!
लाजवाब।
सुधा जी ,
पसंद करने के लिए आभार ...
अमित जी , ,
पोस्ट पसंद करने के लिए शुक्रिया ... मैंने हिंदी कविता साईट देखी .... क्या यहाँ अपने ब्लॉग की रचना भेज सकते हैं ? ये समझ नहीं आया ...
ज़िन्दगी के गहरे एहसास लिए ...
हर पल का हिस्साब कहाँ रख पाता है इंसान जीवन में ... ज़िन्दगी के फलसफे हैं ....
वाक़ई आप तो ग़ज़ल में भी माहिर हो !
सभी एक से एक सटीक शेर !
घड़ी बिरहा की अब टले कैसे
आयी दूजी लहर कोरोना वाली है ।
सच में ये तो बिरह की काली छाया और लम्बी होती चली जा रही है।
वाह क्या बात है ! बेहतरीन लफ्ज़ निकले हैं ।
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