राग - वैराग्य
>> Tuesday, April 20, 2021
नहीं जानती
पूजा के नियम
विधि - विधान ,
कब और किसकी
की जाय पूजा
इसका भी नहीं
मुझे कोई भान ।
हृदय के अंतः स्थल से
मैं बस
अनुरागी हूँ
स्वयं के ही
प्रेम में डूबी
वीतरागी हूँ ।
लोग सोचते हैं
प्रीत में वैराग्य कैसा
मुझे लगता है
वैराग्य नहीं तो
राग कैसा ?
जब भी हुआ है
आत्मा से
मिलन आत्मा का
मन्दिर के घंटों से
राग सुनाई देते हैं
ध्यान की अवस्था में तब
ब्रह्मांड दिखाई देते हैं ।
कहने को तो लोग
इसे भी कह देते हैं
पाखंड ,
लेकिन --
मेरा भी विश्वास है
अखंड
प्रेम पाने के लिए जब तुम
आत्मा की गहराई में जाओगे
नहीं रहोगे वंचित फिर
स्वयं को पूर्ण पाओगे ।।
41 comments:
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 21 अप्रैल 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
प्रेम पाने के लिए जब तुम
आत्मा की गहराई में जाओगे
नहीं रहोगे वंचित फिर
स्वयं को पूर्ण पाओगे ।।
सच्चे प्रेम की अनुभूति होना ही आत्माको पूर्णता प्रदान कर देता है।
अब वो प्रेम किसी और से हो या परमात्मा से या स्वयं से
आध्यत्मिक भाव से ओतप्रोत अत्यंत सुंदर भावभिव्यक्ति दी,आपकी लेखनी को सादर नमन
बहुत अच्छी कविता रची है यह आपने संगीता जी। अभिनंदं।
प्रेम पाने के लिए जब तुम
आत्मा की गहराई में जाओगे
नहीं रहोगे वंचित फिर
स्वयं को पूर्ण पाओगे ।।
वाह ! और क्या चाहिए भला...सुन्दर रचना !
प्रेम पाने के लिए जब तुम
आत्मा की गहराई में जाओगे
नहीं रहोगे वंचित फिर
स्वयं को पूर्ण पाओगे ।।
वाह ! और क्या चाहिए भला...सुन्दर रचना !
हाए री मैं तो प्रेम दीवानी। बहुत सुंदर कविता है दी।
जब मन वीणा बज उठती है,
तब सृष्टि रागमय होती है।
कटते हैं उर के बन्ध मलिन,
जगती जीवन की ज्योति प्रबल।
अंतस की गहराई से लिखी भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी
@@ आभार पम्मी ।
@@प्रिय कामिनी ,
कविता के माध्यम से मेरे मन के मर्म तक पहुँचने के लिए हृदय तल से आभार ।
@@ जितेंद्र जी ,
पसंद करने के लिए शुक्रिया ।
@@ उषा जी ,
आपकी तो वह में ही सब कुछ सिमटा हुआ है । आभार ।
@@ शिखा ,
प्रेम की हूँ या नहीं बस कविता पसंद आई तो मैं हुई दीवानी 😄😄😄😄.
@@ विमल जी ,
आपने तो निःशब्द ही कर दिया । आभार ।
@@ अनुपमा ,
कितने समय बाद मेरे ब्लॉग पर आना हुआ तुम्हारा । बहुत अच्छा लग रहा । शुक्रिया ।
जिसे जगत से विराग हुआ वही तो अनुरागी हो सकता है, और जो अनुरागी है उसे पूजा करनी नहीं होती उसकी हर श्वास ही पूजा है
प्रभु ध्यान धरुँ तो धरुँ कैसे
तुम आते दृगपट में झट से
है पूजा में निषिद्ध प्रेम नहीं
तो प्रीत ही जपना चाहती हूँ मैं
-----
अति सुंदर,पवित्र,पावन आत्मा का शाश्वत गान...बहुत सुंदर लिखे हैं दी।
सादर।
@@ अनिता जी ,
सही कहा जो जगत से बैरागी हुआ वही तो परमात्मा से अनुरागी हुआ .... आभार सुंदर विवेचना के लिए ।
@@ प्रिय श्वेता ,
आज तो जो तुम्हारे नैनों में बसा है फिर प्रभु का कैसे ध्यान धरोगी ? प्रीत जपो , बाकी पूजा अपने आप हो जाएगी । 😍😍
यह पूर्णता ही जीवन है ...
सब व्यर्थ है इसके आगे ... जिसने इस पूर्णता को पा लिए उसने कान्हा को पा लिया ...
बहुत सुंदर
बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना प्रिय दीदी! अखण्ड प्रेम को पाना बस खुद में ही खो जाना है! आत्म -साक्षात्कार मनुष्य को आत्मा से लेकर परमात्मा तक के दर्शन करा देता है! अध्यात्मिक भावों से भरी रचना के लिए सस्नेह शुभकामनाएं और बधाई 🙏🌹🌹💕💕❤❤
आध्यात्मिकता के सुंदर सरोवर में खिलता हुआ कमल की तरह आपकी सुंदर रचना खिल रही है,जो जीवन की संपूर्णता का बहुत सुंदर आयाम खींच रही है,आपकी लेखनी को सादर नमन ।मेरी कुछ पंक्तियां आपके सुंदर मनको समर्पित.....गुफाओं के समंदर में।
डूबकर आज अंदर मैं।।
धरा पर शीश ज्यों रखा।
नींद का आ गया झोंका।।
बजे घड़ियाल घंटे यूं।
मैं उनसे जा तनिक मिल लूं।।
यही सोचूं औ घबराऊं।
मैं उनसे मिल नहीं पाऊं ।।
बड़ा बेचैन मन मेरा।
लगाए हर तरफ फेरा।।
वहां तक पहुंच न पाये।
भरम में डालता जाए ।।
प्रभु कैसे मिलेंगे अब,
नही ये समझ में आए ।।
प्रेम पाने के लिए जब तुम
आत्मा की गहराई में जाओगे
नहीं रहोगे वंचित फिर
स्वयं को पूर्ण पाओगे ।।
अनुराग से वैराग्य.. वैराग्य से वीतराग ..और फिर , सम्पूर्णता की ओर ले जाती अद्भुत कविता । एक ओर अध्यात्म दर्शन , तो दूसरी ओर प्रेम की गहराई में डूबकर पाई सम्पूर्णता । वाह ।
सुंदर मन से लिखा गया भक्ति गीत |
बहुत ही सुन्दर
बहुत प्यारी रचना, प्रेम और अध्यात्म से जोड़ती हुई, आत्म साक्षात्कार से जीवन के रंग निखर जाते हैं
बहुत सुन्दर।
--
श्री राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
--
मित्रों पिछले तीन दिनों से मेरी तबियत ठीक नहीं है।
खुुद को कमरे में कैद कर रखा है।
आदरणीया मैम,
अत्यंत सुंदर संदेश देती हुई सुंदर रचना। सच प्रेम हम सब के भीतर ही है, यदि हम उसे अपने भीतर अपनी आत्मा में ढूंढ लें तो हम प्रेम पाने के लिए यहाँ -वहाँ नहीं भटकेंगे और अपने आप में पूर्णता का अनुबभव करेंगे । हृदय से अत्यंत आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम।
सुंदर और सही।
प्रेम पाने के लिए जब तुम
आत्मा की गहराई में जाओगे
नहीं रहोगे वंचित फिर
स्वयं को पूर्ण पाओगे ।।
बहुत सुंदर पंक्तियाँ। बहुत अच्छी रचना है दीदी।
@@ नासवा जी ,
आपकी प्रतिक्रिया से मन तृप्त हुआ । जिसका कान्हा फिर कुछ कमी नहीं । आभार
@@ ओंकार जी ,
बहुत बहुत शुक्रिया ।
@@ प्रिय रेणु ,
रचना की गहराई तक उतर तुमने अपने भाव व्यक्त किये ।
मन सम्पूर्ण हुआ ।
शुक्रिया । सस्नेह ।
@@ प्रिय जिज्ञासा ,
क्या बात है ....
तुम्हारी प्यारी और सारगर्भित पंक्तियों ने वाकई मन कँवल खिला दिए ।
बहुत सुंदर और भावपूर्ण पंक्तियाँ रची है ।
शुक्रिया । सस्नेह ।
@@ प्रिय संध्या
तुम्हारी टिप्पणी मेरी कविता को पूर्ण कर रही है । एक ओर जहाँ आध्यात्म की बात है तो दूसरी ओर प्रेम की और दोनो स्थिति में पूर्णता को दर्शाया है । कम शब्दों में पूर्ण व्याख्या कर दी है ।
आभार ।
सस्नेह दीदी ।।
सुंदर सार्थक रचना,
पूजा एक सेतु है हमारे चारों तरफ़ जो अस्तित्व की परम शक्ति है उससे जुड़ने का ! जिन लोगों ने पूजा के लिए ईश्वर की मूर्तियों का निर्माण किया उन मूर्तियों द्वारा अस्तित्व के उस परम शक्ति के प्रति सेतु बनाया होगा !
राग का अर्थ है वस्तुओं का आकर्षण विराग का अर्थ है उन वस्तुओं से दूर हटने का मन करना ! आकर्षण विकर्षण दोनों व्यर्थ लगने लगे तब वैराग्य !😊
@@ जय कृष्ण राय जी , मनोज जी , सुरेंद्र शुक्ल जी , शास्त्री जी ,देवेंद्र पांडे जी ,
आप सभी का हृदय से आभार ।
@@ प्रिय अनंता ,
सच कहा प्रेम तो अपने ही अंदर होता है ।। बहुत बहुत शुक्रिया ।
@@ प्रिय मीना ,
रचना पसंद करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।
@@ सुमन जी ,
आपकी व्याख्या कविता को नए आयाम दे रही है ।
आभार ।
हृदय के अंतः स्थल से
मैं बस
अनुरागी हूँ
स्वयं के ही
प्रेम में डूबी
वीतरागी हूँ ।
वाह!! यही तो जीवन की पूर्णता है । अति सुन्दर !!
प्रिय मीना ,
बहुत बहुत शुक्रिया ।
उस परमपिता परमेश्वर से जिसे राग हो जाय, उसने समझो अपनी नैया पार लगा ली
वैराग्य से ही राग उत्पन्न हो सकता है
बहुत सुन्दर
स्वयं के ही
प्रेम में डूबी
वीतरागी हूँ ।
वाह! सही मायने में प्रेम पथिक!!!
इसी पूर्णता को प्राप्त करने हेतु परमात्मा ने प्रेम जैसा पवित्रतम भाव सबमें भर दिया है । हृदय स्पर्शी अभिव्यक्ति ।
अंतर्यात्रा की इतनी सरल व्याख्या और इतना सहज मार्ग दिखलाती यह रचना मन को शांति प्रदान करती है!
प्रेम में डूबी
वीतरागी हूँ ।
लोग सोचते हैं
प्रीत में वैराग्य कैसा
मुझे लगता है
वैराग्य नहीं तो
राग कैसा ? ---बहुत अच्छी पंक्तियां...। खूब बधाई
प्रेम पाने के लिए जब तुम
आत्मा की गहराई में जाओगे
नहीं रहोगे वंचित फिर
स्वयं को पूर्ण पाओगे ।।
प्रेम ही परमात्मा का दूसरा रूप है आत्मा में जब प्रेम उतरता है तो आत्मा और परमात्मा एकाकार हो जाते हैं फिर पूर्णता तो निश्चित है...।
आध्यात्मिक भावों से सजी बहुत ही चिन्तनपूर्ण लाजवाब सृजन।
वाह!!!
बहुत गहन और दार्शनिक भाव. बहुत बधाई.
वाह, बहुत सुंदर रचना
बहुत ही गहरी रचना है , सुन्दर सृजन
आभार
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