स्याह रात
>> Tuesday, July 27, 2010
मेरी ज़िंदगी में,
अमावस क्यों है
स्याह रात की ये
तन्हाईयां क्यों हैं
चाँद भी आसमाँ पर
दिखता नही है
चाँदनी का भी कोई
नामों निशाँ नही है
तारों की झिलमिलाहट ही
सुखद लग रही है
जैसे कि ना जाने
कितने स्वप्न
आसमाँ पे टंग गये हैं
यहाँ से खड़ी मैं
देखती हूँ जब
जैसे कि सपने सब
जीवंत हो उठे हैं
सुकून मिलता है
उन सपनों को देखने से
लगता है कि ज़िंदगी में
पूर्णिमा आ गयी है
पर ----
सपने तो बस सपने हैं
हक़ीकत में तो--
ये स्याह रात आ गयी है..
41 comments:
पर ----
सपने तो बस सपने हैं
हक़ीकत में तो--
ये स्याह रात आ गयी है..
....man mein jab dard kee hook uthti hai to har tarf syaah raat nazar aane lagti hai...
Vedana ko bakhubi mukhrit kya hai aapne.
Haardik shubhkamnayne
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Jo syaah raat se guzarte hain,wahi aisi khoobsoorst rachana kar sakte hain....dard jhele bina dard kaa aisa anootha bayan kaun kar sakta hai?
स्याह रात के स्याह अन्धेरे
हर ख्वाब को निगल जाते हैं
और रह जाती हैं सिर्फ़ और सिर्फ़
सिसकती , तडपती स्याह रातें
बेहद गहन अभिव्यक्ति………………।दर्द की अनुभूति का गहन चित्रण्।
स्याह रात के बाद पूर्णिमा भी आती है और सुबह भी पर उनका एहसास अधूरा ही रह जाये अगर स्याह रात न हो ..
बहुत दर्द भरी अभिव्यक्ति ..सुन्दर.
ज़िन्दगी एक ख़ाब है ......!
सपने तो बस सपने हैं
सपने जो अपने है
महज़ वो सपने हैं
अत्यंत भावपूर्ण रचना
स्वप्नों की पूर्णिमायें एक दिन आयेंगी।
बहुत सुन्दर रचना ... दर्दभरी अनुभुतियों को समेटे हुए ...
नमस्कार दी...
जीवन मैं अमावस है तो...
संग पूर्णिमा भी तो रहती...
अगर निराशा आये भी तो...
संग मैं आशा भी तो रहती...
भले स्वप्न देखे हों तुमने..
और पूर्णिमा लगी तुम्हें...
मगर रात गर स्याह रही हो..
आशा संग मैं रही बसे...
दीपक...
स्याह रात के बाद भी
चमक सूर्योदय की फैलेगी जरुर
दिन तो निकलेगा ही
पूर्णिमा सपनीली न रहकर
सच में छटा बिखेरेगी जरुर
यही चक्र है
सपने तो बस सपने हैं
हक़ीकत में तो--
ये स्याह रात आ गयी है..
सपने तो बस सपने हैं
हक़ीकत में तो--
ये स्याह रात आ गयी है..
अच्छी लगी ये कविता पर हर स्याह रात के बाद सवेरा तो आना ही है भले कुछ इतजार ही क्यों न करना पड़े
सपने तो बस सपने हैं...Kya baat hai .....
Bahut hi achhi kavita hai.Padhkar bahut achha lagaa.
आज खाबों की मल्लिका रातों की स्याही में कैसे उलझ गयी???? कोई दिन कभी एक समान रहे हैं...? धूप के बाद छाँव का आना लाज़मी है.
संगीता दी,
जऊन आदमी के किस्मत में अमावस लिखा है, जो पूरनमासी से जनम जनम से बिछड़ा हुआ है, जिसके जीबन में अंधकार भरा हुआ है... ऊ बेचारा आपका कबिता का सितारा में छन भर के लिए उजाला देखकर खुस हो गया था... उसको लगा कि दूर टिमटिमाने वाला तारा पूरनमासी का चाँद है... लेकिन अंतिम पंक्ति तक आते आते बेचारा का सब सपना टूट गया... सच्चाई से भरपूर ईमानदार रचना (हमेसा के तरह).
सलिल
जैसे कि ना जाने
कितने स्वप्न
आसमाँ पे टंग गये हैं
झिलमिल तारों की झिलमिलाते सपनो से
तुलना... काबिल-ए-तारीफ़ है.
पर हाथ स्याह रात ही आती है...एक कडवी हकीकत
अच्छी अभिव्यक्ति ,सपने साकार भी होते हैं ।
तारों की झिलमिलाहट ही
सुखद लग रही है
जैसे कि ना जाने
कितने स्वप्न
आसमाँ पे टंग गये हैं
ye baat sabse achhi hai mummaa....... :)
हक़ीकत में तो--
ये स्याह रात आ गयी है..
आपकी कविता पढकर दुबारा आया हूं, आप तो बंगाल में रह चुकी हैं, तो गुरुदेव की कुछ पंक्तियां आपको समर्पित करने के लिए आया हूं --
यदि आलो ना घरे, ओरे, ओरे, ओ अभागा-
यदि झड़ बादले
आधार राते दुयार देय धरे-
तबे वज्रानले
आपुन बुकेर पांजर जालियेनिये एकला जलो रे!
यदि तोर डाक शुने केऊ न आसे
तबे एकला चलो रे।
स्याह रात ! जब रातें स्याह लगे तब उन सपनों की पूर्णता पैर भरोसा करें, काली रात ही कृष्ण के आने की सूचना देती है न
सुन्दर गहन अभिव्यक्ति!!
चूर चूर हुए ख़्वाब, बिखरे हैं तारों की शकल में, पूरे आसमान में… बस सुबह के चिराग की तरह रोशनी की एक झलक दिखाकर बुझ जाने को...अंजाम एक ही..टूटे ख़्वाब, और तारीक अंधेरा!!
बहुत ख़ूबसूरत वर्णन.
सपने तो बस सपने हैं
हक़ीकत में तो--
ये स्याह रात आ गयी है..
:( :(
एकदम सच्ची कविता,लेकिन सुबह आएगी ना...
रात स्याह और काली छाया,
सूरज से पहले की माया.
किरणे लेती क्षणिक परीक्षा,
तम से कौन बली लड़ पाया.
स्याह रात भी जिंदगी का एक रूप है..सुख और दुख दोनों साथ साथ चलते है..सुंदर रचना बधाई
Syah rat..........
Rat tabhee gehratee hai jab bhor najdeek ho.
Rat jitani bhee sangeen hogee subah utani hee rangeen hogee. Rat bhar ka hai mehman andhera kiske roke ruka hai sawera.
Bahut acchee rachna...
Sunder bahv....
Agar chand par aasheeyana bnane kee baat ho....
to.....
Shabdon ka Ujala aa karke....puree kee ja saktee hai.
http://shabdonkaujala.blogspot.com
दर्द की अनुभूति का गहन चित्रण्
चाँद भी आसमाँ पर
दिखता नही है
चाँदनी का भी कोई
नामों निशाँ नही है
किसी की आंतरिक व्यथा को आपने शब्दों में ढाला है!...वाह!... बहुत बढिया कृति!
सब मन कि कल्पना से होता है. अगर अमावस्या को पूर्णिमा समझ कर जिए तो वही लगेगी. प्रकृति के संग खेल कर रचना बहुत सुन्दर लगी.
सुन्दर अभिव्यक्ति………………
बहुत भावपूर्ण रचना...
उन सपनों को देखने से
लगता है कि ज़िंदगी में
पूर्णिमा आ गयी है
पर ----
सपने तो बस सपने हैं
हक़ीकत में तो--
ये स्याह रात आ गयी है..
यह पंक्तियाँ बहुत दिल को छू गयीं....
sundar bhav
स्याह रात -प्राची पर देखिये लालिमा दीखने लगी है !
ह्म्म्म.. विरोधाभासी कविता...
बहुत खूब कहती हैं आप।
--------
सावन आया, तरह-तरह के साँप ही नहीं पाँच फन वाला नाग भी लाया।
बहुत सुन्दर रचना ..
संगीता आंटी..
यूँ लगा..अंतर्मन के संदूक से निकाल लायीं हैं आप..!!!
आप की रचना 30 जुलाई, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
http://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
syah raat ke (amawas) baad hi to aati hai puranmaasi ki raat ,jo andheri raat ki kaalima ko
kam kar deti hai..aur fir ujale man ke saath hiswapn punah aankho ke saamne tairne lagte hain.
bahut hi prabhavshali dard ki gahan anubhuti.
poonam
पर ----
सपने तो बस सपने हैं
हक़ीकत में तो--
ये स्याह रात आ गयी है.
adbhut rachna
जब मन अवसाद से घिरा होता है तो ऐसे विचार आते हैं मगर इन्हें झटक देना चाहिए. इनसे किसी का भला नहीं होगा.
स्याह रात के बाद सुन्दर उजाला भी तो आयेगा..खूबसूरत भावाभिव्यक्ति..बधाई.
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