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ज़रा मैं भी तो देखूं ! ..

>> Tuesday, July 20, 2010


चाँद हूँ वो  

जो अँधेरी रातों से 

मुहब्बत करता है

अंधकार  हूँ  वो 

जो गगन के तारों से 

मुहब्बत करता है

तन्हां हूँ 

खुद जिसे 

तन्हाई से मुहब्बत है

और 

उजाला भी हूँ 

जिसे किरण से 

मुहब्बत है

मौसम की 

नजाकत को तो 

समझ नहीं पाया 

ये दिल

बस बादल की तरह 

बरस धरती से 

गया मिल

समंदर हूँ 

वो जिसकी 

हर लहर प्यासी है

नदी हूँ वो  

जो पानी के लिए 

उदासी  है

मौज  हूँ वो 

जो हर तूफ़ान से 

टकराती  है

तितली  नहीं  हूँ 

जो हर फूल पर 

मंडराती है

वो  गुलाब   हूँ 

जो हमेशा 

काँटों का साथ 

निभाता है

कमल हूँ ऐसा 

जो कीचड़ में भी 

खुद को खिलाता है

तो  ऐ 

मुहब्बत करने वाले    

कभी   तू   हमसे भी तो 

आ कर मिल

मैं भी तो देखूं  

ज़रा कैसा होता है 

मुहब्बत भरा दिल  |







39 comments:

मुदिता 7/20/2010 5:30 PM  

कमाल है बस..!!!! क्या चैलेन्ज दिया है वाह....और क्या व्यक्तित्व उभारा है....मजा आ गया पढ़ के...:)

दिगम्बर नासवा 7/20/2010 5:38 PM  

मुहब्बत करने वाले
कभी तू हमसे भी तो
आ कर मिल
मैं भी तो देखूं
ज़रा कैसा होता है
मुहब्बत भरा दिल

बहुत खूब ... मुहब्बत करने वाले बस दूर से ही तरसाते हैं .... अच्छा उलाहना है रचना में ....

Avinash Chandra 7/20/2010 5:47 PM  

ohhhhhhhh

ye kya hai???

waah..


मैं भी तो देखूं

ज़रा कैसा होता है

मुहब्बत भरा दिल

ab to bas koi mukabla nahi de sakta :)

M VERMA 7/20/2010 5:56 PM  

समंदर हूँ
वो जिसकी
हर लहर प्यासी है
क्या खूब विरोधाभास दर्शाया है
बहुत खूब

vandana gupta 7/20/2010 5:57 PM  

मोहब्बत भरे दिल को बुला लिया ………………सच बहुत ही सुन्दर भाव भर दिये हैं ……………मोहब्बत तो कैसे भी की जा सकती है और उसे आपने बहुत ही खूबसूरती से संवारा है……………एक बेहद सुन्दर भावभरी प्रस्तुति।

अनामिका की सदायें ...... 7/20/2010 5:59 PM  

तन्हां हूँ
खुद जिसे
तन्हाई से मुहब्बत है
और
उजाला भी हूँ
जिसे किरण से
मुहब्बत है

सच में कैसा व्यक्तित्व है जो समझ ना आये ........!

बहुत संजीदा कविता है.

अंधेरो से मुहोब्बत का जज्बा भी है..
तहाई और उजालो से भी इश्क है
मौसम की नजाकत का पता नहीं
फिर भी धरती से मिलने चला आया
सागर हो के भी प्यासा है
हर तुफा से लड़ने का मादा भी है
काँटों में भी खिलना आता है
इन सब की गलियों से वास्ता है
मगर मुहोब्बत भरे दिल को
अब तक जाना नहीं है .....

वाह क्या बात है तो जनाब मिल लीजिये न
कौन कमबख्त रोक रहा है. देखिये..और आजमाइए.

संजय भास्‍कर 7/20/2010 6:38 PM  

एक बेहद सुन्दर भावभरी प्रस्तुति।

aruna kapoor 7/20/2010 6:56 PM  

वाह!...मुहब्बत चीज ही ऐसी है संगीता जी...जो होती हर जगह है, पतो ऐ


मुहब्बत करने वाले


कभी तू हमसे भी तो


आ कर मिल


मैं भी तो देखूं


ज़रा कैसा होता है


मुहब्बत भरा दिल |


वाह!...मुहब्बत चीज ही ऐसी है संगीता जी...जो होती हर जगह है, पर मिलती मुश्किल से ही है!...उत्तम रचना, बधाई!

Apanatva 7/20/2010 7:10 PM  

udasee ke mood se nikal ye challenging attirude ..........bahut accha laga......prakruti ke kai roop hai poonam hai to amavas bhee hai........andheree raat me aasmaan ke aangan me kreedha karte masoom tare ......poonam kee raat se kum khoobsoorat nahee...........
aur ek baat sangeeta jee dukh sukh sunderta pyar sub hum me hai .........
baahar kuch nahee...... mahsoos karne ke drushtee chahiye..............

mai london jaa rahee hoo.sep last wk me hee vaapsee hogee .......
comment dene me shayad regular nahee rah ppaaoo........
shubhkamnae.....
ab isee mood me rahiye.......
challenging aur positive............

shikha varshney 7/20/2010 7:12 PM  

अरे कहाँ कहाँ ढूंढ रही हो ? अपने अंदर झाँक कर देखो वहीँ मिलेगा एक बे इन्तहां मोहब्बत भरा प्यारा सा दिल :)
गज़ब लिखा है दी !

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" 7/20/2010 7:20 PM  

सुन्दर अभिव्यक्ति !

रचना दीक्षित 7/20/2010 7:25 PM  

उत्तम रचना !!!अरे संगीता जी जो अनामिका और शिखा ने कहा वही मैं भी कहती हूँ:) कुछ न हो तो मुझसे मिलने आ जाओ (:!!!!!!!

रश्मि प्रभा... 7/20/2010 7:25 PM  

बहुत ही जिंदादिल रचना

डॉ टी एस दराल 7/20/2010 7:34 PM  

बहुमुखी रूप को प्रदर्शित कर रही है यह रचना ।
बस मोहब्बत भरे दिल ही मुश्किल से मिलते हैं ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 7/20/2010 7:53 PM  

मैं भी तो देखूं

ज़रा कैसा होता है

मुहब्बत भरा दिल |
--

वाह बहुत बढ़िया!
--
इतने पेंचोखम के बाद
आखिर अन्तर बात सामने आ ही गई!

rashmi ravija 7/20/2010 8:09 PM  

वो गुलाब हूँ

जो हमेशा

काँटों का साथ

निभाता है

कमल हूँ ऐसा

जो कीचड़ में भी

खुद को खिलाता है

क्या बात है...बहुत बढ़िया...

सम्वेदना के स्वर 7/20/2010 8:15 PM  

संगीता दी,
क्या परिचय दिया है आपने अपना और आख़िर में चुनौती... इसके बाद तो कीचड़, भँवरे, सागर, नदिया, काँटे, किरणें, तूफ़ान टाइप तो सब किनारा कर लेंगे… चैलेंज तो वही स्वीकार करेगा जिसमें आग का दरिया तैर कर पार करने का हौसला हो.
मज़ा आ गया!
सलिल
पुनश्चः आपने मौज को पुल्लिंग लिखा है
“मौज हूँ वो
जो हर तूफ़ान से
टकराता है “
लेकिन मौज स्त्रीलिंग होना चाहिए
“तू गंगा की मौज,
मैं जमुना का धारा”
मेरी भूल भी हो सकती है.

संगीता स्वरुप ( गीत ) 7/20/2010 8:20 PM  

सभी पाठकों का आभार....

@ सलिल ..
शुक्रिया...सोचा तो मैंने भी था...तुमने सही जगह शब्द को पकड़ा है...कुछ करती हूँ ...शुक्रिया

प्रवीण पाण्डेय 7/20/2010 9:22 PM  

इतना प्यार दिल में रहेगा तो छलकेगा ही, कविता ते रूप में।

मनोज कुमार 7/20/2010 9:57 PM  

अच्छा चैलेंज दिया है। देखें कौन स्वीकार करता है!
प्रेम एक बड़ी शक्ति है परन्‍तु पवित्र प्रेम करने के लिए बहुत शक्ति चाहिए।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने 7/20/2010 11:02 PM  

एतना बड़ा चैलेंज के लिए उससे भी बड़ा भूमिका... आदमी देखिए के डरा जाएगा... लेकिन एक बात बोलें.. ई मोहब्बत का जंग में हारने वाला भी अक्सर जीत जाता है... मन खुस हो गया..

राजकुमार सोनी 7/21/2010 12:20 AM  

क्या लिखूं..
अपनी शानदार रचनाओं के जरिए आप सबको लगातार खामोश करते जा रही है.
मैं तो आपकी रचनाओं को पढ़कर हर बार किसी दूसरी ही दुनिया में पहुंच जाता हूं
यह रचना बहुत ही उम्दा है.

Sadhana Vaid 7/21/2010 12:39 AM  

बहुत ही बढ़िया रचना है संगीताजी ! अपना वजूद बड़े दम ख़म के साथ स्थापित करती और हौसले के साथ मोहब्बत भरे दिल वालों को चुनौती देती स्त्री का यह रूप बहुत भाया वरना तो हर वक्त उसे आँसू पीते या बहाते ही अभी तक कविताओं में पढ़ा है ! बहुत सशक्त और सुन्दर रचना है ! बधाई एवं शुभकामनाएं !

Anonymous,  7/21/2010 5:10 AM  

बेहतरीन अभिव्यक्ति

अजय कुमार 7/21/2010 7:19 AM  

एक व्यक्तित्व के बहुत से पहलुओं का अच्छा वर्णन ।

वाणी गीत 7/21/2010 8:05 AM  

काटों का साथ निभाता है गुलाब ,
कीचड में भी खिलता है कमल
वो तितली भी नहीं जो हर फूल पर मंडराती है ...

मुहब्बत से सरोबार कविता ...सुबह सुहानी हो गयी ..!

स्वप्निल तिवारी 7/21/2010 1:06 PM  

मैं भी तो देखूं

ज़रा कैसा होता है

मुहब्बत भरा दिल |
Read More: http://geet7553.blogspot.com/2010/07/blog-post_20.html

ye to badi zordar line hain mumma...hehe..itna sab kuch kahne aur hone ke baad muhabbat bhara dil dekhna...waaah

KK Yadav 7/21/2010 1:12 PM  

बहुत सुन्दर भाव...लाजवाब रचना..बधाई.

Akanksha Yadav 7/21/2010 2:49 PM  

तन्हां हूँ
खुद जिसे
तन्हाई से मुहब्बत है
...Beautiful...!!

Dr. Zakir Ali Rajnish 7/21/2010 5:01 PM  

रूमानी भावों की लाजवाब प्रस्तुति है। संगीता जी हार्दिक बधाई।
………….
संसार की सबसे सुंदर आँखें।
बड़े-बड़े ब्लॉगर छक गये इस बार।

निर्मला कपिला 7/22/2010 11:27 AM  

मुहब्बत करने वाले
कभी तू हमसे भी तो
आ कर मिल
मैं भी तो देखूं
ज़रा कैसा होता है
मुहब्बत भरा दिल
वाह क्या बात है इतना सुन्दर बुलावा हो तो कोई क्यों न मिले? खूबसूरत रचना, बधाई।

पूनम श्रीवास्तव 7/22/2010 12:56 PM  

ek behad hi bhavpurn avam utkrist prastutikaran.
bahut hi khoobsurat.

poonam

डॉ. जेन्नी शबनम 7/22/2010 8:48 PM  

sangeeta ji,
bas kamaal hai, samast sansaar ki khoobsurti aur uske mohabbat ko aapne lalkaar diya, waah...taye hai koi na jeetega. bahut sundar rachna, jo man me sfurti bhar diya...

मुहब्बत करने वाले
कभी तू हमसे भी तो
आ कर मिल
मैं भी तो देखूं
ज़रा कैसा होता है
मुहब्बत भरा दिल |

shubhkaamnaayen.

Satish Saxena 7/22/2010 9:08 PM  

एक तड़प और दमन का अहसास दिलाती यह रचना सोचने को मजबूर करती है

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार 7/23/2010 8:55 AM  

समंदर हूं वो
जिसकी
हर लहर प्यासी है !
नदी हूं वो
जो पानी के लिए
उदासी है !


बहुत सुंदर !
कथ्य और भाव की संप्रेषणीयता देखते ही बनती है ।
वाह वाह !


आदरणीया संगीता स्वरूप जी
इतनी युवा रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।


- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

प्रतिभा सक्सेना 7/23/2010 9:30 AM  

आपकी कविताएं भाव और भाषा दोनों दृष्टियों से प्रभावित करती हैं .

रेखा श्रीवास्तव 7/23/2010 3:19 PM  

मुहब्बत करने वाले


कभी तू हमसे भी तो


आ कर मिल


मैं भी तो देखूं


ज़रा कैसा होता है


मुहब्बत भरा दिल |

बस चूक गए मिलते मिलते नहीं तो दिखा ही देते दिल की ये होता कैसा है?

Pawan Kumar 7/23/2010 5:06 PM  

आदरणीया
, क्या ही खूब रचना है.... नए विम्बो से रची बसी रचना है.....!
चाँद हूँ वो
जो अँधेरी रातों से
मुहब्बत करता है

अंधकार हूँ वो
जो गगन के तारों से
मुहब्बत करता है

तन्हां हूँ
खुद जिसे
तन्हाई से मुहब्बत है

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