उदासी की धुंध
>> Tuesday, January 11, 2011
छिटकी थी चाँदनी
मेरे आँगन में,
और चमका था
एक सितारा
मेरे आसमान पर,
चौंधिया दिया था
उसने अपनी चमक से,
आतुर था जैसे
आगोश में मेरे
आने को .
दिया था सहारा
मैंने अपनी हथेली से,
और रख लिया था
अपनी तर्जनी पर उसे,
लेकिन
चंचल था बहुत वो
गज़ब का,
छुड़ा कर अंगुली मेरी
गुम हो गया
ना जाने कहाँ ?
चमक भी छुपा ली है
उसने अपनी,
चाँद को भी अब
वो दिखता नहीं है,
मेरी आँखों में भी
भर गया है धुआँ सा,
अब वो किसी को भी
नज़र आता नहीं है ....
चाँदनी भी आँगन की
सिमट गयी है,
चादर एक उदासी की
बिछ गयी है,
कोशिश कर रही हूँ
पार देखने की
कोशिश है इस
चादर को झटकने की ...
68 comments:
कोशिश कर रही हूँ
पार देखने की
bahut sunder rachna...
mere blog par
"main"
विषाद के क्षण में मन की अभिव्यक्ति .. तारा कही छुपा है बादलों के पीछे और वो जरुर दिखेगा . इश्वर की बिछायी उदासी की चादर . जल्दी ही खुशियों से भर जाए ऐसी दुआ होगी . कविता में छुपे भावो से मन में उदासी छा गयी .
छिटकी थी चाँदनी
मेरे आँगन में,
और चमका था
एक सितारा
मेरे आसमान पर,
चौंधिया दिया था
उसने अपनी चमक से,
आतुर था जैसे
आगोश में मेरे
आने को .
बेहतरीन रचना है...
फिर चमकेगा सितारा,आएगा हथेली पर फिर
छटेगा धुंआ और छिटकेगी चांदनी जरुर फिर
हौसला रखो हर रात की सुबह होती है....
बहुत मर्मस्पर्शी रचना दि !
चाँदनी भी आँगन की
सिमट गयी है,
चादर एक उदासी की
बिछ गयी है,
कोशिश कर रही हूँ
पार देखने की
कोशिश है इस
चादर को झटकने की ...
koshishen nakamyaab nahi hoti , tabhi to udaasi ke gahwar se ehsaason kee chaandni chhitki hai
चंचल था बहुत वो
गज़ब का,
छुड़ा कर अंगुली मेरी
गुम हो गया
ना जाने कहाँ ?
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ।
बहुत सुन्दर!
उदास मन रचयित सुन्दर भाव पूर्ण रचना !
चंचल था बहुत कहाँ गम हो गया अंगुली छुड़ा कर ...
कोहरे की धुंध में गम हो शायद ...
कोहरा छंटते ही फिर नजर आये ...
रचना की उदासी और कैसे मिटायें ...!
chaadar ko jhatkna bahut zaroori aur koshish humesha kaamyab hoti hai mumma...
luv u
पार देखने की
कोशिश है इस
चादर को झटकने की ...
sundar rachna
BEHAD SUNDAR......
ROHIT
प्रभावशाली रचना!!
मेरी आँखों में भी
भर गया है धुआँ सा,
अब वो किसी को भी
नज़र आता नहीं है ....
चाँदनी भी आँगन की
सिमट गयी है,
चादर एक उदासी की
बिछ गयी है...
बहुत उम्दा रचना है...बधाई.
वाह बेहतरीन रचना....
बधाई स्वीकार करें..!!
करुणा और वेदना की अभिव्यक्ति ...!
लेकिन
चंचल था बहुत वो
गज़ब का,
छुड़ा कर अंगुली मेरी
गुम हो गया
ना जाने कहाँ ?
Kya gazab likhtee hain aap!
बहुत बार पढ़ा और ये निष्कर्ष निकाला कि बहुत बड़ी गलती है आप की!
उदासी की चादर झटक कर उठ जाईये, जगत विशाल है।
दीदी,
हर चादर झटक जाती है हर धुंध छंट जाती है.. सितारा नहीं सूरज चमकता है... चांदनी कि चमक भी खिलखिला उठती है... :) :)
कोशिशें कामयाब होती हैं....सितारों से झोली भर जायेगी...इसी चादर को भर देंगे सितारे अपनी चमक से..और उदासी कहीं नज़र भी नहीं आएगी....
सुन्दर अभिव्यक्ति मनोभावों की...
बेहद भावपूर्ण रचना ...... सुंदर प्रस्तुति.
चंचल था बहुत वो
गज़ब का,
छुड़ा कर अंगुली मेरी
गुम हो गया
ना जाने कहाँ ?
सुन्दर अभिव्यक्ति!
koshish us paar dekhne ki jari rakhiye is baar koi dhruv tara jaroor dikhayi dega.
sunder bimbo se man ke bhaavo ko saja kar prabhaavshaali rachna ka srijan kiya hai.
यह भ्रम थोड़ी देर का है ,सितारा वहीं है. धुंध छँटेगी,निर्मल आकाश में सितारा फिर चमकेगा .
चांदनी के भूत और वर्तमान को बताती अच्छी कविता.
अज्ञेय साहब की "कतकी पूनो" की याद हो आयी. स्कूल में नवीं या दसवीं में पढी थी कभी.
मजेदार.
चंचल चंद्रिका की चंद किरणों से बुनी चादर के पार देखना, खुशनसीबो को ही नसीब होता है....
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ।
.........खूबसूरत तारीफ़ के लिए शब्द कम पड़ गए..
कई दिनों बाद आपने पोस्ट बदली .संभवतः व्यस्त रही होंगी.आपकी एक सुन्दर-सी कविता पुनः पढ़ने को मिली.मन वाह वाह कर उठा. बधाई.
धुन्ध के पीछे गहन भावों की चांदनी भी है जो शब्दों के झरोखों से उतर कर पूरी कविता में समां गयी है !
कविता की बुनावट बेहद प्रभावशाली है !
साभार ,
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
क्या ये उदासी की चादर है ?
बेहद भावपूर्ण प्रस्तुति...
बेहतरीन रचना है.
bahut achchi lagi.
उस सितारे को तो हम सभी खोज रहे हैं, वह है ही ऐसा छलिया झलक दिखा कर छुप जाना उसकी आदत है पर उसे खोजना भी कितना मधुर है !
हर उदासी के बाद एक खुशी का उजाला होता है। सुन्दर एवं भावना से ओत प्रोत रचना। आभार।
इस बार मेरे ब्लाग पर प्यार।
बेहतरीन रचना
उदास मन की सुन्दर भाव पूर्ण बहुत उम्दा रचना ,बधाई...
बहुत सुन्दर!!
संगीता स्वरूप जी!
आपने तो गागर में सागर समा दिया आज की रचना में!
उम्दा शब्दों का चयन किया है आपने!
sangeeta di
apni is kavita ke dwara man me chhipi vytha kahin -kahin jhalkti hai .
bahut hi gahan anubhuti ke sathmarm-sparshi rachna.
bahut hi sashkt
behatreen abhivykti
sadar abhinandan
poonam
सुन्दर रचना प्रस्तुति....आभार
बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढने को मिली..
बहुत ही बेहतरीन.....
नए साल की शुभकामनाएं...
बुढ़ापा.. ..
दुःख भरी रचना ..
उदासी की धुंध जल्दी मिट जायेगी
फिर नहायेगा चाँद चांदनी से..
फिर रात को भी होगी चांदनी
और दिन को उजाला जीवन का खुशियों का ..
सुन्दर रचना आपकी ..आपको शुभकामना ( खुशिया की बरसात हो )
awww.....shoo shweet :) bohot acchi nazm hai dadi...first half bohot hi pyaara pyaara sa hai, aur aakhir mein to....bohot hi sundar nazm hai :)
आज इतनी उदासी और इतना दर्द कैसे? क्या हो गया?
छुड़ा कर अंगुली मेरी
गुम हो गया
ना जाने कहाँ ..
वो सितारा अगर अपना है तो जरूर वापस आयेगा अपनी चमक बिखेरने... अगर नहीं आया तो अपना था ही नहीं, बस एक छलावा था
मंजु
जो तारा उँगली छुड़ा कर चला गया उसका मोह कर उदास मत होइए ! कदाचित उसका गंतव्य कहीं और नियत होगा ! ईश्वर ने आपके आँगन को उससे भी कहीं अधिक तेजस्वी तारे से आलोकित करने की योजना बनायी होगी ! उसके सफलीभूत होने की प्रतीक्षा कीजिये ! बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना !
पार देखने की
कोशिश है इस
चादर को झटकने की ...
बेहद मार्मिक और दिल से निकली बातें सितारे की अनुपस्थिति में भी उसे अगर याद करें तो आँखों में चमक और रोशनी आ ही जाती है
संगीता स्वरुप जी, छुड़ा कर अंगुली मेरी गुम हो गया
ना जाने कहाँ ..बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
बहुत मार्मिक और भावपूर्ण प्रस्तुति..आभार
आप कैसी हैं? मैं आपकी सारी छूटी हुई पोस्ट्स इत्मीनान से पढ़ कर दोबारा आता हूँ... Call you tomorrow sure....
लेकिन
चंचल था बहुत वो
गज़ब का,
छुड़ा कर अंगुली मेरी
गुम हो गया
ना जाने कहाँ ?
इतने दिन बाद, ऐसा!!
कोशिश है इस
चादर को झटकने की ...
मुझे ये अंत बहुत पसंद आया.
भावपूर्ण......बेहतरीन रचना .....
संगीता दी!
कोहरा कुछ दिखाता,कुछ छिपाता है... वैसे ही उदासी भी कुछ दिखाती है और बहुत कुछ छिपाती है.. दोनों भ्रम पैदा करते हैं.. तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो, क्या ग़म है जिसको छिपा रहे हो.. बहुत सुंदर कविता!
कोशिश कर रही हूं पार देखने की'
बहुत मासूम दर्द भरी अभिव्यक्ति के लिये मुबारकबाद।
अगर यह दर्दनाक अभिव्यक्ति व्यक्तिगत है तो वाकई बहुत कष्ट दायक है .....
इस समाज में अच्छे भावुक लोगों को शायद अधिक तकलीफ उठानी पड़ती है ! अपने आपको और विस्तार दें ....यही कामना है !
लोहड़ी और मकर संक्रांति की शुभकामनायें
adrniya sangetaji sadar pranam bahut sundar kavita.bahut bahut badhai
लोहड़ी,पोंगल और मकर सक्रांति : उत्तरायण की ढेर सारी शुभकामनाएँ।
लेकिन
चंचल था बहुत वो
गज़ब का,
छुड़ा कर अंगुली मेरी
गुम हो गया
ना जाने कहाँ ?
मनोभावों की सुन्दर अभिव्यक्ति
लोहड़ी,पोंगल और मकर सक्रांति,उत्तरायण की ढेर सारी शुभकामनाएँ।
आदरणीया संगीताजी ,
यही तो है कविता !
किन-किन पंक्तियों को रेखांकित करूँ ?
आपकी लेखनी सौ वर्षों तक हिंदी साहित्य को समृद्ध करती रहे ....ईश्वर से प्रार्थी हूँ |
कोशिश कर रही हूँ
पार देखने की
कोशिश है इस
चादर को झटकने की
इस भावनामयी रचना ने मन को गहराई तक प्रभावित किया है।
एक अच्छी कविता प्रस्तुत करने के लिए बधाई।
अब वो किसी को भी
नज़र आता नहीं है ....
चाँदनी भी आँगन की
सिमट गयी है,
चादर एक उदासी की
बिछ गयी है, ...........
सुंदर भावाभिव्यक्ति!
लोहड़ी, पोंगल एवं मकरसंक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं!
उदासी की चादर मत ओढें , खोजे उसी में अर्थ जो खुशियों का प्रतीक हो, अंतर में कोई नई आशा नई दिशा जरूर मिलेगी.
दिया था सहारा
मैंने अपनी हथेली से,
और रख लिया था
अपनी तर्जनी पर उसे,
लेकिन
चंचल था बहुत वो
गज़ब का,
छुड़ा कर अंगुली मेरी
गुम हो गया
ना जाने कहाँ ?
bahut dukh hota hai jab koi kho jaae is tarah... sunder rachna
bahut sunder rachna......sorry jara der ho gai aneme....
दिया था सहारा
मैंने अपनी हथेली से,
और रख लिया था
अपनी तर्जनी पर उसे,..
कोई कहाँ समझ पाता है औरत के इस ममत्व को ....
जानती हूँ आपकी व्यस्तता ....
चर्चा मंच का काम भी आसान नहीं ....
बहुत गहरे भाव !
ऐसी सुन्दर रचना पढवाने के लिए शुक्रिया .
आपकी लेखन कला को इस नाचीज बालक का प्रणाम.
- अमन अग्रवाल "मारवाड़ी"
amanagarwalmarwari.blogspot.com
marwarikavya.blogspot.com
chaadar jhatak hi jayegi.........bahut sunder!!!!!!!1
उदासी की धुंध...उदास कर गई।
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