सितारों वाली चादर
>> Sunday, January 30, 2011
चीर कर
खामोशी की चादर,
मन का सन्नाटा ,
आ खड़ा होता है
मेरे सामने ,
शब्द ,
जो बिखरे पड़े थे
हो जाते हैं
एकत्र
और मच जाता है
कोलाहल .
इस शोर में भी
ख़ामोशी जैसे
चादर में लिपटी हुई
अपने वजूद को
बनाये रखना चाहती है
भले ही चादर
क्यों न हो गयी हो
क्षत - विक्षत
मेरे ख्यालों का
जुलाहा
फिर से उसका
एक धागा पकड़
बुन देता है
एक नयी चादर ,
ऐ मेरे जुलाहे
चादर बुननी हैं तो
बुन ,
पर बुनाई में
कहीं तो
खुशी के सितारे भी
जड़ दे ...
देखने वालों के लिए
ऐसे भ्रम का होना
ज़रूरी है .
79 comments:
आपकी यह कविता जीवन के विरल दुख की तस्वीर है, इसमें समाई पीड़ा आम जन की दुख-तकलीफ है।
कविता जीवन के अनेक संदर्भों को उजागर करने का सयास रूपक है, जीवन के खाली कैनवास पर विरल चित्रांकन। स्त्री जीवन के सामान्य उपकरणों चादर, धागा, बुनाई, कढाई, सलमा-सितार्र आदि के द्वारा आपने जीवन के बड़े अर्थों को सम्प्रेषित करने की सच्ची कोशिश की है।
आपकी कवितायेँ अवं संग्रह पढ़ कर अच्छा लगा ऐसे रचनाओं के लिए धन्यवाद
कृपया मुझे भी मार्गदर्शन देवे ,आपने बहुमूल्य वक़्त से कुछ छ्ण मेरे ब्लॉग का अवलोकन कर मराग्दर्शन देवे
आपका आभार रहेगा .........
अरे मम्मा कमाल कर दिया आपने ...लाज़वाब रचना है ...एक दम शानदार... गुलज़ार साब की एक नज़्म है .."मुझको भी तरकीब सिखा कोई यार जुलाहे" मैं वैसी नज़्म लिखना चाहता पर नहीं लिख पाया सोचता था इससे अलग क्या लिखूं...पर आपने तो जादू कर दिया ... :) लव यू
"...देखने वालों के लिए
ऐसे भ्रम का होना
ज़रूरी है ."
बहुत ही सुन्दर भावों को अपने में समेटे शानदार कविता.
सादर
------
बापू! फिर से आ जाओ
इस शोर में भी
ख़ामोशी जैसे
चादर में लिपटी हुई
अपने वजूद को
बनाये रखना चाहती है
...वाह! मम्मा...
...ख़ामोशी के पैरहन में मन का अंतर्द्वंद chhupa ke rakhna chaah rahin hain hmmmmmm......:)
देखने वालों के लिए
ऐसे भ्रम का होना
ज़रूरी है .
..ना! मम्मा,बिलकुल bhi सहमत नहीं.......हमेशा देखने वालों की चिंता क्यूँ करना.........भ्रम के बजाये कड़वी सच्चाई में जीना ही बेहतर है.....
मेरे ख्यालों का
जुलाहा
फिर से उसका
एक धागा पकड़
बुन देता है
...ये मन के जुलाहे ऐसा क्यूँ करते हैं मम्मा....?? खैर....अपने मन के द्वन्द से बाहर आ जाना ही बेहतर है.......:)
जी...एक बात कहूँगी......समापन आपने अपने लिए किया होता तो अच्छा लगता......समापन में 'भ्रम' आ गया wo bhi teesre ke liye...तो मन में थोड़ा रोष है..:(
एक बात और....:( ....नज़्म का आगाज़ अच्छा लगा..मगर अंजाम थोड़ा सा कमज़ोर लगा मुझे...
चीर कर ''......ki''
खामोशी की चादर,
मन का सन्नाटा ,
आ खड़ा होता है
''......ki ''.....यहाँ कुछ आना चाहिए था...लब...आँखें...या कुछ और....आप देख लीजियेगा...और ये सुझाव नहीं है ...
मम्मा.....मेरे मन को यहाँ कुछ खटका था.....कि किसकी खामोशी चीर कर मन का सन्नाटा आगे आ रहा है..... बस इतना सा खालीपन लगा था...सो बता दिया..:):)
चलिए,
स्नेह के साथ प्रणाम !!
kitna theek likhi hain aap.
पर बुनाई में
कहीं तो
खुशी के सितारे भी
जड़ दे ...
देखने वालों के लिए
ऐसे भ्रम का होना
ज़रूरी है .
wah.
दुःखों की चादर पर खुशी का धोखा टाँकने का अनुरोध!!कितनी मुस्कुराहटों के पीछे छिपे दर्द की हक़ीक़त बयान की है आपने संगीता दी! सुपर्ब!!
मेरे ख्यालों का
जुलाहा
फिर से उसका
एक धागा पकड़
बुन देता है
एक नयी चादर
जुलाहे और चादर का बिम्ब अच्छा लगा।
बहुत ही प्रभावशाली कविता।
चीर कर
खामोशी की चादर,
मन का सन्नाटा ,
आ खड़ा होता है
मेरे सामने ,
शब्द
khamosi mai kahe gye sabd
or mun ka sanata
shandar kavita
पर बुनाई में
कहीं तो
खुशी के सितारे भी
जड़ दे ...
देखने वालों के लिए
ऐसे भ्रम का होना
ज़रूरी है ...
बहुत मर्मस्पर्शी...जीवन के व्यथा की बहुत सार्थक प्रस्तुति..बहुत सुन्दर
बहुत मर्मस्पर्शी रचना है संगीता जी ! नारी जीवन का यही निचोड़ है कि अपने दुःख दर्द को छिपा कर उसने औरों को सदैव स्वयं के सुखी होने के भ्रम से ही प्रफुल्लित करने की चेष्टा की है ! सलमे सितारों जड़ी ओढ़नी की चमक में लिपटे मन के अवसाद को छिपाने की यह कोशिश बेहद पसंद आई ! मेरी बधाई एवं शुभकामनायें स्वीकार करें !
एक अति उम्दा रचना. धन्यवाद
एक नयी चादर ,
ऐ मेरे जुलाहे
चादर बुननी हैं तो
बुन ,
पर बुनाई में
कहीं तो
खुशी के सितारे भी
जड़ दे ...
देखने वालों के लिए
ऐसे भ्रम का होना
ज़रूरी है .
...बहुत ही सुन्दर सार्थक सन्देश छुपा है इन पाँक्तिओं मे। बधाई सुन्दर रचना के लिये।
पीड़ा के अनेक रंगों को उतारा है इस कविता में ... द्वंद को शब्द दे दिए हैं ...
मेरी चादर में भी खुशी के सितारे जड़ दे।
बस वो जुलाहा ही सितारे जोड़ सकता है,
जिसने जग के उलझे तागे सुलझाए हैं ।
अर्थपूर्ण कविता के लिए आभार
अन्तर के सन्नाटे की चादर पर उम्मीदो के सितारों का टंकन!!
ला-जवाब है दीदी यह काव्य!! प्रेरणा देता है।
हमेशा की तरह अनोखे भाव और अनूठे बिम्ब लिये,जीवन की बारीकियाँ समझाती यह नज़्म!!
इस रचना मै दर्द की उपस्थिति को बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत कर पाई हैं आप और एक कवित्री के लिए एसा करना कोई बड़ी बात नहीं बहुत खूबसूरती से हर दर्द का वर्णन बहुत बहुत बधाई !
सुंदर आशावादी विचारवान रचना. धन्यवाद.
bhram ke liye to aapki pyari si muskan hi kaafi hai... bahut sunder rachna!
देखने वालों के लिए
ऐसे भ्रम का होना
ज़रूरी है .
Aah!
यही तो समस्या है कि जो होता है, दीखता नहीं ..देखने वाले को भ्रम होना जरुरी है ....शायद ...
बहुत सुन्दर लिखा है दि!
बहुत उम्दा कविता,दी। पीड़ा को छुपाने के लिये खुशी के सितारे टाँकने की गुजारिश, बहुत कुछ कहती है।
एक साथ कई भावों को संजोये बहुत ही सुंदर रचना...........लेखनी की उत्कृष्टता को बयान करती बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति..........
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
idhar lagatar vyast thi to bas yahi kahna hai.... bahut hi achhi rachna
वाह ....
ये आंसू गम का न था जो रुला गया
कोई तिनका था जो आँख में चला गया ....
बहुत यत्न से आपने विचारों का ताना-बाना बुना है!
सुन्दर रचना!
बहुत सुंदर ..... ऐसा भ्रम कितना ज़रूरी है जीने के लिए.... सार्थक भाव
जीवन के अर्थों को सम्प्रेषित करने की सच्ची कोशिश की है।....
सुंदर भावाभिव्यक्ति..
बहुत सुन्दर ।
ये दुनिया ही एक भ्रम जाल है ।
वाह दी... सच कहा आपने...
"ज़माने के लिए दामन में खुशियों के सितारे हैं
तन्हा दिल की दौलत यारों, दुःख हैं और शरारे हैं." (हबीब)
सादर....
वाह,
मन को उद्वेलित कर गई कविता .संगीताजी ,चादर का फीकापन दूर करने के लिए सितारे बुनने का आग्रह उस कंट्रास्ट को और गहरा कर जाता है -प्रभाव घनीभूत हो उठा है .बधाई आप को !
मन के ख्यालों का जुलाहा.... बढ़िया उपमा...
और हाँ, बड़ा ही कारीगर लगता है ये जुलाहा....
priya,maidam ,
pranam ,
kavya shilp ke sidhahast hanthon ne
punh sunar kavy ka nirman kiya hai .
sufi darshan nazar aaya . bahut achha laga .
kavya sanklan ke liye tahe dil se badhayi .
gustakhi manf-mithai to banti hai maim.
sanklan ki ek prati mere liye bhi.
ऐ मेरे जुलाहे
चादर बुननी हैं तो
बुन ,
पर बुनाई में
कहीं तो
खुशी के सितारे भी
जड़ दे ...
देखने वालों के लिए
ऐसे भ्रम का होना
ज़रूरी है .
....
ek sitaaron se bhara chaadar main aapke kandhe per rakhti hun - aapke samman me
अरे संगीता जी ये क्या ..आपने अपने मन के जुलाहे को ये क्या कह डाला .. खुशी के सितारों का भ्रम ... बेहद सुन्दर लिखा है आपने... क्या बात है ..
देखने वालों के लिए
ऐसे भ्रम का होना
ज़रूरी है ."
wah dadi....kya baat keh di...tooooo good...luvvv u
देखने वालों के लिए
ऐसे भ्रम का होना
ज़रूरी है .
कभी-कभी हम भी इस भ्रम के साथ हो लेते हैं ..इस बेहतरीन रचना के लिये बधाई ।
लेकिन भ्रम तो टूट ही जायेगा और लाएगा एक और सन्नाटा तो क्यों न भ्रमों से बाहर निकलें....
भले ही चादर /क्यों न हो गयी हो / क्षत - विक्षत
ख्यालों का / जुलाहा / फिर से उसका / एक धागा पकड़ / बुन देता है / एक नयी चादर
"ख्यालों का जुलाहा" बेहद सुन्दर कल्पना... क्षत-विक्षत चादर का फिर से एक धागा पकड़ कर नयी चादर बुनना आपने आप में बहुत सकारात्मक सोच है...संगीता जी मुझे तो इसका सकारात्मक पहलू ही बहुत भाया. और रही ख़ुशी के भ्रम की बात तो उसकी क्या जरुरत है :-) हर दुःख के बाद सुख का आना तो निश्चित ही है ये तो नियति का चक्र है... और आयेगा भी...
मंजु
इस शोर में भी
ख़ामोशी जैसे
चादर में लिपटी हुई
अपने वजूद को
बनाये रखना चाहती है
हाँ वज़ूद को बनाये रखने के लिये कुछ तो भ्रम रखना ही चाहिये। बधाई इस रचना के लिये।
बहुत सुन्दर कविता ...बधाई.
बहुत सुन्दर कविता ...बधाई.
अरे वाह क्या खूब कहा है बहुत ही सुंदर कविता !
और बहुत ही गहरे भाव !
मज़ा आ गया पढ़ कर !!
संगीता जी , बहुत ही भाव पूर्ण और सुंदर कविता .. बेहतरीन प्रस्तुति.
...dekhne walon ke liye
aise bhram ka
hona jaroori hai.
bahut hi bhavpoorn sundar rachna.
इस शोर में भी
ख़ामोशी जैसे
चादर में लिपटी हुई
अपने वजूद को
बनाये रखना चाहती है
...बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति.. ...बधाई
भावमय प्रस्तुति.
इश्वर करे चादर का जर्रा जर्रा खुशियों के धागे से बुना हो . कविता की बुनावट मन पर गहरा प्रभाव छोड़ गयी
मेरे ख्यालों का
जुलाहा
फिर से उसका
एक धागा पकड़
बुन देता है
एक नयी चादर ,
बेहद खूबसूरत.
ऐ मेरे जुलाहे
चादर बुननी हैं तो
बुन ,
पर बुनाई में
कहीं तो
खुशी के सितारे भी
जड़ दे ...
देखने वालों के लिए
ऐसे भ्रम का होना
ज़रूरी है .
बहुत सुन्दर.
स्वयं कों हर हाल में खुश रखना ही चाहिए , उससे भी बढ़कर , दूसरों कों खुश दिखना चाहिए।
ऐ मेरे जुलाहे
चादर बुननी हैं तो
बुन ,
पर बुनाई में
कहीं तो
खुशी के सितारे भी
जड़ दे ...
बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति.. ...बधाई
मनोभावों को कितनी सार्थकता से अभिव्यक्ति दे देती हैं आप....बस चमत्कृत रह जाती हूँ देखकर ...
नमन आपको !!!
रंजना.
भ्रम
एक सवाल बन कर
जेहन-ओ-दिल में उतर गया है
बहुत ही प्रभावशाली कृति ...
और मच जाता है
कोलाहल .
इस शोर में भी
ख़ामोशी जैसे
चादर में लिपटी हुई
अपने वजूद को
बनाये रखना चाहती है .....
सच्चाई को वयां करती हुई अत्यंत सुन्दर रचना , बधाई.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..
ख्यालों के जुलाहे को शुभकामनायें...
"जो बिखरे पड़े थे
हो जाते हैं
एकत्र
और मच जाता है
कोलाहल ."
Shandaar panktiyan..shubhkamnayein...
ऐ मेरे जुलाहे
चादर बुननी हैं तो
बुन ,
पर बुनाई में
कहीं तो
खुशी के सितारे भी
जड़ दे ...
अत्यंत दार्शनिक, सुन्दर और भावपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई।
चीर कर
खामोशी की चादर,
मन का सन्नाटा ,
आ खड़ा होता है
मेरे सामने ,
एक दम दार्शनिक अंदाज में व्यक्त किये गए भाव ...पूरी कविता एक बिम्ब के इर्द गिर्द घुमती हुई सार्थक अर्थ संप्रेषित करती है ...आपका शुक्रिया
"ऐ मेरे जुलाहे
चादर बुननी हैं तो
बुन ,
पर बुनाई में
कहीं तो
खुशी के सितारे भी
जड़ दे ...
देखने वालों के लिए
ऐसे भ्रम का होना
ज़रूरी है"
आदरणीय संगीता जी वाकई गहन अनुभूति से उपजी रचना है.अनायास ही इसने ग़ालिब की याद दिला दी जिन्होनें कुछ ऐसा ही कहा था लेकिन दूसरे ढंग से." .....................खुदा आसमान पर बैठा है,दिल के बहलाने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है." बेहद सुंदर भव लिए आगे बढ़ती रचना.
आदरणीय संगीता जी सुंदर कविता
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
"गौ माता की करूँ पुकार सुनिए और कम से ....." देखियेगा और अपने अनुपम विचारों से
हमारा मार्गदर्शन करें.
आप भी सादर आमंत्रित हैं,
आपका अपना सवाई
वाह...
मुझे गुलज़ार साहब की एक नज़्म याद आ गयी... "मुक्झ्को भी तरकीब शिखा दे यार जुलाहे"
बहुत सुन्दर रचना है... लाजवाब...
बहुत प्यारी रचना है.
संगीता जी आपकी यह सुन्दर पोस्ट और "जिम्मेदारी" राजभाषा से मैंने चर्चामंच पर रखी है..आज ... आप वहाँ आ कर अपने विचारों से अनुग्रहित करें ... धन्यवाद ... आज शास्त्री जी का जन्मदिन भी है...
http://charchamanch.uchcharan.com/2011/02/blog-post.html
पर बुनाई में
कहीं तो
खुशी के सितारे भी
जड़ दे ...
वाह। बहुत खुब।
आदरणीया संगीता स्वरूप जी एक बार फिर से आप को नमन करने का अवसर प्रदान किया आपने| बहुत बहुत आभार:-
भले ही चादर
क्यों न हो गयी हो
क्षत - विक्षत
मेरे ख्यालों का
जुलाहा
फिर से उसका
एक धागा पकड़
बुन देता है
एक नयी चादर
अत्यंत सुंदर।
---------
ध्यान का विज्ञान।
मधुबाला के सौन्दर्य को निरखने का अवसर।
bahut pyari rachana
bahut pyari rachana
बेहतरीन .... लाजवाब . इस खुबसूरत रचना के लिए क्या कहूँ ......?आपको बधाई ....
vo kahte hain na jab icchhaye ummeedon ka aasmaan dekhne ki tamanna rakhengi to jaroor kuchh na kuchh umeed puri hogi..so ummeed to puri hogi hi. yahi umeed hai yahi dua hai.sunder aashawadi rachna par badhayi.
aapke BETOO ko lad-pyar aur namaste! aap bahumukhee pratibha ki dhanee hain, apmen apar sambhavnayen hain. aas jagaye rakhiye! laxmi Kant.
ये मन रूपी जुलाहा बहुत निर्मम होता है …………बेहद संवेदनशील रचना।
बहुत सुन्दर ।
ये दुनिया ही एक भ्रम जाल है ।
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