अल्हड़ सपने
>> Friday, February 4, 2011
पाना क्या शेष रहे जब
मन को मन का उपहार मिले
वीणा के झंकृत तारों से जब
गीत मिले और साज मिले .
आँखों में हों कितने सपने
और मन पंछी सा उड़ता हो
मंद पवन के झोंके से जब
जलतरंग सा बजता हो .
नयी डगर पर पग रखते
सम्मुख कई प्रश्न आ जाते हैं
उत्तर की चाहत में बस
पल यूँ ही व्यतीत हो जाते हैं .
सागर सी गहराई हो , जब
नाम जलधि का रखा है
डूबूँ मैं इसमें और बस
हाथ में मोती आ जाये .
पाना क्या शेष रहे जब
मन को मन का उपहार मिले
वीणा के झंकृत तारों से जब
गीत मिले और साज मिले .
74 comments:
क्या बात है दि !...
बदले बदले से अंदाज नजर आते हैं
इन अल्लहड सपनो में
बीते कुछ साल नजर आते हैं.:)
बहुत बहुत प्यारी कविता एकदम कमसिन सपनो जैसी. खूबसूरत ,कोमल ,निश्छल...
Wah! Kitni khushnuma kamnayen hain!Eeshwar kare,aisahee ho!
वर्षों पूर्व की यादें!!
या दर्द ने करवट ली या तुमने इधर देखा वाला अंदाज़ है.. सॉरी संगीता दी!!
(शिखा बाज़ी मार ले गईं)
हम्म!
शुभकामनाएं, और बधाइयां।
''पाना क्या शेष रहे जब
मन को मन का उपहार मिले''
ये अल्हड सपने तो कतई नहीं हैं....क्षमा कीजियेगा......:( हाँ अल्हड़ सपने कह सकतें हैं मगर उदास से.......
चलिए आज आपको बख्शती हूँ...कुछ नहीं कहती ....:):)
मेल में कभी इस कविता के लिए जो जो सोचा..वो लिख भेजूंगी......:)
इन दो पंक्तियों के लिए विशेष बधाई मम्मा.....:)
प्रणाम !
'सागर सी गहराई हो , जब
नाम जलधि का रखा है'
बधाई ,नाम जानने की उत्सुकता है .
कमसिन सपने सी बहुत ही कोमल और भावपूर्ण रचना ! ऐसे अल्हड़ सपने आँखें खुलने पर कभी ना टूटें यही कामना है ! शब्दांकन और तस्वीर दोनों ही बहुत अच्छी लगीं ! बधाई एवं शुभकामनायें !
पाना क्या शेष रहे जब
मन को मन का उपहार मिले
वीणा के झंकृत तारों से जब
गीत मिले और साज मिले .
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बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर मखमली रचना पढ़ने को मिली!
पाना क्या शेष रहे जब
मन को मन का उपहार मिले
वीणा के झंकृत तारों से जब
गीत मिले और साज मिले .
बेहतरीन पंक्तियाँ ! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
बहुत ही सुखद कविता....सुकून पहुंचाने वाली...
काश मन की यह चाह मूर्त रूप पाती रहे सतत।
पाना क्या शेष रहे जब
मन को मन का उपहार मिले
वीणा के झंकृत तारों से जब
गीत मिले और साज मिले .
kuch bhi nahi phir shesh raha
दीदी,
क्या बात है ... आज तो अलग ही रंग दिख रहा है...:) :) :) अच्छा लगा इस आयाम को पढ़ना ..
नयी डगर पर पग रखते
सम्मुख कई प्रश्न आ जाते हैं
उत्तर की चाहत में बस
पल यूँ ही व्यतीत हो जाते हैं .
ना खोजो उत्तर ...बस बढे चलो इस डगर पर :)
अल्हड सपनो में जिंदगी का चल चित्र ; सचमुच में जलधि की तरह गहराई लिए भावनाए .
पूरी सारी मुरादें.
सभी पाठकों का आभार
@@ प्रतिभा जी ,
आपने नाम पूछ ही लिया है तो बता रही हूँ ....
प्रशांत नाम है :):)
@@ मुदिता ,
उत्तर की चाहत आज कहाँ है ? यह तो ३५ साल पहले की बात है ..तब तो स्वयं भी एक अनुत्तरित प्रश्न थी :):)
पाना क्या शेष रहे जब
मन को मन का उपहार मिले
वाह ! कितने खूबसूरत भाव संजोय है आपने संगीता दी इस कविता मेँ ।
" कुछ फूल पत्थर के भी हुआ करते है.............गजल "
kya baat hai mumma.....aaj to geet pe...geet ka ...geet hai....hehehe
बहुत ही प्यारी और गुनगनाने लायक कविता.
सादर
मन को मन का उपहार मिले
गीत मिले और साज मिले
प्रत्येक पंक्ति स्वयं में सुन्दरता.... समग्रता का भाव लिए ......
शुभकामनायें
पाना क्या शेष रहे जब
मन को मन का उपहार मिले
वीणा के झंकृत तारों से जब
गीत मिले और साज मिले .
bahut hi sundar rachana!
सागर सी गहराई हो , जब
नाम जलधि का रखा है
डूबूँ मैं इसमें और बस
हाथ में मोती आ जाये .
wahhh....kitni khoobsurat panktiyaan hain dadi....bohot sundar nazm :)
वाह ...बहुत ही खूबसूरत शब्दों का संगम है इस रचना में ...।
वाह! क्या बात है आज तो बहुत ही लयबद्ध गुनगुनाती कविता पढने को मिली……………बहुत पसन्द आई।
पाना क्या शेष रहे जब
मन को मन का उपहार मिले
वीणा के झंकृत तारों से जब
गीत मिले और साज मिले .
बहुत sundar kavita likhi hai yahai to jeevan kee charam santosh ki sthiti aati hai aur jisake baad kuchh shesh nahin rahata hai.
महकी रहे खवाबों की फुलवारी
सपनो की बगिया खिली रहे
सागर के गहराई में .
तेरे मन की नदी युहीं मिली रहे.
टोकरा भर के बधाई और करोणों शुभकामनायें दी !
आँखों में हों कितने सपने
और मन पंछी सा उड़ता हो
मंद पवन के झोंके से जब
जलतरंग सा बजता हो ।
ज़िदगी के कुछ खास रंगों को समेट लिया है आपने इस खूबसूरत रचना में।
सुंदर मनोभावों का सुंदर चित्रण।
सागर सी गहराई हो , जब
नाम जलधि का रखा है
डूबूँ मैं इसमें और बस
हाथ में मोती आ जाये
bahut khoob !
पाना क्या शेष रहे जब
मन को मन का उपहार मिले
वीणा के झंकृत तारों से जब
गीत मिले और साज मिले ...
itna hi mil jaye to bahot hai...kuch aur paane ki abhilaasha nahi :)
bahot pyaari...
mujhe protsait karne ke liye shukriya...
yakeen maniye, bas likha hai 'tu ijajat de agar' main ijajat nahi mangti, dil me jo hai khari khari kah deti hun...kya thikaana sanso ka, kal jindgaani ho na ho.wo ijaajat na de aur dil ki baat dil me liye main dusri duniya pahuch jaaun :)
माँग के साथ तुम्हारा, मैंने माँग लिया संसार!!
बस दिख रहे हैं ये भाव कविता में!! हमारी शुभकामनाएँ इस पावन दिवस/उपलक्ष पर!!
ह्म्म्म्म्म्म्म्म...:) :) :) तो यह शादी की ३५ वीं सालगिरह मनाई जा रही है ..:) बहुत बहुत बधाई..... और मेरी बुद्धि देखो... जलधि का नाम ही ध्यान नहीं आया :) :) है न कमाल..:)
वीणा के झंकृत तारों से जब
गीत मिले और साज मिले .
बधाईयां...
sangeeta ji aapki kawitaan hameshaa muze dil k behad karib lagti hai
aapko padhnaa mere ly hmesha ek naya experience hota hai .
'पाना क्या शेष रहे जब
...................
वीणा के झंकृत तारों से जब
गीत मिले और साज मिले '
बहुत प्यारी रचना ...आभार !
मन को छूती प्यारी रचना |बहुत बहुत बधाई |
आशा
बेहतरीन रचना.
सागर सी गहराई हो , जब
नाम जलधि का रखा है
डूबूँ मैं इसमें और बस
हाथ में मोती आ जाये .
vaah kya bimb prayog kiye hain. bahut khoob. dua karte hain aap is sagar ki gahrayi me doobi rahe hain hathon me moti sanjoti rahen.
bahut sondhi se khushboo bikherti rachna aur 35v saal gireh par bahut bahut badhayi aap dono ko.
सुन्दर गीत दी...
गीत के भावों में डूबता उतराता मुदिता जी के कमेन्ट में आया तो "शुभसत्य" से परिचित हुआ....
शुभ घड़ी की ३५ सालगिरह पर आपको बधाई... सादर शुभकामनाएं.
पाना क्या शेष रहे जब
मन को मन का उपहार मिले
वीणा के झंकृत तारों से जब
गीत मिले और साज मिले .
khoobsurat ehsas ke sath sunder prastuti..........
पाना क्या शेष रहे जब
मन को मन का उपहार मिले
वीणा के झंकृत तारों से जब
गीत मिले और साज मिले .
सुंदर चित्रण....बेहतरीन भावपूर्ण रचना के लिए बधाई।
पाना क्या शेष रहे जब
मन को मन का उपहार मिले
वीणा के झंकृत तारों से जब
गीत मिले और साज मिले
दिल को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
पाना क्या शेष रहे जब
मन को मन का उपहार मिले
वीणा के झंकृत तारों से जब
गीत मिले और साज मिले .
बहुत सुंदर संगीताजी ...... निश्चल मनोभाव.... सुंदर रचना
kaas yesa ho jaye
bahut hi sunder rachna
आँखों में हों कितने सपने
और मन पंछी सा उड़ता हो
मंद पवन के झोंके से जब
जलतरंग सा बजता हो .
bahut meethe sukh ka ehsaas.
bahut sundar geet, ek ek shabd moti sa, jivan sanchar karta hua
badhai DI
पाना फिर क्या शेष रहे जब मन को मन का उपहार मिले ...और क्या !!
हर बार एक अलग रंग है आपकी रचनाओं में !
बेहतरीन पंक्तियाँ| बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति|
सागर सी गहराई हो , जब
नाम जलधि का रखा है
डूबूँ मैं इसमें और बस
हाथ में मोती आ जाये .
क्या बात है .....
संगीता जी आपने तो छायावादी कविता की याद दिला दी ....
कोमल भावों को कितनी सुन्दर अभिव्यक्ति दी है आपने...वाह...
मनमोहक !!!!
पाना क्या शेष रहे जब
मन को मन का उपहार मिले
वीणा के झंकृत तारों से जब
गीत मिले और साज मिले .
बेहतरीन पंक्तियाँ ! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
सागर सी गहराई हो , जब
नाम जलधि का रखा है
डूबूँ मैं इसमें और बस
हाथ में मोती आ जाये .
संगीता जी बहुत हृदयस्पर्शी रचना लगी प्यार के रंग में सराबोर. सच में वाह वाह किये बगैर नहीं रहा जा सकता. बधाई.
इस पर क्या कहूँ, वैसे देर के लिए जरा सी डांट बनती है मुझे, पर आप डांटेंगी नहीं ये पता है। आप दोनों को हार्दिक शुभकामनाएँ।
प्रणाम!
"पाना क्या शेष रहे जब / मन को मन का उपहार मिले /वीणा के झंकृत तारों से जब /गीत मिले और साज मिले "- मन का मन से मिलाना ही आज कठिन हो गया है, इस ओर आपका आग्रह प्रणम्य है. मेरी बधाई स्वीकारें- अवनीश सिंह चौहान
sangita ji is bar ki rachna mujhe behad sunder lagi.....
आदरणीया संगीता जी बसंत पर और सुन्दर कविता के लिए आपको बधाई तथा शुभकामनायें |
आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
सादर,
डोरोथी.
आँखों में हों कितने सपने
और मन पंछी सा उड़ता हो
मंद पवन के झोंके से जब
जलतरंग सा बजता हो .
मन के कोमल भाव कविता बनकर मुखरित हुए हैं !
बसंत पंचमी की शुभकामनाएं !
सुन्दर रचना .. आपकी कविता ने मन तार को झंकृत कर दिया .... आपको बसंती ऋतू के आगमन पर शुभकामनायें..
पाना क्या शेष रहे जब
मन को मन का उपहार मिले
वीणा के झंकृत तारों से जब
गीत मिले और साज मिले
बहुत ही सुन्दर रचना.. मन को मन का उपहार मिल जाये.. फिर और क्या पाना शेष रहा. ....बहुत ही सुकून भरी पंक्तियाँ..
पाना क्या शेष रहे जब
मन को मन का उपहार मिले
वीणा के झंकृत तारों से जब
गीत मिले और साज मिले
सुन्दर कविता के लिए आपको बधाई तथा शुभकामनायें
आदरणीया गीत जी!
आपकी सक्रियता कीभूरि-भूरि प्रशंसा की जाये तो भी कम है।
इस कविता में आपने बहुत ही दार्शनिक बात कही है्-
पाना क्या शेष रहे जब
मन को मन का उपहार मिले
वीणा के झंकृत तारों से जब
गीत मिले और साज मिले .
इसी सामन्जस्य को तो सदा से मानव खोज रहा है.............यह मिलकर भी नहीं मिलता...............नियन्ता का यह गूढ़ प्रश्न है जब पास होता है......दूर दिखता है...जब दूर होता है..पास दिखता है...चन्द पगों की दूरियाँ मानव चाहता है फिर भी नहीं मिटा पाता।
एक निवेदन-
मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष, जो मार्ग की शोभा बढ़ाता है, पथिकों को गर्मी से राहत देता है तथा सभी प्राणियों के लिये प्राणवायु का संचार करता है। वर्तमान में हमारे समक्ष अस्तित्व का संकट उपस्थित है। हमारी अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा अनेक लुप्त होने के कगार पर हैं। दैनंदिन हमारी संख्या घटती जा रही है। हम मानवता के अभिन्न मित्र हैं। मात्र मानव ही नहीं अपितु समस्त पर्यावरण प्रत्यक्षतः अथवा परोक्षतः मुझसे सम्बद्ध है। चूंकि आप मानव हैं, इस धरा पर अवस्थित सबसे बुद्धिमान् प्राणी हैं, अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि हमारी रक्षा के लिये, हमारी प्रजातियों के संवर्द्धन, पुष्पन, पल्लवन एवं संरक्षण के लिये एक कदम बढ़ायें। वृक्षारोपण करें। प्रत्येक मांगलिक अवसर यथा जन्मदिन, विवाह, सन्तानप्राप्ति आदि पर एक वृक्ष अवश्य रोपें तथा उसकी देखभाल करें। एक-एक पग से मार्ग बनता है, एक-एक वृक्ष से वन, एक-एक बिन्दु से सागर, अतः आपका एक कदम हमारे संरक्षण के लिये अति महत्त्वपूर्ण है।
य्सागर सी गहराई हो , जब
नाम जलधि का रखा है
डूबूँ मैं इसमें और बस
हाथ में मोती आ जाये
यही वह मोती है.....वह तत्त्व है जिसे पाने को सब व्याकुल है..................सदियों से..............
आपके आशीर्वाद के लिए आभार |सुन्दर छान्दसिक कविता के लिए आपको बधाई |
पाना क्या शेष रहे जब
मन को मन का उपहार मिले
वीणा के झंकृत तारों से जब
गीत मिले और साज मिले ...
Waah! kyaa baat hai !
Beautiful poetry !
.
देर से पहुंचा.
लेकिन बहुत ही बढ़िया रचना मिली.
आप खुशकिस्मत हैं.
पाना क्या शेष रहे जब
मन को मन का उपहार मिले
वीणा के झंकृत तारों से जब
गीत मिले और साज मिले .
शुभ कामनाएं
पाना क्या शेष रहे जब
मन को मन का उपहार मिले
वीणा के झंकृत तारों से जब
गीत मिले और साज मिले ......
एक-एक शब्द भावपूर्ण ..... बहुत सुन्दर...बधाई ...
मधुरता इस गीत की जान है !बहुत प्यारी रचना , शुभकामनायें आपको !
..बड़ा प्यारा गीत है।
नयी डगर पर पग रखते
सम्मुख कई प्रश्न आ जाते हैं
उत्तर की चाहत में बस
पल यूँ ही व्यतीत हो जाते हैं .
बहुत खूब.
पाना क्या शेष रहे जब
मन को मन का उपहार मिले
वीणा के झंकृत तारों से जब
गीत मिले और साज मिले .
मन्ब के उपहार के लिये ही तो इन्सान सारे प्रयत्न करता है। अगर मन को संतोश मिल जाये तो कुछ भी और पाना शेष नही रह जाता। सुन्दर रचना के लिये बधाई।
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति , बधाई
itni pyaari rachna hai ki main kai baar padhi aur man bhara nahi .badhai ho aapko .
बहुत क्यूट है यह छुटकू.... आपको हार्दिक बधाई ...
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मेरे ब्लोग पर आपका स्वागत है....
बहुत बेहतरीन ...हमारे ब्लोग पर आपका स्वागत है
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