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यूं बोली ज़िंदगी

>> Thursday, April 19, 2012


No One!



आ  ज़िंदगी 
चल तुझसे 
कुछ  बात करें 
खुले गगन तले 
दरख्त की छांव में
कहीं 
एकांत की ठाँव में 
चल तुझसे 
कुछ बातें करें 
ज़रा बता तो ज़िंदगी -
तू -
सपनों और ख्वाहिशों को 
फंसा अपने भंवर में 
क्यों तोड़ देती है 
दम उनका 
कभी कभी 
कितनी निरर्थक सी 
लगती है तू ॰

सुन मेरी बात 
ज़िंदगी मुस्काई 
और एक मृदुल  सा हास 
चेहरे पर लायी 
बोली - 
मैं तो सहज हूँ 
सरल हूँ 
किसी के लिए भी 
नहीं मैं गरल हूँ ,
यह तो तुम ही हो 
जो मुझे 
कठिन बना देते हो 
अपनी सोच को 
मुझ पर लाद देते हो 
मैं तो एक 
निर्मल नदी सी हूँ 
जो हर बाधा को पार कर 
पर्वतों से टकरा 
पत्थरों पर फिसल 
बहती जाती है
अपने गंतव्य की ओर 
करती हुई  
कल - कल , छल - छल 
पर तुमको उसमें 
संगीत नहीं 
शोर सुनाई देता है 
तुमको अपना नहीं 
दूसरों का दोष 
दिखाई देता है 
लगाते हो औरों से 
ढेरों उम्मीदें 
पर खुद लोगों को 
नाउम्मीद करते हो 
मन में लोभ और 
घृणा के भाव  भरते हो 
मिलता है जब तक  सुख 
ज़िंदगी को खुशी से 
भोगते हो 
ज़रा सा कष्ट आने पर 
संघर्ष से डर 
मुझको ही कोसते हो 
पर भूल जाते हो कि
मैं हूँ तो  तुम हो 
मैं नहीं तो तुम भी नहीं .... 


Love


80 comments:

सदा 4/19/2012 2:05 PM  

मैं हूँ तो तुम हो
मैं नहीं तो तुम भी नहीं ..
बिल्‍कुल सच ... बहुत ही उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ... आभार ।

Monika Jain 4/19/2012 2:18 PM  

satya prakat karti sarthak rachna

Aruna Kapoor 4/19/2012 2:20 PM  

बहुत सुन्दर भावों को आपने शब्दों में ढाला है संगीता जी!....बधाई!

संजय भास्‍कर 4/19/2012 2:21 PM  

जो मुझे कठिन बना देते हो अपनी सोच को मुझ पर लाद देते हो मैं तो एक निर्मल नदी सी हूँ
बहुत ही हृदयस्पर्शी कविताएं लिखती हैं आप... सुन्दर रचना ..बधाई....!!

संजय भास्‍कर 4/19/2012 2:23 PM  

ज़िंदगी मुस्काई
और एक मृदुल सा हास
चेहरे पर लायी
बोली -
मैं तो सहज हूँ
सरल हूँ
किसी के लिए भी
नहीं मैं गरल हूँ ,
.....बहुत ही सुन्दर बहुत ही सुकून भरी पंक्तियाँ..!!

बहुत सुन्दर भावों को आपने शब्दों में ढाला है संगीता जी!....बधाई!

संजय भास्कर

वाणी गीत 4/19/2012 2:23 PM  

जिंदगी से हमारी अपेक्षाएं कितनी , कुछ तो जिंदगी को भी होती होगी हमसे ...
इसलिए ही तो हर रंग में भाती है मुझे जिंदगी !!
सार्थक अभिव्यक्ति!

shikha varshney 4/19/2012 2:29 PM  

सच ही कहा जिंदगी ने.हम अपनी तरह बनाना चाहते हैं उसे जबकि वो तो सरल है .
बहुत सार्थक सन्देश देती प्रभावी पंक्तियाँ.

सहज साहित्य 4/19/2012 2:32 PM  

संगीता जी आपकी ये पंक्त्तियाँ बहुत प्रभावशाली हैं-
कल - कल , छल - छल
पर तुमको उसमें
संगीत नहीं
शोर सुनाई देता है
तुमको अपना नहीं
दूसरों का दोष
दिखाई देता है

Yashwant R. B. Mathur 4/19/2012 2:51 PM  

बहुत खूब लिखी हैं आंटी!


सादर

Brijendra Singh 4/19/2012 2:56 PM  

sach kaha SangitaJi.. Zindagi ko saral hi hai..hum khud ke complex nazariye se iski saralata nahin dekh paate..

behad sarthak rachana. Badhayi :)

अनुपमा पाठक 4/19/2012 2:56 PM  

सुन्दर अभिव्‍यक्ति!

संध्या शर्मा 4/19/2012 3:21 PM  

बिलकुल सही बोली जिन्दगी. वह तो सरल है, हम ही हैं जो अपनी सोच को
उस पर लाद देते हैं, और कठिन बना देते हैं उसे... सुन्दर अभिव्यक्ति... आभार

मुकेश कुमार सिन्हा 4/19/2012 3:21 PM  

main nahi to tum bhi nahi...:)
sach me .. jab main hi nahi
to tumhara hona na hona kya fark padta hai:):)

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया 4/19/2012 3:23 PM  

मैं तो सहज हूँ
सरल हूँ
किसी के लिए भी
नहीं मैं गरल हूँ ,

बहुत ही सुन्दर सरल भाव लिए मन को सकूंन देती पंक्तियाँ को आपने शब्दों में ढाला है संगीता जी!....बधाई!

MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...

sangita 4/19/2012 3:25 PM  

हृदयस्पर्शी कविता.बधाई..संगीताजी ।

सुनीता शानू 4/19/2012 3:31 PM  

उई माँ लगता है आप मुझमे से होकर गुजरती हैं या मै आप में से...ज़िंदगी पर एक रचना मैने भी लिखी थी पोस्ट नही कर पाई। कोई तो बात है इस जुड़ाव की मालूम नही जब समझ आयेगा शायद बता पाऊँगी।
सादर नमस्कार

रश्मि प्रभा... 4/19/2012 3:33 PM  

ज़िंदगी मुस्काई
बोली -
मैं तो सहज हूँ
सरल हूँ
किसी के लिए भी
नहीं मैं गरल हूँ ,
यह तो तुम ही हो
जो मुझे
कठिन बना देते हो
अपनी सोच को
मुझ पर लाद देते हो
........ ज़िन्दगी एक रुदन के साथ हर्षोल्लास के सोहर गाती है , बाद के समय तो हम निर्धारित करते हैं , सही है

Sadhana Vaid 4/19/2012 4:23 PM  

मिलता है जब तक सुख
ज़िंदगी को खुशी से
भोगते हो
ज़रा सा कष्ट आने पर
संघर्ष से डर
मुझको ही कोसते हो
पर भूल जाते हो कि
मैं हूँ तो तुम हो
मैं नहीं तो तुम भी नहीं ....

बहुत ही खूबसूरत एवं सारगर्भित पंक्तियाँ हैं संगीता जी ! बहुत अच्छी रचना है ! शुभकामनायें स्वीकार करें !

Maheshwari kaneri 4/19/2012 4:31 PM  

Jindagi ki sachai.......sundar

दीपिका रानी 4/19/2012 4:35 PM  

ज़िन्दगी वैसी ही होती है, जैसी हम उसे बनाना चाहते हैं। जैसे युधिष्ठिर को सब सज्जन दिखते थे और दुर्योधन को सब दुर्जन। तो जिंदगी को खूबसूरत या तकलीफदेह हम खुद बनाते हैं। सभी के हिस्से सुख और दुख दोनों आते हैं, यह हमारे ऊपर है कि हम किस पर अधिक ध्यान देते हैं...

गिरधारी खंकरियाल 4/19/2012 4:38 PM  

jindagi nadi ki tarah hi saral hai kintu ham hi use bayawah bana dete hain.

रविकर 4/19/2012 4:46 PM  

शुक्रवारीय चर्चा-मंच पर

आप की उत्कृष्ट प्रस्तुति ।

charchamanch.blogspot.com

ashish 4/19/2012 4:59 PM  

जिंदगी हमे अपनी बाहों में बुलाती है , हम छिटक दूर जाते है . काश हम उसके हमकदम बन पाते . सुँदर अभिव्यक्ति .

मनोज कुमार 4/19/2012 4:59 PM  

कभी-कभी आगे बढ़ने के लिए तकलीफ होना बहुत जरूरी है। हम में अपनी सीमाओं से पार जाने की काबलियत होती है लेकिन जब जिंदगी में सब ठीक ठाक चल रहा होता है, तो हम कोई जोखिम उठाना नहीं चाहते।

Anupama Tripathi 4/19/2012 5:04 PM  

मैं तो सहज हूँ
सरल हूँ
किसी के लिए भी
नहीं मैं गरल हूँ ,
यह तो तुम ही हो
जो मुझे
कठिन बना देते हो
अपनी सोच को
मुझ पर लाद देते हो

बहुत सीधी ...सरल सी बात ...हर मुश्किल हमारी ही पैदा की हुई है .....अन्यथा बहुत सरल है जीवन .......बहुत सुंदर लिखा है ....

ANULATA RAJ NAIR 4/19/2012 5:12 PM  

सच कहा दी...........

जिंदगी तो बाहें पसारे गले लगाती है हमें,स्नेह से......हम की बेवजह कसमसाते रहते हैं उसके आगोश में......

एक तरफ़ा प्रेम करती हैं जिंदगी हमसे.....

ANULATA RAJ NAIR 4/19/2012 5:13 PM  

सच कहा दी...........

जिंदगी तो बाहें पसारे गले लगाती है हमें,स्नेह से......हम की बेवजह कसमसाते रहते हैं उसके आगोश में......

एक तरफ़ा प्रेम करती हैं जिंदगी हमसे.....
अनु

sudha prajapti 4/19/2012 5:22 PM  

badhiya kavita he....

Mamta Bajpai 4/19/2012 5:26 PM  

पर भूल जाते हो कि
मैं हूँ तो तुम हो
मैं नहीं तो तुम भी नहीं ....
बिलकुल सत्य है ...हम एसी ही जिंदगी जी रहे है सब कुछ पा लेने की होड में सरल सहज जिंदगी को कठिन बना लेते है
इतनी सुन्दर रचना के लिए बधाई तो लेना ही पड़ेगी

vandana gupta 4/19/2012 5:41 PM  

मैं हूँ तो तुम हो
मैं नहीं तो तुम भी नहीं ....

बेहद सशक्त व सार्थक अभिव्यक्ति ………ज़िन्दगी को बखूबी उकेरा है।

mridula pradhan 4/19/2012 5:44 PM  

मैं हूँ तो तुम हो
मैं नहीं तो तुम भी नहीं .... wah....kya baat hai.

Suman 4/19/2012 5:53 PM  

sundar sarthak rachna .....

Shanti Garg 4/19/2012 6:05 PM  

बहुत बेहतरीन....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

Anita 4/19/2012 6:06 PM  

पर भूल जाते हो कि
मैं हूँ तो तुम हो
मैं नहीं तो तुम भी नहीं ....
यह विस्मृति ही दुःख का कारण है... तभी तो अर्जुन ने कहा था मुझे याद आ गया मेरा मोह नष्ट हुआ

Amrita Tanmay 4/19/2012 6:32 PM  

ओहो.. साक्षात् ,सुंदर जीवन दर्शन..

Vandana Ramasingh 4/19/2012 7:02 PM  

बोली -
मैं तो सहज हूँ
सरल हूँ
किसी के लिए भी
नहीं मैं गरल हूँ ,
यह तो तुम ही हो
जो मुझे
कठिन बना देते हो
अपनी सोच को
मुझ पर लाद देते हो

बेहद प्रभावी सोच ...बहुत सुन्दर दर्शन

चला बिहारी ब्लॉगर बनने 4/19/2012 7:16 PM  

दीदी, आपकी कविता के बारे में कुछ भी कहने को जी नहीं चाहता.. बस ऐसा लगता है कि आँखें बंद करके उसे उतारते चले जाएँ अपने मन की अटल गहराइयों तक!!!

udaya veer singh 4/19/2012 7:56 PM  

सशक्त व सार्थक अभिव्यक्ति … उर्जा प्रदान करती उई ...

डॉ. मोनिका शर्मा 4/19/2012 7:59 PM  

अद्भुत अभिव्यक्ति.... बहुत ही सुंदर

Kailash Sharma 4/19/2012 8:33 PM  

मिलता है जब तक सुख
ज़िंदगी को खुशी से
भोगते हो
ज़रा सा कष्ट आने पर
संघर्ष से डर
मुझको ही कोसते हो

....बहुत सच कहा है...बहुत सार्थक और सुन्दर प्रस्तुति...

ऋता शेखर 'मधु' 4/19/2012 8:59 PM  

मैं हूँ तो तुम हो
मैं नहीं तो तुम भी नहीं ..

जीवन है तभी संघर्ष है...ये खत्म तो सब कुछ खत्म...फिर घबड़ाना कैसा...

अनामिका की सदायें ...... 4/19/2012 9:06 PM  

sach kaha....ham jaisa nazariya rakhenge zindgi waisi hi nazar aayegi. margdarshan deti sunder prastuti.

Anonymous,  4/19/2012 9:58 PM  

यह तो तुम ही हो
जो मुझे
कठिन बना देते हो
अपनी सोच को
मुझ पर लाद देते हो ..

तुमको अपना नहीं दूसरों का दोष दिखाई देता है

जब तक सुख ज़िंदगी को खुशी से भोगते हो ज़रा सा कष्ट आने पर संघर्ष से डर मुझको ही कोसते हो
...

जिंदगी के माध्यम से इंसानी प्रवृत्ति को बहुत खूबसूरती से बयान किया है आपने... गहरी एवं अर्थपूर्ण रचना...
सादर
मंजु

devendra gautam 4/19/2012 10:03 PM  

आत्ममंथन को प्रेरित करती एक सार्थक कविता....आभार...

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) 4/19/2012 11:00 PM  

जिंदगी थम गई भागते-भागते
काश मिल पाते हम, जागते-जागते.

बिल्कुल सच कहा आपने, जिंदगी तो सरल होती है, हम ही उसे दुश्वार बना देते हैं.

Vaanbhatt 4/19/2012 11:48 PM  

ज़िन्दगी नदी सी ही होनी चाहिए...निर्मल और निश्छल...

प्रतिभा सक्सेना 4/20/2012 12:08 AM  

'मैं तो सहज हूँ
सरल हूँ
..
यह तो तुम ही हो
जो मुझे
कठिन बना देते हो
मैं तो एक
निर्मल नदी सी हूँ
जो हर बाधा को पार कर
अपने गंतव्य की ओर
पर तुमको उसमें
संगीत नहीं
शोर सुनाई देता है '
- हाँ ज़िन्दगी की स्वाभाविकता को हमीं ने नष्ट कर लाद दिया है उसे तमाम कृत्रिमताओं से 1

yashoda Agrawal 4/20/2012 5:27 AM  

सुन मेरी बात
ज़िंदगी मुस्काई
और एक मृदुल सा हास
चेहरे पर लायी
सुन्दर....
मैं आपके चेहरे के स्मित हास्य से अनुमान लगा पा रही हूँ कि ये आपकी श्रेष्ठ कृति है

संतोष त्रिवेदी 4/20/2012 6:42 AM  

जिंदगी से ही बात करने का समय नहीं रहा आजकल !

प्रवीण पाण्डेय 4/20/2012 7:57 AM  

हमारी इच्छाओं की तीक्ष्णता जीवन की सरलता को खा जाती है..

राजेश उत्‍साही 4/20/2012 9:05 AM  

जिंदगी से जीवंत संवाद।

Nirantar 4/20/2012 12:25 PM  

मैं ही नींद से उठाती तुम्हें
मैं ही मीठी नींद सुलाती तुम्हें
निरंतर चौकन्ना रखती तुम्हें
इसलिए ज़िन्दगी कहते मुझे

कुमार राधारमण 4/20/2012 12:42 PM  

अच्छी कविता है। जीवन सचमुच ही,स्वयं में कुछ नहीं है। हम जैसा सोचते हैं,जैसा जीना चाहते हैं,वह वैसा ही हो जाता है। अब यह बात और है कि ख़ासकर विपरीत परिस्थितियों में,हमें यह पता ही नहीं होता कि यह सब हमारे किए-सोचे का ही प्रतिफल है।

अशोक सलूजा 4/20/2012 1:11 PM  

हमेशा सुनने वाला जब कभी बोलता है ,तो
सब के राज़ खोलता है ......|
जिन्दगी बोल उठी,और खूब बोली !!!
मुबारक हो !

amrendra "amar" 4/20/2012 2:17 PM  

बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ हैं शुभकामनायें स्वीकार करें !

दिगम्बर नासवा 4/21/2012 4:24 PM  

Sach hai ...jeevan ke hone se hi to sab kuch hai .. Fir kahe use kosna... Useto jeena chahiye ... Lajawab rachna ...

Onkar 4/21/2012 6:03 PM  

bahut gahrai hai aapki is kavita mein

virendra sharma 4/21/2012 7:24 PM  

मैं तो एक
निर्मल नदी सी हूँ
जो हर बाधा को पार कर
पर्वतों से टकरा
पत्थरों पर फिसल
बहती जाती है
अपने गंतव्य की ओर
करती हुई
कल - कल , छल - छल
पर तुमको उसमें
संगीत नहीं
शोर सुनाई देता है
तुमको अपना नहीं
दूसरों का दोष
दिखाई देता है
बढ़िया भाव विरेचन करवा जाती है यह पोस्ट जब भी पढो .

ज़िन्दगी से रु -बा -रु करवाती है ,आइना दिखाती है रहनी सहनी का हमारी खुलकर यह पोस्ट .

Naveen Mani Tripathi 4/21/2012 9:06 PM  

BAHUT HI PRABHAVSHALI AUR GAHAN CHINTAN SE YUKT RACHANA ...BADHAI

देवेन्द्र पाण्डेय 4/22/2012 9:08 AM  

जिंदगी को दरख्तों के साए में लो जायेंगे..दो पल बतियाएंगे तो जिंदगी जीने के राज खोल ही देगी। बड़ी बात तो इससे बतियाना है।

रचना दीक्षित 4/22/2012 10:13 AM  

जिंदगी से संवाद सोचने पर मजबूर करता है. भावों को बहुत सुंदर गीत का रूप दिया है संगीता दी.

हृदयस्पर्शी कविता.
बधाई.

महेन्‍द्र वर्मा 4/22/2012 4:01 PM  

मिलता है जब तक सुख
ज़िंदगी को खुशी से
भोगते हो
ज़रा सा कष्ट आने पर
संघर्ष से डर
मुझको ही कोसते हो

जिंदगी की बातें बिल्कुल सही हैं।
यथार्थवादी कविता।

Anju (Anu) Chaudhary 4/22/2012 6:43 PM  

वाह बहुत खूब दीदी ...


यूँ बोली जिंदगी ..कि
एक नई आवाज़ की प्रतीक्षा थी ,
एक नए आकाश की
जहाँ ..हर कोई अपने मन
दस्तक दे सके .....अनु

virendra sharma 4/23/2012 12:31 AM  

चलती चल बस तू भी मेरी तरह ....

ज़िन्दगी अपनी ढाल चलती है ,तू अपनी चल ,

अशोक सलूजा 4/23/2012 2:05 PM  

१९५३ की ये मेरी पसंद ....बहुत स्नेह के साथ
आपको भेंट एक बड़े भाई की तरफ़ से ....
खुश और स्वस्थ रहें!

Kunwar Kusumesh 4/24/2012 2:10 PM  

सुन्दर भावों को शब्दों में ढाला है .

virendra sharma 4/25/2012 12:33 PM  

बहुत बढ़िया विश्लेषण परक रचना मानव मनोविज्ञान की परतें उधेड़ती .

Arvind Mishra 4/25/2012 8:41 PM  

जो कहे ज़िंदगी बजा है हम उसे सुने

Asha Joglekar 4/26/2012 6:07 PM  

मैं हूं तो तुम हो मैं नही तो तुम भी नही ।

सत्य भी और सुंदर भी ।

सारिका मुकेश 4/27/2012 12:48 PM  

जिंदगी कैसी है पहेली हाय
कोई ये बताए...

जो यह जानना चाहे
आपकी यह कविता पढ़ जाए

बहुत सुंदर कविता! हार्दिक बधाई और धन्यवाद!
सादर/सप्रेम
सारिका मुकेश

Dr (Miss) Sharad Singh 4/27/2012 9:56 PM  

आ ज़िंदगी
चल तुझसे
कुछ बात करें
खुले गगन तले
दरख्त की छांव में
कहीं
एकांत की ठाँव में
चल तुझसे
कुछ बातें करें


बहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।

Smart Indian 4/28/2012 4:08 AM  

बहुत सुन्दर!

आशा बिष्ट 4/28/2012 12:15 PM  

jindgi ko sahi shbdon mein dhala hai...umda rachna..ma'am...
aapka ab mere blog pr naa aana hatotsaahit karta hai...kripya ashirwaad banaye rakhen..

virendra sharma 4/29/2012 1:06 AM  

आपकी द्रुत टिपण्णी के लिए शुक्रिया .कृपया यहाँ भी पधारें -शनिवार, 28 अप्रैल 2012

ईश्वर खो गया है...!

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http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/04/blog-post_992.html

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http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/

Ramakant Singh 4/29/2012 2:30 PM  

मैं तो एक
निर्मल नदी सी हूँ
जो हर बाधा को पार कर
पर्वतों से टकरा
पत्थरों पर फिसल
बहती जाती है
अपने गंतव्य की ओर
करती हुई
bahut sundar jiwan ke karib.

sushila 5/06/2012 11:56 AM  

"ज़िंदगी मुस्काई
बोली -
मैं तो सहज हूँ
सरल हूँ
किसी के लिए भी
नहीं मैं गरल हूँ ,
यह तो तुम ही हो
जो मुझे
कठिन बना देते हो
अपनी सोच को
मुझ पर लाद देते हो "
वाह ! अति सुंदर ! मन मोह लिया इस रचना ने!

sushila 5/06/2012 11:57 AM  

"ज़िंदगी मुस्काई
बोली -
मैं तो सहज हूँ
सरल हूँ
किसी के लिए भी
नहीं मैं गरल हूँ ,
यह तो तुम ही हो
जो मुझे
कठिन बना देते हो
अपनी सोच को
मुझ पर लाद देते हो "
वाह ! अति सुंदर ! मन मोह लिया इस रचना ने!

M VERMA 5/06/2012 12:21 PM  

मैं हूँ तो तुम हो
मैं नहीं तो तुम भी नहीं ....
परम सत्य, जिंदगी रूबरू हुई ..

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') 5/17/2012 5:45 PM  

यह तो तुम ही हो
जो मुझे
कठिन बना देते हो ...

सही कहा दी...
सादर.

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