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शून्यता

>> Tuesday, February 24, 2009





जब कभी मन में
शून्यता घर कर जाती है
तो सोचें सब कुंद हो
मन को जलाती हैं
चाहूँ भी इस जलन से
बाहर आना
सोच फिर मुझे
शून्यता में ले जाती हैं ।

सोचो तो -
क्यों हो जाती है
ज़िन्दगी में नीरसता
क्या है जो मुझे
मन ही मन कचोटता है
शायद मन का है
ये एकाकीपन
जो ऐसा सोचने पर
मुझे विवश करता है ।

फिर आँख बंद कर
मैं ध्यान लगाती हूँ
लगता है कि -
मेरी सोचों को
पंख मिल गए हैं
बंद आँखों से
आसमां दिखता है
शून्य भी सारे
न जाने कहाँ खो गए हैं

छंट जाती हैं सारी निराशाएं
और मिल जाता है
मन से मन मेरा
सारा ब्रह्माण्ड समां जाता है
शून्यता में
जलन को भी
मिल जाती है शीतलता .
















मोहपाश

>> Friday, February 6, 2009





इंसान की फितरत है

कि -

हर मोह में बंधते जाना

हर रिश्ते को

ख़ुद पर ओढ़ते जाना ।

फ़र्ज़ कह - कह कर

ख़ुद को बाँध लेता है इंसान

और जब रिश्ते जकड़ते हैं

तो महसूस करता है घुटन।


देखो परिंदों को

तिनका - तिनका जोड़

बच्चों के लिए नीड़ बनाता है

जब तक पंख नही निकलते

चोंच से दाना भी खिलाता है।

पर जैसे ही

सक्षम होते हैं पंख

उड़ने के लिए

कर देता है आजाद उनको

हर बंधन से.....


काश -

इंसान भी प्रकृति से

ऐसा ही कुछ सीख पाता

तो मोह पाश की जकड़न से

अनायास ही छूट जाता .







ख्वाब और ख्वाहिशें

>> Tuesday, February 3, 2009


ख्वाहिशें कभी मरती नही हैं
और ख्वाब कभी पूरे होते नही
इन्हीं दोनों के दरमियाँ
ज़िन्दगी गुज़रती चली जाती है ।
गर कोई ख्वाब
हकीकत बन जाए
तो फिर वो
ख्वाब कहाँ रह जाता है ?
ख्वाब का तो हमेशा ही
अधूरेपन से नाता है ,
कोई पूरा हुआ तो
वो हकीकत ही कहलाता है ।
और फिर -
मन में एक नया
ख्वाब उभर आता है ।
फिर उस ख्वाब को
संजोने , पोसने और पूरा करने की
ख्वाहिश जन्म लेती है
और ये ख्वाहिशें ....
कभी मरती नही हैं
क्यों कि ---
हर ख्वाब के साथ
नई ख्वाहिशें
जन्म लेती चली जाती हैं।

हमारी वाणी

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