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ख्वाब और ख्वाहिशें

>> Tuesday, February 3, 2009


ख्वाहिशें कभी मरती नही हैं
और ख्वाब कभी पूरे होते नही
इन्हीं दोनों के दरमियाँ
ज़िन्दगी गुज़रती चली जाती है ।
गर कोई ख्वाब
हकीकत बन जाए
तो फिर वो
ख्वाब कहाँ रह जाता है ?
ख्वाब का तो हमेशा ही
अधूरेपन से नाता है ,
कोई पूरा हुआ तो
वो हकीकत ही कहलाता है ।
और फिर -
मन में एक नया
ख्वाब उभर आता है ।
फिर उस ख्वाब को
संजोने , पोसने और पूरा करने की
ख्वाहिश जन्म लेती है
और ये ख्वाहिशें ....
कभी मरती नही हैं
क्यों कि ---
हर ख्वाब के साथ
नई ख्वाहिशें
जन्म लेती चली जाती हैं।

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धुंधली लकीरें

>> Wednesday, January 21, 2009




लोग कहते हैं कि -

हथेली की लकीरों में

किस्मत लिखी होती है ।

मेरी किस्मत भी

स्याह स्याही से लिखी थी ।

फिर भी लकीरें

धुंधली हो गयीं ।

और अब

मेरी किस्मत

कोई पढ़ नही पाता ।

धुंधली होती लकीरें

एक जलन का

एहसास कराती हैं

और मुझे

तन्हाई में ले जाती हैं

जहाँ मैं ख़ुद ही,

ख़ुद को नही पढ़ पाती ।

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दस्तक

>> Tuesday, November 25, 2008


कड़वाहटें मन में जो इतनी हैं

कि गुलों की खुशबू भी नही सुहाती है

कैसे इन काँटों को निकालूँ मैं

कि हर अंगुली मेरी लहुलुहान हुई जाती है

एहसास का ही जज्बा न हो जहाँ

वहां उम्मीद ही क्यों लगायी जाती है

उम्मीद ही नाराजगी का रूप धर कर

दिल के दरवाजों को बंद कर जाती है।

इन बंद दरवाजों को खोलने की कोशिशें

सब यूँ ही व्यर्थ चली जाती हैं

सारी उम्मीदें और चाहतें जैसे

एक खोल में सिमट कर रह जाती हैं ।

फिर चाहे तुम दस्तक देते रहो बार - बार

दिल के कान बहरे ही रह जाते हैं

अपनापन कहीं बीच में रहता नही

अपने लिए ही सब जीते चले जाते हैं.

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हमारी वाणी

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