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त्राटक

>> Saturday, April 26, 2025

 


 
सूरज की आंख में आँख डाल 

जब करती हूँ मंत्रोच्चार 



ॐ मित्राय नमः 



ॐ रवये नमः 



ॐ सूर्याय नमः…



देवत्व से भरता है मन 



मुंद जाते हैं स्वतः नयन



सहसा ललाट पर देखती हूँ 



गहरा सा कटा फटा 



लम्बा तिलकनुमा एक ख़ंजर 



अजीब सा लगता है वह मंज़र 



जैसे स्थापित हो  वहाँ 



महादेव का त्रिनेत्र 



धीरे धीरे वो प्रगाढ़ रंगत



ढल जाती है हल्की रंगत  में 



और  आकार भी हो जाता है  गोल 



कोशिश करने पर भी



नहीं खुल पातीं मुँदी पलकें



बस बदलते रहते हैं रंग और आकार 



हल्के हरे से हल्के नीले 



और फिर सौम्य श्वेत से पलट



कुछ ही पल में



छा जाता है सामने 



सुनहरा प्रकाश 



महसूस होता है मानो



आँखों पर पड़े सारे पर्दे स्वयं लोप हो गए 



और मेरे बन्द नेत्र भी स्वयं ही खुल गए 



लेकिन एक गज़ब  नज़ारा होता है 



चहुँओर गुलाबी रंग छाया होता है 



राग का रंग देख सोच रही हूँ  



ये कोई ईश्वरीय इशारा तो नहीं ?



आँख खुलते ही लौट आती हूँ वापिस 



सांसारिक प्रपंच में 



अध्यात्म से भोगवाद में…



सोच रही हूँ बैठी अब 



वक़्त है माया-मोह के त्याग का 



जीवन से अलगाव का 



मन की स्थिरता और ध्यान हेतु



कल फिर सूरज की 



आँख में आँख डाल निहारूँगी 



मन की कलुषता बुहारूँगी…!!







9 comments:

Anonymous,  4/26/2025 12:56 PM  

क्या बात है। आत्म से अध्यात्म तक।

Sudha Devrani 4/26/2025 10:34 PM  

इस तरह अंतर्मुखी होकर जो रंग अंतःकरण में दिखते हैं उनके सामने ये दुनियाभर की रंगीनियां निपट फीकी लगती है । लगता है ना निभानी होती दुनियादारी तो आँखें बंद ही रखते ।
वक़्त है माया-मोह के त्याग का

जीवन से अलगाव का

मन की स्थिरता और ध्यान हेतु

कल फिर सूरज की

आँख में आँख डाल निहारूँगी

मन की कलुषता बुहारूँगी…!!
अनुभव का सटीक एवं लाजवाब शब्दचित्रण
वाह!!!

Usha kiran,  4/26/2025 11:28 PM  

बहुत सुन्दर कविता…बधाई हो आप प्रशस्त पथ पर अग्रसर हैं…🙏

Anita 4/27/2025 10:16 AM  

ध्यान का जादू अब चलने लगा है, भीतर देवत्व पलने लगा है

संगीता स्वरुप ( गीत ) 4/27/2025 12:50 PM  

ना जाने कितनी बार पढ़ चुकी हूँ,जब भी पढ़ती हूँ,एक नया विचार आता है मन में 😊😊पर ये विचार अड़िग है,जब ईश्वर का ध्यान सच्चे मन से लगाया जाये,मन हल्का हो कर ना जाने किस लोक में चला जाता है,आध्यात्म की कितनी शांति होती है वहाँ,पर ध्यान हटा और माया मोह का खेल शुरू 😊😊आपकी कविता बहुत प्रभावशाली होती है,दिलो दिमाग़ पर अमिट छाप छोड़ जाती है,🙏🙏

नीलिमा कुमार

Bharti Das 4/27/2025 5:50 PM  

बहुत सुंदर, अध्यात्म की शक्ति तन और मन दोनों को ऊर्जा प्रदान करती है

शुभा 4/28/2025 10:34 AM  

वाह! सघन ध्यानानुभूति........!

Priyahindivibe | Priyanka Pal 4/28/2025 12:02 PM  

अंतर्मन की ये सुंदर यात्रा अतीव सुखदायी है , कितना कुछ मिलता है कितना कुछ पीछे छुट जाता है ।

Onkar 5/01/2025 5:31 PM  

बहुत सुंदर

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