उल्लसित धूप
>> Monday, July 16, 2012
तम के गहन बादलों के बीच
आज निकली है
हल्की सी उल्लसित धूप
और मैंने
अपनी सारी ख्वाहिशें
डाल दी हैं
मन की अलगनी पर
इन सीली सीली सी
ख़्वाहिशों को
कुछ हवा लगे
और कुछ धूप
और सीलन की महक
हो सके दूर
साँझ होने से पहले ही
सहेज लूँगी इनको
और डाल दूँगी इनके साथ
वक़्त के नेपथलीन बॉल्स
जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे ।