बूंद बूंद रिसती ज़िंदगी
>> Wednesday, July 11, 2012
ज़िंदगी की उलझने
जब बन जाती हैं सवाल
तो उत्तर की प्रतीक्षा में
अल्फ़ाज़ों में ढला करती हैं
उतर आती हैं अक्सर
मन के कागज पर
जो अश्कों की स्याही से
रचा करती हैं
पढ़ने वाले भी बस
पढ़ते हैं शब्दों को
उनको भी पड़ी लकीरें
नहीं दिखती हैं
लकीरों की भाषा भी
समझना आसान नहीं
वो तो बस
आड़ी तिरछी ही
दिखा करती हैं
मन होता है तिक्त
अपनेपन से
हो जाता है रिक्त
मित्र भी करते हैं कटाक्ष
थक हार कर
बंद कर लिए जाते हैं गवाक्ष
घुट कर रह जाती हैं जैसे सांसें
और ---
बूंद बूंद रिसती है ज़िंदगी
62 comments:
बंद कर लिए जाते हैं गवाक्ष
घुट कर रह जाती हैं जैसे सांसें
और ---
बूंद बूंद रिसती है ज़िंदगी
गहन भाव लिए ...बेहतरीन प्रस्तुति ...आभार
ऐसा ही होता है ज़िंदगी के सवाल पर उत्तर की प्रतीक्षा में बूंद बूंद रिसती है ज़िंदगी... गहन भाव...आभार
पढ़ने वाले भी बस
पढ़ते हैं शब्दों को
उनको भी पड़ी लकीरें
नहीं दिखती हैं
सम्वेदंशील मन की छुपी हुइ गहरी वेदना झलक रही है इस रचना मे .......
बहुत सुंदर रचना ...!!
बहुत गहरे भाव के साथ... सुंदर रचना..
बंद कर लिए जाते हैं गवाक्ष
घुट कर रह जाती हैं जैसे सांसें
और ---
बूंद बूंद रिसती है ज़िंदगी
कितनी गहरी वेदना छुपी है …………ये रचना नही ज़िन्दगी की हकीकत है।
प्रश्नों के हल न मिलें, उलझन बढती जाय
मार्मिक चित्रण || |
एक वेदना एक निराशा झलक रही है रचना में.यूँ भाव हमेशा की तरह बहुत ही गहरे हैं और कहीं मन पर एक टीस सी छोड़ जाते हैं.फिर भी कहूँगी कि बूँद बूँद जिंदगी को रिसने नहीं देना चाहिए ..बल्कि १०० ग्राम जिंदगी है संभाल कर खर्च करनी चाहिए :)
बहुत सुंदर रचना ....
ज़िंदगी की उलझने
जब बन जाती हैं सवाल
तो उत्तर की प्रतीक्षा में
अल्फ़ाज़ों में ढला करती हैं
लकीरों की भाषा भी
समझना आसान नहीं
सही चित्रण ! सच्चाई बयान करती रचना !
वाह सुंदर
सुन्दर ...
खोल देने चाहिए सारे खिड़की और दरवाज़े..........
ज़िन्दगी उडनी चाहिए एक पतंग के मानिंद......
:-)
सादर
अनु
बूँद बूँद रिसती ज़िंदगी मन के घट को कब रीता कर जाती है पता ही नहीं चलता और शेष साँसें एकदम से शुष्क और नीरस होकर जीवन को रेगिस्तान बना जाती हैं ! बहुत दर्द भरी रचना ! कुछ आपबीती सी लगी ! आभार आपका !
दिल की घुटन ...अल्फ़ाज़ों के रूप में !!!
शुभकामनाएँ!
बन्द कपाट खोल दे रे मनवा, जीवन लहर बनाने दे..
बूंद बूंद रिसती ज़िन्दगी
सवालों के भुलभुलैये में
अपनी पहचान से रिसने लगती है
गहन भाव लिए ...बेहतरीन प्रस्तुति ...आभार
बंद कर लिए जाते हैं गवाक्ष
घुट कर रह जाती हैं जैसे सांसें
और
बूंद बूंद रिसती है ज़िंदगी
गहन अर्थ लिए बहुत ही बेहतरीन रचना...
:-)
hamara bachpan beetne k baad kabhi lautTa nahi lekin un dino ke vapis laut aane ki sada chaaht rahti hai...aisi hi ye zindgi hai iske har din ko agar u hi ham boond-boond gehre santaap se risne denge to baad me hame iska pachhtava hoga ki kash ham in dino ko khushiyon me badal pate....aur aap mane n mane 90% ye badlaav apne haath me hota hai...to ab sochiye aap kya chaahti hain....kyu n apni zindgi ki picture aisi banayi jaye jise bar bar dekhne ka dil kare...aakhir director/nirdeshak/lekhak/actor sab aap hi to hain....bataiye fir kyu nahi badal sakte ?
so keep it up. :-)
बहुत अच्छे भाव,सार्थक रचना !
ज़माने का दर्द समेट लाई है पंक्तियों में .. रिसती जिंदगी के छिद्रों को बंद करने का आह्वान भी चहिये .
ये ज़िन्दगी की हक़ीक़त है। इससे रू-ब-रू होकर इससे सामना और मुठभेड़ करना पड़ता है। किसी रचनाकार ने कहा है --
है अगर विश्वास तो मंजिल मिलेगी
शर्त ये है बिन रुके चलना पड़ेगा
जिस जगह भी हो अंधेरों की हुक़ूमत
उस जगह पर दीप सा जलना पड़ेगा।
निराशा होती है सब ओर से लेकिन
' थक हार कर
बंद कर लिए जाते हैं गवाक्ष
घुट कर रह जाती हैं जैसे सांसें
---'
सारे दरवाज़े बंद कर लेना कोई समाधान नहीं .खुली हवा के लिये कुछ खिड़कियाँ खुली रखना साँस लेने के लिये बहुत ज़रूरी है. .
लकीरों की भाषा भी
समझना आसान नहीं
वो तो बस
आड़ी तिरछी ही
दिखा करती हैं
संवेदनशील और सही प्रश्न और उन्हें विभिन्न स्तरों पर समझने की कोशिश है यह कविता.
लकीरों की भाषा भी समझना आसान नहीं...बहुत सुंदर रचना
किसी कवि की रचना देखूं !
दर्द उभरता , दिखता है !
प्यार, नेह दुर्लभ से लगते ,
क्लेश हर जगह मिलता है !
क्या शिक्षा विद्वानों को दूं,टिप्पणियों में,रोते गीत!
निज रचनाएं,दर्पण मन का,दर्द समझते मेरे गीत!
har line achchi lagi.....
संवेदनशील और गहन भावो की बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,,
RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...
गहन भाव...... जीवन के सत्य से जोड़ती रचना
गहन अनुभूति ..
बहुत ही खूबसूरत रचना आभार
पढने वाले भी पढ़ते हैं सिर्फ शब्दों को
और उनके मनचाहे अर्थ निकल
अभिव्यक्तियों का गला दबाने को बेचैन
करते हैं अपने ढंग से व्याख्या !
संवेदनाओं का स्तर जिसका जैसा , वही पढता है लकीरों को अपने मन जैसा ..पढने वालों की एक हकीकत यह भी है !
पढ़ने वाले भी बस
पढ़ते हैं शब्दों को
उनको भी पड़ी लकीरें
नहीं दिखती हैं
लकीरों की भाषा भी
समझना आसान नहीं
बहुत सुंदर !
ज़िंदगी की उलझने
जब बन जाती हैं सवाल
तो उत्तर की प्रतीक्षा में
अल्फ़ाज़ों में ढला करती हैं
उलझनों को सवाल बनने से पहले ही सुलझा लिया तो ...?
अल्फ़ाज़ बयान करते हैं किन्तु आड़ी तिरछी रेखाएँ दर्द और उलझनों की दास्ताँ बन जाती है...कभी कभी समझ से परे हो जाती हैं|
very very nice post!!!!!!!
सच है जिंदगी के दर्द कों कोई नहीं पढता ... सतही शब्द पढ़ के सब चले जाते हैं ... जीवन रीत जाता है ...
ये जिंदगी ऐसी ही हैं
थक हार कर
बंद कर लिए जाते हैं गवाक्ष
घुट कर रह जाती हैं जैसे सांसें
और ---
बूंद बूंद रिसती है ज़िंदगी
गहन भाव लिए सुंदर सी कविता !!
बूंद-बूंद रिसती ज़िंदगी ...लजवाब पंक्तियां उत्कृष्ट गहन भाव अभिव्यक्ति।
ज़िंदगी की उलझने
जब बन जाती हैं सवाल
तो उत्तर की प्रतीक्षा में
अल्फ़ाज़ों में ढला करती हैं
beautiful lines
कुछ होगा कसूर अपना भी
वरना,जिंदगी ऐसी तो न थी
bahut badhiya rachana prastuti...abhar
मन को छू लेने वाली रचना....
थक हार कर
बंद कर लिए जाते हैं गवाक्ष
घुट कर रह जाती हैं जैसे सांसें
और ---
बूंद बूंद रिसती है ज़िंदगी
...बहुत मार्मिक...अपनी ही ज़िंदगी को बूंद बूंद रिसते देखना कितना मुश्किल होता है...गहन अभिव्यक्ति ....
जीवन में यूँ ही कुछ अनुत्तरित प्रश्न रह जाते हें , जिनके उत्तर ढूढ़ते ढूढ़ते थक जाते हैं और हम उन्हीं में फंसे रह जाते हैं.
बहुत सुंदर एवं गहन भाव लिए रचना.
अधिकतर पढ़ने वाले केवल शब्दों को पढ़ते हैं, उनके बीच छिपी अदृश्य लकीरों और खाली जगह को पढ़ने वाले कम ही होते हैं।
प्रभावी कविता।
जीवन की एकत्रित उलझने अपना मार्ग बना कर समक्ष आ ही जाती हैं. बहुत सुंदर कविता.
बंद कर लिए जाते हैं गवाक्ष
घुट कर रह जाती हैं जैसे सांसें
और ---
बूंद बूंद रिसती है ज़िंदगी
गहराई लिए हुए बहुत सुन्दर कविता
आभार
सुन्दर रचना
बहुत कुछ कह जाती हुई सुन्दर रचना दी....
सादर.
http://joypurhatt.blogspot.com/2012/06/joypurhat-district.html
http://dhakaa.blogspot.com/
खूबसूरत अभिव्यक्ति
gambhee vbha liye bahut hee utkrist rachna..sadar badhayee aaur sadar amantran ke sath
gambhee vbha liye bahut hee utkrist rachna..sadar badhayee aaur sadar amantran ke sath
gambhee vbha liye bahut hee utkrist rachna..sadar badhayee aaur sadar amantran ke sath
आपकी कविता के सन्दर्भ में किसी शायर की पंक्तियाँ याद आ गयी
"शब्द को पकड़ें अगर तो अर्थ प्रायः छूट जाता है,
संधि कम ,विग्रह अधिक हैं जिंदगी के व्याकरण में
धुंधलाई आँखे भी देख ही लेती है रिसती जिन्दगी को..आह ...
पढ़ने वाले भी बस
पढ़ते हैं शब्दों को...
sahi kaha sangeeta ji... sirf shabd hi to dikhai dete hain sabko... shabdon ke peechen ka itihas kahan dikh pata hai...
sada ki tarah sundar rachna !
sadar
manju
मन के कागज पर
जो अश्कों की स्याही से
रचा करती हैं
पढ़ने वाले भी बस
पढ़ते हैं शब्दों को
उनको भी पड़ी लकीरें
नहीं दिखती हैं
लकीरों की भाषा भी
समझना आसान नहीं
fir bhi samjhne wale samjh leti hain......behtareen rachna!
प्रश्नोत्तर के पाट में पिसती रही
कुछ लकीरें अनमनी खिंचती रही
कौन प्याले में इकट्ठा कर सका ?
बूँद बन, ये जिंदगी रिसती रही.
गहन सम्वेदना..............
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