जिद्दी सिलवटें
>> Wednesday, June 27, 2012
मन की चादर पर
वक़्त ने डाली हैं
न जाने कितनी सिलवटें
उनको सीधा करते - करते
अनुभवों का पानी भी
सूख गया है
प्रयास की
इस्तरी ( प्रेस ) करने से भी
नहीं निकलतीं ये
और कुछ अजीब से
दाग रह जाते हैं पानी के
कितना ही धोना चाहो
धब्बे हैं कि
बेरंग हो कर भी
छूटते नहीं
काश --
मन की चादर के लिए भी
कोई ब्लीच होता ।
72 comments:
अच्छे मन की सिलवटों पर ....
आज का नकली ब्लीच भी काम नही करता ..?
अच्छे दिल को तो तडपना ही है ....
शुभकामनाएँ!
..हाँ कुछ अनुभव जीवन में ऐसी कड़वाहट छोड़ जाते हैं.....जो हमेशा के लिए अंकित हो जाते दिलो-दिमाग पर......बहुत सशक्त अभिव्यक्ति संगीताजी
काश --
मन की चादर के लिए भी
कोई ब्लीच होता ।
vaah sundar....
काश!
काश मन की सलवटे निकल जाती,,,
बहुत अच्छी सशक्त प्रस्तुति,,,सुंदर रचना,,,,,
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,
सच्ची में मन की चादर के लिए कोई ब्लीच नहीं होता.. बहुत सुंदर...
मन की चादर की सिलवटें अच्छी हैं।
ज्यों की त्यों तो धरी नहीं जा सकती चदरिया !
ब्लीच लगा कर क्या करेंगी? देखने में अलग से लगने लगेगा उतना हिस्सा - कमज़ोर भी तो हो जायेंगे वो तान-बाने .जैसी है ठीक है !
काश ...सच मे बहुत आसान नहीं है ...इनको निकालना ...सशक्त प्रस्तुति दी ...
कुछ सिलवटें स्थायी हो जाती हैं।
काश --
मन की चादर के लिए भी
कोई ब्लीच होता ।
itane sunder bhav aapke hi ho sakte hai di ..
काश --
मन की चादर के लिए भी
कोई ब्लीच होता ।
सच बहुत मुश्किल मन की कड़वाहट के दाग निकलना ....
बहुत बेहतरीन रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
मन की चादर की सिलवटें सीधी करते करते हाथों में झुर्रियाँ पड़ जाती हैं संगीता जी लेकिन चादर वैसी की वैसी ही रह जाती है ! इसीलिये उसे जस की तस ही स्वीकार करना होगा ! बहुत ही प्यारी प्रस्तुति ! बहुत सुन्दर !
samay ke saath man ki silvaten kam jarur hoti hain lekin samapt nahi......
कहीं तो बना होगा ये मन का ब्लीच ...जो धो सके मन के दागो को ..........पर कहते हैं ना ...कुछ दाग अच्छे होते हैं ...ये यादो के दाग भी अच्छे हैं जो वक्त बे वक्त कम से कम अपने तो हैं ना ........
काश --
मन की चादर के लिए भी
कोई ब्लीच होता ।
लेकिन ऐसा कहाँ होता है... गहन भाव
नहीं इस्तेमाल करना चाहिए ब्लीच..अपनी ही त्वचा के लिए हानिकारक होता है.और सही कहा प्रतिभा जी ने चादर पर भी अलग धब्बे सा नजर आएगा.
मन के भावों का सुन्दर चित्रण है.
काश --
मन की चादर के लिए भी
कोई ब्लीच होता ।
kitna achcha hota......
मन की चादर पर
वक़्त ने डाली हैं
न जाने कितनी सिलवटें
बहुत सुंदर रचना संगीता जी... मन की सिलवटें जिद्दी ही होती हैं...पड़ गयीं सो पड़ गयीं, लाख जतन करो जाती नहीं.....
Manju
@मन की चादर के लिए भी
कोई ब्लीच होता ।
...तब तो सबके मन गंदे होते,
साफ़ किये जाते,
फिर से गंदे होने के लिए !
बहुत सुंदर रचना शुभकामनाएँ जी..
बहुत सुंदर रचना शुभकामनाएँ जी..
वक़्त ही वह ब्लीच है मगर असर बहुत ही धीरे धीरे करता है. सिलवटें और दाग बहुत कुछ सिखाते भी तो हैं.
नये प्रतीकों में उत्कृष्ट रचना .
बहुत खुबसूरत प्रस्तुति |
बधाइयां -
कुछ पंक्तियाँ
सादर
सौ जी.बी. मेमोरियाँ, दस न होंय इरेज |
रोम-रैम में बाँट दे, कुछ ही कोरे पेज |
कुछ ही कोरे पेज, दाग कुछ अच्छे दीदी |
रखिये इन्हें सहेज, बढे इनसे उम्मीदी |
रविकर का यह ख्याल, किया जीवन में जैसा |
रखे साल दर साल, सही मेमोरी वैसा ||
बिल्कुल सही...कुछ सिलवटें सच में नहीं जाती....बहुत सुन्दर रचना...
काश --
मन की चादर के लिए भी
कोई ब्लीच होता ।
कवि मन के उम्दा खयालात !
मन पर पड़े दाग धूल जाएँ तो हम अनुभवी कैसे होंगे .... आंसू कितने भी बहें पर सीख मिलती है
बस मन की चादर के लिये ही तो ब्लीच नही होता इसे तो खुद ही समझाना पडता है…………गहन अभिव्यक्ति।
अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ... बेहतरीन अभिव्यक्ति ...आभार
प्रतिभा जी के कथन से पूर्ण सहमती . चादर की ताना बाना से खेलना हो सकता है ब्लीच का प्रयोग . सफ़ेद चादर में थोडा ज्यादा टिनोपाल प्रयोग करे .
मन की चादर पर पड़ी सिलवटें आभासी हैं..सिर्फ लगता है कि हैं पर वहाँ कुछ भी नहीं है...मन तो निष्पाप, निर्दोष शिशु सा तकता रहता है..
काश मन की चादर के लिये भी कोई ब्लीच होता। वाकई मन की चादर जिस दिन ब्लीच हो जाये समझिये जीवन सफ़ल हो गया।
क्षमा सहित- यहाँ स्त्री शब्द का प्रयोग आपने प्रेस के लिये किया है तो आप इस्त्री लिख सकती हैं।
सादर
सुनीता शानू
सभी पाठकों का शुक्रिया ।
रविकर जी ,
आपकी टिप्पणी हमेशा ही कुछ अच्छी सीख देती है,
शुक्रिया
@@ सुनीता शानू ,
बहुत बहुत शुक्रिया .... सही शब्द याद दिलाने के लिए ..... कभी कभी जैसे बुद्धि कुंद हो जाती है ..... सही कर दिया है .... एक बार फिर आभार
इन सिलवटॊ की तह जम जाती है, इसलिए ये सीधे नहीं होते। बिम्बों का अच्छा प्रयोग कविता के भाव को अद्भुत आयाम देता है।
जीवन की एक सच्चाई को कितने सहज ढंग से आपने कह दिया, वाकई मन की चादर इतनी सफेद होती है और इतनी निर्मल कि एक कटु अनुभव उसको मलिन और अस्त व्यस्त कर देता है. बहुत सुंदर प्रस्तुति !
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
इस प्रविष्टी की चर्चा शुक्रवारीय के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
इन सफिलों में वो दरारें हैं ,
जिनमे बसकर नमी नहीं जाती ,
मन की सिलवट कभी नहीं जाती ,
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति है संगीता जी आपकी .
बहुत सशक्त और भावपूर्ण प्रस्तुति |्संगीता जी..
धब्बे जो कह रहे हैं उन्हें कहने दीजिए
क्योंकि
ब्लीच से तो स्वाभाविक रंग भी उतर जाते हैं.
लाजवाब रचना
बहुत खूब.... आपके इस पोस्ट की चर्चा आज 29-6-2012 ब्लॉग बुलेटिन पर प्रकाशित है ..अपने बच्चों के लिए थोडा और बलिदान करें.... .धन्यवाद.... अपनी राय अवश्य दें...
बहुत खूब...क्या पता कभी इस ब्लीच का आविष्कार भी हो जाए:)
सादर
नए प्रतीकों के प्रयोग से कविता काफी प्रभावशाली और सम्प्रेषणीय बन गई है।
अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...
आदरणीया संगीता स्वरूप जी की रचना पर....
रोज रुलाती सिलवटें , दाग करें उपहास
जीवन में दोनों मिले,पतझर औ मधुमास
पतझर औ मधुमास,ब्लीच बस समय है करता
धुँधलाता हर दाग मगर है अक्स उभरता
जैसी भी है चादर ही तो अपनी थाती
काँधे से टिककर सिलवट है रोज रुलाती.
नये प्रतीकों में स्मृतियों की सुंदर परिभाषा रचने के लिये बहुत बहुत बधाई.
June 29, 2012 9:42 AM
रविकर फैजाबादी said...
दीदी की रचना सभी, भाव पूर्ण अति-गूढ ।
लेकिन अल्प प्रयास से, समझे रविकर मूढ़ ।
समझे रविकर मूढ़, टिप्पणी बढ़िया भाई ।
अरुण-निगम आभार, समझ में पूरी आई ।
मन की चादर चार, अगर हो जाती बोलो ।
दाग दार बेकार, नई वाली लो खोलो ।।
June 29, 2012 9:52 AM
काश --मन की चादर के लिए भी कोई ब्लीच होता ।
waah bahut hi sundar rachna....
मानस पटल पर कुछ चीजें अमिट बन कर रह ही जाती हैं ....
सुंदर रचना !!
kaash man ki chadar ke liye bhi koi bleech hota ....vaah vaah sangeeta ji
lajabaab bimb.
सिलवटें समय की हैं आसानी से नहीं जायेंगी !
आभार अच्छी रचना के लिए !
वाह क्या बात है
ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया .....मन की चादर बे -दाग बे -सलवट ही रहती है बस दृष्टा बन जाओ मेरे साथ नहीं मेरे शरीर रुपी नाम धारी के साथ हो रहा है यह मैं तो ये हूँ एक आत्मा ...कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
शुक्रवार, 29 जून 2012
ज्यादा देर आन लाइन रहना माने टेक्नो ब्रेन बर्न आउट
http://veerubhai1947.blogspot.com/
ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया .....मन की चादर बे -दाग बे -सलवट ही रहती है बस दृष्टा बन जाओ मेरे साथ नहीं मेरे शरीर रुपी नाम धारी के साथ हो रहा है यह मैं तो ये हूँ एक आत्मा ...कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
शुक्रवार, 29 जून 2012
ज्यादा देर आन लाइन रहना माने टेक्नो ब्रेन बर्न आउट
http://veerubhai1947.blogspot.com/
देर से आई हूँ दी......मगर सॉलिड आइडीया लायी हूँ............
आप नए रंग से रंग डालिए........
कोई दाग...कोई सलवट....कोई खोट नहीं दिखेगा....
:-)
सादर.
सुन्दर कविता संगीता जी ! समयाभाव में सभी को पढ़ना जरा असंभव सा है ! ! ढेरो बधाई
मन की चादर के लिए भी कोई ब्लीच होता ...
बहुत खूब ... सच कहा है मन की चादर पे पड़े दाग बहुत जिद्दी होते हैं ... निकलते ही नहीं ... गहरे अनुभव की बात लिखी है ...
मन का 'ब्लीच' मार्कीट में मिलने वाली चीज़ तो नहीं दिखती. लेकिन होगा तो ज़रूर. सुंदर कविता.
बहुत खुबसूरत लाजवाब रचना
नए रंग से रंग डालिए........
कोई दाग...कोई सलवट....कोई खोट नहीं
मन की चादर के लिए भी
कोई ब्लीच होता ।
काश ...!!! सच में ऐसा होता ....
जाने वक़्त डालता है कितनी सलवटें , अनुभवों का पानी , प्रयास के इस्त्री ...
अनूठे बिम्ब !
काश --
मन की चादर के लिए भी
कोई ब्लीच होता ।
...मन की चादर पर लगे दाग कहाँ छूट पाते हैं...बहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति...
मन की चादर पर होतीं हैं सलवटें ,बीते हुए कल की ,उनके अक्श की जो कितने अपने दिखते थे ,...आगे पीछे दिखते थे हर दम हमारे ...रहने दो पड़ी इन सलवटों को ,क्या कर लेंगी सलवटें ,पड़ी रहने दो इन्हें अचेतन के खड्ड में ,विस्मृति कोष बन .बढ़िया प्रस्तुति है आपकी .
सब स्थाई लगता है लेकिन है सब क्षणिक, धब्बे भी, सलवट भी और वस्त्र भी :(
सुन्दर रचना
मन की सिलवटों के बिना भी तो कुछ अधूरा सा लगता है। कभी कभी इन सिलवटों की तहों मे कुछ लम्हें जीने का सहारा बन जाते हैं।
sateek bimbo ke prayog se sada hi aapki rachnaye sunder roop se sushobhit hoti hain.
मन की चादर पर
वक़्त ने डाली हैं
न जाने कितनी सिलवटें
उनको सीधा करते - करते
अनुभवों का पानी भी
सूख गया है
मन को छू लेने वाली बहुत सशक्त रचना....
कैसे मान लूँ की मन की चादर के लिए ब्लीच नहीं होता .होता है न- प्रेम .बार बार ये धब्बो को धो मिटाकर साफ़ कर देता है
कृपया मेरे इ-मेल (kumar.santosh.7@gmail.com) पर इ-मेल कर अपना इ-मेल पता बताने का कष्ट करें..कुछ मार्गदर्शन चाहूँगा...
सादर
होता है न ब्लीच, सकारात्मक विचार ।
पर बहुत अलग सी है यह प्रस्तुति और भावभरी भी ।
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति। मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद।
शुक्रिया मोहतरमा आपकी जर्रानवाजी का .
कई बार,अपने मन से मुक्त होना ही समाधान होता है।
कल 11/07/2012 को आपकी किसी एक पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
'' अहा ! क्या तो बारिश है !! ''
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