पुस्तक परिचय -------" मेरे गीत " / गीतकार --- सतीश सक्सेना
>> Thursday, June 14, 2012
कुछ दिन पूर्व सतीश सक्सेना जी के सौजन्य से मुझे उनकी पुस्तक " मेरे गीत " मिली और मुझे उसे गहनता से पढ़ने का अवसर भी मिल गया । सतीश जी ब्लॉग जगत की ऐसी शख्सियत हैं जो परिचय की मोहताज नहीं है । आज अधिकांश रूप से जब छंदमुक्त रचनाएँ लिखी जा रही हैं उस समय उनके लिखे भावपूर्ण गीत मन को बहुत सुकून देते हैं । उनके गीतों और भावों से परिचय तो उनके ब्लॉग पर होता रहा है लेकिन पुस्तक के रूप में उनके गीतों को पढ़ना एक सुखद अनुभव रहा । पुस्तक पढ़ते हुये यह तो निश्चय ही पता चल गया कि सतीश जी एक बहुत भावुक और कोमल हृदय के इंसान हैं ।
बचपन में ही माँ को खो देने पर भी जो छवि माँ की मन में अंकित की है उसकी एक झलक उनकी माँ को समर्पित उनके गीतों में मिलती है --
हम जी न सकेंगे दुनियाँ में
माँ जन्में कोख तुम्हारी से
जो दूध पिलाया बचपन में
यह शक्ति उसी से पायी है
जबसे तेरा आँचल छूटा, हम हँसना अम्मा भूल गए
हम अब भी आँसू भरे , तुझे टकटकी लगाए बैठे हैं ।
या फिर माँ की याद में एक काल्पनिक चित्रण कर रहे हैं ---
सुबह सवेरे बड़े जतन से
वे मुझको नहलाती होंगी
नज़र न लग जाये, बेटे को
काला तिलक लगाती होंगी
चूड़ी, कंगन और सहेली , उनको कहाँ लुभाती होगी ?
बड़ी बड़ी आँखों की पलकें , मुझको ही सहलाती होंगी ।
ईश्वर के प्रति भी अगाध श्रद्धा भाव रखते हुये सारी प्रकृति के रचयिता को याद करते हुये कह उठते हैं --
कल - कल , छल- छल जलधार
बहे , ऊंचे शैलों की चोटी से
आकाश चूमते वृक्ष लदे
हैं , रंग बिरंगे फूलों से
हर बार रंगों की चादर से , ढक जाने वाला कौन ?
धरा को बार बार रंगीन बना कर जाने वाला कौन ?
इनके गीतों में पारिवारिक भावना बहुत प्रबलता से महसूस होती है .....
कितना दर्द दिया अपनों को
जिनसे हमने चलना सीखा
कितनी चोट लगाई उनको
जिनसे हमने हँसना सीखा
स्नेहिल आँखों के आँसू , कभी नहीं जग को दिख पाये
इस होली पर , घर में आ कर , कुछ गुलाब के फूल खिला दें ।
वृद्ध होते पिता के मनोभावों को जिस तरह गीत में उकेरा है उससे जहां मन भीगता है वहीं प्रेरणा भी मिलती है --
सारा जीवन कटा भागते
तुमको नर्म बिछौना लाते
नींद तुम्हारी न खुल जाये
पंखा झलते थे सिरहाने
आज तुम्हारे कटु वचनों से ,मन कुछ डांवाडोल हुआ है
अब लगता तेरे बिन मुझको , चलने का अभ्यास चाहिए ।
सामाजिक सरोकारों को भी गीतकार नहीं भूला है । उनके गीत की ये पंक्तियाँ आपसी भेद भाव भुला देने के लिए काफी हैं ---
चल उठा कलम कुछ ऐसा लिख
जिससे घर का सम्मान बढ़े
कुछ कागज काले कर ऐसे
जिससे आपस में प्यार बढ़े
रहमत चाचा के कदमों में , बैठे पाएँ घनश्याम अगर ,
तो रक्त पिपासु दरिंदों को , नरसिंह बहुत मिल जाएँगे ।
एक ओर जहां धर्म के ठेकेदारों पर भी गीतकार की कलम चली है वहीं दलित वर्ग के शोषण को भी उजागर किया है ---
बीसवीं सदी में पले बढ़े
ओ धर्म के ठेकेदारों तुम
मंदिर के द्वारे खड़े हुये
उन मासूमों की बात सुनो
बचपन से इनको गाली दे , क्या बीज डालते हो भारी
इन फूलों को अपमानित कर क्यों लोग मानते दीवाली ?
******************************
वंचित रखा पीढ़ियों इन्हें
बाज़ार हाट दुकानों से
सब्जी , फल , दूध , अन्न अथवा
मीठा खरीद कर खाने से
हर जगह सामने आता था , अभिमान सवर्णों का आगे
मिथ्या अभिमानों को लेकर क्यों लोग मनाते दिवाली ।
सतीश जी के सभी गीत भावप्रबल हैं । इस पुस्तक में यूं तो सभी गीत सुंदर और कोमल भावों के एहसास को सँजोये हुये हैं लेकिन सबसे ज्यादा मुझे जिस गीत ने प्रभावित किया है वह है --- पिता का खत पुत्री को
इस गीत में गीतकार हर उस पिता की भावनाओं को कह रहा है जिसकी बेटी ब्याह कर पराए घर को अपनाने जा रही है .... उस पराए घर को अपना बनाने की सीख देता यह गीत बहुत सुंदर बन पड़ा है -
मूल मंत्र सिखलाता हूँ मैं
याद लाडली रखना इसको
यदि तुमको कुछ पाना हो
देना पहले सीखो पुत्री
कर आदर सम्मान बड़ों का , गरिमामयी तुम्ही होओगी
पहल करोगी अगर नंदनी , घर की रानी तुम्ही रहोगी ।
*******************
कार्य करो संकल्प उठा कर
हो कल्याण सदा निज घर का
स्व-अभिमानी बन कर रहना
पर अभिमान न होने पाये
दृढ़ विश्वास हृदय में ले कर कार्य करोगी, सफल रहोगी
पहल करोगी अगर नंदनी .....
पुस्तक में एक - दो जगह कुछ वर्तनी अशुद्धि दिखाई दी लेकिन सुंदर गीतों के आगे वो नगण्य ही है .... जैसे --
पृष्ठ संख्या - 25 पर
बरसों मन में गुस्सा बोयी
ईर्ष्या ने, फैलाये बाज़ू
गुस्सा शब्द पुल्लिंग होने के कारण बोयी के स्थान पर बोया आना चाहिए था ।
कुछ टंकण अशुद्धियाँ भी दिखीं जैसे
पृष्ठ संख्या -56
दवे हुये जो बरसों से थे .....
दवे की जगह दबे होना चाहिए था ...
इसी पृष्ठ पर --
द्रष्टिभर के स्थान पर दृष्टिभर सही रहता ।
एक संशोधन की आवश्यकता थी , शायद इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया --- पृष्ठ संख्या 49 पर जो गीत है वही पृष्ठ संख्या 59 पर भी है । बस गीत का शीर्षक अलग अलग है --- ज़ख़्मों को सहलाना क्या / कैसे समझाऊँ मैं तुमको पीड़ा का सुख क्या होता है ।
पुस्तक की बाह्य साज सज्जा सुंदर है ,छपाई स्पष्ट है .... हर पृष्ठ पर सौंदर्य बढ़ाने हेतु किनारा ( बौर्डर ) बनाया गया है । उसे देख मुझे ऐसा लगा कि जैसे गीतों ने अपनी उन्मुक्तता खो दी है ..... भावनाओं को जैसे बांधने का प्रयास किया गया हो ...यह मेरी अपनी सोच है ...इससे गीतों के रस और भावनाओं पर कोई असर नहीं पड़ने वाला ....
कुल मिला कर आज के परिपेक्ष्य में " मेरे गीत " पुस्तक नि: संदेह पाठक को भावनात्मक रूप से बांधने मे सक्षम है ।इस पुस्तक के गीत कार सतीश सक्सेना जी को मेरी हार्दिक शुभकामनायें ।
पुस्तक का नाम ---- मेरे गीत
गीतकार ----- सतीश सक्सेना
मूल्य ----------- 199 /
आई एस बी एन -- 978-93-82009-14-6
प्रकाशन - ज्योतिपर्व प्रकाशन
55 comments:
अलग अलग भावमय गीत और आपकी कलम की आवाज़ - इससे बेहतर सुर और क्या
बढ़िया समीक्षा.
सतीश जी को गीत संग्रह के लिए बधाई.
आप दोनों को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ !
बढ़िया समीक्षा के लिए और मेरे गीत के लिए .....
आपकी इतनी उत्कृष्ट समीक्षा ने सतीश जी की इस पुस्तक के प्रति मेरी जिज्ञासा को बहुत बढ़ा दिया है ! चेष्टा रहेगी कि यह पुस्तक जल्दी ही मेरे निजी संकलन की शोभा बढ़ाये ! सतीश जी को इस अनुपम उपलब्धि के लिए व आपको इतनी सुन्दर समीक्षा प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक बधाइयाँ व शुभकामनाएं !
सतीश जी निश्चय ही भावुक और कोमल हृदय व्यक्ति हैं
बहुत ही उत्कृष्ट समीक्षा ... मधुर गीतों की झलक अपने बाखूबी दी है ... दोनों कों बधाई ...
सतीश जी के पिटारे से आपके द्वारा चुने हुए मोती पिटारे के सम्बन्ध में उत्सुकता बढ़ा रहे हैं दी...
सुन्दर समीक्षा...
आदरणीय सतीश जी को सादर बधाईयाँ....
सादर आभार
बढ़िया समीक्षा.
सतीश जी को गीत संग्रह के लिए बधाई....!!!!
पुस्तक की समीक्षा पुस्तक पढ़ने की उत्सुकता जगा रही है...!!
खूबसूरत शब्दों में सटीक समीक्षा ...बहुत खूब
आपकी समीक्षा ने तो पुस्तक को हाथ लगाये बगैर ही पढ़ा दिया. बहुत सटीक विश्लेषण किया है. सतीश जी के ब्लॉग से ही पता चलता है कि वे बहुत अच्छे कवि और गीतकार हें.
आप दोनों को बधाई और शुभकामनाएँ
...अब तक की सबसे बढ़िया समीक्षा ,पर टंकण की गलतियाँ विस्तार से न बताया जाता तो ज़्यादा ठीक था.
@द्रष्टिभर के स्थान पर दृष्टीभर
..क्या यह सलाह भी सही है ?
दृष्टिभर कहना चाह रही हैं शायद...?
.अब तक की सबसे बढ़िया समीक्षा ,पर टंकण की गलतियाँ विस्तार से न बताई जातीं तो ज़्यादा ठीक था.
@द्रष्टिभर के स्थान पर दृष्टीभर
..क्या यह सलाह भी सही है ?
दृष्टिभर कहना चाह रही हैं शायद...?
बहुत सटीक विश्लेषण,,, सतीश जी को मेरे गीत संग्रह के लिए बधाई...
समीक्षा प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक बधाइयाँ व शुभकामनाएं !
आप दोनों को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ !एक बेहद सटीक और सार्थक समीक्षा।
ये न हुई समग्र व सम्पूर्ण समीक्षा/आलोचना..आप दोनों को बधाई..
बहुत ही अच्छी समीक्षा की है आपने ... सतीश जी को पुस्तक प्रकाशन पर बहुत-बहुत बधाई आपका आभार
सतीश सक्सेना जी को हार्दिक शुभकामनाएँ .
सतीश जी को नियमित पढ़ती हूँ.....
रचनाओं से ही पता लगता है कि वे एक अच्छे इंसान हैं...
बहुत अच्छी,विस्तृत और निष्पक्ष समीक्षा ....
बधाई बधाई....
आप दोनों को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ !....बहुत ही उत्कृष्ट समीक्षा की है संगीता जी
सभी पाठकों का शुक्रिया ....
संतोष जी ,
आपका विशेष आभार ... त्रुटि को सुधार लिया गया है ।
इस विषद समीक्षा के लिए आभार ...
आपकी बतायीं गयी त्रुटियों से, आपकी नज़र की बारीकी का कायल एवं आभारी हूँ , निश्चित ही अगले संस्करण में यह अशुद्धियाँ ठीक हो जायेंगी !
अरुण चंद्र राय ( प्रकाशक ) के पास यह लेख भेज रहा हूं
अपनों के प्रति आभार व्यक्त करना नहीं आता आशा है नाराज नहीं होंगीं :)
सादर
सतीश जी के गीतों में गहराई है। संस्कारों के लिये शालीन आग्रह है। सबसे बडी बात है गेयता, यह आजकल कम ही मिलती है।
सतीश जी को इस उपलब्धि के लिए बहुत बधाई, आपको इतनी सुन्दर समीक्षा प्रस्तुत करने के लिए। शुभकामनाएं कि एसे अवसर बार बार आएं !
अच्छी समीक्षा है!
फिर से चर्चा मंच पर, रविकर का उत्साह |
साजे सुन्दर लिंक सब, बैठ ताकता राह ||
--
शुक्रवारीय चर्चा मंच ।
आप दोनों को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ !एक बेहद सटीक और सार्थक समीक्षा।
Behad achhee sameeksha.Satishji ka lekhan kamal ka hai!
बहुत ही बेहतरीन समीक्षा
:-)
सतीश जी को बहुत -बहुत बधाई
और शुभकामनाये
:-)
पढ़ने की उत्कण्ठा तीव्र है..
badhayee satish jee ko....apne bade hi khoobsurat andaz men pesh kiya.
हमारी प्रति शायद अभी रास्ते में है. पर इस समीक्षा को पढकर जल्दी उसे पढ़ने का मन हो आया है.
सटीक और सार्थक समीक्षा की है आपने.
आपको और सतीश जी को बधाई.
समीक्षा से गुज़रना पुस्तक से गुज़रने के समान था। अब तो पुस्तक पढ़ने की रुचि जग गई।
बहुत सुन्दर समीक्षा। सतीश जी को भी बधाई।
बढ़िया समीक्षा के लिये बधाई स्वीकारे !
सार्थक समीक्षा के दिल से शुभकामनाएँ ....ये पुस्तक हम तक भी आ चुकी हैं ....अभी पढ़ना जारी हैं .....आभार
पुस्तक भेजे जाने की आहट मिली थी ,आधी दुनिया पार करने में समय तो लगेगा ही.संगीता जी की सुरुचिपूर्ण समीक्षा ने उत्सुकता और बढ़ा दी .प्रतीक्षा के बाद का आनन्द कितना सुखकर होगा !
रचयिता और पारखी दोनो को पुनःबधाई !
गीतकार समाज का दिशा दर्शक होता है ०नव आह्वान करता है ,समष्टि के दुःख दर्द को जुबां देता है..
आपने गीतकार के कृतित्व के इन पहलुओं को उभारा है ०अच्छी लगी समीक्षा !
रिश्तों के समर्पण को शालीनता से गीतों में ढालना रचनाकार की विशेषता है .
भावमय गीतों की विस्तृत बेहतरीन समीक्षा!
आपकी निष्पक्ष और सुन्दर समीक्षा अच्छी लगी। सहृदय कवि सतीश जी को जानना गर्व का विषय है।
कल उनकी पुस्तक का विमोचन है। हर समीक्षा उत्कंठा बढ़ाती जा रही है।
सतीश जी को हमेशा पढ़ती रही हूँ ...संगीता जी आपने बहुत सही लिखा है ...सतीश जी बहुत भावना प्रधान गीत लिखते हैं .....आपने बहुत मेहनत से और बहुत बारीकी से बढ़िया समीक्षा दी है ...!!
दोनो लेखक वा समीक्षक को मेरी हार्दिक बधाई एवम शुभकामनायें...!!
उत्कृष्ट समीक्षा।
प्रायः गीत के सभी विषयों पर गहन दृष्टि डाली है आपने।
बढ़िया समीक्षा.....सतीश जी को बधाई....शुभकामनाएँ
सतीश जी के कविता संग्रह ‘मेरे गीत‘ की विस्तृत और सुगढ़ समीक्षा अच्छी लगी।
आप दोनों को बधाई।
सतीश सक्सेना जी की पुस्तक की समीक्षा यहाँ देने के लिए आभार. उनके गीतों में मानव मूल्यों के प्रति एक ज़िद है जो उनके काव्य की सार्थक दिशा की ओर इंगित करती है. आपका आभार संगीता जी.
Bahut hi sundar sangrah hai.
पुस्तक की बहुत अच्छी समीक्षा की है आपने. सुन्दर रचनाओं के कुछ अंश पढ़ने को मिले, धन्यवाद. सतीश जी को बधाई.
उत्कृष्ट समीक्षा. मेरे गीत की काफी तारीफ़ सुन चुकी हूँ. इस पुस्तक की पढाने की उत्कंठा बहुत बढ़ गयी है.
आपको, सतीश जी और अरुण को बहुत बधाइयाँ.
ममा... मैं बहुत गन्दा हूँ सच में.. बहुत ही गंदा... एक तो मैं वैसे भी लिमिटेड पोस्ट्स पढ़ता हूँ.. .. और अपनों को भूल जाता हूँ.. .. बट ममा आई लव यू... और आप कुछ भी लिक्खें वो तो अच्छी होनी ही होनी है.. सतीश जी की समीक्षा तो आपने बहुत अच्छी लिखी है.. एकदम क्लास..
ममा... मैं बहुत गन्दा हूँ सच में.. बहुत ही गंदा... एक तो मैं वैसे भी लिमिटेड पोस्ट्स पढ़ता हूँ.. .. और अपनों को भूल जाता हूँ.. .. बट ममा आई लव यू... और आप कुछ भी लिक्खें वो तो अच्छी होनी ही होनी है.. सतीश जी की समीक्षा तो आपने बहुत अच्छी लिखी है.. एकदम क्लास..
कल 03/07/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
aapke likhe ek ek shabd se sahmat hoon ,sunder likhte hain satish ji .aur aapne bahut hi sunder samiksha likhi hai
rachana
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