हमारे मौन
>> Monday, June 18, 2012
नि: शब्द हूँ मैं
तुम्हारे मौन को
पालती हूँ
पोसती हूँ
और जब
होता है मौन
मुखरित तो
हतप्रभ सी
रह जाती हूँ ,
हमारी सोचें
कितनी भी हों
विरोधाभासी
फिर भी कभी
"हम" के वजूद से
नहीं टकरातीं
जब तुम्हारा "मैं "
आता है सामने
तो मैं ---
हम बन जाती हूँ
और जब मेरा "मैं "
दिखता है तुम्हें
तो तुम --
हम बन जाते हो ,
यूं ही हमारे मौन
अक्सर एक दूजे को
नि: शब्द सा करते हैं ।
62 comments:
शब्द ही हमें मिला देते हैं !
khubsurat maun:)
बहुत सुन्दर भाव दी........
सादर
मैं और हम ...बहुत सुन्दर
सार्थक मौन!
अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ...आभार
एक हम सारी दूरी मिटा देता है ...
बहुत खूब आंटी!
सादर
Aapne mujhe nishabd kar diya.
vaah ...........bahut khoobsoorat bhaav
मेरा , तुम्हारा ..अपना अपना मौन फिर भी हमारा मौन..
बस यही है.
बहुत सुन्दर भाव.
आसमान की छवि सागर समेटे हुए ....कितना विस्तार है इस मौन मे ....कितना समर्पण है इस मौन मे ....कितना शाश्वत प्रेम है इस मौन मे ..बहुत सुंदर अभिव्यक्ति दी ....
जब हम कायम है तो क्या गम है...मुखरित मौन !!
BAHUT SUNDAR RACHNA
जब मेरा मौन मेरे ही भीतर दम तोड़ता हैं ....तो शब्द और विचार बनते हैं ...
हम और मैं का निशब्द भावपूर्ण मिलन..
कविता में मैं यानी अहम् और हम का सटीक विश्लेषण प्रभावपूर्ण ढंग से समाहित है।
वाह: बहुत सुन्दर रचना.. जी..
ye HAM sakaaraatmak soch ke sath ham bane to kitna sukhdayi hai.
एक दूजे से जुड़े रहने के निशब्द करते भाव
hamen bhi nihshabd kar din aaj to.....
खामोशी की यह भाषा जिसे पढना और समझना आ जाती है जीवन उसके लिए सुरभित फूलों की फुलवारी बन जाता है और जो नहीं समझ पाते वे सदैव अनर्गल शब्दों के काँटों की चुभन झेलने के लिए शापित बने रहते हैं कभी 'हम' नहीं बन पाते! बहुत ही सुन्दर रचना !
मौन की थाह बड़ी मुश्किल से मिलती है - जाने क्या-क्या छिपा होता है उसमें !
मैं और हम में बस अहं न हो यही सबसे अहम है।
बाक़ी मैं क्या, और हम क्या, सब मन का भरम है।
दुनिया पूछती है मैं कौन और तू कौन है
किसी को नहीं पता, हर कोई मौन है।
बहुत सुंदर भाव लिये रचना ,,,
RECENT POST....: न जाने क्यों,
मौन मौन को पल्लवित करता है..
mai aur ham ke beech bahut hi sundar bhav .............
बहुत सुन्दर भाव
बहुत सुन्दर रचना ....
:-)
बहुत खूब ...
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - बुंदेले हर बोलों के मुंह, हमने सुनी कहानी थी ... ब्लॉग बुलेटिन
हम में बहुत शक्ति है।
हमारी सोच कितनी भी विरोधाभासी हो , हम हम ही रह जाते हैं ...कुछ रिश्तों में मैं की गुंजाईश जो नहीं होती !
मौन में बड़ी शक्ति होती है... :)
बहुत सुंदर रचना अर्थपूर्ण !
कल 20/06/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
बहुत मुश्किल सा दौर है ये
जब मौन एक दूजे को नि:शब्द करता है ...
तो फिर उसमें अपनापन जगता है !!!
beautiful
जब तुम्हारा "मैं "
आता है सामने
तो मैं ---
हम बन जाती हूँ
और जब मेरा "मैं "
दिखता है तुम्हें
तो तुम --
हम बन जाते हो ,
गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ...
बहुत सुंदर व्याख्या मैं और हम की ....
जब तुम्हारा "मैं "
आता है सामने
तो मैं ---
हम बन जाती हूँ
और जब मेरा "मैं "
दिखता है तुम्हें
तो तुम --
हम बन जाते हो ,
....बस यही भाव बना रहे तो जिंदिगी में खुशियाँ ही खुशियाँ होंगी...बहुत सुन्दर रचना...
'तू तू मैं मैं 'बंद करने का बढ़िया नुस्खा है यह बढ़िया कविता 'मैं' का एहम जागृत होने पर परस्पर 'हम' हो जाना .न हो ऐसा तो हो जाए 'तू तू मैं मैं '
'तू तू मैं मैं 'बंद करने का बढ़िया नुस्खा है यह बढ़िया कविता 'मैं' का एहम जागृत होने पर परस्पर 'हम' हो जाना .न हो ऐसा तो हो जाए 'तू तू मैं मैं '
कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
बुधवार, 20 जून 2012
क्या गड़बड़ है साहब चीनी में
http://veerubhai1947.blogs
.
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जब तुम्हारा "मैं "आता है सामने तो मैं ---हम बन जाती हूँ और जब मेरा "मैं "दिखता है तुम्हें तो तुम --हम बन जाते हो ,
बहुत सुंदर पंक्तियाँ...यही तो प्यार है जहाँ मैं खो जाता है...
चाहे मौन हों या शब्द ... जब एक मैं हो तो दूसरे का मैं न जागे ... बस हम की ही बात हो तो जीवन सुखद रहता है ... गहरी बात कही है इस माध्यम से ....
बहुत सुंदर भावों को रूप दिया. 'अहम् ' का स्वरूप ही ऐसा है कि जब वह 'वयं' में समाहित हो जाता है तो अपने अस्तित्व को खो बैठता है और यही सामंजस्य जीवन के स्वरूप को बदल देता है.
बहुत ही भाव पूर्ण कविता, शानदार भवव्यक्ति की है आपने संगीता जी आपकी लेखनी शशक्त है बधाई
सार्थक रचना ....
यूं ही हमारे मौन
अक्सर एक दूजे को
नि: शब्द सा करते हैं ।
मौन का निशब्द रह जाना एक सुंदर प्रयोग.
सुंदर भाव. बधाई.
जब तुम्हारा "मैं "
आता है सामने
तो मैं ---
हम बन जाती हूँ
और जब मेरा "मैं "
दिखता है तुम्हें
तो तुम --
हम बन जाते हो ,
बहुत सुन्दर भाव
मैं जब हम होता, टूटता अहम है।
..वाह! बड़ी सरलता से सुखी दांपत्य जीवन की कुंजी थमा दी आपने। सहेज कर रखनी पड़ेगी।..आभार।
मैं जब हम होता, टूटता अहम है।
..वाह! बड़ी सरलता से सुखी दांपत्य जीवन की कुंजी थमा दी आपने। सहेज कर रखनी पड़ेगी।..आभार।
यूं ही हमारे मौन एक दूजे को नि :शब्द करतें हैं और संवाद ज़ारी रहता .मुखर मौन की भाषा में .सुन्दर प्रस्तुति
कृपया यहाँ भी पधारें -
बृहस्पतिवार, 21 जून 2012
सेहत के लिए उपयोगी फ़ूड कोम्बिनेशन
http://veerubhai1947.blogspot.in/आप की ब्लॉग दस्तक अतिरिक्त उत्साह देती है लेखन की आंच को सुलगाएं रखने में .
मेरा मैं, तुम्हारा मैं और हम के त्रिकोण में सब कुछ
एक सार्थक मौन !
मैं तुम्हारे मौन को पालती हूँ पोसती हूँ और जब होता है मौन मुखरित तो हतप्रभ सी रह जाती हूँ ए
हमारे मौन अक्सर एक दूजे को नि:शब्द सा करते हैं
बहुत सुन्दर और चिन्तनपरक रचना।
मौन को पालना पोसना.....बहुत ही गहन चिन्तन की उपज लगती है ये रचना
आभार आंटी
mai ka hum me badalana hi jiwan ki sarthak shuruaat hai..uttam
टकराहट में दो रेखाएँ बड़ी-छोटी होती रहती हैं, लहरों सी. जीवन तरलता चाहता है.
मौन जब मुखरित होता है
तो इसका प्रभाव त्वरित होता है
vaah ...........bahut khoobsoorat bhaav
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