अनुभूति .... / पुस्तक परिचय / अनुपमा त्रिपाठी
>> Monday, June 25, 2012
कुछ समय पूर्व मुंबई प्रवास के दौरान अनुपमा
त्रिपाठी जी से मिलने का मौका मिला ।उन्होने मुझे अपनी दो पुस्तकें प्रेम
सहित भेंट कीं । जिसमें से एक तो साझा काव्य संग्रह है –“ एक सांस मेरी “ जिसका
सम्पादन सुश्री रश्मि प्रभा और श्री यशवंत माथुर ने किया
है ...इस पुस्तक के
बारे में फिर कभी .....
आज मैं आपके समक्ष लायी हूँ अनुपमा जी की पुस्तक “ अनुभूति ” का परिचय ।
अनुभूति से पहले थोड़ा सा परिचय अनुपमा जी का ... उनके ही
शब्दों में --- ‘ज़िंदगी में
समय से वो सब मिला जिसकी हर स्त्री को तमन्ना रहती
है.... माता- पिता की दी
हुयी शिक्षा , संस्कार
और अब मेरे पति द्वारा दिया जा रहा वो सुंदर , संरक्षित
जीवन जिसमें वो एक स्तम्भ की तरह हमेशा साथ रहते हैं .... दो बेटों की
माँ हूँ और अपनी घर गृहस्थी में लीन .... माँ संस्कृत
की ज्ञाता थीं उन्हीं की हिन्दी साहित्य की पुस्तकें पढ़ते पढ़ते हिन्दी साहित्य का
बीज हृदय में रोपित हुआ और प्रस्फुटित हो पल्लवित हो रहा है ... “
साहित्य के अतिरिक्त इनकी रुचि गीत –संगीत और
नृत्य में भी है । इन्होने शास्त्रीय संगीत और सितार की शिक्षा ली है ।
श्रीमती सुंदरी शेषाद्रि से भारतनाट्यम सीखा । युव वाणी : आल इंडिया
रेडियो और जबलपुर आकाशवाणी से भी जुड़ी । 2010 में मलेशिया
के टेम्पल ऑफ फाइन आर्ट्स में हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की
शिक्षा भी दी .... आज भी नियमित
शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम देती रहती हैं .....
इनकी रचनाएँ पत्रिकाओं में भी स्थान पा चुकी हैं ....
अनुभूति पढ़ते हुये अनुभव हुआ कि अनुपमा जी जीवन के प्रति
बहुत सकारात्मक दृष्टिकोण रखती हैं ..... अपनी बात में
वो लिखती हैं ---
जाग गयी चेतना
अब मैं देख रही प्रभु लीला
प्रभु लीला क्या , जीवन लीला
जीवन है संघर्ष तभी तो
जीवन का ये महाभारत
युद्ध के रथ पर
मैं अर्जुन तुम सारथी मेरे
मार्ग दिखाना
मृगमरीचिका नहीं
मुझे है जल तक जाना ।
इस पुस्तक में उनकी कुल 38 कवितायें
प्रकाशित हैं .... सुश्री रश्मि प्रभा जी ने अनुपमा जी की पुस्तक के लिए शुभकामनायें प्रेषित करते हुये लिखा है --- " पल पल साँसों के क्रम में हम कभी इस देहरी से उस देहरी , इस चाहत से उस चाहत गुज़रते हैं - कभी होती हैं आँखें नम, कभी एक मुस्कान पूर्णता बन जाती है । भिन्न भिन्न रास्तों से भिन्न भिन्न अस्तित्व । रचनाओं की बारीकी कहती है कि अनुपमा जी ने इस अस्तित्व को जीवंत किया है । "
सभी कवितायें
पढ़ कर एक सुखद एहसास हुआ कि कहीं भी कवयित्रि के मन में
नैराश्य का भाव नहीं है .... हर रचना में जीवन में आगे बढ़ने की
ललक और परिस्थितियों से संघर्ष करने का उत्साह दिखाई देता है –
मंद मंद था हवा का झोंका
हल्की सी थी तपिश रवि की
वही दिया था मन का मेरा
जलता जाता
जीवन ज्योति जलाती जाती
चलती जाती धुन में अपनी
गाती जाती बढ़ती जाती ।
कवयित्री क्यों कि संगीत से
बेहद जुड़ी हुई हैं तो बहुत सी कविताओं में विभिन्न रागों का ज़िक्र भी आया है ... राग के नाम
के साथ जिस समय के राग हैं उसी समय को भी परिलक्षित किया है ..... कहीं कहीं
रचना में शब्द ही संगीत की झंकार सुनाते प्रतीत होते हैं ---
जंगल में मंगल हो कैसे
गीत सुरीला संग हो जैसे
धुन अपनी ही राग जो गाये
संग झाँझर झंकार सुनाये
सुन – सुन विहग भी बीन बजाए
घिर – घिर बादल रस बरसाए
टिपिर – टिपिर सुर ताल मिलाये ।
ईश्वर के प्रति गहन आस्था इनकी रचनाओं में देखने को
मिलती है ---
प्रभु मूरत बिन /चैन न आवत /सोवत खोवत / रैन गंवावत /
या ---
बंसी धुन मन मोह लयी /सुध – बुध मोरी
बिसर गयी /
या –
प्रभु प्रदत्त / लालित्य से भरा ये रूप / बंद कली में
मन ईश स्वरूप ।
कहीं कहीं कवयित्रि आत्ममंथन करती हुई दर्शनिकता का बोध भी
कराती है –
जीवन है तो चलना है / जग चार दिनों
का मेला है / इक रोज़
यहाँ ,इक रोज़ वहाँ / हाँ ये ही
रैन बसेरा है ।
सामाजिक सरोकारों को भी नहीं भूली हैं । प्रकृति प्रदत्त
रचनाओं का भी समावेश है ---- आओ धरा को स्वर्ग बनाएँ
कविताओं की विशेषता है कि पढ़ते पढ़ते
जैसे मन खो जाता है और रचनाएँ आत्मसात सी होती जाती हैं .... कोई कोई
रचनाएँ संगीत की सी तान छेड़ देती हैं लेकिन कुछ रचनाएँ ऐसी भी हैं जिनमे गेयता का
अभाव है ... लेकिन मन के
भावों को समक्ष रखने में पूर्णरूप से सक्षम है । पुस्तक का आवरण पृष्ठ सुंदर
है .... छपाई स्पष्ट
है .... वर्तनी
अशुद्धि भी कहीं कहीं दिखाई दी .... ब्लॉग पर लिखते हुये ऐसी
अशुद्धियाँ नज़रअंदाज़ कर दी जाती हैं लेकिन पुस्तक में यह खटकती हैं .... प्रकाशक
क्यों कि हमारे ब्लॉगर
साथी ही हैं इस लिए उनसे विनम्र अनुरोध है इस ओर थोड़ी सतर्कता
बरतें ।
कुल मिला कर यह पुस्तक पठनीय और सुखद अनुभूति देने वाली है .... कवयित्री को
मेरी बधाई और शुभकामनायें ।
पुस्तक का नाम – अनुभूति
रचना कार -- अनुपमा
त्रिपाठी
पुस्तक का मूल्य – 99 / मात्र
आई एस बी एन – 978-81-923276-4-8
प्रकाशक - ज्योतिपर्व प्रकाशन / 99, ज्ञान खंड -3 इंदिरापुरम / गाजियाबाद – 201012 ।
31 comments:
यह किताब मेरे पास भी है , सुंदर भावों से युक्त रचनाओं को लिखने के लिए अनुपमा जी को बधाई !
संगीता दी "अनुभुति" की समीक्षा के लिये हृदय से आभार ..!आज आपकी समीक्षा पढ़ कर एक नया आत्मविश्वास मिला है |कवि जैसा भी लिखे ...समीक्षक उसे एक सुरक्षित मंच देता है |आज इतनी खुशी है मुझे कि अपने हृदय के उद्गार मैं ठीक से व्यक्त भी नहीं कर पाउंगी |जब से ब्लोग बनाया था तभी से ही आपका सतत प्रोत्साहन मिलता रहा है |आपकी प्रतिक्रिया की मैं हमेशा राह देखा करती थी |आज ये समीक्षा पढ़ कर लग रहा है जैसे सपना सा सच हो गया है ...!!सच मे ये समीक्षा बहुत मूल्यवान है मेरे लिये ...!पुन: आभार आपका ...अपना स्नेह व आशिर्वाद बनाये रहियेगा ...!!
क्या कहूँ...बस ......अभिभूत हूँ ...!!!!
आपने बहुत ही अच्छी समीक्षा की है बहुत-बहुत आभार....!!!
दोनों ही पुस्तकें पढ़ने की बहुत इच्छा है..
anumpma jee kee rachnayein lagataar padhne ka saubhagya blog jagat se judne ke baad lagataar mila hai..aaj aapkee behtarin sameeksha se unke aaur unki rachnaaon ke baare me samagrata se jaane ka swarnim avsar prapt hua..main bhee jabse blog jagat se juda hoon mujhe bhee lagataar aapka protsahan mila hai..aap sahitya srijan karke apna abhootpurv yogdaan to de rahi hain..ham jaise sahitya ka kakhara seekhne walon ko prerna dekar sahi mayno me sahitya ke unnayan ka abhootpoorv kaam bhee kar rahi hai..is sunde semeksha ke liye sadar badhayee ..sadar pranaam ke sath
पुस्तक के प्रति उत्सुकता जगाती बहुत सुन्दर समीक्षा दी....
आदरणीया अनुपमा जी को सादर बधाईयां/शुभकामनाएं.
सादर आभार.
आपके द्वारा की गई "अनुभुति" की सुंदर समीक्षा,पुस्तक पढ़ने की उत्सुकता बढाती है,,,
RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,
आपकी कलम से 'अनुभूति' को जाना बहुत ही अच्छी समीक्षा की है आपने ... आभार आपका
अनुपमा जी को बहुत-बहुत बधाई
आपकी समीक्षा पर मन में लालच उत्पन्न हो गया है। मेरी पुस्तक की समीक्षा भी आपको ही करनी होगी। बहुत सुंदर ढंग से वर्णन किया है आपने। पुस्तक तो खैर अरुण जी से मै ले ही लूंगी। अभी जिज्ञासा है पूरी पुस्तक पढ़ने की।
सादर।
कभी मौका मिला तो जरुर पढूंगी यह संगीत मयी रचनाओं का भण्डार.
आपने बहुत सुन्दर समीक्षा की है.एकदम कवियत्री और उसकी कृतियों की तरह :)
पुस्तक की सुन्दर समीक्षा...पढ़ने की इच्छा हो रही है।
मन में उत्सुकता और पुस्तक पढने की लालसा जगती समीक्षा| अनुपमा जी को बहुत बधाई|...
जितनी लाजवाब रचनाएं उतनी की सुन्दर समीक्षा है अनुपमा जी की अनुभूति की ... आभार है आपका ...
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार २६/६ १२ को राजेश कुमारी द्वारा
चर्चामंच पर की जायेगी
विलम्ब के लिए क्षमा...
:-)
संगीता दी, आपसे पहले ही सुन चुकी हूँ अनुपमा जी की तारीफ़...मगर ये समीक्षा पढ़ कर और जान गयी उन्हें.
मैं खुद उनकी,उनकी रचनाओं की,उनके संगीत की "हार्ड कोर फेन " हूँ.......................
अनुभूति जुटाती हूँ कहीं से.....और पढ़ कर सीखती हूँ....मीठा मधुर लिखना.....
ढेर सारी बधाई और शुभकामनाये...
शुक्रिया संगीता दी.
सादर
अनु
बहुत ही बेहतरीन समीक्षा है आंटी जी...
आप दोनों को ही हार्दिक बधाई :-)
ढ़ेर सारी शुभकामनाए :-)
अनुपमा जी को बहुत बधाई|...
उत्कृष्ट समीक्षा ...अनुपमाजी की बधाई
अनुपमा जी को पढ़ते हुए एक दिव्य अनुभूति होती है . संगीत की आराधना, इश्वर की आराधना , मन को तृप्त करती है और सुसुप्त अंतरात्मा को झकझोरती है . अनुभूति पढ़ तो नहीं पाया हूँ . लेकिन इच्छा प्रबल हो रही है,आपने इस बेहतरीन पुस्तक की सुँदर समीक्षा लिखी है / लेखिका और समीक्षक को हार्दिक बधाई . .
आह! आपकी लिखी समीक्षा में लगभग हर बिंदु सपष्ट होते हैं..सटीक समीक्षा..
मेरा कमेंट कहाँ ग़ायब हो गया ,कहीं स्पैम में तो नहीं पड़ा है ?
are maine apne vichaar diye the ... kahan gum ho gaye ?
एक बेहतरीन व्यक्तित्व के स्वामी की क़लम से जो कुछ निकलता है उसका बेहतरीन होना स्वाभाविक ही है, साथ ही इसमें यदि भारतीय संस्कृति और कला का मिश्रण हो जाए तो आनंद कई गुना बढ़ जाता है।
पुस्स्तक परिचय से मन ललायित हो उठा है इस पुस्तक को पढ़ने के लिए।
जल्द ही इसे अपनाता हूं।
badhayee anupmajee ko aur sunder jankari ke liye apko.....
रश्मि जी की तरह से मैंने भी अपना कमेन्ट दिया था लेकिन अब लग रहा है कि हम लोगों ने हो सकता है ये कमेन्ट राजभाषा ब्लॉग पर दिया था. संगीता जी बहुत सुंदर मैंने वहाँ भी लिखा था.
उत्कृष्ट समीक्षा...अनुपमा जी और आपको,दोनो को बधाई !!
खूबसूरत शब्दों में की गई लाजबाब समीक्षा ...
अनुपमा जी को बहुत बहुत बधाई
बहुत ही अच्छी समीक्षा है अनुपमा जी को और आप को बहुत-बहुत बधाई....
उत्सुकता जगाती सुन्दर समीक्षा...
आभार.
मार्ग दिखाना मृग मरीचिका नही, मुझे है जल तक जाना ।
बहुत अच्छी लगी ये पंक्तियां । और आपने तो जल तक जाने का मार्ग दिखा ही दिया संगीता जी ।
सुंदर समीक्षा ।
अच्छी समीक्षा.....
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