भराव शून्यता का
>> Tuesday, February 4, 2014
बसंत पंचमी पर माँ सरस्वती को नमन करते हुए यह रचना सुश्री रश्मि प्रभा जी को समर्पित --
जब न हो संघर्ष जीवन में
और न ही हो कोई विषमता
तो वक़्त के साथ
कुछ उदास सा
हो जाता है मन
सहज सरल सा
जीवन भी ले आता है
कुछ खालीपन .
यूँ तो शून्यता हो
गर जीवन में
तो उसे निर्वाण कहते हैं
खोने पाने से जो
ऊपर उठ जाएँ
उसे हम महान कहते हैं .
पर जब घिर जाएँ
हम स्वयं शून्यता से
तो मन छटपटाता है
अपने चारों ओर बस
अन्धकार नज़र आता है .
ऐसे में किसी का पुकारना
संबल बन जाता है
भावों का स्नेहिल स्पर्श
तम को हर जाता है .
काश मैं भी एक दीया
ऐसा ही बन सकूँ
किसी के जीवन की
शून्यता में
कोई अंक भर सकूं .
42 comments:
आपकी कमी बहुत दिनों से ब्लॉग पर खल रही थी,एक सार्थक रचना के साथ आपका यूँ आपके ब्लॉग पर पुन; सक्रीय होना ख़ुशी हो रही है :)
काश मैं भी एक दीया
ऐसा ही बन सकूँ
किसी के जीवन की
शून्यता में
कोई अंक भर सकूं .
आमीन, काश नहीं निश्चित ही !
रश्मि जी से जलन हो रही है :)
आपका यह समर्पण अनुकरणीय है वे इस योग्य हैं !! आभार आपका
माँ सरस्वती को आपने शब्दों का भोग लगा उनकी सात्विक पूजा की है, मैं तो अकिंचन एक माध्यम हूँ …
अकेलापन मित्र होता है, कई भावों की थाती सौंपता है, पर अकेलापन सन्नाटे में बदल जाए, कोई आहट भी न सुनाई दे तो उसकी व्याख्या भी दुरूह होती है .
मैंने शब्दों का रिश्ता बनाया था, तो उसे निभाने को मेरे आगे आप खड़ी थीं, और उस पल की मुखरता में मैं आपको हमेशा आवाज़ दूँगी ताकि आपके गीत हमारे बाह्य और अंतस को गुंजित कर सकें
बहुत ही खूबसूरत, शुभकामनाएं.
रामराम.
मन की गहराइयों से निकली अभिव्यक्ति ……… बहुत दिनों बाद आप दिखीं अच्छा लगा ।
अरसे बाद ब्लॉग पर आपको पढ़ा। वो भी इतनी सुन्दर भाव पूर्ण रचना।
आप तो हैं ही ऐसा ही ऐसा दिया जो भर दे शून्यता में अंक :)
बस आप इसी तरह लिखती रहे.
और हम आपको पढ़ते रहे
सोचा था ढेर सारी शिकायतें करूंगा, लेकिन आज के दिन इतनी सुन्दर कविता प्रस्तुत कर आपने मेरी शिकायतों को पोस्टपोन कर दिया।
संगीता दी, मेरे लिए दोनों आदरणीय हैं। इसलिए प्रणाम रश्मि दी के व्यक्तित्व को और आपके शब्दों को!
एक शेर याद आ गया जो हुसैन बंधुओं ने गाया है ....
बेतजुस्सुस आ गई मंजिल अगर जेरे कदम
दिल में मेरे जुस्तजू का होंसला रह जाएगा..
बहुत दिनों बाद आपको पढ़ने का मौका मिला है ... आपकी कमी अच्छी नहीं लग रही थी ... आशा है अब नियमित पढ़ने को मिलेगा ..
बड़े दिनों बाद लौटी , क्या खूब लौटी।
गीत के समर्पण की उचित पात्र ही है रश्मि जी :)
संगीत साजे
जो मन बीन बाजे
सुनी पुकार .....
बहुत सुंदर रचना से बसंत पंचमी पर आलोकित दीप जला ब्लॉग पर ...शुभकामनायें दी ...!!
बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता..दीया बनने की ख्वाहिश ही मन को ज्योति से भर देती है...
बहुत बहुत प्यारी अभिव्यक्ति.....और वैसा ही सुन्दर उत्तर रश्मि दी का |
shikha ने सच कहा आप ऐसा ही जगमगाता दिया हो दी :-)
माँ सरस्वती की कृपा बनी रहे हम सभी पर.
सादर
अनु
अपने चारों ओर बस
अन्धकार नज़र आता है .
ऐसे में किसी का पुकारना
संबल बन जाता है ….. ekdam sahi … wo kahte hain na doobte ko tinke ka sahara …..
Rashmi ji hain hi snehil … ham sab ke liye prerna ka srot hain … unka sneh mile ye to saubhagya ki baat hai.
यूँ तो शून्यता हो
गर जीवन में
तो उसे निर्वाण कहते हैं
खोने पाने से जो
ऊपर उठ जाएँ
उसे हम महान कहते हैं .
शुक्रिया आपकी निरंतर उपस्थिति का हृदय से आभार। बहुत सुन्दर रचना है यह।
बहुत सुंदर.... बसंत पंचमी की बहुत बहुत बधाई और शुभकामना !!
बहुत सुंदर.... बसंत पंचमी की बहुत बहुत बधाई और शुभकामना !!
'काश मैं भी एक दीया
ऐसा ही बन सकूँ
किसी के जीवन की
शून्यता में
कोई अंक भर सकूं .'
- कितना-कुछ तो दे रही हैं, आप धन्य हैं!
दीया कहाँ जान पाता है कि उसने कितने कोनों का तम हरा है ! वह तो बस अपना कर्म किये जाता है ! बहुत दिनों के बाद इतनी सुंदर सार्थक रचना के साथ आपका पुनरागमन आनंदित कर गया ! आशा है आप इसी तरह हमें उपकृत करती रहेंगी ! शुभकामनायें !
सुन्दर भाव ....दिया बनने कि आपकी इक्षा अति सुन्दर..
बसंत पंचमी कि हार्दिक शुभकामनाएँ....
http://mauryareena.blogspot.in/
यूँ तो शून्यता हो
गर जीवन में
तो उसे निर्वाण कहते हैं
खोने पाने से जो
ऊपर उठ जाएँ
उसे हम महान कहते हैं .
कुछ करने की अभिलाषा प्रगटित हुई है इस रचना में अति सुन्दर प्रस्तुति
यूँ तो शून्यता हो
गर जीवन में
तो उसे निर्वाण कहते हैं
खोने पाने से जो
ऊपर उठ जाएँ
उसे हम महान कहते हैं .
कुछ करने की अभिलाषा प्रगटित हुई है इस रचना में अति सुन्दर प्रस्तुति
अति सुंदर रचना ....शुभकामनायें
सादर प्रणाम दी
बहुत सुन्दर रचना के लिए नमन!
सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई ...!
RECENT POST-: बसंत ने अभी रूप संवारा नहीं है
सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई ...!
RECENT POST-: बसंत ने अभी रूप संवारा नहीं है
ऐसा शून्य कहाँ आता है जीवन में, उतार चढ़ाव बना ही रहता है।
बहुत ही सुंदर...
काश मैं भी एक दीया
ऐसा ही बन सकूँ
किसी के जीवन की
शून्यता में
कोई अंक भर सकूं .
...आमीन...बहुत मर्मस्पर्शी और भावपूर्ण रचना..
काश मैं भी एक दीया
ऐसा ही बन सकूँ
किसी के जीवन की
शून्यता में
कोई अंक भर सकूं.....
सुंदर प्रस्तुति
सुन्दर
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति...
बहुत सुन्दर कामना, सुन्दर शब्दों से सजी!
ज़िन्दगी को आपने बहुत ही क़रीब से जिया है, इस गीत से साफ़ अनुभूति हो रही है।
सुन्दर शब्दों में जीवन के चरण का उल्लेख बहुत ही लाज़वाब किया है।
जय माँ सरस्वती
बहुत गहरे भाव, सुंदर रचना.
काफी दिन बाद लिखा है , मंगलकामनाएं आपको !!
काश मैं भी एक दीया
ऐसा ही बन सकूँ
किसी के जीवन की
शून्यता में
कोई अंक भर सकूं .
sunder bhav aur achchhi soch se
sunder dhang se likhi kavita
badhai
rachana
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट को इतने विलम्ब से देख पाने का अफसोस हो रहा है ..... बहुत ही अच्छा लिखा है माँ का सानिध्य यूँ ही आपके साथ हमेशा रहे :)
ताकि आप हमेशा सार्थक भावों वाली अभिव्यक्ति हमसे साझा करती रहें
सादर
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