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कमी रही ......

>> Saturday, November 22, 2014



हुनर   के पंख  लिए  हम   तकते  रहे  आसमाँ
पंखों में परवाज़ के  लिए  हौसले  की  कमी रही ।

मन के  समंदर  में  ख्वाहिशों  का  सैलाब  था
सपनों  के  लिए  आँखों  में नमी  की कमी रही|

चाहा  था  कि  इश्क़  करूँ  मैं तुझसे  बेइंतिहां
पर  मेरी इस  चाहत  में कुछ जुनूँ की कमी  रही|

चाहत  थी  कि  बयां  कर  दूँ मैं  दिल की हर  बात
पर तेरे पास  हमेशा ही  वक़्त  की  कमी  रही ।

गर अब  तू  चाहे  कि बैठ  गुफ़्तगू हो घड़ी दो घड़ी
पर अब हमारे  दरमियाँ मजमून  की कमी  रही ।

अब  रुखसती के वक़्त  क्या  करें  शिकवा गिला
आपस में  जानने को   कुछ  समझ की  कमी  रही ।

23 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा 11/22/2014 5:33 PM  

मन के समंदर में ख्वाहिशों का सैलाब था
सपनों के लिए आँखों में नमी की कमी रही|

वाह , बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 11/22/2014 6:57 PM  

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (23-11-2014) को "काठी का दर्द" (चर्चा मंच 1806) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

चला बिहारी ब्लॉगर बनने 11/22/2014 11:27 PM  

बहुत दिनों बाद उसी अंदाज़ में... प्रभावशाली!!

प्रतिभा सक्सेना 11/23/2014 1:12 AM  

कितना लंबा गोता लगा जाती जाती हैं आप -आज आपको देख कर अच्छा लग रहा है, और लिखा भी तो बढ़िया है .

Asha Lata Saxena 11/23/2014 6:45 AM  

बहुत सुन्दर भाव लिए रचना |

गिरधारी खंकरियाल 11/23/2014 3:34 PM  

चाहा था कि इश्क़ करूँ मैं तुझसे बेइंतिहां
पर मेरी इस चाहत में कुछ जुनूँ की कमी रही|

अब तो केवल यादे शेष होंगी!!

Harash Mahajan 11/23/2014 8:01 PM  

सुंदर प्रस्तुती संगीता जी |

shikha varshney 11/23/2014 9:51 PM  

अब रुकना नहीं प्लीज़ ...
कितनी अच्छी रचना है ..तरस गईं आँखें पढ़ने को ऐसा कुछ ब्लॉगस पर.

वाणी गीत 11/24/2014 8:55 AM  

अब संवाद ग़ुम हुए तुम्हे बैठ कर सुनने की फुर्सत मिली। समय पर समय का भान न था , अब शिकवा भी क्या !
जिंदगी की यही कहानी .इसी तरह गुजर जाती है !

दिगम्बर नासवा 11/24/2014 2:06 PM  

गर अब तू चाहे कि बैठ गुफ़्तगू हो घड़ी दो घड़ी
पर अब हमारे दरमियाँ मजमून की कमी रही ...
कुछ उदासी भरे शेरो के साथ कई दिन बाद आपको पढना हुआ है ... हर शेर अपने आप में जीवन के सारी को कहने का प्रयास कर रहा है ... पर फिर भी देर तो कभी नहीं होती ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) 11/24/2014 6:57 PM  

अनामिका द्वारा प्रेषित टिप्पणी ...

पहले कमेंट लिखा जो रोबोट सर्टिफिकेशन के चक्कर में खत्म हो गया
इसलिए यहाँ लिख कर भेज रही हूँ। …।

चलो कुछ चाहतें फिर से आज जोड़ लेते हैं
चलो कुछ उमीदें फिर से आज कैद करते हैं
ख्वाहिश हो गर पाने की तो क्या हो नहीं सकता
चलो फिर आज बुझती लौ को नेह का तेल देते हैं.

बहुत खूबसूरत उम्मीदों से भरे जज़्बात एक लम्बे इंतज़ार के बाद पढ़ने को मिली।

शुभकामनाएं.

Sadhana Vaid 11/24/2014 9:44 PM  

किसे छोडूं किस पंक्ति की तारीफ़ करूँ ! हर लफ्ज़ दिल में उतरता जाता है ! बहुत दिनों के बाद आपकी इतनी अच्छी रचना पढ़ने को मिली है ! बहुत अच्छा लग रहा है ! हार्दिक शुभकामनायें स्वीकार करें !

रश्मि प्रभा... 11/25/2014 9:43 AM  

कुछ रहा तुझे गिला
कुछ शिकायत मुझे हुई
चलो, इसी बात पर दोस्ती कर लें
रुखसत होने से पहले गले मिल लें

Suman 11/25/2014 10:46 AM  

चाहा था कि इश्क़ करूँ मैं तुझसे बेइंतिहां
पर मेरी इस चाहत में कुछ जुनूँ की कमी रही|
बढ़िया शेर लगा यह !

सदा 11/25/2014 3:47 PM  

मन के समंदर में ख्वाहिशों का सैलाब था
सपनों के लिए आँखों में नमी की कमी रही|
........ अनुपम भाव संयोजन .... बेहतरीन प्रस्‍तुति
सादर

अशोक सलूजा 11/28/2014 7:16 PM  

चाहता तो मैं भी था उसे भूल जाना
न जाने ये यादें कहाँ दिल में जमी रहीं.....

अच्छा लगा ..आप को पड़ना
शुभकामनायें |

Smart Indian 12/21/2014 1:58 AM  

सुन्दर पंक्तियाँ!

सदा 1/20/2015 5:47 PM  

मन के समंदर में ख्वाहिशों का सैलाब था
सपनों के लिए आँखों में नमी की कमी रही|
.......... अरे वाह क्‍या बात है बहुत ही बढिया

Himkar Shyam 1/24/2015 8:03 PM  

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...वसंत पंचमी की शुभकामनाएँ...

Manisha Goswami 7/18/2021 7:58 AM  

चाहत थी कि बयां कर दूँ मैं दिल की हर बात
पर तेरे पास हमेशा ही वक़्त की कमी रही ।

गर अब तू चाहे कि बैठ गुफ़्तगू हो घड़ी दो घड़ी
पर अब हमारे दरमियाँ मजमून की कमी रही ।
सच कहा आपने आज के समय में इंसान इतना व्यस्त हो गया कि वो अपनो के लिए भी वक्त नही निकाल पा रहा है
बहुत ही उम्दा रचना

Sudha Devrani 7/18/2021 9:40 PM  

गर अब तू चाहे कि बैठ गुफ़्तगू हो घड़ी दो घड़ी
पर अब हमारे दरमियाँ मजमून की कमी रही ...

लाजवाब गजल ....एक से बढ़कर एक शेर...।
वाह!!!

Sweta sinha 7/19/2021 6:41 AM  

वाह वाह क्या बात है दी लाज़वाब
तुम्हारी दी हुई सौगात थी
ताउम्र यादों पर जमी रही
सूखा रहा सावन मन का
आँखों पे पर नमी रही।

प्रणाम दी
सादर।

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