परलोक में एक गोष्ठी ।
>> Saturday, August 14, 2021
यूँ ही ख्वाबों में
एक दिन टहलते- टहलाते
जा पहुँचे परलोक
खुद ही बहलते - बहलाते ।
सामने था स्वर्ग का द्वार
दिख रहा था बहुत कुछ
आर पार ।
न जाने कितनों की आत्माएँ
इधर उधर डोल रहीं थीं ,
आपस में न जाने
क्या क्या बोल रहीं थीं ।
दूर से कुछ समझ नहीं आ रहा था
मन पास से सुनना चाह रहा था ।
तो सबकी आँखों से बचते बचाते
पहुँच गयी उनके बीच चुपके से जा के ।
आज तो वहाँ भारत के
स्वतंत्रता सेनानियों की
गोष्ठी चल रही थी
कुछ आत्माएँ मायूस थीं
तो कुछ जोश में
कुछ शांत थीं
तो कुछ विक्षोभ में ।
एक ने उत्साहित होते हुए
नारा लगाया इंकलाब ज़िंदाबाद
आज 75 वाँ स्वतंत्रता दिवस है
दूसरी आवाज़ आयी कि
फिर भी सब कितने विवश हैं ?
क्या हमने ऐसे देश की
कभी करी थी कल्पना
जहाँ हर जगह हो , भ्र्ष्टाचार ,
बेरोजगारी और भुखमरी की भरमार ?
देश के नेताओं ने ऐसा
भारत गढ़ा है कि
देश प्रेम क्या होता है ?
ये आज के बच्चों ने
कहीं नहीं पढ़ा है ।
माना कि हुआ है देश का
बहुत विकास
लेकिन उससे कम
जितनीं थी हमको आस ।
इतने में सरदार पटेल की आत्मा ने
अम्वेडकर की आत्मा से पूछा
भाई संविधान में ये आरक्षण का
क्या चक्कर चलाया था ?
बेचारी सकपका कर बोली कि
मैंने तो बेहतरी के लिए ही
कानून बनाया था ।
मुझे क्या पता था कि
देश के नेता इतने नीचे गिर जायेंगे
कि इसी को अपना वोट बैंक बनाएँगे ।
ऐसे ही न जाने किन किन बातों से
सारी आत्माएँ हैरान थीं
देश की हालत देख
सब परेशान थीं ।
सुभाष चन्द्र बोस
जैसे सिर धुन रहे थे
भगत सिंह मौन बैठे
न जाने क्या गुन रहे थे ।
सुखदेव , राजगुरु की
आँखें नम थीं
हर स्वतंत्रता सेनानी की
आत्माएँ गमगीन थीं ।
उनको देख मेरा मन उदास था
अचानक जो नींद खुली तो सोचा
ओह , ये तो बस एक ख्वाब था ।