कतरने ख़्वाबों की
>> Sunday, June 26, 2011
ख्वाब मेरे
कपड़े की
कतरनों के माफिक
कटे फटे
जब भी सहेजना चाहा
कतरनों की तरह ही
बिखर जाते हैं
फिर भी
मैं उन्हें सहेज
रख लेती हूँ
दिल के लिफ़ाफ़े में
जब कोई चाहता है
तो उनसे बना देता है
कोई सुन्दर सा
पैच वर्क
और मैं
उसी में खो जाती हूँ ,
जैसे ही
पुराना पड़ता है
पैचवर्क
तो
लगाने वाला
खुद ही उखाड फेंकता है
और मैं
उन कतरनों की कतरनें
देखती रह जाती हूँ ...
84 comments:
'ख्वाब मेरे
कपड़े की
कतरनों के माफिक
कटे फटे
जब भी सहेजना चाहा
कतरनों की तरह ही
बिखर जाते हैं
फिर भी
मैं उन्हें सहेज
रख लेती हूँ'
ख्वाबों को भी सहेजना आवश्यक होता है कभी-कभी...अच्छा प्रयास...बहुत सुन्दर
सच ही कहा है अपने , इन कतरनों कि तरह ही तो संजो कर रखे जाते हैं ख़्वाब.
उफ़ ………॥कतरनो की कतरनें……………कितना दिल दुखाती हैं ना…………सारा दर्द उतार दिया।
कतरनों कि उतरन भी सहेज रखना एक कला ही तो है:)
Khwabon kee katrane! Kitni anoothee kalpana hai!
Sangeeta ji sach hi likha hai aapne .aabhar
बहुत दिनों से थी मुझे, बेसब्री-इन्तजार |
आज इधर आ ही गई, रचना मयी बहार |
रचनामयी बहार, अजी टिप्पणियां प्यारी |
करती रहीं सदैव, पोस्ट पर बारी-बारी|
अब रविकर है मस्त, करे कुछ ऐसा अद्भुत |
मिल जाएगा स्नेह, आभारी हूँ बहुत-बहुत ||
कतरंने सहेज कर आप जिस रचनात्मकता से उन्हें नये रूप में टाँक देती हैं वह भी प्रशंसनीय है ,संगीता जी !
ख्वाब मेरे
कपड़े की
कतरनों के माफिक
कटे फटे
जब भी सहेजना चाहा
कतरनों की तरह ही
बिखर जाते हैं
फिर भी
मैं उन्हें सहेज
रख लेती हूँ
दिल के लिफ़ाफ़े में ...
आपकी लेखनी में जादू है आपकी कविताएं मन को छूने में कामयाब रहती हैं |
बधाई और शुभकामनाएं |
ख्वाब मेरे
कपड़े की
कतरनों के माफिक
कटे फटे
जब भी सहेजना चाहा
कतरनों की तरह ही
बिखर जाते हैं
फिर भी
मैं उन्हें सहेज
रख लेती हूँ'...ख्वाबों को सहेजना ही पड़्ता है नहीं तो पूरी कैसे होंगी.....?संगीता जी !बहुत सुन्दर...
कतरन कतरन रह गई, उनका मन बहलाय |
इच्छुक को तो मिल गई, चिज्जी जोड़ लगाय
चिज्जी जोड़ लगाय, कलेजे की ये कतरन --
खुब आनंद उठाय, जीत लेते हो हर मन |
फिर रविकर अफ़सोस, भला करते केहि कारन |
फिर से कुछ बन जाय, जुड़ें फिरसे वो कतरन ||
है व्यर्थ |
ढूंढे न अर्थ ||
प्रेरित करती रचना
बहुत-बहुत बधाई ||
बहुत ही बेहतरीन कविता है.
सादर
ख्वाबों की कतरने इकठ्ठा करके बनायीं चादर , सच ही तो कहता हूँ आप कम शब्दों से ही भर देती हो गागर .
कतरनों को तो सहेज ही लेना चाहिए ख्वाब नहीं तो उनकी कतरनें ही सही...... बहुत सुन्दर
ख़्वाबों को नये बिम्ब प्रदान करते भाव.
इतना तो जरूर है कि आपके ख्वाब रंगीन कतरनों से बने हैं.
ख़्वाबों की कतरनें भी ख़्वाबों सी ही प्यारी होती हैं और हम उन्हें सहेजते ही रहते हैं आख़िरी सांस तक ! बहुत कमनीय अहसासों के साथ बहुत ही कोमल रचना ! बहुत सुन्दर !
कमाल का लिखा है .. टूटे ख़्वाबों की कतरनों से सिलना किसी के जीवन को ... पैचवर्क की तरह ...
ख्वाब मेरे
कपड़े की
कतरनों के माफिक
कटे फटे
जब भी सहेजना चाहा
कतरनों की तरह ही
बिखर जाते हैं ....
नई उपमाओं की सुन्दर कविता के लिए बधाई...
इन्हीं कतरनों से जब आप खूबसूरत ऱजाई बना देती हैं तो इसकी गरमाहट कितनी सुखद होती है । सुंदर कविता ।
ख्वाब हमारी निर्धनता ढक लेते हैं।
जैसे ही
पुराना पड़ता है
पैचवर्क
तो
लगाने वाला
खुद ही उखाड फेंकता है
और मैं
उन कतरनों की कतरनें
देखती रह जाती हूँ ...
वाह आंटी..कितनी सूक्ष्मता से आपने तह तक जाकर मनोदशा का सजीव चित्रण किया है..आपकी कवितायें बार बार पढ़ने को मन करता है...बहुत सुंदर।
सृजनात्मकता - कतरनों की । रोचक...
kataranon ke madhyam se bahut gahrai liye hue bahut sunder aur saarthak rachanaa,badhaai sweekaren.
कतरनों से पैचवर्क करने में भी एक डिजाइन होता है और कई बर वह ओरिजिनल से भी अच्छा लगता है।
कतरनों को सिल कर ही वस्त्र बनता है!
--
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
कतरनों की बनती-बिगडती तक़दीर को चाहे-अनचाहे आत्मसात करना ही जीवन का सच है.
अगर कतरनो को जोड कर ही खवाब का रूप देना है तो ऐसा ही सही,,,सहेज कर रखते जाईये....शायद कभी ये ख्वाब पुरे हो जायें और आपकी मेहनत सफल हो जायें.
ख्वाब मेरे
कपड़े की
कतरनों के माफिक
कटे फटे
जब भी सहेजना चाहा
कतरनों की तरह ही
बिखर जाते हैं ...
बहुत ख़ूबसूरत विम्ब..ख़्वाबों की कतरनों को सहेजते ही तो ज़िंदगी गुज़र जाती है..बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी अहसास..बहुत सुन्दर..आभार
:)
bahut sundar rachana,jeewan ki asaliyat aur sach ke bahut kareeb,badhai- S.N.Shukla
bhut hi acchi shabd rachna...
संगीता दी!
इस कविता ने तो बचपन में पहुँचा दिया.. बचे हुए ऊन के गोलों से माँ स्वेटर बनाती थी और वो स्वेटर एक अलग ही ख़ूब्सूरती लिए होता था..
ऐसा ही होता है छोटे छोटे ख़्वाबों की कतरनों को सजाना और उनसे एक नया ख्वाब, एक नई ज़िन्दगी..
हाँ उस स्वेटर को दुबारा उधेड़ा नहीं करते थे.. ख़्वाबों के टुकड़े बटोरना, सँजोना और बिखेर देना फिर!! कमाल की कविता है दी!
- सलिल
अनुपम उपमा दी...नया प्रयोग...
सादर....
main bhi bas dekh rahi hun khwaabon ki katranon ko
अच्छे रूपकों से सजी एक सुंदर कविता ।
khuooab sach mein katrano ki mafik hi hote hai ....bilkul sach likha hai aapne
कतरा-कतरा मिल कर दरिया बनता है।
सुंदर भाव हैं कविता के
आभार
कतरने इक्कठा करके आपने एक खूबसुरत शाल बुन दिया ..संगीता दी ..वाह !!!
'ख्वाब मेरे
कपड़े की
कतरनों के माफिक
कटे फटे
जब भी सहेजना चाहा
कतरनों की तरह ही
बिखर जाते हैं
फिर भी
मैं उन्हें सहेज
रख लेती हूँ'
ये दिल है जो ख्वाबों को कोलाज़ बना लेता है और जी लेता है पलभर और बिना इंतज़ार बिखर भी जाता है कोलाज़ . संगीता जी बेहद ख़ूबसूरती से अलफ़ाज़ दिए है जीवन के सच्चाई को अभिवादन सहित बधाई
"और मैं
उन कतरनों की कतरनें
देखती रह जाती हूँ ..."
prashnsaneeya panktiyaan. utkrisht rachna.
कबाड़ का सदुपयोग...कतरनों का पैबंद...लेकिन कितने रंग-बिरंगे होते हैं...ख्वाब को सँवार लें...तो जिंदगी उतनी ही रंगीन है...
ख्वाब अक्सर पूरे नहीं होते ...सहेजे जा सकते हैं !
शुभकामनायें आपको !
मम्मा,
बहुत अच्छा था ख्याल.......मगर नज़्म और भी स्याह होती तो मज़ा आ जाता...:)
बहरहाल..बधाई
प्रणाम !
ख्वाबों को कतरन !!!! वाह , बिलकुल ही नई कल्पना है . जब पीडाओं को शब्द नहीं मिल पाते , तब उपमा ही एक मात्र सहारा बन जाती है , अभिव्यक्ति के करीब पहुँचाने का.
जब भी सहेजना चाहा
कतरनोंकी तरह
ही बिखर जाते है ! सच कहा है
बहुत सुंदर रचना
कारणों की तरह ही सिमटना और बिखरना ...
ख्वाब सहेजे भी और बिखेरे भी ...
मिलना बिछड़ना जीवन झरना ...दोनों ही एहसास एक साथ प्रतिबिंबित हो रहे हैं ...
सुन्दर प्रयोग ...
आभार !
स्मृतियाँ ...जो बनातीं हैं ,बढ़तीं हैं ...सृजनात्मकता ...!!
सुंदर कविता.
आपकी कृति प्रशंशनीय है. अच्छी कल्पना .
वाह संगीत जी! बहुत खूब लिखा है आपने! आपकी लाजवाब कविता को पढ़कर तारीफ़ के लिए अल्फाज़ कम पर गए! अद्भुत सुन्दर कल्पना!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
कतरनों की कतरने और वो भी ख़्वाबों की ....बहुत खूब .....सादर !
ख्वाब मेरे
कपड़े की
कतरनों के माफिक
कटे फटे
जब भी सहेजना चाहा
कतरनों की तरह ही
बिखर जाते हैं
गहन भावों का समावेश हर पंक्ति में ...।
ख्वाबों की कतरनों में भी कविता की झलक, वाह.
कविता में है पोशीदा जीवन की महक, वाह.
बहुत सुंदर और एकदम नयी उपमा दी है आपने आपने ख्वाबों को... जब पुराने, पुराने पड़ जाएँ तो नए ख्वाब सजा लें!
जैसे ही
पुराना पड़ता है
पैचवर्क
तो
लगाने वाला
खुद ही उखाड फेंकता है
और मैं
उन कतरनों की कतरनें
देखती रह जाती हूँ ...
JEEVAN KI HAKIKAT BHI KUCH AISI HI HAI...DIL KO CHHU GAYI RACHNA!
संगीता जी अभिवादन सुन्दर रचना -बहुत खूब दर्द भर गया भावनाओं और सपनों के साथ लोगों का खिलवाड़ ....अब सब सपने सच हो जाएँ
शुक्ल भ्रमर ५
ख्वाब मेरे..
तो
लगाने वाला
खुद ही उखाड फेंकता है
और मैं
उन कतरनों की कतरनें
देखती रह जाती हूँ ...
जब भी सहेजना चाहा
कतरनों की तरह ही
बिखर जाते हैं ......
उपेक्षा में अपेक्षा की भावना मजबूत जिगरा ही कर सकता है ,सराहनीय सृजन .../
अच्छी रचना !संगीता जी ये कतरनें ही खबर बनतीं हैं प्रूफ रीडिंग के बाद .
dhaara prawah se bahtee khubsoorat rachna......
फिर भी इसी तरह जीवन चलता है इन्हीं कतरनों के सहारे...
बहुत सुंदर...
'ख्वाब मेरे
कपड़े की
कतरनों के माफिक
कटे फटे
जब भी सहेजना चाहा
कतरनों की तरह ही
बिखर जाते हैं
फिर भी
मैं उन्हें सहेज
रख लेती हूँ'
कितनी गहरी बात लिए पंक्तियाँ..... सच यूँ सहेजना होता है ख्वाबों को आम जीवन में.....
हम्म ..दुबारा आती हूँ .
बहुत ही प्यारा लिखा है संगीता जी.
बहुत ही बेहतरीन कविता है.
संगीता जी आप उस कोड में अपने ब्लॉग का लिंक चेक करे उसमे आपके ब्लॉग का लिंक http://geet7553.blogspot.com/ होना चाहिए अगर तब भी नहीं खुलता तो आप मुझे मेल करे मेरी मेल आईडी है mayankaircel@gmail.com
ख्वाब मेरे
कपड़े की
कतरनों के माफिक
कटे फटे
जब भी सहेजना चाहा
कतरनों की तरह ही
बिखर जाते हैं
फिर भी
मैं उन्हें सहेज
रख लेती हूँ
दिल के लिफ़ाफ़े में ...
कतरनों की तरह ज़िन्दगी के फलसफो को बताती अद्भुत रचना
वाकई मैं जादू है आपकी रचनाओं मैं
धन्यवाद
बहुत ही सुंदरता से बात कही है आपने
कतरनों की कतरने---- ये अधिक पीडा देती हैं। मार्मिक अभिव्यक्ति।
कतरनों की कतरने---- ये अधिक पीडा देती हैं। मार्मिक अभिव्यक्ति।
didi bachha bahut din baad aaya hai paon chhu raha hun.
जब कोई चाहता है
तो उनसे बना देता है
कोई सुन्दर सा
पैच वर्क
और मैं
उसी में खो जाती हूँ ,
..
didiaapke likhe par koi tippadi nahi aapko pata hai jeewan ka nichod.
बहुत ही सुन्दर भाव पूर्ण प्रस्तुति ..संजो कर रखने की जिजीविषा ..अपार शुभ कामनाएं....
chhoti magar sashakt kavitaa, vicharon ki saraniyaan sath-sath chalati hai isame.
सशक्त उम्दा रचना....
बहुत ही सुन्दर है आपकी कोमल भावनाओं का संसार....कोटि कोटि शुभकामनाएं एवं अभिनन्दन...
dadiiiiiiiii...............
aap kabhi puraani nahin hoti na....forever young....!!! main muddat baad aayi....par aap utni hi dilkash mili.....luvv uuuuu
PS please ye mat kehna ke main bhool gayi....bas aana nahin hua...kaii kaaran the :(
शब्दों की कारीगरी कोई आप से सीखे
सहेजने का क्रम चलता रहे!
सुन्दर!
ख्वाब मेरे
कपड़े की
कतरनों के माफिक
कटे फटे
जब भी सहेजना चाहा
कतरनों की तरह ही
बिखर जाते हैं
bahut sundar prastuti.
बहुत खूबसूरत ख्वाब हैं....कतरनों में ही सही....
बहुत खूबसूरत ख्वाब हैं....कतरनों में ही सही....
आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है कल ..शनिवार(२-०७-११)को नयी-पुराणी हलचल पर ..!!आयें और ..अपने विचारों से अवगत कराएं ...!!
न्यारी है.. कतरनें..ख़्वाब..सहेजना..बहुत ही खूबसूरत
ख्वाब और कतरने बहुत सुन्दर बिम्ब |
हश्र कुछ भी हो,आस ही संबल है।
ख्वाब मेरे
कपड़े की
कतरनों के माफिक
कटे फटे
ख़्वाब कतरनों से ही तो होते हैं... यहाँ वहाँ से जोड़ कर चाहो तो ख़ूबसूरत पैचवर्क बनालो... नहीं तो कतरनें तो कतरनें ही रहती हैं ...
मैं उन्हें सहेज
रख लेती हूँ
दिल के लिफ़ाफ़े में
didi apko parikalpna pe dekha bahut baar bt padha aaj
bahut sundar likha hai :)
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