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उल्लसित धूप

>> Monday, July 16, 2012




तम  के  गहन  बादलों के बीच
आज निकली है 
हल्की सी उल्लसित धूप 
और मैंने  
अपनी सारी ख्वाहिशें 
डाल  दी हैं  
मन की अलगनी पर 
इन सीली सीली सी 
ख़्वाहिशों को 
कुछ हवा लगे 
और कुछ धूप
और  सीलन की महक 
हो सके दूर  
साँझ  होने से पहले ही 
सहेज लूँगी  इनको 
और डाल  दूँगी इनके साथ 
वक़्त के नेपथलीन बॉल्स
जो शिथिलता  और 
विरक्ति के कीड़े  को 
फिर लगने नहीं देंगे  ।



76 comments:

ashish 7/16/2012 6:49 PM  

जे बात हुई ना . लगने दीजिये धूप, होने दीजिये कड़क ,. ख्वाहिशों में ग्लेज़ आने दीजिये . ताकि सूरज भी चौधियां जाए . और दीदी नेपथलीन की गोलियों के साथ सिलिका जेल भी रखियेगा , फिर पक्का नहीं सीलेगी ख्वाहिशे .

संतोष त्रिवेदी 7/16/2012 7:08 PM  

...ऐसी ताज़ी और गुनगुनी धूप की हमें भी तलाश है !

मनोज कुमार 7/16/2012 7:12 PM  

• आपने इस कविता के द्वारा वर्तमान परिस्थिति में निरर्थकता और विभिन्न शक्लों को रोज़मर्रा की ज़िन्दगी की मामूली घटनाओं को बिम्बों के ब्याज से उभारा है।

ANULATA RAJ NAIR 7/16/2012 7:13 PM  

वाह संगीता दी......
बहुत सुन्दर बात ..कितना कुछ कह दिया इन साधारण से शब्दों में..
बहुत बढ़िया..
सादर
अनु

अशोक सलूजा 7/16/2012 7:33 PM  

अभी तो शीतल फुहारों की शरुआत है ...
आनंद लीजिए !

Anju (Anu) Chaudhary 7/16/2012 7:34 PM  

साँझ होने से पहले ही
सहेज लूँगी इनको
और डाल दूँगी इनके साथ
वक़्त के नेपथलीन बॉल्स
जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे ।
बेहद उम्दा सोच के साथ लिखी गई कविता
सही कहा आपने ....अपने विचार सही होंगे तो मन के किसी भी कोने में किसी प्रकार का कोई भी कीड़ा उसे खराब नहीं कर पाएगा ...

shikha varshney 7/16/2012 7:38 PM  

अब आपने ठान ही लिया है धूप दिखने का तो मजाल जो विरक्ति के कीड़े टिक पायें...
दिखाइए धूप जम के, और जो डालना है अलग से डालिए. बस फिर देखिएगा खुशबू और ताजगी चहुँ ओर >..बहुत ही सुन्दर रचना.

शिवनाथ कुमार 7/16/2012 7:47 PM  

ख्वाहिशें रहनी चाहिए जिंदा हमेशा ...
ख्वाहिशों को अच्छी तरह सहेजा आपने अपनी कविता में
सादर !!

Ramakant Singh 7/16/2012 8:55 PM  

वक़्त के नेपथलीन बॉल्स
जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे ।

निःशब्द करती लाइन प्रणाम

kshama 7/16/2012 9:05 PM  

Pata nahee kab aur kaise virakti ke keede lag jate hain!

विभा रानी श्रीवास्तव 7/16/2012 9:26 PM  

बहुत खूब दी ....
जीने की कला इसे ही कहते हैं ....

प्रतिभा सक्सेना 7/16/2012 9:34 PM  

शब्द अपने अर्थ से कहीं आगे बढ़ गये हैं -आपकी व्यंजना का कमाल !

डॉ. मोनिका शर्मा 7/16/2012 9:34 PM  

बहुत सुंदर बिम्ब के ज़रिए कही अर्थपूर्ण बात.....

udaya veer singh 7/16/2012 9:35 PM  

बहुत सुन्दर ..कितना कुछ कह दिया ... शब्दों में..

संध्या शर्मा 7/16/2012 9:38 PM  

इतनी लगन से सहेजी गई ख्वाहिशों को भला कैसे लग सकते हैं विरक्ति के कीड़े... अनुपम भाव... सादर

Unknown 7/16/2012 9:47 PM  

साँझ होने से पहले ही
सहेज लूँगी इनको
और डाल दूँगी इनके साथ
वक़्त के नेपथलीन बॉल्स
जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे ।
आशाओं के इंद्र धनुष सदा खिले रहने चाहिए जीवन में इस ..भाव के साथ लिखी अत्यंत सारगर्भित अभिव्यक्ति....आभार एवं हार्दिक शुभ कामनाएं !!!
सादर !!!

Satish Saxena 7/16/2012 10:28 PM  

शुभकामनायें आपको !

ऋता शेखर 'मधु' 7/16/2012 10:37 PM  

बहुत सुंदर !!ख्वाहिशों को विरक्ति के कीड़े से बचाना जरूरी है...

Sadhana Vaid 7/16/2012 10:59 PM  

बहुत ही बेहतरीन रचना संगीता जी ! हर पंक्ति भावपूर्ण है और समाज में व्याप्त विसंगतियों की ओर बड़े ही समर्थ भाव के साथ संकेत करती है ! !

मेरा मन पंछी सा 7/16/2012 11:09 PM  

ख्वाहिशो को कभी सीलन ना लगे
पंख हो उनके जो उड़े और अपनी इक्षा पूरी कर ले..
बहुत सुन्दर मनभावन रचना ...
:-)

Dr. sandhya tiwari 7/16/2012 11:17 PM  

ख्वाहिशों को अच्छी तरह सहेजा आपने अपनी कविता में...............बहुत सुन्दर .

Anupama Tripathi 7/16/2012 11:35 PM  

साँझ होने से पहले ही
सहेज लूँगी इनको
और डाल दूँगी इनके साथ
वक़्त के नेपथलीन बॉल्स..
sakaraatmak vichaar ...
bahut sundar kavita ...

devendra gautam 7/17/2012 12:33 AM  

इन सीली सीली सी
ख़्वाहिशों को
कुछ हवा लगे
और कुछ धूप
और सीलन की महक
हो सके दूर

बहुत सुन्दर भाव

वाणी गीत 7/17/2012 7:53 AM  

मन की उल्लासित धूप वक़्त के साथ भावनाओं की सीलन को ख़त्म कर देती है !
सुन्दर !

Suman 7/17/2012 7:59 AM  

और डाल दूँगी इनके साथ
वक़्त के नेपथलीन बॉल्स
जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे ।

विरक्ति के कीड़े को न लगने देना,वक्त के नेपथलीन बॉल्स,
ख्वाहिशो को महकाना ये ख्याल बड़े अच्छे लगे वाकई !
बढ़िया चिंतन .....

Yashwant R. B. Mathur 7/17/2012 8:43 AM  

बहुत ही बढ़िया आंटी!

सादर

दीपिका रानी 7/17/2012 10:56 AM  

कम शब्दों में कितनी गहराई है!

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" 7/17/2012 11:29 AM  

vऔर डाल दूँगी इनके साथ
वक़्त के नेपथलीन बॉल्स
जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे ...behtarin prateekon ke sath ..shasakt rachna..sadar pranaam ke sath

रश्मि प्रभा... 7/17/2012 11:38 AM  

सारी ख्वाहिशें
डाल दी हैं
मन की अलगनी पर .... अब फिर से तह लगाकर रखने से सीलन का भय नहीं होगा - धूप सी निखरी होगी ख्वाहिशें

रश्मि प्रभा... 7/17/2012 11:39 AM  

सारी ख्वाहिशें
डाल दी हैं
मन की अलगनी पर .... अब फिर से तह लगाकर रखने से सीलन का भय नहीं होगा - धूप सी निखरी होगी ख्वाहिशें

vandana gupta 7/17/2012 11:59 AM  

जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे ।

कितने सुन्दर भावो को बिम्बो के माध्यम से सहेजा है। सुन्दर प्रस्तुति।

सदा 7/17/2012 12:29 PM  

अनुपम भाव लिए बेहतरीन अभिव्‍यक्ति

कल 18/07/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!

'' ख्वाब क्यों ???...कविताओं में जवाब तलाशता एक सवाल''

पी.सी.गोदियाल "परचेत" 7/17/2012 12:34 PM  

साँझ होने से पहले ही
सहेज लूँगी इनको
और डाल दूँगी इनके साथ
वक़्त के नेपथलीन बॉल्स
जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे ।

बहुत सुन्दर,बेहतरीन भाव!

Meeta Pant 7/17/2012 1:10 PM  

सुन्दर और सकारात्मक !!
सादर .

Anita 7/17/2012 1:57 PM  

तम के गहन बादलों के बीच
आज निकली है
हल्की सी उल्लसित धूप
और मैंने
अपनी सारी ख्वाहिशें
डाल दी हैं
मन की अलगनी पर

बहुत सुंदर, आत्मविश्वास से भरी पंक्तियाँ !

Bharat Bhushan 7/17/2012 2:04 PM  

ख़्वाहिशों को बचा कर रखना कितना कठिन होता है. बहुत सुंदर कविता जो मन को छूती है.

मुकेश कुमार सिन्हा 7/17/2012 2:19 PM  

ashish jee ne kitna pyara sa comment diya....
bahut pyari rachna...!!

Maheshwari kaneri 7/17/2012 3:09 PM  

वाह: क्या बात है संगीता जी ..ख्वाइशो को धूप दिखाना फिर उन्हें सहेज कर रखना.. बहुत सुन्दर अहसास..

दिगम्बर नासवा 7/17/2012 5:00 PM  

काश उलास की ये धूप कैद की जा सके ... समय उस वक्त रोका जा सके हमेशा हमेशा के लिए ...
भावमय रचना ..

प्रतुल वशिष्ठ 7/17/2012 5:49 PM  

ऎसी रचनाएँ रोमांचित कर जाती हैं... एक अलग प्रकार का रोमांच होता है.

निज जीवन से जुड़े बिम्ब बहुत भाते हैं....

तनाव भरी चर्चाओं से बाहर आकर ऎसी रचनाएँ सुकून देती हैं. वही मुझे अभी-अभी मिला है.

Amrita Tanmay 7/17/2012 5:58 PM  

एक सौंधी -सौंधी सी महक उठ रही है..सुन्दर कहा है..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया 7/17/2012 11:19 PM  

वाह: बहुत खूब,,,, संगीता जी ..ख्वाइशो को धूप दिखाकर फिर सहेजना,
बहुत सुन्दर अहसास.,,,,,.

RECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....

virendra sharma 7/18/2012 7:37 AM  

बढ़िया सशक्त रचना ...

प्रवीण पाण्डेय 7/18/2012 8:23 AM  

सच कहा, सीलन से बचा कर रखना है अनुभूतियों को।

अनामिका की सदायें ...... 7/18/2012 8:55 AM  

ehsaso ko dhoop aur hava lagti rahe aur waqt rahte unki sambhaal/sawaar theek roop se hoti rahe to jindgi ki kafi uljhne ulajhane se pahle hi sulajh jayen.

sunder abhivyakti.

Unknown 7/18/2012 9:02 AM  

खूबसूरत बिम्बों का प्रयोग किया है आपने कविता भी बेहद संवेदनशील बन पड़ी है बधाई संगीता जी

Saras 7/18/2012 11:24 AM  

सच ...हमें अहसास भी नहीं होता ..वक़्त के साथ कितनी ख्वाईशें उपेक्षित रह जाती हैं...उन्हें जिंदा रखना होगा ....बहुत सुन्दर सन्देश देती रचना संगीताजी

कुमार राधारमण 7/19/2012 10:07 AM  

ये जो जिजीविषा है सुनहरे पलों को सहेजने की,जीवन में सारा उल्लास और उत्साह इन्हीं से है।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " 7/19/2012 1:27 PM  

और डाल दूँगी इनके साथ
वक़्त के नेपथलीन बॉल्स
जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे ।
BAHUT SUNDAR BHAVABHIVYAKTI...

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " 7/19/2012 1:28 PM  

और डाल दूँगी इनके साथ
वक़्त के नेपथलीन बॉल्स
जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे ।
BAHUT SUNDAR BHAVABHIVYAKTI...

virendra sharma 7/19/2012 7:36 PM  

मार्मिक .

yashoda Agrawal 7/19/2012 8:14 PM  

दीदी मन नही भरा
शनिवार 21/07/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. आपके सुझावों का स्वागत है . धन्यवाद!

Kunwar Kusumesh 7/19/2012 9:36 PM  

बेहतरीन रचना संगीता जी

Anonymous,  7/20/2012 10:19 AM  

साँझ होने से पहले ही
सहेज लूँगी इनको
और डाल दूँगी इनके साथ
वक़्त के नेपथलीन बॉल्स
जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे ।

Bahut sundar.... kuch nayi naveli anoothi si kalpana..
sadar
manju

Kailash Sharma 7/20/2012 8:10 PM  

ख्वाहिशों को कभी कभी धूप दिखाना भी जीवन उर्जा के लिये ज़रूरी है..सहज विम्बों से गहन जीवन सत्य कहती बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

Pallavi saxena 7/21/2012 12:40 AM  

क्या कहूँ आपकी रचना पढ़ने के बाद हर बार सोच में पड़ जाती हूँ। शब्द ही नहीं मिलते तारीफ के लिए इतनी अच्छी लगती है आपकी गहन भावभिव्यक्ति कैसे कम शब्दों में भी अप पूरी बात इतनी खूबसूरती से कह जाती है .... मुझे भी सीखा दीजिये न :)

Onkar 7/22/2012 11:55 AM  

वाह. बहुत नई-सी कविता

S.N SHUKLA 7/23/2012 10:27 AM  

bahut sundar srijan, sadar.

देवेन्द्र पाण्डेय 7/23/2012 5:44 PM  

सुंदर प्रयोग ने पूर्ण अभिव्यक्ति दी है।..वाह!

डॉ. जेन्नी शबनम 7/24/2012 12:24 AM  

बहुत खूबसूरत बिम्ब प्रयोग, सुन्दर रचना, बधाई.

Rajput 7/27/2012 5:53 PM  

जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे ...

वाह संगीता ज़ी,
बहुत सुन्दर.

VIVEK VK JAIN 7/27/2012 9:48 PM  

इन सीली सीली सी
ख़्वाहिशों को
कुछ हवा लगे
और कुछ धूप
और सीलन की महक
हो सके दूर

waah!!!!!!!

Dr (Miss) Sharad Singh 7/28/2012 11:57 AM  

ताज़ा गुनगुनी धूप-सी ताज़ा गुनगुनी रचना...बहुत सुन्दर...

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') 7/29/2012 8:35 AM  

क्या खुबसूरत रचना दी... वाह!
सादर.

महेन्‍द्र वर्मा 7/29/2012 4:38 PM  

नवीन प्रतीकों के प्रयोग से कविता की सम्प्रेषणीयता में वृद्धि हुई है।
बिल्कुल नए अंदाज में नई बात !
बहुत सुंदर।

Sonroopa Vishal 8/01/2012 8:04 AM  

अरे वाह .......बिम्ब तो अच्छे हैं ही साथ में सन्देश और आपकी आकांक्षा भी !

Dr Varsha Singh 8/01/2012 3:29 PM  

बहुत सुन्दर.....

रफत आलम 8/21/2012 5:05 PM  

डाल दूँगी इनके साथ
वक़्त के नेपथलीन बॉल्स
जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे .......दिल को छू लिया आपकी रचना ने .शुक्रिया

Anita Lalit (अनिता ललित ) 8/22/2012 9:53 PM  

आपकी तरह आपकी रचनाएँ भी बहुत SWEET हैं..! पहली बार 'गीत...मेरी अनुभूतियाँ ' पर आए हैं..! बहुत ही अच्छा लगा..!:)
आपकी इस रचना को पढ़कर अपनी लिखी पंक्तियाँ याद आ गयी...
"दर्द की हर तह में रख दिए मैनें...अश्कों के मोती..
मौसम हो कैसा भी...तेरी याद महफूज़ है...मेरे दिल में.."
~सादर!!!

Yashwant R. B. Mathur 9/29/2012 11:36 AM  

कल 30/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

nayee dunia 9/30/2012 7:36 AM  

इन सीली सीली सी
ख़्वाहिशों को
कुछ हवा लगे
और कुछ धूप
और सीलन की महक
हो सके दूर ..............बहुत सुन्दर

Nidhi 10/01/2012 12:11 AM  

धूप लगाना भी ज़रूरी है...अगर ख्वाहिशों को विरक्ति के कीड़ों से बचाना है

संजय भास्‍कर 6/09/2014 11:20 AM  

वक़्त के नेपथलीन बॉल्स
जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे ।

बहुत सुन्दर,बेहतरीन भाव!

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