उल्लसित धूप
>> Monday, July 16, 2012
तम के गहन बादलों के बीच
आज निकली है
हल्की सी उल्लसित धूप
और मैंने
अपनी सारी ख्वाहिशें
डाल दी हैं
मन की अलगनी पर
इन सीली सीली सी
ख़्वाहिशों को
कुछ हवा लगे
और कुछ धूप
और सीलन की महक
हो सके दूर
साँझ होने से पहले ही
सहेज लूँगी इनको
और डाल दूँगी इनके साथ
वक़्त के नेपथलीन बॉल्स
जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे ।
76 comments:
जे बात हुई ना . लगने दीजिये धूप, होने दीजिये कड़क ,. ख्वाहिशों में ग्लेज़ आने दीजिये . ताकि सूरज भी चौधियां जाए . और दीदी नेपथलीन की गोलियों के साथ सिलिका जेल भी रखियेगा , फिर पक्का नहीं सीलेगी ख्वाहिशे .
...ऐसी ताज़ी और गुनगुनी धूप की हमें भी तलाश है !
• आपने इस कविता के द्वारा वर्तमान परिस्थिति में निरर्थकता और विभिन्न शक्लों को रोज़मर्रा की ज़िन्दगी की मामूली घटनाओं को बिम्बों के ब्याज से उभारा है।
वाह संगीता दी......
बहुत सुन्दर बात ..कितना कुछ कह दिया इन साधारण से शब्दों में..
बहुत बढ़िया..
सादर
अनु
अभी तो शीतल फुहारों की शरुआत है ...
आनंद लीजिए !
साँझ होने से पहले ही
सहेज लूँगी इनको
और डाल दूँगी इनके साथ
वक़्त के नेपथलीन बॉल्स
जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे ।
बेहद उम्दा सोच के साथ लिखी गई कविता
सही कहा आपने ....अपने विचार सही होंगे तो मन के किसी भी कोने में किसी प्रकार का कोई भी कीड़ा उसे खराब नहीं कर पाएगा ...
अब आपने ठान ही लिया है धूप दिखने का तो मजाल जो विरक्ति के कीड़े टिक पायें...
दिखाइए धूप जम के, और जो डालना है अलग से डालिए. बस फिर देखिएगा खुशबू और ताजगी चहुँ ओर >..बहुत ही सुन्दर रचना.
ख्वाहिशें रहनी चाहिए जिंदा हमेशा ...
ख्वाहिशों को अच्छी तरह सहेजा आपने अपनी कविता में
सादर !!
वक़्त के नेपथलीन बॉल्स
जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे ।
निःशब्द करती लाइन प्रणाम
Pata nahee kab aur kaise virakti ke keede lag jate hain!
बहुत खूब दी ....
जीने की कला इसे ही कहते हैं ....
शब्द अपने अर्थ से कहीं आगे बढ़ गये हैं -आपकी व्यंजना का कमाल !
बहुत सुंदर बिम्ब के ज़रिए कही अर्थपूर्ण बात.....
बहुत सुन्दर ..कितना कुछ कह दिया ... शब्दों में..
इतनी लगन से सहेजी गई ख्वाहिशों को भला कैसे लग सकते हैं विरक्ति के कीड़े... अनुपम भाव... सादर
साँझ होने से पहले ही
सहेज लूँगी इनको
और डाल दूँगी इनके साथ
वक़्त के नेपथलीन बॉल्स
जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे ।
आशाओं के इंद्र धनुष सदा खिले रहने चाहिए जीवन में इस ..भाव के साथ लिखी अत्यंत सारगर्भित अभिव्यक्ति....आभार एवं हार्दिक शुभ कामनाएं !!!
सादर !!!
शुभकामनायें आपको !
बहुत सुंदर !!ख्वाहिशों को विरक्ति के कीड़े से बचाना जरूरी है...
बहुत ही बेहतरीन रचना संगीता जी ! हर पंक्ति भावपूर्ण है और समाज में व्याप्त विसंगतियों की ओर बड़े ही समर्थ भाव के साथ संकेत करती है ! !
ख्वाहिशो को कभी सीलन ना लगे
पंख हो उनके जो उड़े और अपनी इक्षा पूरी कर ले..
बहुत सुन्दर मनभावन रचना ...
:-)
ख्वाहिशों को अच्छी तरह सहेजा आपने अपनी कविता में...............बहुत सुन्दर .
साँझ होने से पहले ही
सहेज लूँगी इनको
और डाल दूँगी इनके साथ
वक़्त के नेपथलीन बॉल्स..
sakaraatmak vichaar ...
bahut sundar kavita ...
बहुत खूब ...
आपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है, तेजाब :- मनचलों का हथियार - ब्लॉग बुलेटिन, के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
इन सीली सीली सी
ख़्वाहिशों को
कुछ हवा लगे
और कुछ धूप
और सीलन की महक
हो सके दूर
बहुत सुन्दर भाव
मन की उल्लासित धूप वक़्त के साथ भावनाओं की सीलन को ख़त्म कर देती है !
सुन्दर !
और डाल दूँगी इनके साथ
वक़्त के नेपथलीन बॉल्स
जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे ।
विरक्ति के कीड़े को न लगने देना,वक्त के नेपथलीन बॉल्स,
ख्वाहिशो को महकाना ये ख्याल बड़े अच्छे लगे वाकई !
बढ़िया चिंतन .....
बहुत ही बढ़िया आंटी!
सादर
kya baat hai.....wah.
कम शब्दों में कितनी गहराई है!
vऔर डाल दूँगी इनके साथ
वक़्त के नेपथलीन बॉल्स
जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे ...behtarin prateekon ke sath ..shasakt rachna..sadar pranaam ke sath
सारी ख्वाहिशें
डाल दी हैं
मन की अलगनी पर .... अब फिर से तह लगाकर रखने से सीलन का भय नहीं होगा - धूप सी निखरी होगी ख्वाहिशें
सारी ख्वाहिशें
डाल दी हैं
मन की अलगनी पर .... अब फिर से तह लगाकर रखने से सीलन का भय नहीं होगा - धूप सी निखरी होगी ख्वाहिशें
जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे ।
कितने सुन्दर भावो को बिम्बो के माध्यम से सहेजा है। सुन्दर प्रस्तुति।
अनुपम भाव लिए बेहतरीन अभिव्यक्ति
कल 18/07/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
'' ख्वाब क्यों ???...कविताओं में जवाब तलाशता एक सवाल''
साँझ होने से पहले ही
सहेज लूँगी इनको
और डाल दूँगी इनके साथ
वक़्त के नेपथलीन बॉल्स
जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे ।
बहुत सुन्दर,बेहतरीन भाव!
सुन्दर और सकारात्मक !!
सादर .
तम के गहन बादलों के बीच
आज निकली है
हल्की सी उल्लसित धूप
और मैंने
अपनी सारी ख्वाहिशें
डाल दी हैं
मन की अलगनी पर
बहुत सुंदर, आत्मविश्वास से भरी पंक्तियाँ !
ख़्वाहिशों को बचा कर रखना कितना कठिन होता है. बहुत सुंदर कविता जो मन को छूती है.
ashish jee ne kitna pyara sa comment diya....
bahut pyari rachna...!!
वाह: क्या बात है संगीता जी ..ख्वाइशो को धूप दिखाना फिर उन्हें सहेज कर रखना.. बहुत सुन्दर अहसास..
काश उलास की ये धूप कैद की जा सके ... समय उस वक्त रोका जा सके हमेशा हमेशा के लिए ...
भावमय रचना ..
ऎसी रचनाएँ रोमांचित कर जाती हैं... एक अलग प्रकार का रोमांच होता है.
निज जीवन से जुड़े बिम्ब बहुत भाते हैं....
तनाव भरी चर्चाओं से बाहर आकर ऎसी रचनाएँ सुकून देती हैं. वही मुझे अभी-अभी मिला है.
एक सौंधी -सौंधी सी महक उठ रही है..सुन्दर कहा है..
वाह: बहुत खूब,,,, संगीता जी ..ख्वाइशो को धूप दिखाकर फिर सहेजना,
बहुत सुन्दर अहसास.,,,,,.
RECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....
बढ़िया सशक्त रचना ...
सच कहा, सीलन से बचा कर रखना है अनुभूतियों को।
ehsaso ko dhoop aur hava lagti rahe aur waqt rahte unki sambhaal/sawaar theek roop se hoti rahe to jindgi ki kafi uljhne ulajhane se pahle hi sulajh jayen.
sunder abhivyakti.
खूबसूरत बिम्बों का प्रयोग किया है आपने कविता भी बेहद संवेदनशील बन पड़ी है बधाई संगीता जी
सच ...हमें अहसास भी नहीं होता ..वक़्त के साथ कितनी ख्वाईशें उपेक्षित रह जाती हैं...उन्हें जिंदा रखना होगा ....बहुत सुन्दर सन्देश देती रचना संगीताजी
ये जो जिजीविषा है सुनहरे पलों को सहेजने की,जीवन में सारा उल्लास और उत्साह इन्हीं से है।
और डाल दूँगी इनके साथ
वक़्त के नेपथलीन बॉल्स
जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे ।
BAHUT SUNDAR BHAVABHIVYAKTI...
और डाल दूँगी इनके साथ
वक़्त के नेपथलीन बॉल्स
जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे ।
BAHUT SUNDAR BHAVABHIVYAKTI...
मार्मिक .
दीदी मन नही भरा
शनिवार 21/07/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. आपके सुझावों का स्वागत है . धन्यवाद!
बेहतरीन रचना संगीता जी
साँझ होने से पहले ही
सहेज लूँगी इनको
और डाल दूँगी इनके साथ
वक़्त के नेपथलीन बॉल्स
जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे ।
Bahut sundar.... kuch nayi naveli anoothi si kalpana..
sadar
manju
ख्वाहिशों को कभी कभी धूप दिखाना भी जीवन उर्जा के लिये ज़रूरी है..सहज विम्बों से गहन जीवन सत्य कहती बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
क्या कहूँ आपकी रचना पढ़ने के बाद हर बार सोच में पड़ जाती हूँ। शब्द ही नहीं मिलते तारीफ के लिए इतनी अच्छी लगती है आपकी गहन भावभिव्यक्ति कैसे कम शब्दों में भी अप पूरी बात इतनी खूबसूरती से कह जाती है .... मुझे भी सीखा दीजिये न :)
वाह. बहुत नई-सी कविता
bahut sundar srijan, sadar.
सुंदर प्रयोग ने पूर्ण अभिव्यक्ति दी है।..वाह!
बहुत खूबसूरत बिम्ब प्रयोग, सुन्दर रचना, बधाई.
bahut badhiyan .....
जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे ...
वाह संगीता ज़ी,
बहुत सुन्दर.
इन सीली सीली सी
ख़्वाहिशों को
कुछ हवा लगे
और कुछ धूप
और सीलन की महक
हो सके दूर
waah!!!!!!!
ताज़ा गुनगुनी धूप-सी ताज़ा गुनगुनी रचना...बहुत सुन्दर...
क्या खुबसूरत रचना दी... वाह!
सादर.
नवीन प्रतीकों के प्रयोग से कविता की सम्प्रेषणीयता में वृद्धि हुई है।
बिल्कुल नए अंदाज में नई बात !
बहुत सुंदर।
अरे वाह .......बिम्ब तो अच्छे हैं ही साथ में सन्देश और आपकी आकांक्षा भी !
बहुत सुन्दर.....
डाल दूँगी इनके साथ
वक़्त के नेपथलीन बॉल्स
जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे .......दिल को छू लिया आपकी रचना ने .शुक्रिया
आपकी तरह आपकी रचनाएँ भी बहुत SWEET हैं..! पहली बार 'गीत...मेरी अनुभूतियाँ ' पर आए हैं..! बहुत ही अच्छा लगा..!:)
आपकी इस रचना को पढ़कर अपनी लिखी पंक्तियाँ याद आ गयी...
"दर्द की हर तह में रख दिए मैनें...अश्कों के मोती..
मौसम हो कैसा भी...तेरी याद महफूज़ है...मेरे दिल में.."
~सादर!!!
कल 30/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
इन सीली सीली सी
ख़्वाहिशों को
कुछ हवा लगे
और कुछ धूप
और सीलन की महक
हो सके दूर ..............बहुत सुन्दर
धूप लगाना भी ज़रूरी है...अगर ख्वाहिशों को विरक्ति के कीड़ों से बचाना है
वक़्त के नेपथलीन बॉल्स
जो शिथिलता और
विरक्ति के कीड़े को
फिर लगने नहीं देंगे ।
बहुत सुन्दर,बेहतरीन भाव!
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