खिल उठे पलाश / पुस्तक परिचय / सारिका मुकेश
>> Thursday, August 2, 2012
गर्भनाल पत्रिका के अगस्त अंक में प्रकाशित पुस्तक परिचय ---
खिल उठे पलाश
" खिल
उठे पलाश " काव्य संग्रह है
कवयित्रि सारिका मुकेश जी का जो इस समय वी॰ आई॰ टी॰ यूनिवर्सिटी वैल्लोर ( तमिलनाडु) में अँग्रेजी की असिस्टेंट प्रोफेसर ( सीनियर ) के रूप में
कार्य रात हैं . इससे पहले भी इनके दो काव्य संग्रह ‘ पानी पर लकीरें और
एक किरण उजाला ‘प्रकाशित हो चुके हैं । कवयित्रि के विचारों
की एक झलक मिलती है जो उन्होने अपनी पुस्तक की भूमिका में कही है -
“वैश्वीकरण
ने भारत को
दो हिस्सों में बाँट दिया है --एक जो पूरी तरह से वैश्वीकरण का आर्थिक
लाभ ( ईमानदारी से ,भ्रष्टाचार से या फिर दोनों
से ) उठा कर अमीर बन चुका है ; जिसे हम
शाइनिंग इंडिया के नाम से जानते हैं और दूसरा जहां वैश्वी
करण की आर्थिक वर्षा की एक - दो छींट ही पहुँच सकी हैं और जो भारत ही बन कर
रह गया है ...
मन के
दरवाजे पर संवेदनाओं की आहटें ही कविता को विस्तार देती हैं
जिनमें जीवन की धड़कनें समाहित होती हैं । ”
सच ही इस पुस्तक की संवेदनाओं ने मन के दरवाजे
पर ज़बरदस्त दस्तक दी है ..... यूं तो हर रचना अपने आप में मुकम्मल
है लेकिन जिन रचनाओं ने मन पर विशेष प्रभाव छोड़ा है वो हैं --
मिलन ---
जहां वृक्ष लता को एक दृढ़ सहारा देने को दृढ़ निश्चयी है जैसे कह
रहा हो मैं हूँ न ।
फिर जन्मी
लता / पली और बढ़ी / और फिर एक दिन /लिपट गयी वृक्ष से / औ वृक्ष भी / कुछ झुक गया
/ करने को आलिंगन / लता का /
सामाजिक
सरोकारों को उकेरती कुछ कवितायें एक प्रश्न छोड़ जाती हैं जो मन को मथते रहते हैं
---
तुमने
देखा है कभी / कोई आठ साल का लड़का .....सीने में गिनती करती पसलियाँ ...
आज वक़्त
बदल रहा है .... लड़कियां भी कदम दर
कदम आगे बढ़ रही हैं –
प्रतियोगिता
के स्वर्णिम सपनों को आँखों में लिए / कठोर परिश्रम कर डिग्री पा कर / अपने मुकाम को पाने हेतु /
मनुष्य
को जो आपस में बांटना चाहिए उससे विमुख हो कर धरती , आकाश यहाँ तक कि हवा पानी भी
बांटने को तत्पर है ।
वर्जीनिया
वुल्फ़ --- यह ऐसी रचना है जिसमे लेखिका के पूरे जीवन को ही उकेर कर रख दिया है ।
शब्दों का
फेर / नयी सदी का युवा ..... यह वो रचनाएँ हैं जो हंसी का पुट लिए हुये गहरा कटाक्ष करती प्रतीत
होती हैं ।
एक हादसा
/सफलता के पीछे वाला व्यक्ति / आधुनिकता का असर / दिल्ली में सफर करते हुये ....
यह ऐसी कवितायें हैं जो सोचने पर मजबूर कर देती हैं .... आज इंसान की फित्रत
बदल रही है ....
तुम पर ही
नहीं पड़े निशान --- यह नन्ही नज़्म बस महसूस करने की है कुछ लिखना
बेमानी है इस पर ।
और अंतिम
पृष्ठ तो गजब ही लिखा है एक सार्थक संदेश देते हुये .... मृत्यु जन्म से
पहले नहीं घटती ... बहुत सुंदर
इस तरह इस पुस्तक के माध्यम से मैंने बीज से वृक्ष तक का
सफर किया ...... हर कविता को महसूस किया .... और क्यों कि कविता निर्बाध गति
से एक आँगन से दूसरे आँगन तक बहती है तो मैं भी इसमें बही ..... पाठक भी नि: संदेह इस पुस्तक से
स्वयं को जुड़ा हुआ महसूस करेंगे । पुस्तक की साज सज्जा और आवरण बेहतरीन है ।
रचनाकार
को मेरी हार्दिक शुभकामनायें ।
पुस्तक का नाम ---- खिल उठे पलाश
ISBN ------ 978-8188464-49-4
मूल्य ---------- 150 /
प्रकाशक --- जाह्नवी प्रकाशन , ए - 71 ,विवेक विहार ,फेज़ - 2 ,
दिल्ली - 110095
ब्लॉग --- http://sarikamukesh.blogspot.in/
ISBN ------ 978-8188464-49-4
मूल्य ---------- 150 /
प्रकाशक --- जाह्नवी प्रकाशन , ए - 71 ,विवेक विहार ,फेज़ - 2 ,
दिल्ली - 110095
ब्लॉग --- http://sarikamukesh.blogspot.in/
36 comments:
एक सधी हुयी और कॉम्पैक्ट समीक्षा!! रक्षा बंधन पर प्रणाम स्वीकारें, दी!!
बहुत बढ़िया समीक्षा ...दी...
behtareen.... aisa aap hi kar sakti ho!! jo sameeksha ko padh kar lage ki ye book mere book shelf me honi chahiye..
बड़ी अच्छी समीक्षा..
अच्छी समीक्षा...!
रक्षाबन्धन की शुभकामनाएँ!
रचनाओं को महसूसती, सुंदर समीक्षा.
सुंदर समीक्षा रक्षाबन्धन की शुभकामनाएँ!
बहुत सुन्दर समीक्षा है दी.....
पढ़ने जी करने लगा...
सादर
अनु
बहुत ही अच्छी तरह से समीक्षा की है..
बहुत बढ़िया..
:-)
खिल उठे पलाश" की सुन्दर समीक्षा के लिए बधाई,,,,
रक्षाबँधन की हार्दिक शुभकामनाए,,,
RECENT POST ...: रक्षा का बंधन,,,,
बहुत बढ़िया समीक्षा ..... सुदर ढंग से करवाया परिचय
बहुत बढ़िया समीक्षा...पुस्तक पढ़ने की इच्छा जगी !!
आपकी यह समीक्षा पसंद आयी , पुस्तक रोचक लगती है !
अच्छी समीक्षा है. पुस्तक कभी ना कभी तो मिलेगी ही.
एक एक कविता को अपने आप में साकार करती समीक्षा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ! समीक्षा ही पुस्तक के प्रति उत्कंठा बढाती है.
समीक्षा ने पुस्तक के प्रति उत्सुकता जगाई .
बहुत शुभकामनायें !
सार्थकता देती समीक्षा
खिल उठे पलाश बढ़िया पुस्तक समीक्षा !
सरिता जी एक गंभीर रचनाकार हैं, और उनकी रचनाएं समय का बोध कराती है। आपने उनके काव्य-संग्रह की बेहतरीन समीक्षा की है।
बहुत ही सधी हुई समीक्षा की है संगीता जी बहुत सुन्दर..
prabhavshali sameeksha.
बहुत ही अच्छी समीक्षा .. आपका आभार
बहुत बढ़िया समीक्षा
अच्छा सधा हुआ परिचय...
सादर.
बेहतरीन काव्य-संग्रह से परिचय से करवाया है.. सुन्दर समीक्षा..
बढ़िया लगा आपकी दृष्टि से देखना।
आपने इतनी सुन्दर समीक्षा प्रस्तुत की है संगीता जी कि सहज ही इस पुस्तक को पढने की जिज्ञासा जागृत हो गयी है ! सरिता जी को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं और नया कीर्तिमान स्थापित करने के लिए ढेर सारी बधाइयाँ और उनके व्यक्तित्व व लेखन से परिचित करवाने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार एवं धन्यवाद !
पुस्तक की समीक्षा ने पढ़ने की उत्सुकता जगा दी है ... बधाई है सारिका जी को ...
दीदी, "खिल उठे पलाश" पुस्तक पर आपकी समीक्षा और आपकी पोस्ट में इसे पाकर आह्लादित हूँ; आपका बहुत-बहुत आभार! अपना स्नेह यूँ ही बनाए रखें!
सादर/सप्रेम,
सारिका मुकेश
समस्त प्रिय/माननीय विद्वजनों,
आपकी प्रतिक्रियाएं पाकर अच्छा लग रहा है; पुस्तक पढ़कर आपकी पूर्ण प्रतिक्रिया पाकर और अच्छा लगेगा!
आप सभी के स्नेहाशीष के प्रति हम ह्रदय से आभारी हैं; आप सभी से मिले प्रेम और आत्मबल को अनुभूत कर आज सुप्रसिद्ध कवि केदारनाथ अग्रवाल जी की यह पंक्तियाँ लिखते वक्त मुझे यह पंक्तियाँ स्मरण हो उठी हैं:
मुझे प्राप्त है जनता का बल
वह मेरी कविता का बल है
मैं उस बल से
शक्ति प्रबल से
एक नहीं सौ साल जिऊँगा...
आशा है आप सब अपना स्नेह यूँ ही बरसाते रहेंगे!
पुस्तक प्राप्ति के लिए आप drsarikamukesh@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं!
मंगल कामनाओं सहित,
सादर/सप्रेम
सारिका मुकेश
http://sarikamukesh.blogspot.com/
जबर्दास्त्त समीक्षा की है आपने. इस विधा में माहिर हो गई हैं आप. यह पुस्तक मुझे भी मिली है पर अभी तक पढ़ नहीं पाई हूँ.पर अब जल्दी ही पढूंगी.
बहुत बढ़िया पुस्तक समीक्षा!
बहुत बढ़िया समीक्षा ...दी...
बेहतरीन काव्य-संग्रह से परिचय से करवाया है.. सुन्दर समीक्षा..
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