काफी है ......
>> Saturday, August 4, 2012
तम हो घनेरा
और जाना हो
मंज़िल तक
तो जुगनू का
एक दिया ही
काफी है
मंज़िल पाने को
तपिश हो मन की
और चाहते हो ठंडक
तो अश्क का
एक कतरा ही
एक कतरा ही
काफी है
अदना सा झोंका ही
भर देता है
प्राणवायु
जीवित रहने के लिए
एक सांस ही
काफी है ,
भले ही हो
अस्फुट सा स्वर
पर है वो
प्रेमसिक्त
मन में सिंचित
कटुता को
धो डालने के लिए
काफी है ,
मुँदी हुई पलकें
आभास देती हों
निष्प्राण देह का
उसमें स्पंदन के लिए
गहन मौन ही
काफी है ...
85 comments:
जीवित रहने के लिए
एक सांस ही
काफी है ,
थोड़े शब्दों में बहुत ही बड़ी बात कह दी आपने....लेकिन इंसान समझ नहीं पाता...बहुत अच्छी लगी यह नज़्म
अदना सा झोंका ही
भर देता है
प्राणवायु
जीवित रहने के लिए
एक सांस ही
काफी है ,
समझो के तब ,जब होवोगे वाकिफ गहन अनुभूतियों के प्रगल्भ संसार से ...बढ़िया प्रस्तुति है .तदानुभूति हमें भी हुई लिखी ,आपने है .
मुँदी हुई पलकें
आभास देती हों
निष्प्राण देह का
उसमें स्पंदन के लिए
गहन मौन ही
काफी है ...
किस लाइन को प्रथम श्रेणी में रखा जाये मन के भावों को छू गई कहने के लिए ..जीवन के करीब ह्रदय स्पर्शी
तम हो घनेरा
और जाना हो
मंज़िल तक
तो जुगनू का
एक दिया ही
काफी है
सच कहा है एक छोटी किरण सूरज के स्त्रोत तक
पहुँचाने में सक्षम है ! सुंदर रचना ...
Sangita Di...
Sadar Pranam!..
Ek saans hi kafi, tan main..
Pranvayu ko laane ko..
Ek aas hi kafi, man main...
Asha-deep jalane ko..
Bahut shundar bhavabhivyakti...
Deepak Shukla...
भले ही हो
अस्फुट सा स्वर
पर है वो प्रेमसिक्त
मन में सिंचित
कटुता को
धो डालने के लिए
काफी है....
बहुत ही सुन्दर रचना है दी....
सादर.
सच है यह ...
शुभकामनायें आपको !
अँधेरे में एक जुगनू की पलक झपकती रौशनी काफी है ...एक तिनका , एक बूंद पानी .... जीवन खुद को आयाम दे लेता है
तम हो घनेरा
और जाना हो
मंज़िल तक
तो जुगनू का
एक दिया ही
काफी है
बिल्कुल सही कहा आपने ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
एक बूँद, एक श्वास ,एक आंच काफ़ी है !
मुँदी हुई पलकें
आभास देती हों
निष्प्राण देह का
उसमें स्पंदन के लिए
गहन मौन ही
काफी है ...
सुन्दर भाव समन्वय
मंजिल तक एक जुगनू की रोशनी प्रेरणा देती है। सुन्दर रचना।
भले ही हो
अस्फुट सा स्वर
पर है वो प्रेमसिक्त
मन में सिंचित
कटुता को
धो डालने के लिए
बहुत सुन्दर रचना ...........
इस कविता का उदास स्वर अच्छा लगा... कभी-कभी उदासी भी कितनी अच्छी लगती है।
एक शे’र अर्ज़ है ..
• लोग हाथ की लकीरें यूं पढा करते हैं,
इनका हर हर्फ़ इन्होंने ही लिखा हो जैसे।
अदना सा झोंका ही
भर देता है
प्राणवायु
जीवित रहने के लिए
एक सांस ही
काफी है ,
बहुत सुन्दर, ह्रदयस्पर्शी रचना.
मुँदी हुई पलकें
आभास देती हों
निष्प्राण देह का
उसमें स्पंदन के लिए
गहन मौन ही
काफी है ...
बहुत ही सुन्दर संगीता जी ! कितनी बड़ी बात कह दी आपने अपनी रचना के माध्यम से ! बहुत ही प्रेरक एवं सार्थक पोस्ट ! साभार !
बहुत गहन-गंभीर भावों से सजी कविता.
मुँदी हुई पलकें
आभास देती हों
निष्प्राण देह का
उसमें स्पंदन के लिए
गहन मौन ही काफी है ...
गहन भाव लिए सुंदर अभिव्यक्ति,,,,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: रक्षा का बंधन,,,,
जुगनू का
एक दिया ही
काफी है
जीवित रहने के लिए
एक सांस ही
काफी है ,
वाह !!! बहुत ही सुंदर एवं सारगर्भित रचना....
सादर
मंजु
बहुत सुन्दर रचना ...
सच्ची दी.........कितनी आसानी से इतने नाज़ुक एहसासों को लिख डाला आपने...
बहुत प्यारी पोस्ट.
सादर
अनु
भावनाओ के ज्वार में शब्दों का बह जाना . ऐसी ही कवित निकलती है ह्रदय से. बहुत सुँदर .
मुँदी हुई पलकें
आभास देती हों
निष्प्राण देह का
उसमें स्पंदन के लिए
गहन मौन ही
काफी है
sach hai..maun ki mukharataa svayamsiddha hai..
जीवित रहने के लिए एक सांस ही काफी है , वाह: संगीता जी गागर में सागर..सारगर्भित अभिव्यक्ति..
सच है ... जीवित रहने को एक सांस ही बाकि है ... छोटी छोटी जरूरते होती हैं राहत पाने के लिए ... अपनी अपनी समझ की बात है ... सुन्दर रचना ...
भले ही हो
अस्फुट सा स्वर
पर है वो
प्रेमसिक्त
मन में सिंचित
कटुता को
धो डालने के लिए
काफी है ,
jiski chahat/jarurat ho vo maatr boond,jhonka, maun ya asfutit swar me jaise bhi mil jaye to kafi hai. lekin jahan samwad ki jarurat ho vahan maun vyapt ho to sthiti dorooh ho jati hai.
sunder abhivyakti.
तम हो घनेरा
और जाना हो
मंज़िल तक
तो जुगनू का
एक दिया ही
काफी है
मंज़िल पाने को .
निराश मन में आशा का संचार करती हुई पंक्तियाँ मंजिल तक पहुँचाने के लिए प्रेरणा बन जायेंगी.
बहुत सुन्दर रचना ....
वाह, बहुत खूब
इस जीवन के सार को कहती हैं हुई लेखनी
बहुत सुंदर अहसास जगाती..आशा के दीप जलाती कविता...एक नजर ही काफ़ी है दिल के सारे दर्द हरने के लिये..
समझने की सक्षमता हो तो एक शब्द ही पर्याप्त है..
कई बार संतोष बहुत उपयोगी होता है।
आपका अनुभव इस कविता में झलकता है और यही हम छोटों के लिए मार्गदर्शन है.. गहरे भावों से सजी एक मोटिवेशनल कविता!!
बहुत अच्छे दीदी!!
मुँदी हुई पलकें
आभास देती हों
निष्प्राण देह का
उसमें स्पंदन के लिए
गहन मौन ही
काफी है ...
कितने सुंदर भाव भरे हैं आपने इस रचना में
बार बार पढ़ा, काफी अच्छा लगा .
सादर !
behtreen geet....
मंज़िल तक
तो जुगनू का
एक दिया ही
काफी है
मंज़िल पाने को
बहुत सुंदर
aapke khayalaat bhee kaafee pragalbh hai!
सुन्दर भाव लिए बेहतरीन अभिव्यक्ति...
:-)
जीवित रहने के लिए
एक सांस ही
काफी है ,
सुन्दर गहन भाव... आभार आपका
भले ही हो
अस्फुट सा स्वर
पर है वो
प्रेमसिक्त
मन में सिंचित
कटुता को
धो डालने के लिए
काफी है ,हाँ सकारात्मक सोच बहा देती है प्रेम की गंगा ,मिटा देती है मनका कलुष ....
ram ram bhai
रविवार, 5 अगस्त 2012
आपके श्वसन सम्बन्धी स्वास्थ्य का भी समाधान है काइरोप्रेक्टिक (चिकित्सा व्यवस्था )में
आपके श्वसन सम्बन्धी स्वास्थ्य का भी समाधान है काइरोप्रेक्टिक (चिकित्सा व्यवस्था )में
कृपया यहाँ पधारें -http://veerubhai1947.blogspot.de/
उत्कृष्ट भाव संयोजन लिए गहन अभिव्यक्ति....
सच कहा एक छोटी पहल ही काफी है...
अनुभूतियों और भावनाओं का सुंदर समवेश इस खूबसूरत प्रस्तुति में.
Very nice post.....
Aabhar!
Mere blog pr padhare.
Very nice post.....
Aabhar!
Mere blog pr padhare.
NICE ONE....
HAPPY FRIENDSHIP DAY....!!!!!!!
बिल्कुल ठीक कहा आपने। इस बात को सदा याद रखने की कोशिश करूंगा।
साभार,
जितेन्द्र माथुर
बिल्कुल ठीक कहा आपने। इस बात को सदा याद रखने की कोशिश करूंगा।
साभार,
जितेन्द्र माथुर
तम हो घनेरा
और जाना हो
मंज़िल तक
तो जुगनू का
एक दिया ही
काफी है
डूबने वाले को तिनके का एक सहारा ही काफी है...
गहन सार्थक रचना !!
बहुत ही शानदार और सराहनीय प्रस्तुति....
बधाई
इंडिया दर्पण पर भी पधारेँ।
बहुत ही शानदार और सराहनीय प्रस्तुति....
बधाई
इंडिया दर्पण पर भी पधारेँ।
सुन्दर भाव!
बीज रूप में समाहित सत्य!
अस्फुट सा स्वर
पर है वो
प्रेमसिक्त
मन में सिंचित
कटुता को
धो डालने के लिए
काफी है ,
सुन्दर और प्रेरक.
गहन अर्थ समेटे हुए
है आपकी प्रस्तुति.
आभार,संगीता जी.
सच एक जुगनू ही काफी है अगर मंजिल की तलाश शिद्दत से की जाये । बहुत सुंदर कविता ।
बहुत बढ़िया आंटी
सादर
कभी -कभी मौन में जो बात होती है , कह देने से नहीं होती !
जीने के लिए एक सांस काफी है ...या साँस का आना जाना ही जीवन है !
स्पंदन के लिए गहन मौन ही काफी है।..वाह!
..अच्छी लगी यह कविता।
बहुत ही बेहतरीन और प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग
जीवन विचार पर आपका हार्दिक स्वागत है।
ह्रदयस्पर्शी रचना.
सूक्ष्म एहसासों की प्रतिष्ठा...
bahut hi gahri abhiwayakti ...
बहुत सुन्दर...
खूबसूरत प्रस्तुति .......
अँधेरे में दूर का चिराग भी बहुत बड़ा सहारा होता है ..
बहुत सुन्दर रचना ..
तम हो घनेरा
और जाना हो
मंज़िल तक
तो जुगनू का
एक दिया ही
काफी है
आशाओं के जुगनुओं से जगमगाती बेहद सुन्दर रचना ...
काफी है आपका दिया हौसला .फिर तो मंजिल क़दमों के नीचे ही है .बहुत सुन्दर लगी .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति सकारात्मक सोच लिए हुए बधाई आपको संगीता जी
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जैसा की सलिल चचा ने कहा -
आपका अनुभव इस कविता में झलकता है और यही हम छोटों के लिए मार्गदर्शन है.. गहरे भावों से सजी एक मोटिवेशनल कविता!!
:) :)
मुँदी हुई पलकें
आभास देती हों
निष्प्राण देह का
उसमें स्पंदन के लिए
गहन मौन ही
काफी है...
अत्यंत भावपूर्ण , सुन्दर कविता...
आप बहुत सुन्दर लिखती हैं...
मुँदी हुई पलकें
आभास देती हों
निष्प्राण देह का
उसमें स्पंदन के लिए
गहन मौन ही
काफी है ...
प्रभावशाली रचना।
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं !
प्रेमसिक्त
मन में सिंचित
कटुता को
धो डालने के लिए
काफी है ,
prabhavshali rachana ke liye sadar abhar .
"भले ही हो
अस्फुट सा स्वर
पर है वो
प्रेमसिक्त
मन में सिंचित
कटुता को
धो डालने के लिए
काफी है , "
लाजवाब रचना है संगीता जी। कितने कोमल और गहन भाव और कितना मोहक शब्द-संयोजन ! वाह !
"भले ही हो
अस्फुट सा स्वर
पर है वो
प्रेमसिक्त
मन में सिंचित
कटुता को
धो डालने के लिए
काफी है , "
लाजवाब रचना है संगीता जी। कितने कोमल और गहन भाव और कितना मोहक शब्द-संयोजन ! वाह !
नमस्कार संगीता जी, सबसे पहले स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामना। बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढ़ी। आपकी टिप्पणियों से हमेशा रूबरू होने का मौका मिलता है। बाकी ब्लॉग पर रचनाओं को पढ़ते हुए। आपके विवेचन की सहजता और सतर्कता काबिल-ए-गौर है।
सूक्ष्म चीजों के गूढ़ महत्व को रेखांकित करती रचना। जो बड़ी-बड़ी चीजों के प्रति मोह के जादुई तिलिस्म को ध्वस्त करती है। कविता जीवन के हर पल में संजीदा होने का भाववोध भी जाग्रत करती है। हर पल आती-जाती सांसो की सूक्ष्मता की उपमा बहुत सुंदर लगी। सुंदर रचना के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया।
jab likhti hain achcha hi likhti hain......
खरगोश का संगीत राग
रागेश्री पर आधारित है जो कि
खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में
कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम
इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत
में पंचम का प्रयोग भी किया है,
जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
..
हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
.. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती
है...
Also visit my blog post खरगोश
सभी ने बहुत कुछ कह दिया ...
हमारी तो बस हाजिरी कबूल करें ....!!
कितना कम काफी है न जीवन जीने के लिए...मन में प्राण वायू सी भरती कविता..
बहुत मर्मस्पर्शी रचना..
उंदर भाव व कविता ..
तपिश हो मन की
और चाहते हो ठंडक
तो अश्क का
एक कतरा ही
काफी है ....क्या ही सुंदर बात लिखी है .शुक्रिया
बहुत अच्छी कविता है।
खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी
स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित
है, पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी
झलकता है...
हमारी फिल्म का संगीत
वेद नायेर ने दिया है.
.. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से
मिलती है...
Here is my site - संगीत
तपिश हो मन की
और चाहते हो ठंडक
तो अश्क का
एक कतरा ही
काफी है ...
wah kya bat likhi hai apne ....badhai
कटुता को
धो डालने के लिए
काफी है....
बहुत ही सुन्दर रचना है
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