झील सी होती हैं स्त्रियाँ
>> Tuesday, October 23, 2012
वाणी गीत की दो रचनाएँ पढ़ीं थीं झीलें हैं कि गाती मुसकुराती स्त्रियाँ और झील होना भी एक त्रासदी है ... और यह झील मन को बहुत भायी ....... झील का ही उपमान ले कर एक रचना यहाँ भी पढ़िये ....
झील सी
होती हैं स्त्रियाँ
लबालब भरी हुई
संवेदनाओं से
चारों ओर के किनारों से
बंधक सी बनी हुई
सिहरन तो होती है
भावनाओं की लहरों में
जब मंद समीर
करता है स्पर्श
पर नहीं आता कोई
ज्वार - भाटा
हर तूफान को
समां लेती हैं
अपनी ही गहराई में
झील सी होती हैं स्त्रियाँ
किनारे तोड़
बहना नहीं जानतीं
स्थिर सी गति से
उतरती जाती हैं
अपने आप में
ऊपर से शांत
अंदर से उदद्वेलित
झील सी होती हैं स्त्रियाँ ।
झील का विस्तार
नहीं दिखा पाता
गहराई उसकी
इसीलिए
नहीं उतर पाता
हर कोई इसमें
कुशल तैराक ही
तैर सकता है
गहन , शांत ,
गंभीर झील में
झील सी होती हैं स्त्रियाँ ।
89 comments:
बहुत ही खूबसूरत .....
निशब्द !
मुबारक हो !
वाह !!झील सी शांत गंभीर स्त्रियाँ...बेहद खूबसूरत रचना!!
झील का विस्तार
नहीं दिखा पाता
गहराई उसकी
इसीलिए
नहीं उतर पाता
हर कोई इसमें
कुशल तैराक ही
तैर सकता है
गहन , शांत ,
गंभीर झील में
झील सी होती हैं स्त्रियाँ ।
वाह ... बहुत ही बढिया ... इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति के लिये आभार
झील सी गहरी स्त्रियाँ.....
मीठे जल वाली स्त्रियाँ........
सुन्दर रचना...
सादर
अनु
स्त्री की झील से तुलना सोचने पर मजबूर करती है ।
शुभकामनायें-
दीदी ||
भली तुलना -
झेलें लाखों ज्वार पर, सम्मुख मुखड़ा शांत |
भांटा मद्धिम गति लिए, अंतर करता क्लांत |
अंतर करता क्लांत, यही पहचान झील की |
पाले पोसे जीव, भिन्नता हलकी फुलकी |
लगते मेले रोज, किनारें कितने खेलें |
स्वार्थ सिद्ध कर जाएँ, मलिन मन नारी झेलें ||
लगते मेले रोज, किनारे कृष्णा खेले |
स्वार्थ सिद्ध कर जाए, मलिन-मन राधा झेले ||
लगते मेले रोज, किनारे कृष्णा खेले |
स्वार्थ सिद्ध कर जाए, मलिन-मन राधा झेले ||
पूरी स्त्री समेट ली झील के बहाने..कुछ नहीं बाकी बचा कहने को.
बेहद खूबसूरत और गहन.
वाणी गीत, की रचनाएँ मैंने भी पढ़ी है झीलें हैं कि गाती मुसकुराती स्त्रियाँ और झील होना भी एक त्रासदी है ..
बहुत सुन्दर रचनाएँ है ...
आप की इस रचना में खास यह पंक्तियाँ बहुत पसंद आई है ..
नहीं उतर पाता
हर कोई इसमें
कुशल तैराक ही
तैर सकता है
गहन , शांत ,
गंभीर झील में
झील सी होती हैं स्त्रियाँ ।
बहुत सुन्दर रचना ....
शुरू में बंधे किनारे अच्छे लगते हैं .... पर नदी बन सागर तक जाने की चाह लिए झील बनी स्त्रियाँ मूक हो जाती हैं
हर तूफान को
समां लेती हैं
अपनी ही गहराई में
झील सी होती हैं स्त्रियाँ
कुशल तैराक ही
तैर सकता है
गहन , शांत ,
गंभीर झील में
झील सी होती हैं स्त्रियाँ ।
पढ़ कर मुंह से वाह वाह ही निकलता हैं
सच में बेहद सार्थक रचना है।
बहुत अच्छी लगी
वाणी गीत की रचनाएँ मैंने भी पढ़ी है झीलें हैं कि गाती मुसकुराती स्त्रियाँ और झील होना भी एक त्रासदी है ..
बहुत सुन्दर रचनाएँ है ...
आप की इस रचना में खास यह पंक्तियाँ बहुत पसंद आई है ..
नहीं उतर पाता
हर कोई इसमें
कुशल तैराक ही
तैर सकता है
गहन , शांत ,
गंभीर झील में
झील सी होती हैं स्त्रियाँ ।
एक प्रतीक में आपने पूरा नारी चरित्र सामने रख दिया.. नवरात्री के अंतिम दिवस पर यह रचना दिल को छूती है और बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती है!!
झील का विस्तार
नहीं दिखा पाता
गहराई उसकी
इसीलिए
नहीं उतर पाता
हर कोई इसमें
कुशल तैराक ही
तैर सकता है
गहन , शांत ,
गंभीर झील में
झील सी होती हैं स्त्रियाँ ।
निःशब्द करती लाइन . पुरे रिश्तों और स्त्री नहीं नारी का दर्पण .
स्त्रीत्व के उद्दात गुणों की झील के माध्यम से स्पष्ट व्याख्या . सुन्दर
जब मंद समीर
करता है स्पर्श
पर नहीं आता कोई
ज्वार - भाटा
हर तूफान को
समां लेती हैं
अपनी ही गहराई में
अपने आस पास बहुत सी स्त्रियों को नजदीक से जाना है और महसूस किया है यही कि कई बार जो छोटी छोटी बातों पर ही विचलित होती दिखाई देती हैं वही बड़े से बड़े तूफानों को अपने भीतर दबाये रहती हैं।
किनारे तोड़
बहना नहीं जानतीं
स्थिर सी गति से
उतरती जाती हैं
अधिकतर ऐसी ही होती हैं।
झील का विस्तार
नहीं दिखा पाता
गहराई उसकी
इसीलिए
नहीं उतर पाता
हर कोई इसमें
कुशल तैराक ही
तैर सकता है
शत-प्रतिशत सहमत। आमतौर पर हम बडबोली महिला को देख ऐसा अनुमान लगा लेते हैं कि उसका व्यक्तित्व, आचार-व्यवहार ठहराव लिए नहीं होगा---लेकिन ऐसा नहीं होता---करीब से उन्हें जाना जाए तो वो भी अभूत गहराई लिए होती हैं जिसे वो अपने बाहरी व्यवहार से आवर्णित किये रहती हैं और सच है की कोई कुशल तैरक ही जान सकता है उसके गाम्भीर्य को।
बहुत पसंद आई आपकी रचना और रचना में प्रयुक्त उपमाएं भी।
इस बिम्ब के माध्यम से स्त्री मनोभावों
को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया है....
अति सुन्दर रचना...
:-)
बहुधा स्थिर और बहुत गहरी । सुन्दर कविता ।
एकदम सटीक तुलना..बहुत सुन्दर सी प्यारी रचना ..
विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई
- बहुत ही खूबसूरत कविता .
यही तो मुश्किल है कि -
किनारे तोड़
बहना नहीं जानतीं
स्थिर सी गति से
उतरती जाती हैं
अपने आप में
ऊपर से शांत
अंदर से उदद्वेलित
झील सी होती हैं स्त्रियाँ ।
-
और तभी सब-कुछ चुपचाप झेल जाती हैं स्त्रियाँ !
Remarkable comparison :)
बहुत प्यारी कविता है.
हर कोई इसमें
कुशल तैराक ही
तैर सकता है
गहन , शांत ,
गंभीर झील में.....waki men jheel si hi hoti hai striyaan ...bahut acchi rachna sangeeta jee...
झील शांत, सुंदर और गंभीर दिखती हैं, जिसमें एक हलकी हलचल भी अनेक लहर उत्पन्न कर देती है।
एक बेहतरीन रचना के लिए बधाई।
सच ही है स्त्री मन की गहराई भी हर कोई कहाँ समझ पाता है झील की तरह...... बेहतरीन रचना
झील,निर्झर
शान्त,अविचल
धीर,गम्भीर
निश्छल,निर्विकार
मनोयोग से
अपने कर्तव्यों को पूर्ण करती है
ज़रा सी कंकड़ी तो फेक कर देखो
सैलाब आ जाएगा.....
खूबसूरत रचना दीदी
लिखने को मन में जो आया सो लिख दी
कमाल कर दिया संगीता जी ! नारी को इससे सटीक अन्य किसी रूपक से परिभाषित नहीं किया जा सकता ! हर पंक्ति मन को उद्वेलित सा करती हुई ! अनुपम, अद्भुत, अन्यतम !
बहुत ही मार्मिक रचना ...
आदि शक्ति की पूजा अर्चना
का पर्व नवरात्रि पर बहुत
ही सुन्दर उपहार ...
विजयादशमी के पावन पर्व पर
बधाई सहित .........
नारी झील सी होती हैं...सुंदर उपमा।
मर्मस्पर्शी कविता।
विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
किनारे तोड़
बहना नहीं जानतीं
स्थिर सी गति से
उतरती जाती हैं
अपने आप में
ऊपर से शांत
अंदर से उदद्वेलित
झील सी होती हैं स्त्रियाँ
बहुत खूब दी !
कभी-कभी ज्वालामुखी हो जाती हैं स्त्रियाँ !!
विजयदशमी की बहुत बहुत शुभकामनाएं
बढिया, बहुत सुंदर
क्या बात
विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
विजय दशमी की शुभ कामनाएं , सुन्दर सृजन को बधाईयाँ जी l
हर तूफान को
समां लेती हैं
अपनी ही गहराई में
झील सी होती हैं स्त्रियाँ !
अगर स्त्री को उसके सही रूप देखा जाय तो वह वाकई ऐसी होती है और उसके इसा गुण से ही हजारों हजारों घर चलते रहते हैं
sangeeta ji bahut sundar jheel aor stree ka varnan kiya hai ..
asha hai aap muje bhuli nahi hongi
nira
कुशल तैराक ही
तैर सकता है
गहन , शांत ,
गंभीर झील में
झील सी होती हैं स्त्रियाँ ।
स्त्री के अन्तस्थ को उकेरती सुन्दर रचना
विजय दशमी आपको शुभ हो ।
बहुत ही सुन्दर शब्द विन्यास -
झील सी होती हैं स्त्रियाँ --।
इसीलिए
नहीं उतर पाता
हर कोई इसमें
कुशल तैराक ही
तैर सकता है
गहन , शांत ,
गंभीर झील में
झील सी होती हैं स्त्रियाँ ।
वाह ... बहुत बेहतरीन उत्कृष्ट अभिव्यक्ति,,,
विजयादशमी की हादिक शुभकामनाये,,,
RECENT POST...: विजयादशमी,,,
वाह बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
नहीं उतर पाता
हर कोई इसमें
कुशल तैराक ही
तैर सकता है
गहन , शांत ,
गंभीर झील में
झील सी स्त्रियों को समझ पाना मुश्किल होता है , क्योंकि उस गहराई को हर कोई समझ नहीं सकता !
अच्छा लगा झील का एक नवीन आयाम भी !
उद्वेलित होता है मन इस रचना को पढ़के :
बहुत बढ़िया आंटी !
सादर
athah samvednaon se bhari hui striyan kitni pyari hoti hain...:)
bahut khubsurat di:)
वाकई झील सी होती हैं, अनंत गहराई लिए शांत ...
बधाई आपको इस सुंदर प्रस्तुति के लिए !
अद्भुत होती हैं आपकी उपमाएं। अद्भुत कविता है। झील की तरह ही गहरी । अंतिम पंक्तियां बहुत मारक हैं।
सुंदर भाव... कभी आना... HTTP://WWW.KULDEEPKIKAVITA.BLOGSPOT.COM
Bahut sundar upama dee hai....waise kayee qism kee hotee hain streeyan...kabhee kabhee bahut ochhee bhee!
बेहद खूबसूरत रचना
झील की गहराई को तो नापा जा सकता है ...पर एक स्त्री की गहराई और उसकी भावनाओं को कोई नहीं नाप सकता
ऊपर से शांत
अंदर से उदद्वेलित
झील सी होती हैं स्त्रियाँ । wah....kya likhi hain.....
झील सी
होती हैं स्त्रियाँ
लबालब भरी हुई
संवेदनाओं से
चारों ओर के किनारों से
बंधक सी बनी हुई
.
.
.
बहुत सुंदर
पर नहीं आता कोई
ज्वार - भाटा
हर तूफान को
समां लेती हैं
अपनी ही गहराई में
झील सी होती हैं स्त्रियाँ
झील सी गहराई है कविता में |
stri ko discribe karne ke liye bahut sundar bimb ka prayog kiya hai aapne..sundar rachna..
बहुत सुन्दर उपमा दी है आपने स्त्रियों की झील से...
बेहद सटीक... :)
झील सी
होती हैं स्त्रियाँ
लबालब भरी हुई
संवेदनाओं से
बहुत सुन्दर
झील का विस्तार
नहीं दिखा पाता
गहराई उसकी
...लाज़वाब! बहुत सटीक और अद्भुत अभिव्यक्ति...
अब रोज़ मरती है एक झील हिन्दुस्तान में .पड़ोस के मकान में ,मुसद्दी की दुकान के पीछे वाले घर में .झील की पीड़ा और भाव जगत के ठहराव को कौन
जाने है यहाँ .झील एक उत्कृष्ट रचना है .रागात्मकता को
विचलित करती है .
इस झील की गहराई को देवता भी नहीं नाप सके थे, तो पुरूष तैराकों के बस की बात कहां।
इस झील की गहराई को देवता भी नहीं नाप सके थे, तो पुरूष तैराकों के बस की बात कहां।
इस झील की गहराई को देवता भी नहीं नाप सके थे, तो पुरूष तैराकों के बस की बात कहां।
इसीलिए
नहीं उतर पाता
हर कोई इसमें
कुशल तैराक ही
तैर सकता है
गहन , शांत ,
गंभीर झील में
झील सी होती हैं स्त्रियाँ ।
Nari mn ki adbhud vyakhya .....sadar abhar
बहुत सुन्दर कविता
पर नहीं आता कोई
ज्वार - भाटा
हर तूफान को
समां लेती हैं
अपनी ही गहराई में
झील सी होती हैं स्त्रियाँ
post
चार दिन ज़िन्दगी के .......
बस यूँ ही चलते जाना है !!
आपकी कविता पढ़ कर आराधना चतुर्वेदी ’मुक्ति’ की उस कविता की याद हो आई जिसमें कुछ इसी प्रकार के भाव थे. अच्छी रचना पढ़वाने के लिए आभार.
किनारे तोड़
बहना नहीं जानतीं
स्थिर सी गति से
उतरती जाती हैं
अपने आप में
ऊपर से शांत
अंदर से उदद्वेलित
झील सी होती हैं स्त्रियाँ।
आपकी यह कविता काफी अच्छी लगी। धन्यवाद।
गहन , शांत ,
गंभीर झील में
झील सी होती हैं स्त्रियाँ ।
बहुत ही खूबसूरत रचना.
कल 30/10/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
utam-****
झील सी..जिस पर कोई भी प्रतिबिम्ब भी मोहक बनता है.. बहुत अच्छी लगी .
Still water runs deep .
हाँ झील सी होतीं हैं स्त्रियाँ ,ऊपर से शांत ,अन्दर से उद्वेलित
व्यथित मंथित .
उद्वेलित .
आपकी टिपण्णी के लिए शुक्रिया .
कविता की कोमलता आपकी निर्मल मन की निर्मलता को प्रतिबिंबित करती है,संगीता जी।
सुन्दर और कोमल कविता
किनारे तोड़
बहना नहीं जानतीं
स्थिर सी गति से
उतरती जाती हैं
अपने आप में
ऊपर से शांत
अंदर से उदद्वेलित
झील सी होती हैं स्त्रियाँ----किनारे तोड़ बह जाने के लिए भी ये समाज ही मजबूर करता है वर्ना सचमुच व्यवहार में प्रकृति में झील से ही होती हैं स्त्रियाँ बहुत पसंद आई आपकी ये रचना
shiirshak hi apne aap mein sab kah gaya..achchhi lagi rachana..!! :)
क्या दिया
क्या मिला!
सहती आई है सदा , दुनियाँ भर की पीर
किंतु दिखाई दे रही , गहन शांत गम्भीर
गहन शांत गम्भीर,सभी को निर्मल करती
जो आये तट तीर , प्यार दे पीड़ा हरती
होता कोई काँध,टिका सिर मन की कहती
झील जगत की पीर, सदा आई है सहती |
सहती आई है सदा , दुनियाँ भर की पीर
किंतु दिखाई दे रही , गहन शांत गम्भीर
गहन शांत गम्भीर,सभी को निर्मल करती
जो आये तट तीर , प्यार दे पीड़ा हरती
होता कोई काँध,टिका सिर मन की कहती
झील जगत की पीर, सदा आई है सहती |
बहुत खूबसूरत
बहुत खूबसूरत रचना. भाव की तरह ही गहरी और शांत. पढ़कर बहुत अच्छा लगा.
Beautiful poem...and true!:)
नारी मन को सही सही व्याख्यायित करती रचना।
बहुत बहुत सुंदर रचना!:-)
सच में ! झील के समान ही होती है एक स्त्री ! उसकी गहराई समझ पाना आसान नहीं है...! लोग उसमें कंकड़ फेंक कर उसके धैर्य, सहनशीलता को परखने की कोशिश ही करते रहते हैं... उसे जानने समझने के लिए उसके जैसी गहराई अपने भीतर रखना कोई आसान काम नहीं है !
~सादर !
बेहद खूबसूरत । स्त्र्ियां सचमुच झील सी ही होती हैं । िनको समजने के लिये भावनाओं को समझने वाला कुशल तैराक ही चाहिये ।
नहीं आता कोई
ज्वार - भाटा
हर तूफान को
समां लेती हैं
अपनी ही गहराई में
झील सी होती हैं स्त्रियाँ
अत्यंत प्रभावशाली रचना है संगीता जी ... आपकी रचनाएँ सदैव हृदय को छूती हैं ..... झील सी स्त्रियाँ .... शीर्षक भी बहुत सुन्दर है।
सादर
मंजु
स्त्री के मन को सार्थकता प्रदान की है इस रचना ने ... बहुत ही उत्कृष्ट रचना ...
झील में नारी का अक्स देख लेना, इतनी सुंदर कल्पना, काश सबके पास कवि दृष्टि होती।
स्त्री के अंतर्मन को उजागर करती सुन्दर रचना...बधाई!
सादर/सप्रेम,
सारिका मुकेश
http://sarikamukesh.blogspot.in/
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