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पुस्तक परिचय --- " मन पखेरू उड़ चला फिर " / सुनीता शानू

>> Sunday, May 19, 2013



 सुनीता शानू ब्लॉग जगत में  कोई  अनचीन्हा  नाम नहीं है । कल उनकी पुस्तक " मन पखेरू उड़ चला फिर " काव्य संग्रह का विमोचन  दिल्ली में हुआ । सुनीता जी का यह पहला काव्य संग्रह है , उनके मन पखेरू का एक पंख जिसने बहुत संतुलित अंदाज़ में उड़ान लगाई है  और यह उड़ान मात्र कल्पना के आकाश की नहीं है बल्कि यथार्थ के धरातल पर चलते हुये अपनी भावनाओं को विस्तार दिया है । 

    जीवन में आई कठिनाइयों से संघर्ष करते हुये आगे बढ़ना ही जिजीविषा  है । जिसे सुनीता जी ने बड़ी सहजता से जिया है । उनकी कवितायें  इस बात को प्रमाणित भी करती हैं । संवेदनशील मन मात्र अपनी ही व्यथा कथा नहीं कहता , इनसे जुड़े हर शख़्स की भावनाओं को कवयित्री ने कविता में बुन डाला है । 
सुनीता जी " अपनी बात " में लिखती हैं कि वो रोज़ जागती आँखों से सपने देखती थीं और क्रमश: लगा देती थीं जिससे अगले दिन फिर उसके आगे सपने बुन सकें । यह बात उनकी सकारात्मक सोच को परिलक्षित करती है । 

कर्तव्य की  वेदी पर जब मन बंधन महसूस कर रहा हो , उस समय किसी के नेह से मन परिंदा बन उड़ने लगे , मन की  भावनाओं को शब्द मिलें और लेखन के रूप में रचनाएँ सृजित होने लगें तो यही महसूस होगा ----
नेह की नज़रों से मुझको 
ऐसे देखा आपने 
मन पखेरू उड़ चला फिर 
आसमां  को नापने । 

सुनीता जी की अधिकांश रचनाएँ प्रेम - पगी हैं । संघर्षमय  जीवन में यदि प्रेम की भावना प्रबल हो तो कठिनाइयों  से पार पाना मुश्किल नहीं -

राहों में तुम्हारी हम , जब जब भी बिखर जाते 
हम खुद को मिटा देते , हम मिट के सँवर जाते । 

प्रेम - रस से सराबोर कुछ रचनाएँ मन को छू जाती हैं --- प्रिय बिन जीना कैसा जीना , एक अजनबी ,ये कौन है ,प्यार में अक्सर , मैं और तुम ,श्याम सलोना ऐसी ही कुछ रचनाएँ हैं ....तस्वीर तुम्हारी कविता की एक बानगी देखिये --

दिल के कोरे कागज़ पर 
खींच कर कुछ 
आड़ी - तिरछी लकीरें 
जब देखती हूँ मैं 
बन जाती है 
तस्वीर तुम्हारी । 

"मैं रूठ पाऊँ " एक ऐसी रचना जहां प्रेम की पराकाष्ठा है -- इसकी अंतिम पंक्तियाँ देखिये -

और सोचती हूँ 
आखिर झगड़ा 
किस बात पर हो 
कि मैं रूठ पाऊँ 
और तुम मुझे मनाओ । 

" फागुन के दोहे " में भी कवयित्री के हृदय का प्रेम  छलछला रहा है - 

रंग अबीर गुलाल से , धरती हुई सतरंग ।
भीगी चुनरी पर चढ़ा , रंग पिया के संग ॥

तो कहीं प्रेम के अतिरेक से होने वाली दुश्चिंता भी नज़र आ रही है - 

दीमक भी पूरा नहीं चाटती 
ज़िंदगी दरख्त की
तुमने क्यों सोच लिया 
कि ' मैं ' वजह बन जाऊँगी 
तुम्हारी साँसों की  घुटन 
तुम्हारी परेशानी की ... 

जीवन के यथार्थ को भोगते हुये इनकी कुछ रचनाएँ बहुत कुछ कह जाती हैं । अनुभव से उपजी रचनाएँ मन को सुकून देती हैं जैसे --- " माँ " 

माँ बन कर जाना मैंने 
माँ की ममता क्या होती है ? 

" क्यों आते हैं गम " में कवयित्री  ने बच्चों की मानसिकता को उजागर किया है कि माता  -पिता की कड़वी बातें याद कर बच्चे उनसे दूरी बना लेते हैं  और उनके प्यार दुलार को भुला बैठते हैं .... 

"डोर " कविता में सुनीता जी ने समाज के सच को दर्शाया है । नारी को पतंग का बिम्ब दे कर कहा है कि यदि पतंग डोर से बंधन मुक्त होना चाहे तो क्या होता है -----

एक आह सुनी 
डोर तोड़ कर  गिरी
एक कटी पतंग की
जो अपना 
संतुलन खो बैठी थी 
लूट रहे थे 
हजारों हाथ 
कभी इधर कभी उधर 
अचानक 
नोच लिया उसको 
कई क्रूर हाथों ने ......

नारी विमर्श पर उनकी कवितायें बड़ी सहजता के साथ समाज के सम्मुख कई प्रश्न खड़े करती हैं ...." चिह्न " में उन्होने पूछा है कि नारी पर ही बंधन के सारे चिह्न क्यों आरोपित होते हैं ? 

किन्तु 
तुम पर 
क्यों नहीं 
नज़र आता 
मेरे , बस मेरे होने 
का एक भी चिह्न ? 

"कन्यादान " में अपनी बात कुछ इस तरह से रखी है --- 

कन्यादान एक महादान 
बस कथन यही एक सुना 
धन पराया कह कह कर 
नारी अस्तित्व का दमन सुना ....
**************
हर पीड़ा सह कर जिसने 
नव - जीवन निर्माण किया 
आज उसी को दान कर रहे 
जिसने जीवन दान दिया । 

"खबर दुनिया बदलने की" रचना बहुत मर्मस्पर्शी है । भ्रूण हत्या से ले कर बलात्कार तक की घटनाओं को समेटे हुये कवयित्री  का यह कथन ---

कहीं सुनी तो होगी खबर 
दुनिया बदलने की .... झकझोर जाता है । 

" वो सुन न सके " कविता नारी हृदय के क्रंदन को सशक्त रूप से उकेरती है । नारी का सारा जीवन पुरुष के दंभ के नीचे सिसकता रहा और जब सब्र का बांध टूटा और अपनी बात कहने  की हिम्मत आई तो----

उम्र की ढलान में 
दीवारें दरक गईं 
कालीन फट गए 
अब सब्र का दामन छूटा
घूँघट हटा 
पलकें उठीं 
वह झल्लाई 
चिल्लाई ज़ोर से ...

अब बाबूजी ऊंचा सुनते हैं । 

'कामवाली ' ' मासूमियत ' ' गरीब की बेटी ' ऐसी रचनाएँ हैं जो सोचने पर विवश कर देती हैं । 
हे अमलतास , धरती का गीत , पंछी तुम कैसे गाते हो , ओढा दी चूनर , ऐसी कवितायें हैं जो सुनीता जी के प्रकृति प्रेम को दर्शाती हैं । 

यूं तो इस पुस्तक की हर रचना मन को प्रभावित करती है लेकिन इनके द्वारा रचित " जन गीत : 
मन मारा मारा फिरता है " मन को उदद्वेलित कर देती है ।  बिना किसी का नाम लिए ऐतिहासिक और धार्मिक पात्रों को लेकर जो गीत लिखा है वो अनेक प्रश्न छोड़ जाता है ... कवयित्री कल्पना कर रही हैं कि  शायद इस दर्द को दूर करने कोई शिल्पकार आएगा ----

एक नारी ने एक नारी को 
अपने बेटों में बाँट दिया 
बेटों ने फिर उस नारी को 
पासों में धन - सा छांट दिया ....
****************
यह हूक  मिटाने की खातिर 
कोई शिल्पकार यहाँ आएगा 
और पथरीले इस जीवन को 
नन्दन वन सा महकाएगा । 

पुस्तक में कविताओं के साथ ही रचनाकार की चित्रकारी भी है जो नारी की व्यथा को चित्रित करने में सक्षम रही है । 
कवयित्री सुनीता शानू जी को उनके " मन पखेरू उड़ चला फिर " काव्य संग्रह पर मेरी हार्दिक बधाई और शुभकामनायें । यही कामना है कि वो इसी तरह मानवीय और सामाजिक सरोकार से जुड़ निरंतर काव्य सृजन  करती रहें । 

पुस्तक का नाम --- मन पखेरू उड़ चला फिर 

कवयित्री  ------ सुनीता शानू 

 ISBN - 978-93-81394-39-7

प्रकाशक - हिन्द - युग्म 

मूल्य - 195 / Rs . 

54 comments:

ANULATA RAJ NAIR 5/19/2013 8:57 AM  

बहुत बढ़िया समीक्षा है संगीता दी....
इस सुन्दर पुस्तक से परिचय कराने का शुक्रिया.
बधाई सुनीता शानू जी को.

सादर
अनु

Onkar 5/19/2013 10:26 AM  

इतनी सुन्दर कविताओं से परिचय करने के लिए धन्यवाद

ताऊ रामपुरिया 5/19/2013 11:01 AM  

सुनिता जी एक जानी पहचानी कवियित्री और लेखिका हैं, आपकी समीक्षा से बोध होता है कि उन्होंने अपनी गरिमा के अनूकुल बहुत ही श्रेष्ठ लिखा है, समीक्षा के लिये आपका आभार और सुनिता जी को बहुत बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

Suman 5/19/2013 11:22 AM  

बढ़िया पुस्तक समीक्षा की है, मैंने इनको कभी पढ़ा नहीं पर समीक्षा में कविता की सुन्दर पंक्तियाँ देख पढने की रोचकता जगा रही है बहुत सुन्दर की है समीक्षा यह भी एक कला है ...बहुत बहुत बधाई सुनीता शानू जी को !

दिगम्बर नासवा 5/19/2013 11:26 AM  

जानी पहचानी कवित्री की कोमल भावनाओं को सुन्दर समीक्षा में बाँधा है आपने ...
आपका आभार ... और बधाई सुनीता जी को ...

प्रवीण पाण्डेय 5/19/2013 11:35 AM  

बहुत ही सुन्दर समीक्षा..आभार..

महेन्द्र श्रीवास्तव 5/19/2013 12:12 PM  

बहुत बढिया
आज सुबह अखबारों में रिपोर्ट भी पढ़ा।


शुभकामनाएं

मुकेश कुमार सिन्हा 5/19/2013 12:20 PM  

behtareen di...
mere haatho me hai ye book..
aapne usko shabdo ke shakal me bata diya ki ye padhne layak hai :)

ऋता शेखर 'मधु' 5/19/2013 1:37 PM  

बहुत बढ़िया समीक्षा है....
इस सुन्दर पुस्तक से परिचय कराने का शुक्रिया.
बधाई एवं शुभकामनाएँ सुनीता शानू जी को !!

संध्या शर्मा 5/19/2013 3:12 PM  

कवियत्री की भावनाओं की सुन्दर समीक्षा की है आपने ... आपका आभार और सुनीता जी को बहुत - बहुत बधाई...

Maheshwari kaneri 5/19/2013 3:14 PM  

बहुत बढ़िया समीक्षा है संगीता जी सुन्दर -सुन्दर कविताओं से परिचय करने के लिए धन्यवाद . सुनीता शानू जी को बधाई..शुभकामनाएं.
.

Guzarish 5/19/2013 3:45 PM  

आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (20-05-2013) के 'सरिता की गुज़ारिश':चर्चा मंच 1250 पर ,अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें
सूचनार्थ |

shikha varshney 5/19/2013 4:01 PM  

बहुत सुन्दर समीक्षा , आपको और सुनीता जी को बधाई.

Dr.NISHA MAHARANA 5/19/2013 4:29 PM  

BAHUT SUNDAR SAMIKSHA .....AAPKO AVM SUNITA JEE DONON KO BADHAI ....

Aruna Kapoor 5/19/2013 5:05 PM  

...इस पुस्तक का रसा-स्वादन मैं कर ही रही थी कि मेरे एक नजदीकी परिचित के हाथों में यह पुस्तक चली गई!...अब फिर यह पुस्तक मेरे हाथों में आने के बाद ही समीक्षा-कुसुम मैं खिला पाउंगी!...

...आप के द्वारा लिखी गई समीक्षा बहुत ही मन-मोहक है!...रचना का खूब आनंद प्रदान करती है!...आपको और सुनीता जी को बहुत बहुत बधाई!

Amrita Tanmay 5/19/2013 5:07 PM  

सुनीता जी को हमारी भी बधाई एवं शुभकामनाएँ..और सुन्दर समीक्षा के लिए आपका आभार..

Rajendra kumar 5/19/2013 5:17 PM  

पुस्तक की बहुत ही सुन्दर और सार्थक समीक्षा,आभार.सुनीता जी को बधाइयाँ.

ब्लॉग बुलेटिन 5/19/2013 6:03 PM  

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ब्लॉग पोस्टों का किंछाव - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून 5/19/2013 9:12 PM  

वाह आपने तो पूरी पुस्‍तक ही पढ़वा दी .धन्‍यवाद.

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" 5/19/2013 10:11 PM  

आदरणीय संगीताजी ..कल बंदना जी की समीक्षा पढ़ी आज आपकी पढ़ने को मिली..किताब पढ़ने की जिज्ञासा सहज ही मन में उठ गयी ..आपका यह प्रयास सराहनीय है जो साहित्यकार के साथ साहित्य के उन्नयन में बहुत ही महती भूमिका रखता है ..आपके प्रयास को नमन आपको सादर प्रणाम सुनीता जी को हार्दिक बधाई

Jyoti khare 5/20/2013 12:41 AM  

सुंदर भावपूर्ण रचनाओं की सार्थक समीक्षा
इसे पढ़वाने का आभार


आग्रह है पढ़ें "बूंद-"
http://jyoti-khare.blogspot.in


Satish Saxena 5/20/2013 9:28 AM  

सार्थक समीक्षा के लिए आपका आभार ..
सुनीता जी को, इस महत्वपूर्ण उपलब्द्धि पर बधाई !

सदा 5/20/2013 10:52 AM  

यह हूक मिटाने की खातिर
कोई शिल्पकार यहाँ आएगा
और पथरीले इस जीवन को
नन्दन वन सा महकाएगा
बहुत ही अच्‍छी समीक्षा की है आपने .... सुनीता जी को बहुत - बहुत बधाई आपका आभार

सादर

vandana gupta 5/20/2013 11:31 AM  

बहुत ही सुन्दर समीक्षा

रचना दीक्षित 5/20/2013 11:33 AM  

बेहद सुंदर और विस्तृत समीक्षा सुनीता शानू जी की प्रथम कृति की सहज उसे पढ़ने के लिए उत्सुकता जगाती और प्रेरित करती है. बहुत ढेर सारी बधाइयाँ सुनीता जी को.

Ramakant Singh 5/20/2013 6:36 PM  

सुन्दर समीक्षा संतुलित आकर में

mridula pradhan 5/20/2013 8:26 PM  

bahut achchi sameekcha......

kavita verma 5/20/2013 9:14 PM  

sundar pustak sameeksha ...sunita ji ko bahut bahut badhaiyan ...

Sadhana Vaid 5/20/2013 10:43 PM  

सुनीता शानू जी को बहुत-बहुत शुभकामनायें इस कीर्तिमान को स्थापित करने के लिये ! आपने उनकी सुंदर रचनाओं की इतनी सुंदर समीक्षा कर चार चाँद लगा दिए हैं ! इस पुस्तक को अपनी लाइब्रेरी में सजाने की बहुत इच्छा है ! आशा है जल्दी ही पूरी होगी ! सुनीता जी को बहुत-बहुत बधाई !

Kailash Sharma 5/21/2013 1:13 PM  

बहुत सुन्दर समीक्षा...सुनीता शानू जी को बधाई और शुभकामनायें!

देवदत्त प्रसून 5/21/2013 3:49 PM  

आमीक्षा सह विज्ञापन अच्छा लगा !
शानू जी को अभिवादन !

अज़ीज़ जौनपुरी 5/21/2013 8:08 PM  

khoobshurat kavitaon se sazi-dhazi bahut hi sundar pustak. bahut koob,sadr

अज़ीज़ जौनपुरी 5/21/2013 8:08 PM  

khoobshurat kavitaon se sazi-dhazi bahut hi sundar pustak. bahut koob,sadr

प्रतिभा सक्सेना 5/22/2013 11:30 AM  

सुनीता जी की कविताएं मन को छूती हैं ,उनका भाव-जगत वास्तविकता से दूर नहीं है,जीवन के असली रंग वहाँ प्रतिबिंबित होते हैं.
आपकी समीक्षा उनकी विशेषताओं को रेखांकित करते हुये उनके विभिन्न आयामों से परिचित कराती है,संगीता जी.
कवयित्री एवं समीक्षिका दोनों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ !

JAGDISH BALI 5/22/2013 3:37 PM  

और सोचती हूँ
आखिर झगड़ा
किस बात पर हो
कि मैं रूठ पाऊँ
और तुम मुझे मनाओ ।

lovely lines, all !

kshama 5/22/2013 5:38 PM  

Badeehee sundartase aapne yeh pustak parichay karaya...pustak lene ka muddaton baad man kiya...jab kabhi lagta hai,ki,apne pankh kat gaye hain,tab aisee kitaben hausla badhatee hain!

शिवनाथ कुमार 5/23/2013 8:50 PM  

बहुत ही सुन्दर समीक्षा
कुछ पंक्तियों को पढ़कर ही लगता है कि वाकई पुस्तक कितनी अच्छी होगी
सादर आभार !

देवेन्द्र पाण्डेय 5/25/2013 2:51 PM  

पुस्तक पर विस्तृत प्रकाश डाला है आपने। पुस्तक न पढ़ पाने का अफसोस जाता रहा।

Anju (Anu) Chaudhary 5/25/2013 8:16 PM  

बहुत ही सटीक समीक्षा .....ये मैंने भी पुस्तक पढ़ने के बाद जाना कि सुनीता ने हर शब्द दिल से लिखा है इस पुस्तक में

mahendra mishra 5/27/2013 10:15 AM  

सुन्दर कम शब्दों में बढ़िया समीक्षा ... आभार

कविता रावत 5/27/2013 1:20 PM  

बहुत बढ़िया पुस्तक समीक्षा के लिए धन्यवाद ..
शानू जी को "मन पखेरू उड़ चला फिर " पुस्तक प्रकाशन पर हार्दिक शुभकामनाएँ !

Minakshi Pant 5/27/2013 5:32 PM  

बहुत खुबसूरत परिचय किताब कैसी होगी ये आपके परिचय ने बखूबी बयाँ कर दिया सुनीता जी को बहुत २ बधाई और आगे के लिए शुभकामनायें |

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) 5/29/2013 8:48 PM  

काफी विस्तार से विभिन्न आयामों पर मंथन हुआ है.तभी तो मक्खन सी समीक्षा सुनीता जी के भावों की खुशबू को चहुँदिश बिखरा रही है. स्तरीय समीक्षा हेतु आपको बधाई और प्रथम प्रकाशन पर आदरेया सुनीता जी को हार्दिक शुभकामनायें..

Anupama Tripathi 5/30/2013 3:32 PM  

बहुत बढ़िया समीक्षा है संगीता दी....

सुनिता जी को बहुत बहुत शुभकामनाएं.
bahut sare rang hamari bhavnaon ke isme bikhare hain ....!!

Asha Joglekar 6/01/2013 8:29 PM  

सुदर समीक्षा । शानू जी को बधाई ।

Shikha Kaushik 6/03/2013 12:54 AM  

bahut sateek sameeksha prastut ki hai aapne .sunita ji ko badhai v aapka hardik aabhar

Alpana Verma 6/07/2013 2:07 PM  

बहुत अच्छी समीक्षा की है.पुस्तक पढने की लालसा जाग उठी.

shalini rastogi 6/10/2013 8:12 PM  

एक अच्छी पुस्तक से परिचय करवाने के लिए आभार .. बहुत ही सार्थक व सम्पूर्ण समीक्षा प्रस्तुत की है आपने !

Surendra shukla" Bhramar"5 6/14/2013 1:03 AM  


आदरणीया संगीता जी हार्दिक शुभ कामनाएं सुनीता शानू जी को इस उम्दा कृति के लिए और आप को भी विशद और तथ्यात्मक सुन्दर सार्थक समीक्षा के लिए
बहुत खूब
भ्रमर 5

virendra sharma 6/15/2013 10:10 PM  


कन्यादान एक महादान
बस कथन यही एक सुना
धन पराया कह कह कर
नारी अस्तित्व का दमन सुना ....
**************
हर पीड़ा सह कर जिसने
नव - जीवन निर्माण किया
आज उसी को दान कर रहे
जिसने जीवन दान दिया ।

मन पखेरू उड़ चला कृति और समालोचना दोनों स्तरीय रहीं .शुक्रिया इसे पढ़ वाने का .सीधे सीधे टेढ़े प्रश्न उठाने का जोरदार तरीके से -


कन्यादान एक महादान
बस कथन यही एक सुना
धन पराया कह कह कर
नारी अस्तित्व का दमन सुना ....
**************
हर पीड़ा सह कर जिसने
नव - जीवन निर्माण किया
आज उसी को दान कर रहे
जिसने जीवन दान दिया ।

निर्झर'नीर 6/19/2013 3:02 PM  

समीक्षा हेतु आपको और सुनीता जी को हार्दिक शुभकामनायें..

Saras 6/25/2013 7:00 PM  

बहुत ही सुन्दर समीक्षा संगीताजी ......पढ़कर मन और पढ़ने को उत्सुक हो उठा...आभार ....

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