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माँ ..........

>> Saturday, May 11, 2013



माँ शब्द में ---  
मात्र  एक वर्ण 
और एक मात्रा 
जिससे शुरू होती है 
सबकी जीवन यात्रा 
माँ ब्रह्मा  की तरह 
सृष्टि  रचती है 
धरा की तरह 
हर बोझ सहती है 
धरणि बन  हर पुष्प 
पल्लवित  करती है 
सरस्वति बन 
संस्कार गढ़ती है 
भले ही खुद हो अनपढ़ 
पर ज़िंदगी की किताब को 
खुद  रचती है 
माँ हर बच्चे के लिए 
लक्ष्मी  रूपा  है 
खुद अभाव सहती है 
लेकिन बच्चे के लिए 
सर्वस्व देवा है ,
माँ बस जानती है देना 
उसे मान अपमान से 
कुछ नहीं लेना 
माँ के उपकारों का 
न आदि है न अंत 
जो  माँ को पूजे 
वही है सच्चा संत । 


47 comments:

ओंकारनाथ मिश्र 5/11/2013 11:26 AM  

बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ.

vandana gupta 5/11/2013 1:02 PM  

वाह अति उत्तम प्रस्तुति माँ को परिभाषित कर दिया

महेन्द्र श्रीवास्तव 5/11/2013 1:21 PM  

मां की बात होती है तो मुझे मुनव्वर राना की दो लाइनें याद आती हैं..

मां मेरे गुनाहों को कुछ इस तरह से धो देती है,
जब वो बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।

रेखा श्रीवास्तव 5/11/2013 2:50 PM  

माँ के स्वरूप और उसके हमारे जीवन के लिए दिए गए संस्कार और गुणों को लेकर जो मान दिया वह सराहनीय है.
माँ सिर्फ माँ होती है , जो सिर्फ देती है , जब तक उसके आश्रित होते हैं तब तक सब कुछ और जब वह थक जाती है और हमारे अधीन होती है तब भी आशीष ही देती है .

Sadhana Vaid 5/11/2013 3:20 PM  

एक माँ ही तो है जो बिना किसी प्रतिदान की अपेक्षा के सिर्फ देना ही देना जानती है ! लेकिन संतान है जो कहीं चूक जाती है उसे प्यार देने में, अधिकार देने में और सम्मान देने में ! लेकिन माँ तब भी संतान को अपने सहस्त्र हाथों से वरदान ही देती है ! ऐसी ही होती है माँ ! बहुत सुंदर रचना ! मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनायें संगीता जी !

गिरधारी खंकरियाल 5/11/2013 3:35 PM  

मॅा सर्वोपरी है।

Ramakant Singh 5/11/2013 3:36 PM  


मां मेरे गुनाहों को कुछ इस तरह से धो देती है,
जब वो बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।

आपकी चरण वंदना आपने माँ के मर्म को शब्दों में ढाल दिया बधाई कहकर माँ की गरिमा को छोटा करना उचित न होगा

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" 5/11/2013 3:57 PM  

माँ का सचुमुच कोई जवाब नहीं ...मन भावन रचना..सादर b

Suman 5/11/2013 4:37 PM  

माँ के उपकारों का
न आदि है न अंत
जो माँ को पूजे
वही है सच्चा संत

सही कहा है माँ के उपकारों का मोल केवल उसकी पूजा से ही चुकाया जा सकता है ! इसलिए तो हमारे शास्त्रों में उसे सर्व प्रथम "मात्रु देवो भव:" कहा है !
सुन्दर रचना है !

रश्मि प्रभा... 5/11/2013 5:32 PM  

बच्चे का जन्म
और रुदन में पुकार - माँ
और माँ का रोम रोम बच्चे की दिनचर्या में ढल जाता है
वही ब्रह्ममुहूर्त वही सूरज वही शाम वही लोरी
माँ ब्रह्माण्ड से निःसृत अलौकिक किरण है

devendra gautam 5/11/2013 5:58 PM  

गजब संवेदना का संचार करती नज्म.....बधाई....

प्रवीण पाण्डेय 5/11/2013 6:47 PM  

एक कोख, सब जग परिभाषित..

ताऊ रामपुरिया 5/11/2013 7:29 PM  

मां को बहुत ही सुंदर शब्दों में अभिव्यक्त किया आपने. बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

Anju (Anu) Chaudhary 5/11/2013 7:31 PM  

हर माँ को नमन

Anita Lalit (अनिता ललित ) 5/11/2013 8:10 PM  

माँ ... शब्द ही काफ़ी है .... सिर झुकाने के लिए ...
बहुत सुन्दर रचना दीदी !
~सादर!!!

प्रतिभा सक्सेना 5/11/2013 9:23 PM  

*
इस अखिल सृष्टि के नारि-भाव
उस महाभाव के अंश रूप
उस परम रूप की छलक व्यक्त
नारी-मन में जो रम्य रूप.

डॉ. मोनिका शर्मा 5/11/2013 10:56 PM  

सच माँ ऐसी ही होती है ..... मन को छू गयी रचना

Maheshwari kaneri 5/11/2013 11:06 PM  

बहुत ही सुन्दर कोमल प्रस्तुति . सच कहा.मॅा सर्वोपरी है।

Dr. sandhya tiwari 5/11/2013 11:09 PM  

बहुत सुन्दर रचना............माँ को परिभाषित कर माँ के मर्म को शब्दों में ढाल दिया......... मन को छू गयी...........

मेरा मन पंछी सा 5/11/2013 11:25 PM  

बहुत ही सुन्दर बहुत ही कोमल रचना....
:-)

Majaal 5/12/2013 7:27 AM  

बहुत अच्छे, लिखते रहिये ...

कालीपद "प्रसाद" 5/12/2013 11:09 AM  

बहुत सुन्दर मातृ वंदना, मातृ दिवस की शुभकामनाएं

अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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latest postअनुभूति : क्षणिकाएं

shikha varshney 5/12/2013 12:40 PM  

माँ हर परिभाषा से परे
अद्भुत

Anonymous,  5/12/2013 12:57 PM  

माँ को श्रद्धेय नमन।

सादर

दिगम्बर नासवा 5/12/2013 1:13 PM  

एक वर्ण और एक मात्र से श्रृष्टि का निर्माण कर देती है माँ ही तो होती है ...
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति ..
मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ...

हरकीरत ' हीर' 5/12/2013 1:54 PM  

जो माँ को पूजे
वही है सच्चा संत ।

ANULATA RAJ NAIR 5/12/2013 2:01 PM  

बहुत सुन्दर बात कही दी.....
हर पुत्र/पुत्री ऐसे ही सोचे तो कभी किसी माँ की आँख नम न हो...

सादर
अनु

संध्या शर्मा 5/12/2013 2:44 PM  

माँ एक सत्य है, ब्रम्ह है ज्ञान है ...बहुत सुन्दर ... .मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ...

मन्टू कुमार 5/12/2013 3:16 PM  

Maa Bas Jaanti Hai Dena...
Bahut Khub.

Sadar.

अशोक सलूजा 5/12/2013 5:31 PM  

बहना! काश..ये मेरे नसीब में भी होता ......
जग की हर माँ को सादर प्रणाम !

Aruna Kapoor 5/12/2013 7:59 PM  

माँ शब्द स्वयं ही एक विश्व है!...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...एक उत्तम अनुभूति!

Dr.NISHA MAHARANA 5/13/2013 8:34 AM  

ma shabd me puri shristi samai hai ...bahut acchi abhiwaykti sangeeta jee ...

Amrita Tanmay 5/13/2013 9:35 AM  

भावभरी पंक्तियाँ..बहुत सुन्‍दर..

सदा 5/13/2013 12:29 PM  

न आदि है न अंत
जो माँ को पूजे
वही है सच्चा संत ।
कुछ कहने को रहा कहाँ अब ..... :)

नि:शब्‍द हूँ इस अभिव्‍यक्ति पर
सादर

वाणी गीत 5/15/2013 8:41 AM  

माँ में जो बात है , किसी में नहीं , काश हर माँ में यही मिले हर बच्चे को !

Rajesh Kumari 5/15/2013 10:00 PM  

माँ तो माँ होती है माँ जैसा कोई नहीं हमेशा दिल में रहती है माँ के ऊपर लिखी प्रस्तुति बहुत प्यारी हार्दिक बधाई आपको संगीता जी

Anonymous,  5/18/2013 10:44 AM  

मात्र एक वर्ण और एक मात्रा जिससे शुरू होती है सबकी जीवन यात्रा .......भले ही खुद हो अनपढ़ पर ज़िंदगी की किताब को खुद रचती है

Sangeeta ji bahut pyari rachna ... माँ shabd ki itni sundar paribhasha rachi hai aapne, ki jo ab bhi na samjhe माँ ki mamta aur माँ ki mahima wo sabse bada nikrisht hi hoga.

sadar
Manju
मात्र एक वर्ण और एक मात्रा जिससे शुरू होती है सबकी जीवन यात्रा .......भले ही खुद हो अनपढ़ पर ज़िंदगी की किताब को खुद रचती है

Sangeeta ji bahut pyari rachna ... माँ shabd ki itni sundar paribhasha rachi hai aapne, ki jo ab bhi na samjhe माँ ki mamta aur माँ ki mahima wo sabse bada nikrisht hi hoga.

sadar
Manju
www.manukavya.wordpress.com

सारिका मुकेश 5/18/2013 11:30 AM  

माँ पर लिखी आपकी यह अनमोल कविता हैं...माँ तो बस माँ होती है...हार्दिक बधाई और मंगल कामनाएँ!!

कविता रावत 5/18/2013 1:53 PM  

माँ जैसा कोई हो नहीं सकता ....
बहुत सुन्दर ..

मनोज कुमार 5/18/2013 4:55 PM  

बहुत ही सुन्दर!

abhi 5/20/2013 6:21 AM  

bilkul...:)
bahut sundar kavita!!

देवेन्द्र पाण्डेय 5/25/2013 2:52 PM  

माँ के उपकारों का
न आदि है न अंत
जो माँ को पूजे
वही है सच्चा संत ।

...सच्ची बात तो यही है।

M VERMA 6/08/2013 1:14 PM  

जो माँ को पूजे
वही है सच्चा संत ।
माँ तो बस माँ होती है

sushila 6/09/2013 4:24 PM  

उत्तम कृति के लिए बधाई संगीता जी !

Naveen Mani Tripathi 6/24/2013 6:08 PM  

ma ki sundar vyakhya ....aabhar.

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