कविता कहाँ है ?????????
>> Friday, April 26, 2013
आठ - नौ साल की बच्ची
माँ की उंगली थाम
आती है जब मेरे घर
और उसकी माँ
उसके हाथों में
किताब की जगह
पकड़ा देती है झाड़ू
तब दिखती है मुझे कविता ।
अंधेरी रात के
गहन सन्नाटे को
चीरती हुई
किसी नवजात बच्ची की
आवाज़ टकराती है
कानो से
जिसे उसकी माँ
छोड़ गयी थी
फुटपाथ पर
वहाँ मुझे दिखती है कविता ॰
कूड़े के ढेर पर
कूड़ा बीनते हुये
छोटे छोटे बच्चे
लड़ पड़ते हैं
और उलझ जाते हैं
पौलिथीन पाने के लिए
उसमें दिखती है कविता ।
व्याभिचार ही व्याभिचार
बलात्कार ही बलात्कार
सोयी हुई व्यवस्था
अनाचार ही अनाचार
मरी हुई संवेदनाएं
भाषण पर भाषण
भूख पर राशन
निर्लज्ज प्रशासन
लाचार कानून
अब मुझे नहीं दिखती
कहीं कोई कविता ।
65 comments:
लाचार कानून
अब मुझे नहीं दिखती
कहीं कोई कविता ।
बिल्कुल सच कहा आपने ...
सार्थकता लिये सशक्त पंक्तियां
सादर
भावप्रवण।
सच कह रही हो. बेबसी का माहौल है. कहाँ से कविता दिखे :(
प्रभावी रचना .
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (27 -4-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
सूचनार्थ!
कविता खो गई है ...... सन्नाटे में अपना वजूद ढूंढ रही है
nishabd hun ..
कवि और कविता का सीधा ताल्लुक दिल से होता है और आपने दिल की हर बात को सरल शब्दों में लिख दिया
बिलकुल ठीक कह रही हैं आप ! मानवीयता जब इस कदर शर्मसार हो और संवेदनाएं हर पल दम तोड़ती हों तो कविता कहाँ दिखाई देगी ! बहुत ही सशक्त एवँ सार्थक रचना ! बहुत प्रभावी !
बहुत सुंदर रचना
क्या कहने
दुखद परिस्थिति, मन ही मन कविता सहती है।
कविता बह गयी हैं आंसुओं में...
दब गयी है चीखों तले...............
जल गयी है दुराचार की आग में..
कहाँ है कविता???
सादर
अनु
बहुत ही सशक्त और मार्मिक.
रामराम.
सच कहा है आपने कहीं खो गई है कविता... हर तरफ शोर है बस चीख-पुकार, अनाचार ही अनाचार...
कविता की मासूमियत खो गई है...
मार्मिक अभिव्यक्ति ...
रोती,सिसकती मानवता ......त्रासदी ही है कि जब से मानव है तभी से ये कुरूपता रही ही है समाज में ...किसी न किसी रूप में ....!!
मानव के इस चेहरे के प्रारब्ध से कैसे निबटा जाये ...??इसे देखकर तो वाकई लगता है ...कविता कहाँ है ...?????
निर्लज्ज प्रशासन
लाचार कानून
अब मुझे नहीं दिखती
कहीं कोई कविता ।
....बहुत सार्थक और सटीक अभिव्यक्ति...
सचमुच संगीता जी,इतनी विषमता का विष पीते हुए कविता आखिर कब तक रह पाये!
कविता तो तब हो जब शब्दों में सर्थकता लाने वाले कवि दिखे ... कविता तो हर तरफ़ है ..।
नतमस्तक हूँ इस भावना के समक्ष!!
बहुत ही भाव पूर्ण रचना ............ऐसी वेदना में कैसे होगी कविता ..................
आपकी रचनाएँ आमजीवन की वेदना को गहराई से चित्रित करती हैं .....मन में उतरते भाव
मन को नम करती रचना
यह कविता बालमन के भोग रहे सच को व्यक्त करती है
आपने इस पीड़ा का सजीव चित्रण किया है
अदभुत
साधुवाद
सच में, अंतस बस रुदन-स्थल बना बैठा है ... क्या कविता हो ऐसी परिस्थिति में ... जब समाज में व्याप्त व्यभिचार इतना भयंकर हो चुका है कि कुछ समाधान सूझ भी नहीं रहा ... कभी अपनी सभ्यता-संस्कृति पर गर्व करते थे ... आज मस्तक झुक हुआ है, शर्मसार है ...
भावों की निश्छलता कहाँ बची रह पाएगी जो इन दिनों भय , संशय , आराजकता , अविश्वास के भंवर में अटकी है . ऐसे माहौल में निर्मल काव्य कहाँ संभव है !
मार्मिक एवं सटीक !
आदरेया, अत्यंत ही मार्मिक एवम् विचारणीय रचना......
हाथ बुहारन है कहीं , कहीं पड़ी फुटपाथ
कूड़ा-करकट छानती, बिटिया कई अनाथ
बिटिया कई अनाथ,कहाँ ढूँढें हम कविता
हरदिन काली भोर,लिये आता है सविता
कलियाँ कुचलें रोज , दरिन्दे बैठे उपवन
कब तक होगी हाय,कली के हाथ बुहारन ||
अत्यंत मार्मिक एवम् विचारणीय प्रस्तुति!!! ,
Recent post: तुम्हारा चेहरा ,
ufff .kavita bhi kho gyi in balatkaaro atyachaaro main ..har taraf sirf aartnaad .....
बहुत सटीक रचना
सच ही कहें हैं,दिन पर दिन बेबसी बढती जा रही है.
!!
:'(
Bahut sateek likha hai aapne .. shabdon k arth ab gum ho gay ehain
uffffffffffffffff..sangeetaa ji.........
main to yahaan aapko dhanywaad krne aayi thi ki..aap mere blog tak aayi aur....sraahnaa di........
pr yaahn aake afsos se bhr gyi......itne dino tak....yaahaan naa aane ke liye.........
aapki rchnaayen prte prte....kho gyi main to..
aur ye waali.........to bas..dil pe lgti he
bahut bahut shukriyaaaa...aapkaa
aur aapki..wo ik line.." bahut dino baad dikhii"............aisaa lgaa..mano bdii didi ne puchaa ho........shukriyaaaaaaaaa
निशब्द!!! बेहतरीन, उम्दा |
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!..आभार
आपकी यह अप्रतिम प्रस्तुति 'निर्झर टाइम्स' पर लिंक की गई है।कृपया http://nirjhar-times.blogspot.com पर पधारकर अवलोकन करें और आपका सुझाव/प्रतिक्रिया सादर आमंत्रित है।
सादर
बेचैन करते मन के व्यथित प्रश्न ...
शुभकामनायें!
विचार करने को मजबूर करती सुन्दर रचना
Bahut hi khoobsurat abhivyakti. dhanyavaad hum sabko thoda sa aur samvedansheel banane ki koshish ke liye.
-Abhijit (Reflections)
ह्रदय को बहुत अंदर तक हिला गई आपकी यह कविता....जीवन का सत्य, तमाम विषमताओं के संग जीने की लाचारी को दर्शाती है ये रचना...
सच ही तो है ... कविता जन्म लेती है माहोल से ... बिखरी हुई संवेदना से .... वर्ना कविता बेजान शब्दों का पुलिंदा ही है ...
सार्थक रचना ....
बस आह..ये आह भी तो कविता हैं न.. !
मरी हुई संवेदनाएं
भाषण पर भाषण
भूख पर राशन
निर्लज्ज प्रशासन
लाचार कानून
अब मुझे नहीं दिखती
कहीं कोई कविता । ......bahut din baad kavita padhne ko mili .shubhkamnayen
आठ - नौ साल की बच्ची
माँ की उंगली थाम
आती है जब मेरे घर
और उसकी माँ
उसके हाथों में
किताब की जगह
पकड़ा देती है झाड़ू
मार्मिक चित्रण ....
मन को छू गई रचना, बहुत मार्मिक कविता. शुभकामनाएँ.
बहुत ही सुन्दर रचना ।
बहुत ही अच्छी कविता |आभार
बहुत ही अच्छी कविता |आभार
बहुत ही अच्छी कविता |आभार
कविता जिंदादिल संवेदनशील इंसानों में ही रचती-बसती हैं..बहुत बढ़िया रचना
कविता सिर्फ नर्म अहसासों में जीती है ....जब वही कुचल गए तो कविता कैसे जीवित रह सकती है.....कहाँ पनप सकती है
बहुत सही लिखा आपने...
वर्तमान समय के इस परिवेश कहीं खो गयी है कविता..
कैसी कविता ...??
मंगल कामनाएं बच्चियों के लिए !!
dard bhari marmik rachna...
मन को छूने वाली एक बेहतरीन रचना ..वाकई सम्बेदना मर गयी है ..और जब सम्बेदना ही नहीं तो कविता कहाँ ...मेरे ब्लॉग पर आप सादर आमंत्रित हैं ...
बलात्कार ही बलात्कार
सोयी हुई व्यवस्था
अनाचार ही अनाचार
मरी हुई संवेदनाएं
भाषण पर भाषण
भूख पर राशन
निर्लज्ज प्रशासन
लाचार कानून
अब मुझे नहीं दिखती
कहीं कोई कविता ।
Sangeeta ji,sab kuch sahi likha aapne
soyi hui vyavastha
mari hui samvednaye
nirlajj prashasan
Ye lines to har dar darvaje par likh deni chahiye
bas ek line ghalat likhi aapne
jiske liye aapko tarif bhi kafi mili अब मुझे नहीं दिखती
कहीं कोई कविता । agar aap aur hum kavitaya lekhana chhod denge to
ye dunia aur bhi buri ban jayegi.
hame bhagwan ne shabdo ki takat hi isiliye di hai ki hum in sabko jhakjhor de. hamara kartavya hai ki hum in logo ko ahsaas karaye ki unke karan jin logo ko pida pahuch rahi hai,unka bhagvan ke siva is duniya me bhi koi madadgar hai. charam pida(dard) se hi upajti hai sachhi kavita. likho aap, isse bhi jyada tikhe, tikshn shabd-bano ki varsha ka do.yahi Krishna ne Arjun se kaha tha.yahi hamara dharm hai, yahi dharm-yudh. harna nahi. in kavitao ko sahi jagah prakashit karviye.KARMANYE VADHIKARSTE, MA PHALESHU KADACHAN.
बलात्कार ही बलात्कार
सोयी हुई व्यवस्था
अनाचार ही अनाचार
मरी हुई संवेदनाएं
भाषण पर भाषण
भूख पर राशन
निर्लज्ज प्रशासन
लाचार कानून
अब मुझे नहीं दिखती
कहीं कोई कविता ।
Sangeeta ji,sab kuch sahi likha aapne
soyi hui vyavastha
mari hui samvednaye
nirlajj prashasan
Ye lines to har dar darvaje par likh deni chahiye
bas ek line ghalat likhi aapne
jiske liye aapko tarif bhi kafi mili अब मुझे नहीं दिखती
कहीं कोई कविता । agar aap aur hum kavita ya lekhan chhod denge to
ye dunia aur bhi buri ban jayegi.
hame bhagwan ne shabdo ki takat hi isiliye di hai ki hum in sabko jhakjhor de. hamara kartavya hai ki hum in logo ko ahsaas karaye ki unke karan jin logo ko pida pahuch rahi hai,unka bhagvan ke siva is duniya me bhi koi madadgar hai. charam pida(dard) se hi upajti hai sachhi kavita. likho aap, isse bhi jyada tikhe, tikshn shabd-bano ki varsha ka do.yahi Krishna ne Arjun se kaha tha.yahi hamara dharm hai, yahi dharm-yudh. harna nahi. in kavitao ko sahi jagah prakashit karviye.KARMANYE VADHIKARSTE, MA PHALESHU KADACHAN.
Madhukanta
bahut khoob
very very true....
मार्मिक।
काश.. कविता स्वयम् अभिव्यक्त हो पाती! वकील की तरह कवियों की आवश्यकता न पड़ती उसे अपनी पीड़ा बताने के लिए। काश... समझ जाता ऊपर बैठा जज कविता की पीड़ा।
bahut hi satik kadwe sach ko ujagar karti achhi rachna
shubhkamnayen
निशब्द हूँ ....
जी नमस्ते,
आप की रचना को सोमवार 18 दिसम्बर 2017 को लिंक की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आदरणीय दीदी
आप अवश्य आइएगा आज
सादर नमन
बहुत सूंदर और अर्थपूर्ण
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